rashtrya ujala

Thursday, December 2, 2010

माया-मुलायम लालू ना बनो...

बिहार विधानसभा चुनावों में भाजपा-जद(यू) गठबंधन के चहेते और वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मिली ऐतिहासिक जीत ने अन्य प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों की नींद उड़ा दी है। सबसे ज्यादा परेशान गैर एनडीए सरकारें हैं,जिन्हें अगले एक-दो साल में चुनावों का सामना करना है। सबसे ज्यादा चिंता बिहार के पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती और समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव को सताने लगी है। उन्हें डर है कि कहींबिहार की बयार उनके सियासी कुनबे को भी धाराशायी न कर दे। दरअसल इन नेताओं की चिंता लाजिमी है,क्योंकि बिहार में नीतीश कुमार की अगुवाई वाले एनडीए ने प्रदेश में सिर्फ और सिर्फ विकास के नाम के पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की। हमेशा की तरह अपना जनाधार बनाने के मकसद से बिहार चुनावों उतरी सपा और बसपा की इस बार न तो साईकिल चली और न ही हाथी। नतीजा यह रहा कि माया और मुलायम को बिहार में एक सीट भी नहीं मिली। अब जबकि 2012 में उत्तर-प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं,ऐसे में पिछले चुनाव में अपने शोशल इंजीनियंिरंग के जरिए प्रदेश में भारी बहुमत से जीत हासिल करने वाली बसपा प्रमुख मायावती अपना पिछला रिकार्ड दोहरा पाएंगींयह मुश्किल लग रहा है। क्योंकि नीतीश कुमार के नए किस्म की शोशल इंजीनियरिंग मायावती के समीकरण पर भारी पड़ता दिख रहा है। इस बार बसपा से ब्रह्म्ïाण समाज टूटता नजर आ रहा है। चुनावी चिंता से इन दिनों पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव भी खासे परेशान हैं इसकी वजह भी साफ है। दरअसल, लालू प्रसाद के मुस्लिम-यादव समीकरण जैसा ही उत्तर-प्रदेश में मुलायम की पार्टी का भी आधार वोट बैंक इन्हींदो समुदायों का है। मुलायम बिहार चुनावों में लालू की दुर्दशा और उनके समीकरणों को ध्वस्त होते देखा है। ठाकुरों के समर्थन का भरोसा लालू प्रसाद को था,लेकिन ठाकुरों ने चुनाव में उन्हें इस कदर ठुकराया जिसकी उम्मीद उन्हें नहींथी। मुलायम के दाहिना हाथ कहे जाने वाले अमर ंिसंह का साथ छूटने से मुलायम की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। इसी कारण मुलायम ने पुराने साथी मुस्लिम समुदाय के दिग्गज आजम खां को फिर सपा में शामिल कर लिया है। प्रदेश की मुखिया मायावती ने जब सत्ता संभाली तो उन्होंने उत्तर-प्रदेश को अपराध मुक्त राज्य बनाने का वादा किया था। अब जबकि उन्होंने तीन साल से ज्यादा का कार्यकाल पूरा कर लिया है इसके बाद भी प्रदेश की दुर्दशा खासकर कानून और विकास की स्थिति उनकी वादाखिलाफी का जीता जागता उदाहरण है। प्रदेश में अपहरण, हत्याएं,लूट की घटनाओं में लगातार इजाफा हो रहा है। राज्य में न तो नए उद्योग लग रहे हैं और न ही रोजगार के नए अवसर? दरअसल मैडम माया का सारा ध्यान पार्क, मूर्ति निर्माण और बिल्डरों में लगा है। भारत के राजनीतिक इतिहास में वह पहली ऐसी नेता हैं,जिन्होंने जीते-जी अपनी मूर्ति लगवाई है। पिछले दिनों लखनऊ में उन्होंने प्रदेश के आला पुलिस पदाधिकारियों से राज्य में कानून व्यवस्था दुरुस्त करने को कहा है। माया के इस निर्देश से साफ जाहिर है कि उत्तर प्रदेश की गिरती विधि व्यवस्था उनके लिए सरदर्द बन गया है। हालांकि मैडम माया ने घोषणा तो कर दी है कि विकास और अपराध की समीक्षा प्रत्येक जनपद में स्वयं पहुंचकर करेंगी। अब देखना यह है कि इसका आगामी चुनाव में उन्हें कितना लाभ मिलेगा।

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