rashtrya ujala

Friday, January 30, 2009

कपट, कॉर्पोरेट और कठपुतलियाँ

काफी पहले की बात है, अमृतसर में 1994 में जेब कतरने वाली चार महिलाएँ पकड़ी गई थीं तो उनके माथे पर पुलिस द्वारा 'जेबकतरी' गुदवा दिया गया था। ऐसा भी अक्सर होता है कि कोई बाबू या क्लर्क दो सौ रुपए की रिश्वत लेता पाया जाता है तो उसका नाम अखबारों तक में छप जाता है। ऐसा नहीं कि छोटे लोगों की छोटी गलती गलती नहीं है, लेकिन गलती उस व्यवस्था और

दरअसल कुछ एक उम्दा मिसालों को छोड़ दें तो भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस कठपुतलियों के खेल में तब्दील हो गया है, जिसमें प्रमोटर की उँगलियों में सब धागे बँधे हैं, जिसमें नैतिकता, पारदर्शिता और सामान्य प्रजातंत्र का अभाव है

उस समाज की अवश्य है, जिसमें साहस का अभाव है, जिसके कारण वह बड़े लोगों के बड़े-बड़े अपराधों को पचाता है या कहें सर माथे चढ़ाता है, मगर उस पर उँगली कभी नहीं उठाता। अपराधों का पर्दाफाश करना तो बहुत दूर की बात है। सत्यम वाले केस में यदि रामलिंगा राजू ने स्वयं नहीं कबूला होता तो किसी की नजर उन पर पड़ी नहीं थी। या कहें किसी ने उन पर नजर डालने की होशियारी या जुर्रत नहीं की थी।

सत्यम के इंडिपेंडेंट डायरेक्टरों से लेकर चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर तक सभी ने मौन आज्ञाकारिता और जी-हुजूरी को ही सर्वोच्च गुण माना था। कंपनी में असहमति के लिए कोई जगह नहीं थी। इसके सीएफओ वदलमनी श्रीनिवास ने स्वयं इस बात का खुलासा किया है। उन्हें ताकीद थी कि वे बैंक स्टेटमेंट्स को न जाँचें! बैंक डिपॉजिट्स सीधे ही रामलिंगा राजू को भेजे जाते थे। फाइनेंस संबंधी मामलों की कमान राजू और उनके भाई संभालते थे। सीएफओ को कहा गया था कि वे वही करें, जो उन्हें कहा जाए। स्वतंत्र निदेशकों के लिए भी असुविधाजनक सवाल पूछना मना था। दरअसल कुछ एक उम्दा मिसालों को छोड़ दें तो भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस कठपुतलियों के खेल में तब्दील हो गया है, जिसमें प्रमोटर की उँगलियों में सब धागे बँधे हैं, जिसमें नैतिकता, पारदर्शिता और सामान्य प्रजातंत्र का अभाव है। असहमति के लिए वहाँ कोई जगह नहीं है और राजनीतिक साँठ-गाँठ, जी-हुजूरी और हेराफेरी का बोलबाला है। यहाँ किसी को कोई नैतिक उलझन नहीं है। 'अपनी आवाज और आत्मा घर रखकर आओ' का संदेश स्पष्ट है। फिलहाल तो सत्यम की राजनीतिज्ञों से मिलीभगत के मुद्दे पर आएँ। तेलुगुदेशम के कार्यकाल में राजू ने साइबर कार्ड खेलकर चंद्रबाबू नायडू से नजदीकी बनाई। रियल्टी के पत्ते दिखाकर वे अगले मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी के भी नजदीकी हो गए। इन नजदीकियों से उन्हें ये फायदे हुए कि उनकी गलतियाँ दबा दी गईं, उनके प्रोजेक्ट्स को बगैर गुणवत्ता जाँचे हरी झंडी मिली। उसमें नेताओं का हिस्सा तो था ही, जैसे हैदराबाद में मेट्रो रेल परियोजना का ही जायजा लें।मुख्यमंत्री से अच्छे संबंधों के चलते आंध्रप्रदेश सरकार ने राजू और उनके बेटों की कंपनी मयतास इन्फ्रास्ट्रक्चर की शाखा मयतास मेट्रो लिमिटेड को 12,000 करोड़ का हैदराबाद मेट्रो रेल प्रोजेक्ट थमा दिया। इस प्रोजेक्ट में बहुत घपले थे और हैदराबाद की बहुत बड़ी व्यावसायिक भूमि औने-पौने में ही मयतास को सौंप दी गई थी, जिनकी ओर दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन को निष्ठा और सफलता से चलाने वाले ई. श्रीधरन ने ध्यान दिलाया था मगर सरकार ने ध्यान नहीं दिया। उल्टे श्रीधरन पर मानहानि का मुकदमा लगाने की धमकी दी और प्रोजेक्ट से बाहर कर दिया। राजनेताओं से अच्छे संबंधों के चलते राजू को और भी प्रोजेक्ट्स मिले। मछलीपटनम पोर्ट प्रोजेक्ट और काकीनाड़ा में 'सेज' के तीन प्रोजेक्ट्स भी हैं। सत्यम का हैल्थ मैनेजमेंट रिसर्च फाउंडेशन भी सरकार की भागीदारी में है। सर्वधर्म समानार्थी की तर्ज पर तेलुगुदेशम और कांग्रेस से ही नहीं, भाजपा से भी सत्यम के संबंध अच्छे रहे हैं, क्योंकि सभी जगह आपसी स्वार्थों की साझीदारी है। बताया जाता है कि इस पार्टी का रुझान बताने वाले किसी सर्वे के लिए एक सेफॉलॉजी कंपनी को सत्यम की ओर से पेमेंट गया था, किंतु इस मामले में सत्यम ही नहीं और कंपनियों भी शामिल हैं। पहले तो राजनेताओं के साथ कॉर्पोरेट्स का संबंध डोनेशन देने और छोटे-मोटे स्वार्थ पूरे कर

आईटी से संबंधित कुछ युवाओं ने एक इंटरनेट गेम इजाद किया है 'नेल द थीफ'। इस खेल में खेल रहे व्यक्ति को सत्यम प्रमुख की छवि को सड़े अंडे मारना होते हैं। सबसे ज्यादा 'नकली अंडे' मारने वाले को जीतने पर आईपॉड मिलने की व्यवस्था भी है

देने तक ही था लेकिन धीरे-धीरे ढाँचागत विकास और औद्योगिकीकरण की आड़ में बड़े-बड़े उद्यम राजनीतिज्ञों और उद्योगपतियों के संयुक्त प्रयास होने लगे। इसमें आड़ लगाने वाले नौकरशाहों की बदली और निलंबन भी हुआ। आंध्रप्रदेश के ही एक उद्योगपति, जिनका स्टील में 1,800 करोड़ रुपए के टर्नओवर का दावा है, बताया जाता है कि उनके पास स्टील प्लांट ही नहीं है। ऐसा ही फर्जीवाड़ा कई हिस्सों में है।
यूके आधारित इन्वेस्टमेंट ग्रुप नोबल ने अपनी एक ताजा रिपोर्ट में जब यह खुलासा किया कि बीएसई की 500 कंपनियों में हर पाँच में से एक कंपनी के खातों में गड़बड़ है तो नोबल को धमकियाँ मिलीं कि उसकी साख पर बट्टा लगा दिया जाएगा। कॉर्पोरेट जगत में फैली अनैतिकता और फर्जीवाड़े को केवल राजनीतिक साँठ-गाँठ की शक्ति और धमकीबाजी से ही नहीं दबाया जा रहा है, अपितु कॉर्पोरेट्स इसके लिए विनम्र- भलेमानुस वाला चेहरा लगाने से भी नहीं चूक रहे। रामलिंगा राजू का ही उदाहरण लें तो उन्होंने सादगी भरे विनम्र व्यक्तित्व और उदार समाजसेवी की भी छवि बनाई।
सजगता से छवि निर्माण करने वाले उद्योगपतियों द्वारा सादगी और उदारता की किंवदंतियाँ भी फैलाई जाती हैं। भले ही भीतर कितना ही दंभ और छल हो। देश भर के लाखों इन्वेस्टर्स को सोच-समझकर चूना लगाने वाले ये व्यक्ति अपने स्टाफ के अन्य सामान्य सदस्यों की भाँति ही सत्यम का लोगो लगी सामान्य नीली टी-शर्ट पहनकर कार्यस्थल पहुँच जाते थे। हैदराबाद का मध्यम वर्ग उन्हें रोजगार प्रदान करने वाले देवता के रूप में पहचानता था। यह बात और है कि चलते-चलते यह खबर भी मिली है कि जितने एम्प्लाई सत्यम में बताए जाते हैं, उतने सचमुच में नहीं हैं। यहाँ भी फर्जीवाड़ा था। राजू द्वारा खुद ही स्कैम का खुलासा करना भी उनकी एक रणनीति ही थी। इसलिए उनको घेरे में लाना अब भी आसान कार्य नहीं है क्योंकि वकीलों की एक फौज उनके लिए दिन-रात कार्य करती रहेगी। उन्होंने 500 करोड़ रुपए का डैमेज-बीमा भी करवाया हुआ है, जिससे प्राप्त पैसा मुकदमा लड़ने के काम आएगा। व्यवस्था कब सुधरेगी, ऑडिटर्स कब अनुशासित होंगे, सेबी जैसे रेग्यूलेटर्स कब सुव्यवस्था लाएँगे, कब निदेशकों से पूछताछ होगी, कब कॉर्पोरेट जगत में पारदर्शिता आएगी, कब बड़े लोगों को भी सजा मिलेगी? इन सवालों के उत्तर मिलना मुश्किल हैं किंतु यह तो तय है कि जनता अपने तरीकों से तो अपनी भड़ास निकाल ही लेती है। एक छोटा सा उदाहरण है। आईटी से संबंधित कुछ युवाओं ने एक इंटरनेट गेम इजाद किया है 'नेल द थीफ'। इस खेल में खेल रहे व्यक्ति को सत्यम प्रमुख की छवि को सड़े अंडे मारना होते हैं। सबसे ज्यादा 'नकली अंडे' मारने वाले को जीतने पर आईपॉड मिलने की व्यवस्था भी ह - निर्मला भुराड़िया

Wednesday, January 21, 2009

अपराध को बढ़ावा तो नहीं!

जैसे सभी अपराधी, बलात्कारी, लुटेरे, चोर और दूसरे लोग या तो सुधर गए हैं या उन्होंने देश छोड़ दिया है या वे संत बन गए हैं। अपराध देश से खत्म हो गए हैं और लोग पूरी तरह कानून परस्त हो गए हैं। अगर 23 दिसंबर 2008 को लोकसभा द्वारा अनुमोदित अपराध दंड संहिता में हालिया संशोधन को देखें, तो भारत पूरी दुनिया के लिए एक आदर्श देश बन गया है। संसद ने 17 मिनट में बिना किसी बहस के कुल आठ विधेयक पारित किए। अपराध दंड संहिता

सचाई यह है कि हमारे देश में कानून और अधिकारियों की कोई इज्जत नहीं है। कानून पहले से काफी उदार होने की वजह से आम आदमी के लिए न्याय और शांति सुनिश्चित करने में समर्थ नहीं है

में नए संशोधन को उच्च सदन यानी राज्यसभा द्वारा पहले ही पारित किया जा चुका है। यह राष्ट्रपति द्वारा सहमति दिए जाने के बाद, जो कि सिर्फ एक औपचारिकता है, लागू हो जाएगा।
नया कानून पुलिस को उन सभी मामलों में गिरफ्तारी करने से वंचित करता है, जहाँ अधिकतम संभावित सजा सात साल या कम की है। मोटे तौर पर पुलिस चोरों, चोरी का सामान खरीदने वालों, ठगों, अतिक्रमण करने वालों, क्रेडिट कार्ड में हेर-फेर करने वालों, लूट-खरोट करने वालों या जेबकतरों, उठाईगीरों या दंगाइयों, एक-दूसरे को पीटने वालों या तेज गति में गाड़ी चलाने वालों, सड़क दुर्घटनाओं में लोगों को मारने वालों या भ्रष्टाचारियों को गिरफ्तार नहीं कर पाएगी।7 साल से कम की सजा वाले बहुत से अन्य अपराध भी हैं, जैसे हत्या का प्रयास (धारा 308) या लूटपाट (धारा 393), धोखाधड़ी (धारा 320), किसी महिला के सम्मान को ठेस पहुँचना (धारा 354) और लापरवाही से हत्या (धारा 304 ए)। आरोपी को गिरफ्तार करने की बजाय पुलिस अब उसे 'हाजिर होने का नोटिस' जारी करने के लिए बाध्य होगी, जिसमें आरोपी से पुलिस के सामने हाजिर होने और जाँच में 'सहयोग' करने का अनुरोध किया जाएगा। अगर वह नोटिस की अवधि के भीतर इसका पालन न करे, तभी उसे गिरफ्तार किया जाएगा।हो सकता है कि यह नैतिकता के आधार पर और पुलिस को अपनी शक्तियों के दुरुपयोग से रोकने के लिए किया गया हो। सचाई यह है कि हमारे देश में कानून और अधिकारियों की कोई इज्जत नहीं है। कानून पहले से काफी उदार होने की वजह से आम आदमी के लिए न्याय और शांति सुनिश्चित करने में समर्थ नहीं है। सिर्फ कानून पारित करने और पुलिस पर प्रतिबंध लगाने से स्थिति में सुधार नहीं आएगा जब तक कि सिर्फ पुलिस नहीं, बल्कि पूरी आपराधिक न्याय व्यवस्था को देश में अपराध तथा अपराधीकरण रोकने के लिए लैस नहीं किया जाएगा। एक आम नागरिक की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह वकीलों पर काफी पैसा खर्च करने के अलावा अक्सर अपने जीवन काल में न्याय नहीं प्राप्त कर पाता। इसका परिणाम है अदालतों में सभी स्तरों पर मामलों की संख्या बढ़ना, क्योंकि सरकार न्यायिक ढाँचे और कर्मचारियों, जिनमें जाँचकर्ता और अभियोजक शामिल होते हैं, की बढ़ती आवश्यकताओं से तालमेल बिठाने में अनिच्छुक या उदासीन होती है।

1 नवंबर 2008 को सर्वोच्च न्यायालय में कुल 49,263 एडमिशन एंड रेग्यूलर मामले लंबित थे। 30 सितंबर को उच्च न्यायालयों में कुल लंबित दीवानी मामलों की संख्या 3081053 थी और लंबित फौजदारी मामलों की संख्या 754654 थी। इस प्रकार 30 सितंबर 2008 को उच्च न्यायालयों में कुल 3835707 मामले लंबित थे। सबसे अधिक लंबित मामले इलाहाबाद उच्च न्यायालय में थे, जिनकी संख्या 887402 थी। मद्रास उच्च न्यायालय में उसी दिन 446975 मामले लंबित थे। जहाँ तक निचली अदालतों का संबंध है, 7492561 दीवानी मामले और 18897279 फौजदारी मामले लंबित थे। इस प्रकार इन अदालतों में 2 करोड़ 63 लाख 89 हजार 840 मामले लंबित थे।आप मामलों को कैसे निपटाएँगे, जब उनका फैसला करने वाला कोई नहीं होगा। ट्रायल अदालतों में साल-दर-साल रिक्तियाँ लगभग उतनी ही रही हैं। अगर 2007 के अंत में रिक्तियाँ 3233 थीं, तो अब वह 3239 है। निचली न्याय व्यवस्था में जजों की स्वीकृत क्षमता देश भर में 16,158 है। इस तरह रिक्ति का प्रतिशत 20 फीसदी है।यह कई उच्च न्यायालयों के मामलों में भी सच है। लगभग 38 लाख लंबित मामलों के साथ उच्च न्यायालय 886 की स्वीकृत क्षमता के मुकाबले 620 जजों के साथ काम कर रहे हैं। पारित हुआ हर अतिरिक्त कानून या उसमें किया गया संशोधन आपराधिक न्याय प्रणाली का काम बढ़ाता है, चाहे वह किसी मामले की जाँच हो या उस पर फैसला सुनाना। मौजूदा कानून अपराधियों और अपराधी वर्ग के पक्ष में झुका हुआ है। यहाँ तक कि राष्ट्रीय

हमारे देश के संविधान में दिए गए अधिकार मानवाधिकारों की तरह है, लेकिन निश्चित रूप से संविधान के निर्माताओं का इरादा अपराधियों, लुटेरों, चोरों, डकैतों, महिलाओं व बच्चों के शोषकों को कानून के फंदे से बचने के लिए उनका दुरुपयोग करने देने का नहीं होगा

राजधानी में हाई प्रोफाइल मामलों (प्रियदर्शिनी मट्टू और जेसिका लाल) में, जजों ने खुद टिप्पणी की कि उन्हें विश्वास है कि आरोपी ने वह अपराध किया है, लेकिन उन्हें सुबूतों के अभाव में, जो कि कानून की अनिवार्यता है, छोड़ना पड़ रहा है। निश्चित रूप से उच्च न्यायालयों में इन फैसलों को उलट दिया गया।


अपराधियों से सख्ती से निपटने की बजाय उनके लिए जान-बूझकर या अनजाने में नए और नए बचाव के रास्ते बनाए जा रहे हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि जो लोग कानून बनाते हैं या उनकी सिफारिश करते हैं, वे वातानुकूलित कमरे में बैठते हैं और इस बात से पूरी तरह बेखबर होते हैं कि असलियत में क्या चल रहा है। अब तक किसी विधि आयोग ने किसी पुलिस स्टेशन में जाकर ब्योरों की समीक्षा नहीं की कि किसी जाँचकर्ता को सबूत इकट्ठा करने में कौन-सी मुश्किलें आती हैं और आम तौर पर लोग सबूत देने या गवाह बनने के लिए क्यों नहीं आगे आते। किसी विधि आयोग ने एक ट्रायल अदालत में जाकर मुकदमे की पूरी कार्रवाई नहीं देखी, ताकि उसे जमीनी हकीकतों का प्रत्यक्ष अनुभव हो सके। अंत में, हमारे कानून इस पर आधारित हैं कि स्थितियाँ कैसी होना चाहिए, इस पर नहीं कि वे कैसी हैं और समाज तथा पीड़ितों के पक्ष में उन्हें कैसे सुधारा जाना चाहिए? परिणाम यह कि की गई सिफारिशों का देश की मौजूदा स्थिति और जमीनी हकीकतों से कोई लेना-देना नहीं है। किसी भी कानून का परीक्षण ऐसा होना चाहिए कि क्या वह देश में आपराधिक गतिविधियों को बढ़ाएगा और क्या वह अपराधियों को और बेखौफ बनाएगा।हमारे देश के संविधान में दिए गए अधिकार मानवाधिकारों की तरह है, लेकिन निश्चित रूप से संविधान के निर्माताओं का इरादा अपराधियों, लुटेरों, चोरों, डकैतों, महिलाओं व बच्चों के शोषकों को कानून के फंदे से बचने के लिए उनका दुरुपयोग करने देने का नहीं होगा। जोगिन्दर सिं सीबीआई के पूर्व निदेशक

Monday, January 12, 2009

राजू (कैसे) बन गया जेंटलमैन?

सत्यम कम्प्यूटर सर्विसेस के संस्थापक चेयरमैन बी. रामलिंगा राजू ने अंतरआत्मा की आवाज सात जनवरी को ही क्यों सुनी? छह या आठ जनवरी को क्यों नहीं? इस टाइमिंग में क्या कुछ भेद है? कहीं इसलिए तो नहीं कि दक्षिण भारत में इस साल सात जनवरी को ही वैकुंठ एकादशी पड़ी?

दक्षिण भारत में जो चौबीस एकादशियाँ मनाई जाती हैं, उनमें वैकुंठ एकादशी सबसे महत्वपूर्ण है और माना जाता है कि व्रत उपवास करके इस दिन पाप कबूल कर लेने से पापों से मुक्ति मिल जाती है और भगवान तिरुपति बालाजी की कृपा से आदमी को मोक्ष भी प्राप्त होता है।

दक्षिण भारत में जो चौबीस एकादशियाँ मनाई जाती हैं, उनमें वैकुंठ एकादशी सबसे महत्वपूर्ण है और माना जाता है कि व्रत-उपवास करके इस दिन पाप कबूल कर लेने से पापों से मुक्ति मिल जाती है और भगवान तिरुपति बालाजी की कृपा से आदमी को मोक्ष भी प्राप्त होता है।
इसके अलावा यह भी माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु वैकुंठ के दरवाजे खोलकर बैठे रहते हैं और इस दिन अच्छा काम करने से भगवान के पास आसानी से पहुँचा जा सकता है। कहीं राजू ने इसीलिए तो पाप कबूल करने के लिए वैकुंठ एकादशी को नहीं चुना कि भगवान विष्णु खुश हो जाएँ?
* क्या राजू के ये धार्मिक विश्वास ही पापों की स्वीकारोक्ति का कारण हैं? वैकुंठ एकादशी के दिन यह सब होना क्या महज इत्तेफाक है?
राजू दक्षिण भारतीय हैं और सवर्ण भी। हो सकता है वे इस सब पर यकीन करते हों। अगर वाकई ऐसा है, तो हजारों-हजार लोगों का इहलोक बिगाड़ने वाले राजू का परलोक कैसे सुधर सकता है? वैकुंठ एकादशी वाली बात को बिना कारण तूल नहीं दिया जा रहा।
इसमें एक पेंच है। पेंच यह कि क्या वाकई राजू अपनी अंतरआत्मा की आवाज पर गलती मान रहे हैं या इसमें भी वे इन्वेस्टमेंट कर रहे हैं। अगर वो अंतरआत्मा की आवाज पर गलती मान रहे हैं तो माना जा सकता है कि राजू का जेंटलमैन बनना सहज है। अगर ऐसा नहीं है तो यही समझा जाएगा कि राजू परलोक में भी इन्वेस्टमेंट कर रहे हैं।परलोक में इन्वेस्टमेंट ...वैकुंठ एकादशी के दिन पापों की स्वीकारोक्ति ...ताकि धरती पर खूब धन भोगने के साथ-साथ आसमान में भगवान के घर भी ऐश्वर्य का इंतजाम हो जाए? फिर पाप कबूल करने का यह भी अजब तरीका हुआ कि थाने पर जाकर कबूल करने और गिरफ्तारी देने के बजाय कहीं जा छिपे हैं और लोगों को नजर ही नहीं आ रहे। इसे सुविधाजनक शहादत क्यों न कहा जाए?
* क्या वाकई भगवान विष्णु राजू को माफ कर देंगे? वैसे करना तो नहीं चाहिए। भगवान विष्णु अगर सारे निवेशकों की तरफ से, सारे ठगे गए लोगों की तरफ से, कंपनी के मासूम कर्मचारियों की तरफ से राजू को माफ कर देंगे, तो यह अन्याय होगा।
हमारे आर्थिक ढाँचे को हर वो महत्वाकांक्षी व्यक्ति भेद देता है, जो जैसे-तैसे जल्दी से अमीर बन जाना चाहता हो, फिर चाहे वो हर्षद मेहता हो या किसान से सत्यम के मालिक बने राजू। क्या अब कुछ ऐसा नहीं करना चाहिए कि कोई आम आदमी को ठग न सके। क्या इसके लिए भी वैकुंठ एकादशी जैसे किसी खास दिन की जरूरत है?
* राजू का परलोक तो उनके हिसाब से सुधर गया, देखना यह है कि न्यायिक प्रक्रिया से गुजरने के बाद राजू को इस इहलोक में कितनी सजा मिलती है और जेल के दरवाजे उनके लिए खुलते हैं या नह

अटल-आडवाणी का मिश्रण बनना चाहते हैं मोदी

भाजपा में अटल और आडवाणी के बाद पार्टी का चेहरा बनने के दावेदार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी अटलजी (विकास पुरुष) और आडवाणीजी (लौह पुरुष) का मिश्रण बनना चाहते हैं। वाइब्रेंट गुजरात शो के दौरान मोदी राज्य में 2002 में हुए दंगों के दाग को भी धोना चाहते हैं। इसलिए उनके इस शो के दौरान बड़ी संख्या में मुस्लिम देशों या मुस्लिम बहुल देशों के प्रतिनिधि भी भाग लेने वाले हैं। इस मेले में अरब लीग से जुड़े देश भी आएँगे जिनमें इराक, जॉर्डन, मिस्र, लेबनान, सउदी अरब, यमन और सीरिया के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। इसके अलावा संयुक्त अरब अमीरात, मलेशिया, मालदीव, ओमान, ब्रुनेई, ईरान और इंडोनेशिया के प्रतिनिधि भी‍ भाग लेंगे। मोदी के समर्थकों का मानना है कि उनके नेता का यह नया अवतार भाजपा के अन्य चेहरों को दावेदारी में पीछे छोड़ देगा।हालाँकि मोदी को पार्टी में भले ही पूरी तरह से स्वीकार कर लिया जाए पर राजग के ‍कई घटकों के लिए उन्हें स्वीकार करना आसान नहीं होगा।

Thursday, January 1, 2009

यौन शोषण मामला: बसपा नेता गिरफ़्तार

उत्तर प्रदेश पुलिस के अधिकारी
राममोहन गर्ग को पुलिस शुक्रवार को अदालत में पेश करेगी
उत्तर प्रदेश पुलिस ने राज्य मत्स्य आयोग के अध्यक्ष को एक महिला के यौन शोषण के आरोप में गिरफ़्तार किया है.मत्स्य आयोग के अध्यक्ष राममोहन गर्ग को मंत्री स्तर का दर्जा प्राप्त है.गुरुवार देर रात राजधानी लखनऊ में राज्य के पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह ने बताया, "अलीगढ़ में कुमारी सीमा चौधरी नाम की महिला ने उनके ख़िलाफ़ यौन शोषण और मारपीट का मामला दर्ज कराया है जिसके आधार पर उन्हें गिरफ़्तार किया गया है."दूसरी ओर राज्य के कैबिनेट सचिव शशांक शेखर ने बताया कि राममोहन गर्ग को कल ही (बुधवार) मत्स्य आयोग के अध्यक्ष पद से हटाया गया है.लेकिन जानकारों का कहना है कि राममोहन गर्ग ने नवंबर 2007 में बहुचर्चित ताज कॉरिडोर भ्रष्टाचार मामले की सुनवाई लखनऊ की एक अदालत से हटाकर सुप्रीम कोर्ट में कराने के लिए याचिका दायर की थी.उन्होंने अपनी याचिका में ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश की निष्पक्षता पर सवाल उठाए थे. हालाँकि बाद में राज्यपाल टी राजेश्वर ने मायावती के ख़िलाफ़ मुकदमा चलाने की अनुमति ही नहीं दी.ये कहा जा रहा है कि याचिका दायर करने के बाद एक सौदे के तहत राममोहन गर्ग को मत्स्य आयोग का अध्यक्ष बनाकर मंत्री का दर्जा दिया गया था.पिछले कुछ दिनों में मायावती सरकार को लगा ये दूसरा झटका है. इससे पहले इंजीनियर हत्याकांड में उनकी पार्टी के विधायक को पुलिस गिरफ़्तार कर चुकी है.

जमात उद दावा ने अपना नाम बदला

मुंबई हमलों के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा प्रतिबंधित किए गए पाकिस्तान स्थित संगठन जमात उद दावा ने अपनी गतिविधियों को किसी भी प्रतिबंध से बचाने के िए नया नामकरण कर लिया है। सूत्रों ने बताया कि ऐसा लग रहा है कि प्रतिबंधित लश्कर-ए-तोइबा के एक अग्रणी संगठन जमात उद दावा ने अपना नाम बदलकर तहरीक-ए-हुर्मत-ए-रसूल रख लिया है। उन्होंने बताया कि अपना नामकरण फिर से करने के पीछे जमात का उद्देश्य प्रतिबंधों से बचना है, जिसके लिए पाकिस्तान पर दबाव डाला जा सकता है, क्योंकि सुरक्षा परिषद ने 11 दिसंबर को इस पर प्रतिबंध लगा दिया है। सूत्रों ने बताया कि जमात द्वारा अपना नाम बदले जाने के संकेत उस वक्त मिले जब इस संगठन के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने हाल ही में पाकिस्तान में तहरीक-ए-हुर्मत-ए-रसूल (टीएचआर) के बैनर तले एक रैली निकाली। विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने आकाशवाणी पर कहा कि हमें इस बात की जानकारी मिली है कि उसने अपना नया नाम रख लिया है। उन्होंने बताया कि संगठन की वेबसाइट भी अब तक अपडेट होती रही है। दरअसल जमात स्वयं भी लश्कर-ए-तोइबा का परिवर्तित रूप है। अमेरिका द्वारा सात साल पहले प्रतिबंध लगाने के बाद उसने अपना नाम बदला था। वर्ष 1990 में अफगानिस्तान के कुनार प्रांत में गठित किए गए लश्कर-ए-तोइबा का लोकतंत्र में तनिक भी विश्वास नहीं है और उसके संस्थापक सईद ने सार्वजनिक रूप से कई बार ऐलान किया था कि जेहाद ही एकमात्र रास्ता है, जिसके जरिये पाकिस्तान आत्मसम्मान और सम्पन्नता की ओर बढ़ सकता है।
भारत को एहसास हो रहा है कि पाकिस्तान जिहादियों का इस्तेमाल कूटनीति के एक हथियार के रूप में कर रहा है और इसी वजह से वह सुरक्षा परिषद द्वारा मुंबई हमलों को लेकर 11 दिसंबर को प्रतिबंधित किए जाने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। मुंबई हमलों में शामिल पाए जाने के बाद सुरक्षा परिषद ने इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया था। इसे भारत, अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य देशों द्वारा भी गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था। भारत कहता रहा है कि जमात उद दावा तालीम और तथाकथित खैरात के नाम पर विभिन्न अवैध गतिविधियों में शामिल रहा है, मगर उसके बावजूद पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय कानूनों को ताक पर रखकर अपनी नजरें फेरे हुए है। सूत्रों ने बताया कि लाहौर के पास मुरिदके में स्थित जमात या लश्कर के मुख्यालय में गतिविधियाँ अब भी जारी हैं। मेनन ने बताया कि इस समय कथित रूप से नजरबंद जमात के मुखिया हाफिज मोहम्मद सईद के बारे में बताया जा रहा है कि वह अपनी हरकतों में लगा हुआ है। हालाँकि इस दौरान वह मीडिया की नजरों से बचने के लिए बेहद सावधानी बरत रहा है। पाकिस्तान द्वारा सईद का खास ख्याल रखे जाने पर आपत्ति जताते हुए भारत ने सईद को तथाकथित रूप से नजरबंद करने के बजाय स्थायी रूप से कारागार में डालने की वकालत की है। सूत्रों ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा प्रतिबंधित किए जाने के बावजूद पाकिस्तान ने जमात की पत्रिकाओं तथा अन्य साहित्य के प्रकाशन पर पाबंदी नहीं लगाई है।