rashtrya ujala

Sunday, December 28, 2008

पाक में मतदान केन्द्र पर विस्फोट, 8 मरे

पाकिस्तान के अशांत पश्चिमोत्तर क्षेत्र में एक संसदीय क्षेत्र में हो रहे उपचुनाव के दौरान मतदान केन्द्र पर रविवार को हुए कार बम विस्फोट में एक पुलिसकर्मी सहित आठ लोग मारे गए, जबकि 25 अन्य घायल हो गए। टीवी चैनलों पर आई खबरों के अनुसार पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत के बुनेर जिले में सरकारी स्कूल में बनाए गए मतदान केन्द्र के बाहर अज्ञात हमलावरों ने विस्फोटकों से भरी कार को उड़ा दिया। मारे गए आठ लोगों में सिपाही बहादार जैब शामिल है। 29 लोग घायल हो गए। सांसद अब्दुल मतीन खान की मृत्यु के कारण इस संसदीय सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं। विस्फोट मतदान शुरू होने के 90 मिनट बाद हुआ। ऐसी भी खबरें हैं कि मतदान केन्द्र पर आए मतदाताओं पर आसपास की पहाड़ियों पर रहने वाले लोगों ने गोलियाँ बरसाईं। हमले के लिए किसी भी समूह ने जिम्मेदारी नहीं ली है। इससे पूर्व भी इस क्षेत्र में दो विरोधी दलों के समर्थकों के बीच झड़प हो गई।

कश्मीर में नेका-कांग्रेस गठबंधन तय

जम्मू-कश्मीर के चुनाव परिणाम और मिल रहे संकेत राज्य में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के गठजोड़ की ही सरकार बनती दिखा रहे हैं। नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला ने साफ तौर पर कांग्रेस से समर्थन मांगने की बात कह दी है तो कांग्रेस की औपचारिक 'वेटिंग गेम' के साथ ही वरिष्ठ नेता भी साफ कह रहे हैं कि नेशनल कांफ्रेंस के साथ मिल कर सरकार बनाना ही व्यावहारिक होगा। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता में हुई कोर ग्रुप की बैठक में वर्तमान स्थिति पर चर्चा के बाद संशय है तो बस इतना कि सरकार में शामिल हों या बाहर से समर्थन दें।कांग्रेस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी [पीडीपी] की पिछली सरकार के अनुभव के बाद नई सरकार के गठन से पहले गठबंधन के फार्मूले को लेकर जबरदस्त मोल-तोल होने की संभावना है। मामला कश्मीर का है, इसलिए सरकार गठन से पहले केंद्र भी नेशनल कांफ्रेंस से कई बातें साफ करना चाहेगा। संभव है कि सोमवार को नेशनल कांफ्रेंस की तरफ से औपचारिक तौर पर समर्थन मांगने की कवायद शुरू हो।नेशनल कांफ्रेंस के फारूक और उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस का समर्थन मांगने की बात कहने के साथ ही यह भी कहा है कि वह भाजपा का समर्थन लेने के बजाय विपक्ष में बैठना पसंद करेंगे। हालांकि भाजपा ने भी राज्य में सरकार बनाने के लिए किसी अन्य दल को समर्थन देने की बात से इनकार कर दिया है। पीडीपी की महबूबा मुफ्ती जान रही हैं कि पिछली सरकार के वक्त जिस तरह उनकी पार्टी ने कांग्रेस से समर्थन वापस लेकर सरकार गिराई उसे देखते हुए कांग्रेस का उनके साथ आना बेहद मुश्किल है। हालांकि पीडीपी ने जिस तरह संप्रग सरकार बचाने के लिए लोकसभा में सरकार के पक्ष में मतदान किया था, उसे दरकिनार नहीं किया जा सकता। लेकिन उस वक्त नेशनल कांफ्रेंस ने भी सरकार का साथ दिया था। उमर ने तो सरकार के पक्ष में संसद में जम कर तकरीर भी की थी।रविवार की शाम सोनिया के आवास पर प्रणब मुखर्जी, ए के एंटनी, जम्मू-कश्मीर के प्रभारी पृथ्वीराज जैसे वरिष्ठ नेताओं से सभी मुद्दों पर विचार-विमर्श हुआ। पार्टी सूत्रों के अनुसार नेशनल कांफ्रेंस के साथ मिली-जुली सरकार बनना तय है। इसके स्वरूप को लेकर कांग्रेस नेतृत्व सोमवार को चर्चा करेगा। इन दोनों दलों के साथ आने का एक बड़ा कारण कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी और उमर अब्दुल्ला की दोस्ती भी रहेगी। चुनावी नतीजों के बाद फारूक अब्दुल्ला ने साफ कर दिया कि नेशनल कांफ्रेंस के नेतृत्व वाली सरकार की कमान उमर ही संभालेंगे। ऐसे में उमर को मुख्यमंत्री स्वीकार करने में कांग्रेस को शायद ही कोई एतराज होगा।पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद भी कांग्रेस के नेशनल कांफ्रेंस के साथ जाने के हिमायती हैं।हालांकि उन्होंने कहा कि इसका फैसला प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को करना है। डा. कर्ण सिंह ने भी अपनी निजी राय की आड़ में कहा है कि नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के गठजोड़ की सरकार ज्यादा व्यावहारिक नजर आ रही है। पीडीपी के साथ गठबंधन के पिछले अनुभवों को देखते हुए भी आजाद पीडीपी के साथ जाने के हक में नहीं हैं।

Friday, December 26, 2008

कम होंगे दिल के घाव

अमेरिकी डॉक्टर ऐसी दवा बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे दिल के दौरे से होने वाले स्थायी नुकसान को कम किया जा सके। अमेरिकी शोधार्थियों ने पाया कि चूहों में बनने वाली एक खास प्रोटीन का रास्ता बंद करने से दिल को हुआ नुकसान कुछ हद तक कम हो गया।


इस शोध का विवरण 'नेचर ेल बायोलॉजी' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। जब दिल के दौरे के दौरान इसे रक्त की आपूर्ति करने वाली किसी एक धमनी के बंद हो जाने से दिल को ऑक्सीजन की सख्त जरूरत होती है तो यह कई प्रकार से दिल को नुकसान पहुँचाती है। इस शुरुआती क्षति से सूजन होती है, जिससे कोलेजन (एक तरह का प्रोटीन) स्कार कोशिका का जन्म होता है। इस प्रक्रिया को उस अंग का फाइब्रोसिस कहते हैं, जो इसके रक्त पंप करने की क्षमता में स्थायी रूप से बाधा डाल सकती है।
चूहों पर प्रयोग : यूनीवर्सिटी ऑफ विस्कांसिस मेडिसन और न्यूयॉर्क की कोर्नेल यूनिवर्सिटी के शोधार्थी ऐसे केमिकल मैसेंजर की तलाश कर रहे हैं, जो रक्त प्रवाह जारी रखने में मदद करता रहे।
वे खासतौर पर एसएफआरपी-2 नामक प्रोटीन की भूमिका पर गौर कर रहे हैं, जिसका संबंध इससे पहले कोलेजन के निर्धारण के साथ नहीं माना जाता था।उन्होंने परीक्षण के लिए ऐसे चूहों पर प्रयोग किया, जिनमें इस प्रोटीन का अभाव था। उन्होंने इस पर गौर किया कि दिल के दौरे के बाद इनमें क्या अंतर रहता है। उन्होंने पाया कि इस प्रोटीन के अभाव वाले चूहों के दिलों में घाव बहुत कम थे।
इसके एक शोधार्थी प्रोफेसर डेनियल ग्रीनस्पान ने कहा महत्वपूर्ण है कि हमने पाया कि जब हमने फाइब्रोसिस का स्तर कम किया तो चूहों में दिल की कार्यक्षमता स्पष्ट रूप से बढ़ती गई। हालाँकि इस प्रोटीन एसएफआरपी-2 को प्रयोग अभी तक मानव में नहीं किया गया है, फिर भी उम्मीद है कि ऐसी दवा मानव में दिल के दौरे के कुछ घंटों में ही इसका प्रभाव कम कर सकेगी। लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज में मॉलिक्युलर कार्डियोलॉजी के रीडर डॉ. पॉल रिले ने कहा कि यह खोज उत्साहवर्धक है। उन्होंने कहा फाइब्रोसिस बहुत महत्वपूर्ण है। निश्चित रूप से हमें कोलेजन के जमा होने को बचने की जरूरत है। उनके अनुसार ऐसे इलाज करने का सवाल ही पैदा नहीं होता, जिसमें नई माँसपेशियाँ या रक्तवाहिनियाँ विकसित की जाएँ, क्योंकि अगर ज्यादा घाव होंगे तो यह इसे ठीक प्रकार से काम करने से रोकेगा। इसके बजाय फाइब्रोसिस को कम करने से ज्यादा सफलता की उम्मीद है। शोधार्थियों ने कहा कि जिगर और फेफेड़ों की दूसरी ऐसी बीमारियों में भी इस प्रोटीन का रास्ता बंद करने से फायदा हो सकता है, जिनमें बड़े घाव और नुकसान होते हैं।

Friday, December 19, 2008

इस्लाम नफरत का मजहब नहीं है

छब्बीस नवंबर 2008 को मुंबई ने आतंकी हमलों का सबसे बुरा रूप देखा। दस आतंकवादी कई इमारतों में घुस गए, अंधाधुँध गोलियाँ चलाईं और कितने ही लोग मारे गए और जख्मी भी हुए। कहा जाता है कि पैगम्बर मोहम्मद के दौर में एक शख्स था। उसका मुख्य काम यही था कि पैगम्बर के बारे में अनाप-शनाप बोलता रहे और उनके बारे में गलत अफवाहें फैलाए। इस आदमी का बेटा अपने बाप की इस आदत से बहुत खफा रहता था। वह धर्मगुरु के पास गया और उसने उनसे अपने पिता को जान से मार देने की इजाजत माँगी। धर्मगुरु ने उसे ऐसा करने से मना कर दिया, क्योंकि ऐसा करने पर लोग कहते कि उन्होंने अपने

एक घटना में, धर्मगुरु मूसा ईश्वर से प्रार्थना करते हैं- 'हे ईश्वर, मेरे अनुयायियों से सबकुछ ले ले, मगर उनका विवेक उनसे मत छीन।' ईश्वर उत्तर देते हैं- 'हे मूसा, अगर हम किसी समुदाय से कोई चीज लेने का निर्णय करते हैं, तो यह उनका विवेक है, जो हम लेते है

अनुयायियों को कत्लोगारत में लिप्त होने की शिक्षा दी है। इस घटना से जो संदेश मिलता है उसका मतलब यह है कि कोई भी ऐसा काम जिससे इस्लाम का नाम खराब होता हो, नहीं किया जाना चाहिए। ये सारी घटनाएँ हदीसों में दर्ज हैं, लेकिन लोग इनसे सबक नहीं लेते क्योंकि वे इनका गहरा अध्ययन नहीं करते।
यहूदी शास्त्रों में भी बहुत सारी कहानियाँ हैं। एक घटना में, धर्मगुरु मूसा ईश्वर से प्रार्थना करते हैं- 'हे ईश्वर, मेरे अनुयायियों से सबकुछ ले ले, मगर उनका विवेक उनसे मत छीन।' ईश्वर उत्तर देते हैं- 'हे मूसा, अगर हम किसी समुदाय से कोई चीज लेने का निर्णय करते हैं, तो यह उनका विवेक है, जो हम लेते हैं।'
आज बहुत सारे मुसलमान अपना विवेक खो बैठे हैं, हाल में मुंबई में हुई वारदातों से यह साफ जाहिर होता है। जो मुसलमान मुंबई में हुए हमलों में शरीक बताए जाते हैं, उन्हें क्या मिला? फिलिस्तीन में, अरब पिछले साठ वर्षों से लड़ाई लड़ रहे हैं, उन्हें आज तक कुछ हासिल नहीं हुआ। बहुत सी जगहों पर मुसलमान आत्मघाती बम के रूप में इस्तेमाल हो रहे हैं जबकि इस्लाम में आत्महत्या को गैरशरई या गैर इस्लामी करार दिया गया है। यह पतन और विवेकहीनता का परिणाम है। जो लोग इस तरह की कार्रवाइयों में लगे हैं, वे इस बात से अनजान हैं कि एक दिन उन्हें अल्लाह के सामने जाना होगा और अपने किए का हिसाब-किताब देना होगा। इस पागलपन की वजह क्या है और इसकी शुरुआत कहाँ से हुई? इसका कारण है- नफरत! नफरत इंसान से कुछ भी करवा सकती है। नफरत शैतान से शुरू हुई।
जब अल्लाह ने आदम की रचना की, तो उन्होंने फरिश्तों और शैतान दोनों को उनकी इबादत में झुकने को कहा। शैतान ने ऐसा करने से मना कर दिया, तब अल्लाह ने उससे कहा, 'तुम और तुम्हारे अनुयायी नर्क में जाएँगे।' शैतान ने इंसान और इंसानियत के प्रति अपने मन में ऐसी घृणा पाल ली कि यह जानते हुए भी कि उसकी जगह नर्क होगी, उसने अल्लाह का हुक्म नहीं माना। नफरत इतनी अंधी होती है कि वह किसी को नर्क तक में ले जाती है। मैंने अपनी पढ़ाई-लिखाई मुस्लिम पाठशालाओं और मदरसों में की है। मैंने मुसलमानों की अनगिनत सभाओं में शिरकत की है और इनमें से कई स्थानों पर मुसलमानों के दिमाग में नफरत और गौरव की भावनाएँ भरते हुए देखा है। उन्हें पढ़ाया जाता है- 'हम धरती पर अल्लाह के खलीफा और नुमाइंदे हैं।' मैं एक बार एक अरब से मिला, जिसने मुझसे पहला सवाल यही पूछा- हम कौन हैं? फिर उसी ने यह भी कहा- हम जमीन पर खुदा के खलीफा हैं। मैंने उसे बताया कि यह हमारी हदीसों में कहीं भी नहीं लिखा है। सही-अल-बुखारी कहते हैं कि मुसलमान धरती पर अल्लाह की गवाहियाँ हैं। इसका मतलब यह हुआ कि उन्हें धरती पर अल्लाह का संदेश फैलाना है। यही बात कुरान में कही गई है कि मुसलमानों का काम अल्लाह के संदेश को फैलाना और उसकी हिदायतों के अनुसार जिंदगी बसर करना है। पर हुआ क्या है कि मुसलमानों ने तमाम तरह की तहरीकें शुरू कर दीं और सत्ता में दखल करने को लेकर प्रचार शुरू कर दिया। यह सोच तब से बनी जब मुगल साम्राज्य का पतन होने लगा, और मुसलमानों ने शेष दुनिया को शोषक के रूप में देखना शुरू किया, जो उनसे उनके अधिकार और सत्ता छीनना चाहते थे। राजनीतिक सत्ता परीक्षा के प्रश्न-पत्र की तरह है। एक प्रश्न-पत्र कभी भी किसी एक के अधिकार में नहीं होता, यह एक हाथ से दूसरे हाथ में जाएगा, क्योंकि अल्लाह हर समुदाय का इम्तहान लेना चाहता है। लिहाजा अगर आज राजनीतिक सत्ता आपसे ले ली गई है तो आपको धीरज रखना होगा। पहले सत्ता आपके पास थी तो इम्तहान का पर्चा आपके पास था, और अब, जब सत्ता किसी और को सौंप दी गई है तो यह उनका पर्चा है। किसी ने भी मुसलमानों को नहीं बताया कि उनकी सत्ता के इम्तहान का पर्चा अब खत्म हो गया है और अब उन्हें अन्य रचनात्मक गतिविधियों जैसे शिक्षा, समाज सुधार, स्वास्थ्य आदि के मसलों पर काम करना चाहिए। उदाहरण के लिए फिलिस्तीन में यह खुदा का फैसला था कि राजनीतिक सत्ता किसी और के हाथों में हो, सो मुसलमानों को इसे कबूल कर लेना चाहिए, लेकिन वे साठ साल से लड़ रहे हैं और इस लड़ाई से उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ। दूसरे विश्वयुद्ध से पहले जापानियों की सोच वही थी, जो अभी मुसलमानों की है। उस समय

इतिहास की यह घटना मुझे यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि मुसलमानों के भीतर से नफरत खत्म क्यों नहीं होती? ऐसा इसलिए कि मुसलमानों की नफरत एक खास दिमागी सोच का प्रतिबिम्ब है

हिरोहितो जापान का सम्राट था। जापानियों के मन में यह धारणा घुसी हुई थी कि उनका राजा दुनिया को शासित करने के लिए पैदा हुआ है। नतीजतन उन्होंने कितने ही देशों के साथ युद्ध किया। ये जापानी थे जिन्होंने आत्मघाती बमों की शुरुआत की जिसे हम 'हारा-किरी' के नाम से जानते हैं।
लेकिन 1945 में अमेरिका ने जापान पर दो एटम बम गिराए और जापानी सेना को नेस्तनाबूद कर दिया। जापान को लज्जाजनक हार का सामना करना पड़ा। तब जापानियों को समझ में आया कि राजा, खुदा नहीं था, वर्ना वह उन्हें बचा लेता। उसके बाद इतिहास गवाह है, जापान ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इतिहास की यह घटना मुझे यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि मुसलमानों के भीतर से नफरत खत्म क्यों नहीं होती? ऐसा इसलिए कि मुसलमानों की नफरत एक खास दिमागी सोच का प्रतिबिम्ब है। जापानियों का विश्वास है कि - राजा ही ईश्वर है- गलत साबित हुआ और वह धारणा खत्म हो गई, लेकिन आमतौर पर दिमाग में जमी हुई धारणाएँ अपनेःआप खत्म नहीं होतीं। इन्हें तभी दूर किया जा सकता है जब इनके विरुद्ध एक तरह की 'डिकंडीशनिंग' की जाए यानी नकारात्मक सोच पर वास्तविकता की गहरी चोट पड़े।अब मोहम्मद साहब जैसे धर्मगुरु तो रहे नहीं जो अपने अनुयायियों की सोच को इस हद तक प्रभावित कर सकें। यह एक मुश्किल काम है। सैद्धांतिक सोच को बदलने के लिए मुसलमानों को अपने भीतर से पहल करनी होगी ताकि उन्हें अपनी नफरत से बाहर निकलने में मदद मिल सके।
मौलाना वहीदुद्दीन खान

युद्ध के लिए उकसा रहा है पाकिस्तान

भारत भी युद्ध के लिए पूरी तरस से तैयार
हाल के कई संकेतों से पता लगता है कि मुंबई पर हमला करने वाले आतंकवादियों का उद्‍देश्य भारत को सैन्य कार्रवाई के लिए भड़काना है। भारतीय सीमा से लगे पाक क्षेत्र में पाकिस्तानी वायुसेना की गतिविधियाँ बढ़ गई हैं और स्थिति यहाँ तक पहुँच गई है कि भारत को अपनी वायु रक्षा तैयारी का जायजा लेने के लिए विवश होना पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में पाकिस्तान की ओर से यह आरोप लगाया गया था कि भारतीय विमानों ने पाक हवाई सीमाक्षेत्र का अतिक्रमण किया है।

भारत की ओर से सुरक्षा तैयारियों को सुनिश्च‍ित किया जा रहा है ताकि पाक वायु सेना हमारी वायुसीमा का उल्लंघन न करे। पाकिस्तानी लड़ाकू विमान अपनी सीमा में रहते हुए आक्रामक तेवर दिखा रहे हैं ताकि भारत को युद्ध के लिए भड़काया जा सके

सरकारी सूत्रों का कहना है कि भारत की ओर से सुरक्षा तैयारियों को सुनिश्च‍ित किया जा रहा है, ताकि पाक वायुसेना हमारी वायु सीमा का उल्लंघन न करे। पाकिस्तानी लड़ाकू विमान अपनी सीमा में रहते हुए आक्रामक तेवर दिखा रहे हैं, ताकि भारत को युद्ध के लिए भड़काया जा सके और उनकी आतंकवादी गतिविधियों पर से दुनिया का ध्यान हट सके। हालाँकि अभी तक पाकिस्तानी विमानों ने भारतीय हवाई सीमा का उल्लंघन नहीं किया है, लेकिन वे भारतीय वायु सीमा के बहुत करीब उड़ान भर रहे हैं। भारत इन परिवर्तनों पर नजर रखे हुए है।

बुधवार को ही भारतीय वायुसेना ने दिल्ली की सुरक्षा के लिए तीन मिग-29 विमानों को पश्चिमी उप्र के हिंडन एयरबेस पर तैनात किया था। इसके लिए आपातकाल में अम्बाला या बरेली से विमान मँगाए जाने की जरूरत नहीं समझी गई। गुरुवार को रक्षामंत्री एके एंटनी ने तीनों सेनाओं के प्रमुख और रक्षा सचिव के साथ सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की और सेना की तैयारियों का जायजा लिया।

रक्षा मंत्री ने तीनों सेना प्रमुखों से भी पूछा कि वे संबंधित खुफिया सूचनाओं के मद्देनजर किस प्रकार से प्रतिरक्षा की समुचित व्यवस्था को सुनिश्चित करने जा रहे हैं। युद्ध होने की स्थिति में कौन से महत्वपूर्ण उपकरणों की जरूरत होगी

रक्षामंत्री ने तीनों सेना प्रमुखों से भी पूछा कि वे संबंधित खुफिया सूचनाओं के मद्देनजर किस प्रकार से प्रतिरक्षा की समुचित व्यवस्था को सुनिश्चित करने जा रहे हैं। इस बैठक में कुछ महत्वपूर्ण बातें यह भी रखी गईं कि युद्ध होने की स्थिति में कौन-से महत्वपूर्ण उपकरणों की जरूरत होगी और कौन-कौन-से हथियार हमें मिलने वाले हैं, ताकि उन्हें जल्दी से जल्दी पाने की कोशिश की जाए। इस बैठक में समुद्र तटीय और समुद्री किनारों पर स्थित ‍संपत्तियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सभ‍ी एजेंसियों से मिली खुफिया जानकारी को साझा करने और उसके अनुरूप तैयारी रखने की बात भी कही गई। हालाँकि भारत ने यह बात बार-बार दोहराई है कि भारतीय वायुसेना ने पाक अधिकृत कश्मीर के आतंकवादी शिविरों की टोह लेने की कोशिश नहीं की है फिर भी पाकिस्तान की ओर से ऐसी कार्रवाइयाँ की जा रही हैं, ताकि भारत भड़ककर हमला कर दे। यह कार्रवाइयाँ राजनयिक स्तर से लेकर सैन्य स्तर तक चल रही हैं।
इस स्थित‍ि के मद्‍देनजर भारत इसराइल से स्पाइडर लो लेवल क्विक रिएक्शन मिसाइलों को लेना चाहता है। 18 ऐसी मिसाइलों की खरीद के बाद भी सरकार 14 और मिसाइलें लेने की तैयारी कर रही है। इनके मिलने से हमें पाक वायुसेना की तैयारियों की तुलना में बेहतर स्थिति प्राप्त होगी। इनके अलावा भारत को 126 लड़ाकू विमान खरीदना हैं और अग्रिम रक्षापंक्ति के लिए रूस से सुखोई-तीस लड़ाकू विमानों को प्राप्त करने की कोशिश की जा रही है, ताकि देश के लड़ाकू विमानों के बेड़े को मजबूत बनाया जा सके। साथ ही देश अपनी मिसाइल रक्षा कवच तैयारियों को भी बढ़ाना चाहता है। मुंबई पर हमला करने वाले आतंकियों का मकसद भी भारत को सैन्य कार्रवाई के लिए उकसाने का था। उल्लेखनीय है कि दिसंबर 2001 में संसद पर हुए हमले के बाद भी ऐसा हुआ था और तब अगर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का बहाना बनाकर पाक एक लाख पाकिस्तानी फौजी अफगानिस्तान सीमा से हटाकर भारतीय सीमा की ओर भेज देता तो इससे वहाँ अमेरिका और अफगानिस्तान के साथ जंग में उलझे तालिबान और अल कायदा को साँस लेने की फुरसत मिल जाती। वे वहाँ नए सिरे से अपनी मुहिम को आगे बढ़ा पाते। अगर तब भारत और पाकिस्तान के बीच में युद्ध शुरू हो जाता तो स्वाभाविक है कि सारी दुनिया का ध्यान अल कायदा और तालिबान से हट जाता।

पाकिस्तान के इस खेल का नतीजा पाकिस्तान के विघटन के रूप में सामने आ सकता था जो भारत के लिए कम खतरनाक नहीं होता क्योंकि अभी तक तालिबान और अल कायदा के जो तत्व पाकिस्तान तक सीमित हैं वे सीधे भारत पर हमला करने की स्थित में होते

पाकिस्तान के इस खेल का नतीजा पाकिस्तान के विघटन के रूप में सामने आ सकता था जो भारत के लिए कम खतरनाक नहीं होता, क्योंकि अभी तक तालिबान और अल कायदा के जो तत्व पाकिस्तान तक सीमित हैं वे सीधे भारत पर हमला करने की स्थित में होते। पाकिस्तान यह सब करने के इरादे से ही सक्रिय है, इसलिए उसके हाथ में खेलने का तो कोई औचित्य नहीं है। अगर दूसरे तरीके से सोचें तो मुंबई के हमलों की तुलना अमेरिका के 9/11 से की जा सकती है। सिर्फ पैमाने के स्तर पर ही देखें तो 9/11 के हमलों में मुंबई के 15 गुने से भी ज्यादा लोग मारे गए थे। पिछले 60 सालों में अमेरिका पर बाहरी हमले की यह पहली घटना थी। इस घटना ने दुनिया के बारे में अमेरिका का नजरिया बदल दिया। मुंबई हमला ठीक-ठीक उसी तरह भारत का विश्व-दृष्टिकोण बदल पाएगा, इसमें संदेह है। यह तुलना हमारी सोच को यहाँ तक ले जाती है कि 9/11 के बाद अमेरिका द्वारा शुरू किया गया ग्लोबल वार ऑन टेरर बिलकुल ठीक था इसलिए भारत को भी आगा-पीछा सोचे बिना पाकिस्तान पर हमला कर ‍देना चाहिए, जबकि पाकिस्तान तो यही चाहता है कि दोनों देशों के बीच युद्ध हो और पहले से कुंद हो चुके वार ऑन टेरर की धार और भी कुंद हो सके। जबकि वास्तविकता यही है कि बुश की रची यह लड़ाई बुरी तरह नाकाम साबित हुई।
यह दस लाख से ज्यादा मौतों की वजह बनी, इस्लामोफोबिया का दानव इसने ही खड़ा किया और आतंकवाद तथा वैश्विक असुरक्षा में इससे जबरदस्त वृद्धि देखने को मिली। क्या हम पाकिस्तान पर हमला करके तालिबान और अल कायदा के उन तत्वों का सफाया कर सकते हैं जो पाकिस्तान में न केवल अपनी जड़ें जमा चुके हैं, वरन पाक के कट्‍टरपंथी समाज का आधार स्तम्भ बन चु्के हैं? भारत पर जो हमला हुआ है वह क्या आईएसआई और उसके पैदा किए गए आतंकवादी संगठनों की मदद के बिना पूरा हो सकता था? भारत में जो आतंकवादी घटनाएँ होती हैं क्या वे अपने आप होती हैं? आज पाकिस्तान में यह स्थिति है कि प्रशिक्षित आतंकवादी संगठनों को आईएसआई या पाक सेना भी नियंत्रित नहीं कर सकती है। इसलिए यह नहीं माना जा सकता है कि लश्कर-ए-तोइबा, आईएसआई, पाकिस्तानी सेना और वहाँ की निर्वाचित सरकार के बीच किसी तरह के सीधे समीकरण हों, क्योंकि पाक सरकार का भी इन पर कोई सीधा नियंत्रण नहीं है। इसलिए पाकिस्तानी सरकार का सबसे बड़ा हथियार यही बन गया है कि अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई या दबाव का सामना करने के लिए भारत को युद्ध के लिए भड़का दिया जाए। इसलिए भारत के लिए इस मामले में सही रास्ता यही है कि वह अपने आंतरिक सुरक्षा उपायों को पुख्ता करे और पाकिस्तान को अपने यहाँ मौजूद आतंकवादी ढाँचों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई के लिए मजबूर करे। आक्रामकता को अभी इससे ज्यादा खींचना देश के लिए अच्छा नहीं रहेगा, क्योंकि पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन, सेना और आईएसआई यही चाहते हैं कि भारत बौखलाकर हमला कर दे। अगर हम भी ऐसा करते हैं तो इससे पाकिस्तान में आतंकवादी तत्वों के ही मंसूबे पूरे हो जाएँगे।

Thursday, December 11, 2008

पूर्व सांसद की फांसी उम्रकैद में बदली गई

पटना। बिहार के गोपालगंज जिले के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णया की हत्या के मामले में पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शिवर्कीति सिंह और एफएम़. महफूज आलम की दो सदस्यीय खंडपीठ ने बुधवार को पूर्व सांसद आनंद मोहन की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया।
इस मामले के शेष छह आरोपियों को भी बरी कर दिया गया। पटना व्यवहार न्यायालय के अपर सत्र न्यायाधीश (एडीजे) रामश्रेष्ठ राय की अदालत ने इस मामले में पिछले वर्ष अक्टूबर में आनंद मोहन, अरुण कुमार सिंह और पूर्व विधायक अखलाक अहमद को फांसी की सजा सुनाई थी, जबकि आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद और सह आरोपियों मुन्ना शुक्ला, शशिशेखर ठाकुर एवं हरेन्द्र प्रसाद को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। निचली अदालत द्वारा फांसी की सजा दिए जाने के बाद से आनंद मोहन, अखलाक अहमद और अरुण कुमार न्यायिक हिरासत में हैं। गोपालगंज के जिलाधिकारी की हत्या 5 दिसंबर 1994 को मुजफ्फरपुर-गोपालगंज पथ पर दिनदहाड़े कर दी गई थी।

संयुक्त राष्ट्र के सहारे ही जमात ने पसारे थे पैर

मुंबई हमलों के लिए जिम्मेवार आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के मुखौटे 'जमात-उद-दावा' पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने भले ही पाबंदी लगा दी हो, लेकिन सच्चाई यह भी है कि आतंकी कारनामों को अंजाम देने में अहम भूमिका निभाने वाला यह संगठन संयुक्त राष्ट्र की वजह से ही फला- फूला। इसे यूएन की अनदेखी का ही नतीजा कहा जा सकता है कि सन 2002 में खुद सुरक्षा परिषद द्वारा प्रतिबंधित लश्कर का 'राजनीतिक-सामाजिक' यह संगठन पाकिस्तान की जमीन पर अपनी गतिविधियां इतने व्यापक स्तर पर बढ़ाने में कामयाब रहा। इस कदर कि वह सामाजिक संगठन का नकाब ओढ़ कर करीब ढाई हजार से भी ज्यादा दफ्तरों के जरिए आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा को मजबूत करता रहा। कभी उसे आतंकवादियों की खेप पहुंचा कर तो कभी उसके लिए हथियार हासिल करने का जरिया बनकर।सन 2005 में पाकिस्तान पर बरपे भूकंप के कहर के बाद राहत कार्यो में जमात-उद-दावा की मदद लेकर यूएन ने उसे अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए ठोस आधार प्रदान कर दिया था। यही नहीं, लश्कर के हाथ-पैर माने जाने वाले इस संगठन ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रायोजित भूकंप राहत कार्यो को बखूबी अंजाम देकर तारीफ भी कम नहीं कमाई थी। और यहीं से हुई थी जमात-उद-दावा के पैर जमाने की शुरुआत। यूएन ने भले ही अब जमात पर शिकंजा कस दिया हो, लेकिन विदेश मंत्रालय में सुरक्षा परिषद पर अंगुली उठाई जा रही है। मंत्रालय के रणनीतिकारों का सीधा सवाल है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के निशाने पर रहने के बावजूद लश्कर का ही एक संगठन आतंकी कारनामों के लिए अपनी हर जरूरत को पूरा करने में कैसे सफल रहा? कैसे यह संगठन परिषद के सदस्य देशों की नजरों से बच कर यूएन भूकंप राहत अभियान को अपने असली मकसद का जरिया बना ले गया?विदेश मंत्रालय में संयुक्त राष्ट्र की गतिविधियों पर नजर रखने वाले आला अधिकारी यह मानने को कतई तैयार नहीं हैं कि पंद्रह देशों की सदस्यता वाली सुरक्षा परिषद को इतने सालों में जमात के कारनामों की खबर तक नहीं हुई होगी। उनका दावा है कि सुरक्षा परिषद में चीन जैसे कुछ मुल्कों की वजह से जमात अपनी साजिश में कामयाब रहा। इसकी पुष्टि में विदेश मंत्रालय के आला अफसर जमात पर पाबंदी लगाने के यूएनएससी के प्रयासों पर बीजिंग के विरोध को आधार बनाते हैं। उनका कहना है कि पाकिस्तान में भूकंप राहत में हाथ बंटाने के पीछे जमात की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी सकारात्मक छवि बनाने की ही चाल थी।

Saturday, December 6, 2008

अंकुरित भोजन : वर्तमान की जरूरत

अंकुरण से भोज्य पदार्थ के पोषक तत्वों में बढ़ोतरी नैसर्गिक रूप से होती है, इसलिए इनकी पाचनशीलता बढ़ाते हुए इनके सेवन से किसी हानिकारक परिणाम की कोई गुंजाइश नहीं रहती है। अनाज में गेहूँ, ज्वार, बाजरा, साबुत दालों में मूँग, मोठ, चवला, काला चना, काबुली चना, सोयाबीन आदि को आसानी से अंकुरित कर इनसे विभिन्न स्वादिष्ट एवं पौष्टिक व्यंजन बनाए जा सकते हैं।
अंकुरण से खाद्यान्नों को अधिक पौष्टिक व सुपाच्य बनाने के अलावा और भी कई फायदे हैं, जो अच्छे पोषण की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हैं।
ख़ड़े अनाजों व दालों के अंकुरण से उनमें मौजूद अनेक पोषक तत्वों की मात्रा दोगुनी से भी ज्यादा हो जाती है, मसलन सूखे बीजों में विटामिन 'सी' की मात्रा लगभग नहीं के बराबर होती है। इन बीजों के अंकुरित होने पर यही मात्रा लगभग दस गुना हो जाती है। अंकुरण की प्रक्रिया से विटामिन बी कॉम्प्लेक्स खासतौर पर थायमिन यानी विटामिन बी1, राइबोप्लेविन यानी विटामिन बी2 व नायसिन की मात्रा भी दोगुनी हो जाती है। इसके अलावा शाकाहार में पाए जाने वाले 'केरोटीन' नामक पदार्थ, जो शरीर में विटामिन ए का निर्माण करता है, की भी मात्रा बढ़ जाती है।

* सर्दियों में अंकुरण की प्रक्रिया धीमी होती है। कई बार 24 घंटे से भी अधिक समय अंकुरण आने में लग जाता है। अतः इन दिनों भीगे हुए अनाज को गरम स्थान में रखने का विशेष तौर से ध्यान रखना चाहिए।

विटामिन ए आँखों व त्वचा के स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। इतना ही नहीं, अंकुरीकरण से अनाजों में मौजूद लौहतत्व का शरीर में अवशोषण बढ़ जाता है। लौहतत्व खून में हिमोग्लोबीन के निर्माण के लिए निहायत जरूरी है।
अंकुरीकरण की प्रक्रिया में अनाज/दालों से कार्बोहाइट्रेड व प्रोटीन और अधिक सुपाच्य हो जाते हैं। अनाज पानी सोखकर फूल जाते हैं, जिनसे उनकी ऊपरी परत फट जाती है व इनका रेशा नरम हो जाता है। परिणामस्वरूप पकाने में कम समय लगता है। इसी कारण अंकुरित अनाज बच्चों व वृद्धों की पाचन क्षमता के अनुकूल बन जाते हैं।
अच्छा अंकुरण कैसे करें
* एकदम सही अंकुरीकरण के लिए अनाज/साबुत दालों को कम से कम आठ घंटे इतने पानी में भिगोना चाहिए कि वह सारा पानी सोख लें व दाना फूल जाए। इन फूले हुए दानों को किसी नरम, पतले सूती कपड़े में बांधकर पोटली बना लेना चाहिए। इस पोटली को ढंककर गरम स्थान में रखना चाहिए। पोटली को थोड़े-थोड़े समय बाद गीला करते रहें।
* 12 से 24 घंटे में अच्छे अंकुर निकल आते हैं। वैसे अंकुरित किए हुए मूँग, मोठ आदि बाजार में भी उपलब्ध होते हैं, किन्तु इनकी गुणवत्ता की जानकारी अवश्य होना चाहिए। यदि दूषित जल के प्रयोग से अंकुरण हुआ है तो खाद्यान्न शरीर में रोगाणुओं के वाहक भी हो सकते हैं।
* आजकल बाजार में विशेष प्रकार के जालीदार पात्र 'स्प्राउटमेकर' के नाम से मिलने लगे हैं, जिनका उपयोग खाद्यान्नों के अंकुरीकरण के लिए किया जाता है। खाद्यान्नों के अंकुरित होने का समय तापमान पर निर्भर करता है।
* सर्दियों में अंकुरण की प्रक्रिया धीमी होती है। कई बार 24 घंटे से भी अधिक समय अंकुरण आने में लग जाता है। अतः इन दिनों भीगे हुए अनाज को गरम स्थान में रखने का विशेष तौर से ध्यान रखना चाहिए। इसके ठीक विपरीत गर्मियों में अंकुर जल्दी ही निकल जाते हैं। स्वाद व गुणवत्ता की दृष्टि से एक सेंटीमीटर तक के अंकुर स्वादिष्ट होने के साथ-साथ इनके स्वाद में भी मिठास में कमी आने लगती है।
* अंकुरित खाद्यान्नों को कच्चा ही नमक, काली मिर्च, नीबू अथवा सलाद मसाला के साथ सेवन किया जा सकता है। आधे पके रूप में किसे हुए प्याज, पत्तागोभी, टमाटर, ककड़ी व गाजर के साथ पौष्टिक सलाद भी बनाया जा सकता है। अंकुरित खाद्यान्नों का सेवन परिवार के स्वास्थ्य की गारंटी है।

दस उपाय हार्ट अटैक से बचाए


दस उपायों को अपनाकर हृदय की बीमारियों को रोका जा सकता है-
1. अपने कोलेस्ट्रोल स्तर को 130 एमजी/ डीएल तक रखिए- कोलेस्ट्रोल के मुख्य स्रोत जीव उत्पाद हैं, जिनसे जितना अधिक हो, बचने की कोशिश करनी चाहिए। अगर आपके यकृत यानी लीवर में अतिरिक्त कोलेस्ट्रोल का निर्माण हो रहा हो तब आपको कोलेस्ट्रोल घटाने वाली दवाओं का सेवन करना पड़ सकता है।
2. अपना सारा भोजन बगैर तेल के बनाएँ लेकिन मसाले का प्रयोग बंद नहीं करें- मसाले हमें भोजन का स्वाद देते हैं न कि तेल का। हमारे 'जीरो ऑयल' भोजन निर्माण विधि का प्रयोग करें और हजारों हजार जीरो ऑयल भोजन स्वाद के साथ समझौता किए बगैर तैयार करें। तेल ट्रिगलिराइड्स होते हैं और रक्त स्तर 130 एमजी/ डीएल के नीचे रखा जाना चाहिए।
3. अपने तनावों को लगभग 50 प्रतिशत तक कम करें- इससे आपको हृदय रोग को रोकने में मदद मिलेगी, क्योंकि मनोवैज्ञानिक तनाव हृदय की बीमारियों की मुख्य वजह है। इससे आपको बेहतर जीवन स्तर बनाए रखने में भी मदद मिलेगी।
4. हमेशा ही रक्त दबाव को 120/80 एमएमएचजी के आसपास रखें- बढ़ा हुआ रक्त दबाव विशेष रूप से 130/ 90 से ऊपर आपके ब्लोकेज (अवरोध) को दुगनी रफ्तार से बढ़ाएगा। तनाव में कमी, ध्यान, नमक में कमी तथा यहाँ तक कि हल्की दवाएँ लेकर भी रक्त दबाव को कम करना चाहिए।
5. अपने वजन को सामान्य रखें- आपका बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) 25 से नीचे रहना चाहिए। इसकी गणना आप अपने किलोग्राम वजन को मीटर में अपने कद के स्क्वेयर के साथ घटाकर कर सकते हैं। तेल नहीं खाकर एवं निम्न रेशे वाले अनाजों तथा उच्च किस्म के सलादों के सेवन द्वारा आप अपने वजन को नियंत्रित कर सकते हैं।
6.नियमित रूप से आधे घंटे तक टहलना जरूरी- टहलने की रफ्तार इतनी होनी चाहिए, जिससे सीने में दर्द नहीं हो और हाँफें भी नहीं। यह आपके अच्छे कोलेस्ट्रोल यानी एचडीएल कोलेस्ट्रोल को बढ़ाने में आपकी मदद कर सकता है।


7. 15 मिनट तक ध्यान और हल्के योग व्यायाम रोज करें- यह आपके तनाव तथा रक्त दबाव को कम करेगा। आपको सक्रिय रखेगा और आपके हृदय रोग को नियंत्रित करने में मददगार साबित होगा।
8. भोजन में रेशे और एंटी ऑक्सीडेंट्स- भोजन में अधिक सलाद, सब्जियों तथा फलों का प्रयोग करें। ये आपके भोजन में रेशे और एंटी ऑक्सीडेंट्स के स्रोत हैं और एचडीएल या गुड कोलेस्ट्रोल को बढ़ाने में सहायक होते हैं।
9. अगर आप मधुमेह से पीड़ित हैं तो शकर को नियंत्रित रखें- आपका फास्टिंग ब्लड शुगर 100 एमजी/ डीएल से नीचे होना चाहिए और खाने के दो घंटे बाद उसे 140 एमजी/ डीएल से नीचे होना चाहिए। व्यायाम, वजन में कमी, भोजन में अधिक रेशा लेकर तथा मीठे भोज्य पदार्थों से बचते हुए मधुमेह को खतरनाक न बनने दें। अगर आवश्यक हो तो हल्की दवाओं के सेवन से फायदा पहुँच सकता है।
10. हार्ट अटैक से पूरी तरह बचाव- यही हार्ट अटैक से बचने का सबसे आसान संदेश है और हार्ट में अधिक रुकावटें न होने दें। यदि आप इन्हें घटा सकते हैं, तो हार्ट अटैक कभी नहीं होगा।

Wednesday, December 3, 2008

आतंकवाद के खिलाफ एक नई जंग

पिछले बुधवार को गेटवे के पास ताज में दहशतगर्दियों ने जो खूनी खेल शुरू किया था आज उसी समय वहीं स्थान लेकिन ना गोलियों की आवाज, न हैंडग्रेनेड के धमाके, ना ही एम्बुलैन्स में जाते शव। सिर्फ था तो लोगों का आतंकवाद के खिलाफ जंग लड़ने का एक नया संकल्प और पूरी मुंबई जैसे यहाँ सिमट गई थी। यह उन आतंकवादियों को जवाब था जो तीन रातों तक यहाँ पर खूनी खेल खेल रहे थे। लोगों में नेताओं के खिलाफ आक्रोश इस कदर था, जिसका इजहार वह सिर्फ लिख कर ही नहीं कर रहे थे बल्कि जुबाँ से भी कर रहे थे। 72 घंटे बाद ताज पर तिरंगा लहराया गया था, लेकिन आज तो यहाँ हजारों तिरंगे लहरा रहे थे। लोगों की भीड़ को किसी एक पक्ष या संघटन ने नहीं बुलाया था, बल्कि लोग खुद आए थे। लोग शाम पाँच बजे से गेटवे के पास आ रहे थे और देर रात तक आ ही रहे थे। जहाँगीर आर्ट गैलरी से लेकर नरीमन हाऊस तक के रास्ते लोगों से भर गए थे। रास्तों के दोनों ओर सफेद कपड़े लगा कर लोग उस पर अपनी संवेदनाएँ लिख रहे थे। इन लोगों में 20 से 25 उम्र के वह युवा थे जो अपनी रातें डिस्कों में बिताते हैं, लेकिन आज वह भी आतंकवाद और निकम्‍मी सरकार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए आगे आए थे।
इनके साथ ही वयस्कों, महिलाओं की संख्या भी बड़ी तादाद में थी। अपंग और विदेशी नागरिक भी श्रद्धांजलि देने गेटवे पहुँच गए थे। गेटवे पर कम से कम 50 हजार लोग इकट्ठा हुए थे। इनके हाथों में बैनर थे जिस पर राज ठाकरे से लेकर देशमुख, पाटील और रामगोपाल वर्मा तक सब पर व्यंग्य कसे गए थे। पहली बार मुंबई की गलियों में पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे भी लगे। इसी भीड़ में तकरीबन मुस्लिमों का एक गुट आया, जिन्होंने हाथ में बैनर लिया था और उस पर लिखा था कि पाकिस्तान को आतंकी राष्ट्र घोषित करें। इनका लोगों ने तालियों से स्वागत किया। इनमें बुरखाधारी महिलाएँ भी थी। इसी तरह पारसी महिलाओं का एक समुदाय पुलिस मुख्यालय के सामने हाथ में बैनर लेकर खड़ा था। गली-गली में शोर हैं पाकिस्तान चोर है और पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारों के साथ राष्ट्रगान भी गाया जा रहा था। एक बैनर पर लिखा था 47 में स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी थी, अब एके-47 हाथ में दो। अब गाँधीगिरी नहीं चलेगी। एक बैनर पर लिखा था देशमुख ताज हमें सौंप दों हम रामगोपाल वर्मा से अच्छी फिल्म बनाएँगे। एक पर लिखा था शरम करो राज, आज के दिन तो बाहर आते। साथ ही युवाओं के बैनर पर लिखा था कि उन्हें आईबी, रॉ और गृह मंत्रालय में काम दिया जाए। एक पर लिखा था नई फिल्म देशमुखी- ए फिल्म बाय रामगोपाल वर्मा एंड द मेन एक्टर- यू नो व्हू? बढ़ती भीड़ को देखते हुए पुलिस ने गेटवे के पास से लोगों को हटाना शुरू कर दिया था। पूरा माहौल देशभक्ती से भर गया था।

अब हवाई आतंक का खतरा भारत पर

मुंबई में भारतीय समुद्रतटों की सुरक्षा पहले ही भेदी जा चुकी है, इसके बाद रक्षामंत्री एके एंटनी ने बुधवार को सशस्त्र बलों को हवाई रास्ते से संभावित खतरे के प्रति आगाह किया जैसा कि अमेरिका में 9/11 का हमला था।
एंटनी ने सशस्त्र बलों को हवाई रास्ते से संभावित आतंकवादी खतरे का जवाब देने के लिए तैयार रहने और अल कायदा द्वारा वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले जैसे घटनाक्रम की पुनरावृत्ति न होने देने के लिए तैयार रहने को कहा। तीनों सेनाओं के प्रमुखों और रक्षा अधिकारियों के साथ बैठक में एंटनी ने सभी सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों के बीच समन्वय का आह्वान किया। बैठक में नौसेना प्रमुख एडमिरल सुरीश मेहता वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल फली होमी मेजर थलसेना प्रमुख जनरल दीपक कपूर और रक्षा सचिव विजयसिंह मौजूद थे। मुंबई आतंकी हमलों के बाद पाकिस्तान द्वारा अपनी सेना को हाई अलर्ट करने की खबरों के मद्देनजर बैठक में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर स्थिति की समीक्षा की गई। सूत्रों ने कहा कि एंटनी ने आतंकवादियों द्वारा जमीनी मार्ग से घुसपैठ को रोकने के लिए एलओसी के आसपास सुरक्षा और सतर्कता मजबूत करने के सशस्त्र बलों के कदमों पर बातचीत की। दरअसल आतंकवादियों के प्रशिक्षण और भर्ती के लिहाज से पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) एक महत्वपूर्ण इलाका माना जाता है।
शीर्ष रक्षा अधिकारियों ने समुद्रतटों की सुरक्षा बढ़ाने की योजना पर तथा तटीय रडारों और इंटरसेप्टर नौकाओं सहित अन्य प्रणालियों को खरीदने की प्रक्रिया तेज करने पर चर्चा की। सू़त्रों ने कहा कि बैठक में विशेष तौर पर देश में हवाई अड्डों के आतंकवादियों के निशाने पर होने की खुफिया चेतावनी पर चिंता जताई गई और नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो से सभी महत्वपूर्ण हवाई अड्डों की सुरक्षा के संबंध में रेड अलर्ट जारी करने पर भी बात हुई। संकेत दिया गया कि खुफिया एजेंसियाँ महत्वपूर्ण तिथियों जैसे छह दिसंबर 26 जनवरी आदि से पहले नियमित चेतावनी देती रही हैं, लेकिन रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि एंटनी ने बलों और खासतौर पर वायुसेना से अधिक सतर्क रहने के लिए और किसी भी खतरे को रोकने के लिए कहा। एंटनी विशेष तौर पर रक्षा और खुफिया एजेंसियों में समन्वय की कमी को लेकर नाखुश थे। उन्होंने सशस्त्र बलों और खासतौर पर नौसेना तथा तटरक्षक के प्रति खुफिया एजेंसियों से मिली विशेष जानकारी पर ध्यान नहीं दिए जाने पर निराश जताई, जबकि एजेंसियों ने समुद्री मार्ग से आतंकी हमलों के बारे में आगाह किया था। रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि दोनों ओर से समन्वय की कमी देखी गई चाहे यह रक्षा बलों से हो या खुफिया एजेंसियों से। इसलिए दोनों को दी गई चेतावनी के बिंदुओं पर स्पष्ट रुख अख्तियार करना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि जानकारियों पर कार्रवाई हो, जिससे कि मुंबई जैसे हमलों के समय सोते न रह जाए।

Sunday, November 30, 2008

द. अफ्रीकी कमांडो टीम ने लोगों को बचाया

आतंकवादियों ने जब ताज होटल पर हमला किया तो उस समय दक्षिण अफ्रीका के छह कमांडो रेस्तराँ में रात का भोजन कर रहे थे। आतंकवादियों को अचानक उनसे चुनौती मिली, जिससे दर्जनों लोगों की जान बच गई। इन कमांडो ने अपने कौशल एवं बुद्धि का तुरंत इस्तेमाल कर करीब 150 लोगों की जिंदगी बचा ली। कमांडो दक्षिण अफ्रीका की क्रिकेट टीम के साथ आए थे। टीम चैंपियंस लीग में भाग लेने आई थी, जो अब रद्द हो चुकी है। कमांडो होटल की सबसे ऊपरी मंजिल के रेस्टोरेंट सूक में थे। उन्होंने तुरंत वहाँ रात का भोजन कर रहे 150 लोगों को आपातकालीन द्वार से निकाला। दक्षिण अफ्रीकी कमांडो टीम के एक सदस्य बॉब निकोलस ने कहा कि हम वहाँ रात का भोजन कर रहे थे। जब हमने गोलीबारी की आवाज सुनी तो हमें बताया गया कि लॉबी में दो गैंग लड़ाई कर रही हैं। हम घबरा गए। निकोलस ने कहा कि एक विस्फोट की आवाज सुनने के बाद महसूस हुआ कि यह आतंकवादी हमला है और हमने देखा कि आतंकवादी होटल में गोलीबारी एवं ग्रेनेड विस्फोट करते हुए दौड़ रहे हैं। निकोलस ने कहा कि हमें महसूस हुआ कि इलाका सुरक्षित नहीं है। हमें आभास हुआ कि आतंकवादी भवन की सबसे ऊपरी मंजिल पर पहुँच सकते हैं, जहाँ हम हैं।

विदेशी मदद की अभी दरकार नहीं

भारत ने मुंबई में बुधवार रात से शुरू आतंकी वारदात में पाकिस्तानी भूमिका का स्पष्ट आरोप लगाते हुए कहा कि इसकी जाँच के लिए किसी विदेशी एजेंसी की मदद की फिलहाल जरूरत नहीं है। केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा वारदात की जाँच में मदद के लिए आईएसआई के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शुजा पाशा के भारत आने की इस्लामाबाद से मिली खबरों के बीच यह बात कही।
उन्होंने कहा कि फिलहाल हमें इसकी जाँच में किसी भी विदेशी एजेंसी की मदद की दरकार नहीं है। गौरतलब है कि यह खबर मुंबई के आतंकी वारदात में पाकिस्तानी भूमिका होने के बारे में प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह और विदेशमंत्री प्रणब मुखर्जी द्वारा इशारा किए जाने के बाद पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी के साथ सिंह की फोन पर हुई बातचीत के बाद आई है। लेकिन जायसवाल ने इस खबर को बिलकुल गलत बताते हुए कहा कि प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान से जाँच में किसी मदद के लिए कोई आग्रह नहीं किया। उनका कहना था कि हम स्थिति से खुद निपटने में सक्षम हैं। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र पुलिस और उसका आतंकवाद विरोधी दस्ता जाँच करने में सक्षम है और जरूरत पड़ी तो उसकी केन्द्रीय एजेंसियाँ भी मदद करेंगी। उन्होंने इस वारदात में पाकिस्तान का हाथ होने का खुला आरोप लगाते हुए कहा कि मुंबई में पकड़ा गया एक आतंकवादी पाकिस्तानी नागरिक है। जायसवाल ने यह भी कहा कि यह आतंकवादी हमला सुनियोजित था। उन्होंने कहा कि स्थिति को काबू में लाने में इसलिए समय लगा कि हमारे सुरक्षा बल होटलों में ठहरे मेहमानों की जान खतरे में नहीं डालना चाहते थे।

Thursday, November 27, 2008

ऑटो ड्राइवर विधायक बनने की दौड़ में

सुनीता दिल्ली की एकमात्र महिला ऑटो ड्राइवर हैं और अब वे विधायक बनना चाहती हैं। पैंथर्स पार्टी की ओर से वे बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार वीके मल्होत्रा के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं।


सुनीता कहती हैं बीजेपी और कांग्रेस ने बिलकुल विकास कार्य नहीं किया। इस बार भी जो उम्मीदवार मैदान में हैं, वे स्थानीय नहीं हैं। मल्होत्रा दूसरे इलाके में रहते हैं और कांग्रेस के जितेंद्र कुमार भी ग्रेटर कैलाश के रहने वाले नहीं हैं। मैं स्थानीय उम्मीदवार हूँ। मुझे आम जनता का समर्थन हासिल है। वैसे इस ऑटो रिक्शा ड्राइवर के जीतने की उम्मीद कम ही दिखती है, लेकिन ये जरूर है कि चुनाव प्रचार के दौरान लोग उनकी तरफ आकर्षित जरूर होते हैं। असल में दिल्ली के चुनावों में पैंथर्स पार्टी ने ऐसे ही उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जो वोट न सही तो कम से लोगों को अपनी ओर खींच जरूर सकें।

मसलन, पार्टी के हर्ष मल्होत्रा ने अपनी ही बीवी से छह बार शादी की है और भगवान शिव की तरह सात बार अपनी ही बीवी से शादी करना चाहते हैं। इसी तरह पार्टी ने दो ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं, जो सबसे युवा पुरुष और महिला उम्मीदवार हैं। सुनीता से यह पूछे जाने पर कि क्या उनके जीतने की उम्मीद है, वे सकारात्मक जवाब देते हुए कहती हैं कोई नहीं जानता, कौन जीतेगा। जनता जिसे चाहेगी, वह जीतेगा। मैं तो संघर्ष कर रही हूँ जीतने के लिए। आज नहीं तो कल मैं विधानसभा में जरूर जाऊँगी। वे बताती हैं मैं लाइसेंस के लिए तीन साल तक दौड़ती रही, लेकिन कोई मेरे कागजों पर हस्ताक्षर नहीं करता था। फिर जब मैंने हाईकोर्ट जाने की चेतावनी दी, तब कहीं जाकर मुझे कमर्शियल लाइसेंस मिला। सुनीता ऑटो चलाकर खुश हैं और कहती हैं कि उनके साथ सफर के दौरान महिला और पुरुष सवारियाँ सवाल बहुत करते हैं। वे बताती हैं पहले तो लोग मुझे ध्यान से देखते हैं, थोड़ा आश्चर्यचकित होते हैं फिर पूछने लगते हैं क्यों ये काम करती हो, कैसे करती हो और इसी बातचीत में रास्ता कट जाता है। सुनीता करीब सौ महिलाओं को ऑटो चलाने की ट्रेनिंग भी दे रही हैं और उन्हें उम्मीद है कि आने वाले दिनों में दिल्ली की सड़कों पर कई और महिला ऑटो ड्राइवर भी होंगी।

अपने वतन में कितने महफूज है हम...

जनता अमन और चैन चाहती है। वो सुकून से जीना चाहती है, लेकिन आए दिन होते आतंकी हमले जनता को दहशत के साये में जीने पर मजबूर कर रहे हैं। आज नेताओं द्वारा जनता से हाथ जोड़कर वोट तो माँगे जा रहें हैं पर जनता की सुरक्षा के नाम पर सभी चुप्पी साधे बैठे हैं। आखिर कब तक निर्दोष, मासूमों और बेगुनाहों का खून बहाया जाएगा?
जिस वक्त देश के पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं उस समय भारत के प्रमुख महानगर मुंबई में आतंकी हमलों का होना जनता की सुरक्षा के प्रति सरकार की लापरवाही को दर्शा रहा है। सरकार हमेशा की तरह जनता को कोरे आश्वासन देकर शांति की अपील कर रही है परंतु वो परिवार क्या करे, जिनके घर के चिराग इस धमाकों की आँधी से बुझ गए हैं। आर्थिक मंदी के इस दौर में जहाँ परिवार का गुजारा भी बमुश्किल चल रहा था, वहाँ कई घरों के चिरागों का बुझ जाना उनके लिए दो वक्त की रोटी के लाले पड़ने की स्थितियाँ निर्मित कर रहा है। कल रात से लेकर अब तक मुट्ठीभर आतंकियों का मुंबई में सीधा हमला करना न केवल उनके बुलंद हौसलों को बल्कि हमारी सरकार की लाचारी को भी दर्शा रहा है। रातों के शहर मुंबई में जहाँ जिंदगी कभी रूकती नहीं वहाँ सरेआम पाँच होटलों में एक के बाद एक आतंकियों का अपनी गतिविधियों को अंजाम देना व मासूमों को अपना निशाना बनाना पंगु सरकार की नाकामी का स्पष्ट प्रमाण है।
सामने से किया वार : अब तक कचरे के ढ़ेर में मिलने वाले बम आज सरेआम फेंके जा रहे हैं। अंधाधुंध गोलियों की बौछार से निर्दोष जनता के खून से धरती रक्तरंजित हो रही है पर शायद हमेशा की तरह इस बार भी सरकार आश्वासनों का दिलासा देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेगी।
सार्वजनिक स्थानों पर सरेआम सरकार को ललकारना आतंकियों के बढ़ते मंसूबों का परिचायक है। उन्हें मौत का खौफ नहीं है। वो तो 'जेहाद' के नाम पर सरेआम कत्लेआम कर रहे हैं। मीडिया को धमकी भरे ई-मेल भेजकर सीना ठोककर हमलों की जिम्मेदारी लेना जहाँ एक ओर आतंकियों के बुलँद हौसलों को दर्शा रहा है वहीं दूसरी और वोट की राजनीति में लिप्त हमारे सुप्त प्रशासन की नाकामी को भी उजागर कर रहा है। कोई नहीं है अछूता : सार्वजनिक स्थानों पर होते सिलसिलेवार आतंकी हमलों को देखकर ऐसा लगता था कि हर बार इनकी शिकार मासूम और बेगुनाह जनता ही बनती है परंतु अब आतंकियों ने समाज के पूँजीपतियों पर भी वार कर यह सिद्ध कर दिया है कि अब इस समाज का कोई भी वर्ग इन धमाकों से महफूज नहीं है।
मुंबई के ओबेराय और ताज जैसे कई बड़े पाँच सितारा होटलों में आतंकियों का घुसकर गोलीबारी करना तथा कई लोगों को बंधक बना जनता में दहशत फैलाने के लिए पर्याप्त है। पर्यटकों का घटता रुझान : जयपुर, अहमदाबाद, दिल्ली, मुंबई आदि महानगरों में कुछ अंतराल के बाद दहशतगर्दों का एक-एक करके अपने मंसूबों को अंजाम देना भारतीयों के साथ विदेशी पर्यटकों को भी दुबककर बैठने पर मजबूर कर रहा है। इन हमलों का सीधा असर भारत के पर्यटन पर भी पड़ा है, जिसके कारण पर्यटन विभाग को बड़ी हानि उठानी पड़ रही है। अब सही वक्त आ गया है जनता को अपनी आवाज बुलंद करने का। आज देश को जरूरत है उन जागरूक नागरिकों की, जो कुंभकर्णी निद्रा में सोए इस प्रशासन को जगाए। आज यह हमला सिर्फ मुंबई पर नहीं बल्कि हर भारतीय पर हुआ है, आतंकियों ने हमारे ही देश में, हमारे ही शहर में हमें निशाना बनाया है। भारत जैसे शांतिप्रिय देश में आखिर कब तक निर्दोष जनता को निशाना बनाया जाएगा? आखिर कब हम सभी खुली हवा में आजादी से साँस लेंगे? यह एक अनुत्तरित प्रश्न है, जिसका जवाब अब केन्द्र सरकार को देना ही होगा।

Wednesday, November 26, 2008

ओबामा की टीम में भारतीयों का बोलबाला

अमेरिकी राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने जा रहे बराक ओबामा और उपराष्ट्रपति जान बिडेन की सत्ता हस्तांतरण टीम में भारतीय मूल के अमेरिकियों की अच्छी-खासी तादाद है। इनमें से ज्यादातर विशेषज्ञ और जाने-माने शिक्षाविद हैं। ये प्रशासन चलाने में डेमोक्रेटिक पार्टी के लोगों की सहायता करेंगे। जिन लोगों की नियुक्ति की गई है वे अफ्रीकी मूल के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ओबामा के लिए अजनबी नहीं हैं। इनमें से अधिकांश के साथ उनके पुराने संबंध रहे हैं।निक राथोड को सरकार के आंतरिक मामलों का कार्यालय निदेशक बनाया गया है। राथोड फिलहाल ओबामा की टीम में नेशनल आउटरीच के दक्षिण एशिया निदेशक हैं। ओबामा के सत्ता हस्तांतरण दल में टेक्सास के पराग मेहता को भी जगह मिली है। मेहता को एशियाई-अमेरिकी अल्पसंख्यक समेत कई अन्य समूहों से संपर्क साधने-बढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। ये आंतरिक मामलों के मंत्रालय में उप निदेशक के तौर पर इन समूहों और सरकार के बीच संपर्क बढ़ाएंगे। हार्वर्ड ला स्कूल में ओबामा की सहपाठी रहीं आरती राय को विज्ञान, तकनीकी, अंतरिक्ष कला और मानवता से जुड़ी कई एजेंसियों के समीक्षा दल का सदस्य बनाया गया है। वह अभी ड्यूक विश्वविद्यालय में पेटेंट ला की प्रोफेसर हैं।निजी इक्विटी फर्म ब्लैकस्टोन के प्रबंध निदेशक अंजन मुखर्जी को अर्थव्यवस्था एवं अंतरराष्ट्रीय व्यापार एजेंसी समीक्षा दल में लिया गया है। उन्होंने राष्ट्रपति पद के चुनाव के दौरान एशियाई मूल के अमेरिकी नागरिकों के बीच ओबामा के पक्ष में प्रचार किया था। रचना भौमिक, सुभाश्री रामनाथन, नताशा बिलीमोरिया और पुनीत तलवार को भी विभिन्न एजेंसी की समीक्षा दलों में शामिल किया गया है।

नस्लीय भेदभाव से संबंधित अपराध बढ़े:-बराक ओबामा के रूप में अमेरिका के पहले अफ्रीकी-अमेरिकी राष्ट्रपति की जीत के बाद अमेरिका में अल्पसंख्यकों और अश्वेतों के प्रति घृणा से संबंधित अपराधों में वृद्धि हुई है।नागरिक अधिकार संगठनों के अनुसार, ओबामा के राष्ट्रपति चुनाव में विजयी होने के बाद ऐसे सैकड़ों मामले सामने आए हैं। अनेक कट्टरपंथी संगठन दशकों तक निष्क्रिय रहने के बाद एक बार फिर सक्रिय होने लगे हैं। फेडरेशन ब्यूरो आफ इंवेस्टीगेशन- 2008 में ऐसे अपराधों से संबंधित आंकड़े जुटाए गए हैं। लेकिन स्थानीय मीडिया की खबरों के आधार पर विशेषज्ञों का कहना है कि नस्लभेद आधारित अपराध की घटनाओं में काफी वृद्धि हुई है। कुछ अधिकारियों ने इसकी तुलना 11 सितंबर, 2001 की घटना के बाद मुसलमानों पर होने वाले हमले में वृद्धि से की है।एक यूनिवर्सिटी में सेंटर फार दि स्टडी आफ हेट एंड एक्सट्रीमिज्म के निदेशक ब्रायन लेविन ने कहा कि स्थिति नियंत्रण से बाहर होने वाली है।

Monday, November 24, 2008

बिहार में विकास का विहार

स्कूल-कॉलेज में पढ़ाई, समय से वेतन, समय पर परीक्षाफल, अस्पतालों के भवनों पर सफेदी, डॉक्टरों का मिलना, दवाओं का वितरण, सड़कें काली-काली, मानो पुनः एक बार बिहार में विकास का विहार होने लगा है। पिछले 2-3 दशकों में 'बिहारी' देश के बड़े शहरों में लगभग एक अपशब्द बन गया है, इससे बिहार की भूमि से पलायन किए मजदूरों का सिर नीचा होता था। वे असम के चाय बागान, हरियाणा और पंजाब के धान-गेहूँ के खेतों, कोलकाता, मुंबई और अहमदाबाद के कल-कारखानों से लेकर दिल्ली की मलीन बस्तियों में मुरझाए-मुरझाए से लगते थे। सिर नीचा कर चलने वाला वह बिहारी समाज अपने ही हाथों सिंचित लहलहाती फसल की हरियाली अपनी आँखों में नहीं भर सकता था।
अपनी आँखों में खुशियाँ बिखेरने की कोशिशों को 'बिहारी' कहकर नाकाम कर दिया जाता था।

यूँ तो बिहार से रोजी-रोटी के लिए पलायन करने वालों की परंपरा बहुत पुरानी रही है। डेढ़-दो सौ साल पूर्व मॉरीशस, गुयाना और सूरीनाम गए मजदूरों की तीसरी-चौथी पीढ़ी अब वहाँ राजसत्ता में भागीदार है। संभवतः यह जानकारी ही राज ठाकरे को उद्वेलित कर रही है

दिल्ली की झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बिहार में 40-50 बीघा जमीन जोतने वाले, मालिक कहे जाने वाले परिवारों के बेटे भी थे। 'मलीन बस्ती' के नाम से पुकारे जाने वाली झुग्गियों में मन मारकर बैठते थे। उनके शरीरतोड़ परिश्रम से सड़कें काली होती रहीं, पंचसितारे होटल जगमगाते-चमचमाते रहे, कारखानों से सामान बाजार में आते रहे, करोड़ों शहरी लोगों के घर में सुविधाएँ जुटती रहतीं, पर उन्हें धन्यवाद देने वाला कोई नहीं। 'स्साला बिहारी' ही सुनना पड़ता था। बिहार से दिल्ली आए एक इंजीनियर नौजवान ने साइकल के कैरियर पर पाइप बेचने की एजेंसी ली। उसकी साइकल देखकर व्यापारी उपहास उड़ाते थे-''इसी पर चढ़कर बिहार चले जाओ, वहीं जाकर पाइप बेचो।''

नहीं लौटा वह नौजवान बिहार। मेहनत करता रहा। बड़ी फैक्टरियों की स्थापना की। अरबों का मालिक है। राजनीति में विशेष पहचान बनाई है। साइकल उसने संभाल कर रखी है। वह उसे उन दिनों की याद दिलाती है, विकास की राह रोकती नहीं। आगे और आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। यूँ तो बिहार से रोजी-रोटी के लिए पलायन करने वालों की परंपरा बहुत पुरानी रही है। डेढ़-दो सौ साल पूर्व मॉरीशस, गुयाना और सूरीनाम गए मजदूरों की तीसरी-चौथी पीढ़ी अब वहाँ राजसत्ता में भागीदार है। संभवतः यह जानकारी ही राज ठाकरे को उद्वेलित कर रही है।
पिछले बीस वर्षों में बिहार से पलायन करने वालों में मजदूर (परिवार सहित), विद्यार्थी, व्यापारी ही नहीं अवकाश प्राप्त करने वालों की संख्या भी बढ़ गई थी। दिल्ली में इनके प्रति अवमानना का भाव देख-सुनकर मैंने लिखा था -''दिल्ली, बिहार का सबसे बड़ा शहर है।''तत्कालीन मुख्यमंत्री को सुझाव दिया था -''या तो बिहार से पलायन रोकें, या भूगोल की पुस्तक में लिखवा दें- ''दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, अहमदाबाद और अमृतसर 'बिहार' के बड़े शहर हैं।'' यह पाठ बचपन से पढ़ने वाला बिहारी देश के किसी भी कोने में जाकर सीना तानकर मेहनत करेगा, सिर झुकाकर नहीं, क्योंकि वह उस स्थान को भी अपना शहर मानेगा। मुख्यमंत्री पद ग्रहण करते हुए नीतीश कुमार ने यही कहा था- ''अब बिहार से बाहर भी 'बिहारी' सिर उठाकर जीएँगे।''
किसी भी व्यक्ति, परिवार, समाज और राज्य-देश का समय एक-सा नहीं रहा। विकास का मुँह देखने को तरसती बिहार की धरती के हृदय में आस जगी। विकास, विहार करने लगा है। सड़क निर्माण और अन्य विकास के कार्य इतने बढ़े कि मजदूर कम पड़ गए। उस उम्र की महिला शिक्षिकाओं तक की बहाली हुई है, जिन्हें सरकार को प्रसूति अवकाश नहीं देने पड़ेंगे। और भी कई अद्भुत कदम उठाए हैं सरकार ने। मुख्यमंत्री, मंत्री और विधायक ही नहीं, जनता भी विकास के लिए कमर कसकर तैयार हो गई। तीन वर्षों में कई आपदाएँ आईं। सरकार, समाज की सहायता से उबरने में कामयाब हुई है। कानून व्यवस्था सुधरी है। बिहार से होकर गुजरने वाली गाड़ियों पर चढ़ने से दूसरे राज्य के लोग अब भय नहीं खाते।
दरअसल, विकास कितना हुआ, सवाल नहीं है। विकास का मन और वातावरण बनना भी बड़ी बात है। तीन वर्षों के विकास की गिनती कराने के लिए सरकार की झोली में अब बहुत कुछ है। बचपन में हम एक बक्से में छोटे शीशे से झाँकते थे, उसके अंदर कई तस्वीरें होती थीं। बाइस्कोप दिखाने वाले को तस्वीरों का क्रम मालूम होता था। वह बोलता जाता था-''दिल्ली का कुतुबमीनार देखो, पटना का गोलघर देखो, नौ मन की बुलाकी देखो- देखो जी देखो बाइस्कोप देखो।'' बिहार सरकार 24 नवंबर को फिर बाइस्कोप ही दिखाएगी। सड़कों का निर्माण, तालाबों का जीर्णोद्धार,

गीली मिट्टी से मूर्ति बनाना कठिन काम होता है, परंतु टूटी हुई मूर्ति की मिट्टी से मूर्ति बनाना कठिनतर, चाहे वह कच्ची ही मिट्टी क्यों न हो। रोटी बनाते समय भी ऐसा ही होता है। विकास को भूल जाने वाली धरती पर विकास का विहार करना ही बाइस्कोप दिखाने जैसा है

विद्यालय के भवनों का पुनर्निर्माण, डेढ़ लाख शिक्षकों की बहाली, महिलाओं के हाथ में 55 प्रतिशत पंचायतें, विश्वविद्यालयों की मंजूरी - ''देखो जी देखो -बाइस्कोप देखो। पटना का बाजार देखो, सीतामढ़ी का हाई-वे देखो जी देखो। आम, लीची, मखाना का व्यापार देखो, मछली पालन देखो।'' यह सब बाइस्कोप दिखाने जैसा ही होगा, क्योंकि जो भी विकास हुआ है, उसके बारे में बिहार और बिहार के बाहर के लोगों को अपेक्षा ही नहीं थी।

और बिहार ही नहीं, देश-विदेश की जनता देखेगी। बिहार से बाहर रहने वाले करोड़ों (देश-विदेश में) बिहारियों का सिर भी ऊँचा हुआ है। वे बिहार लौटते हैं। दूसरे राज्यों और अपने राज्य में विकास का अंतराल देखकर उनके मन में अपने प्रति ही हीनभावना का निर्माण होता था। अब जहाँ कहीं भी हैं, वे भी शान से कहते सुने जाते हैं -''देखो जी, देखो बाइस्कोप देखो...बिहार में विकास को विहार करते देखो।''
गीली मिट्टी से मूर्ति बनाना कठिन काम होता है, परंतु टूटी हुई मूर्ति की मिट्टी से मूर्ति बनाना कठिनतर, चाहे वह कच्ची ही मिट्टी क्यों न हो। रोटी बनाते समय भी ऐसा ही होता है। विकास को भूल जाने वाली धरती पर विकास का विहार करना ही बाइस्कोप दिखाने जैसा है। बाइस्कोप दिखाने वाला एक-दो तोले का नहीं, नौ मन की बुलाकी दिखाता था। अविश्वसनीय। आश्चर्यजनक, पर वह दिल्ली का कुतुबमीनार भी दिखाता था। हावड़ा का पुल भी दिखाता था। आश्चर्यजनक, पर सत्य। विश्वसनीय। बिहार के मुख्यमंत्री और उनकी पूरी टीम को बधाई। उन्होंने बाइस्कोप दिखाने के लिए अनेक चित्र एकत्र कर लिए हैं। विकास, बिहार में विहार कर रहा है। अभी बहुत कुछ करना बाकी है। विकास के औजारों की जंग छुड़ाना कठिनतर टास्क रहा है। जंग एक दिन में नहीं लगती। एक दिन में छूटती भी नहीं। अफसरों के खाली बैठे रहने का अभ्यास छुड़ाना होगा। जनता को विकास में भागीदार बनाना होगा।

Sunday, November 23, 2008

सेना, साजिश, संन्यास और सियासत सब सवालिया..!

मालेगाँव विस्फोट में सेना के अपफसरों की संलिप्तता से पूरा देश सकते में है। बम कांड की जाँच में सबसे पहले महाराष्ट्र एटीएस ने यह खुलासा कर सबको चौंका दिया कि इसमें हिंदूवादी संगठन शामिल हैं। यही नहीं इस विस्फोट कांड को अंजाम दिया सैन्य अधिकारियों के प्रशिक्षित लोगों ने। साध्वी प्रज्ञासिंह ठाकुर सहित तीन लोगों को तो एटीएस डंके की चोट पर मध्यप्रदेश से ले गई। बाद में स्वयंभू शंकराचार्य दयानंद पांडेय को कानपुर के रावतपुर क्षेत्रा से धरदबोचा। अब उनके लैपटाप और लगभग दर्जनभर से अध्कि मोबाइल फोन से हासिल जानकारियों से एटीएस ने जो सनसनीखेज खुलासे किए हैं, वे और भी बेहद चौंकने वाले ही हैं। मसलन, एटीएस ने कहा कि तथाकथित स्वामी अमृतानंद ही मालेगाँव, नांदेड और अन्य विस्फोटों का मास्टर माइंड है। दूसरी तरफ एटीएस ने यह भी बात उजागर की नार्को टेस्ट के बाद कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित ने स्वीकार कर लिया है कि कथित स्वामी अमृतानंद ने उनसे विस्फोटक उपलब्ध कराने को कहा था और वह विस्फोटक उन्हें मुस्लिम चरमपंथी संगठनों से हासिल थे। यही नहीं तय यह भी हुआ था कि अब तक देशभर में विभिन्न क्षेत्रों में किए गए विस्फोटों में शामिल सिमी के ठिकानों, अल्पसंख्यक समुदाय की इबादतगाहों और हज हाउस को नेस्तनामूद किया जाएगा। इतना सब कुछ एटीएस के खुलासे के बाद विश्व हिन्दू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल और अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत हरिगिरि ने हिन्दू आंतकवाद के नाम पर साधु-संतों को अपमानित करने की तीखी आलोचना की। अमृतानंद तथा साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के समर्थन में राष्ट्रीय जनजागरण अभियान चलाने की घोषणा के साथ ही इलाहाबाद में एटीएस के खिलाफ जमकर विरोध प्रदर्शन भी किया गया। संघ ने भी इन दोनों ही संतों की गिरफ्तारी पर अपनी ओर से विरोध दर्ज कराते हुए स्वयं सेवकों का दिल्ली में मार्च पास्ट कराया।
इसी बीच भाजपा की नेता सुषमा स्वराज ने इंदौर में कहा कि यह सियासी साजिश है, जो हिंदू संगठनों और साधु-संतों के साथ की जा रही है। वह सत्ता परिवर्तन के बाद बेनकाब हो जाएगी। इसके पहले शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे तो साध्वी प्रज्ञासिंह ठाकुर के समर्थन में पहले से ही खुलकर सामने आ गए थे। उन्होंने इस संदर्भ में महाराष्ट्र सरकार पर हिन्दू संगठनों और साधु-संतों को हिन्दू आतंकवाद के प्रताड़ित और बदनाम करने के लिए एटीएस का नाजायज इस्तेमाल करने के कई आरोप भी लगाए थे।
बहराल, भारत की सेना के गौरवशाली इतिहास में उसके ही अपने जिम्मेदार अफसरों और साध्वी की मालेगाँव विस्फोट कांड में संलिप्तता ने जनमानस में कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सबसे पहले यह कि वीर सावरकर ने अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ जो 'अभिनव भारत' नामक हिंदू संगठन बनाया था और बाद वे खुद हिंदू महासभा में शामिल हो गए थे।
गौरतलब बात यहाँ यह है कि हिंदू महासभा इस देश में शीर्ष स्थान पर कभी नहीं आ सका और समूचे देश के जनमानस के मन-मस्तिष्क में हासिए पर ये ही रहा। इसी संगठन की साध्वी प्रज्ञासिंह ठाकुर की मोटरसाइकिल का मालेगाँव विस्फोट कांड में इस्तेमाल किया जाना भी तमाम संशय को जन्म देता है। हालाँकि वे यह स्पष्ट कर चुकीं हैं कि वह मोटरसाइकिल उन्होंने ने बेच दी थी, लेकिन किसको और क्यों? यह उनके साथ कोई साजिश थी, जिससे वे नावाकिफ रहीं या फर एटीएस ने जो उन पर इतने संगीन आरोप लगाएँ हैं, उसमें कोई रंचमत्रा भी सत्यता है? भारतीय संन्यास की अवधरणा में यह पहला ऐसा मामला उभकर सामने आया, जिसमें एक साध्वी और कथित स्वयंभू शंकराचार्य को आतंकवादी वारदात में आरोपी बनाया गया है। जहाँ तक सैन्य अधिकारियों के मालेगाँव, जयपुर और नांदेड विस्फोट में शामिल होने का आरोप भी किसी के गले के नीचे नहीं उतरता है। तथाकथित जम्मू की शारदा पीठ के शंकराचार्य अमृतानंद, जो दर्शनशास्त्र, राजनीतिशास्त्र और अर्थशास्त्र में परास्नातक हैं।
वे भारतीय वायु सेना के सैनिक भी रहे हैं। वे कैसे इस तरह के समाज को बाँटने वाले कृत्य में शामिल हो सकते हैं? मुंबई एटीएस अब इन स्वामी अमृतानंद के ठिकानों, सियासी, प्रशासनिक और अन्य रसूखों की तलाश जम्मू, जालंधर, लुधियाना, फरीदाबाद, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश के कानपुर, आगरा, वाराणसी व गोरखपुर इत्यादि-इत्यादि स्थानों पर कर रही है। कुल मिलाकर इस विभिन्न संस्कृतियों, सभ्यताओं, बोलियों और उपबोलियों वाले देश में हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई और इसके पहले सिख संगठनों का आंतकवादी वारदातों में शामिल होने के बाद अब हमें यह सोचने पर विवश करता है कि जन, गण, मन, अधिनायक की अवधारणा की साझा संस्कृति वाले इस देश का अगर भूत और वर्तमान इस तरह से सवालिया है तो भविष्य क्या होगा? -आचार्य अरुण

आशुतोष बिग बॉस के विजेता

इनाम के रूप में मिले एक करोड़
छोटे परदे के कलाकार आशुतोष मशहूर रियलिटी शो बिग बॉस-2 के विजेता बन गए। फाइनल मुकाबले में उन्होंने अपने समकक्ष राजा चौधरी और मॉडल जुल्फी सईद को शिकस्त देते हुए खिताब पर कब्जा जमाया। आशुतोष इनामी राशि के रूप में एक करोड़ रुपए मिले। पुरस्कार की घोषणा शनिवार रात यहाँ हजारों दर्शकों के बीच अभिनेता अक्षय कुमार ने की। फाइनल के मुकाबले से पहले आशुतोष के साथ राजा चौधरी और जुल्फी सईद को भी खिताका मजबूत दावेदार माना जा रहा था। गौरतलब है कि कलर्स चैनल पर प्रसारित होने वाले इस टीवी शो ने किसी न किसी रूप में हमेशा सुर्खियाँ बटोरीं। कभी इस पर फूहड़ संवाद अदायगी और अश्लीलता के आरोप लगे तो कभी राहुल महाजन और पायल रोहतगी के बीच रोमांस की खबरों ने इसे चर्चा में रखा।
जीवनसाथी की तलाश : विजेता बनने के बाद आशुतोष ने कहा अब उनकी हसरत एक से दो होने की है। वे जल्द ही अपनी माँ के लिए अच्छी सी खूबसूरत बहू ढूँढ़ना चाहते हैं।
सहारनपुर में दिवाली : टीवी पर जैसे ही आशुतोष के बिग बॉस विजेता बनने की खबर आई, सहारनपुर में दिवाली-सा माहौल बन गया। लोगों ने जीत की खुशी का इजहार आतिशबाजी व मिठाई बाँटकर किया। हर किसी के चेहरे पर आशुतोष की जीत का उत्साह चमक रहा था।
माँ ने दिया धन्यवाद : आशुतोष की माँ और बहन ने आशुतोष की कामयाबी पर बेहद खुशी जताई। उन्होंने कहा हमें इस बात का सुकून है कि आशुतोष ने जो लक्ष्य तय किया था, वह उसने पा लिया। उन्होंने आशुतोष के दोस्तों व दर्शकों को भरपूर समर्थन के लिए धन्यवाद दिया।
सभी से राम-राम करो : अपनी सादगी और सौम्य व्यवहार के लिए पहचाने जाने वाले आशुतोष ने सभी से सामंजस्य और मिलनसारिता को ही अपनी कामयाबी का मूल मंत्र बताया। उन्होंने कहा कोई आपसे करे ना करे, आप सभी से राम-राम करते चलो...। शो में जब भी मुझे चाय या काफी बनाने के लिए कहा गया, मैंने खुशी-खुशी सबकी बात मानी।
राजा मेरे बड़े भाई की तरह : राजा चौधरी के साथ बिताए गए पलों पर बिग बॉस विजेता के बादशाह ने कहा राजा मेरे बड़े भाई की तरह हैं। शो के दौरान उनके साथ मुझे बहुत मजा आया।
राहुल भैया से हारना चाहता था : आशुतोष ने अपनी जीत का श्रेय राहुल महाजन को दिया। उन्होंने कहा राहुल भैया भी चाहते थे कि मैं विजेता बनूँ। वैसे मैं उनसे हारना चाहता था। आशुतोष ने शो के दौरान जानबूझ कर किए गए किसी भी हंगामे से इनकार किया। उन्होंने कहा जो भी विवाद सामने आए, वे हमारी अपनी गलतियों के कारण हुए। अपनी जीत के लिए आशुतोष ने तमाम दर्शक और समर्थकों को धन्यवाद दिया।
सराहनपुर के लिए बड़ी बात : आशुतोष ने कहा सहारनपुर जैसे छोटे शहर के लिए मेरी जीत मायने रखती है। इससे वहाँ के और युवाओं को भी आगे आने की प्रेरणा मिलेगी।
आशुतोष सिर्फ दोस्त-डायना

Friday, November 21, 2008

हर उम्र में रहें स्वस्थ

पूरी तरह स्वस्थ व निरोग रहने का सही मतलब क्या है? बेशक जब आप बीस साल के होते हैं तो पूरी तरह सक्रिय और फुर्तीले होते हैं। पर क्या पचास साल का व्यक्ति एक छोटे बच्चे की तरह सीढ़ियाँ चढ़ सकता है? शायद नहीं। यह आलेख आपको बताएगा कि कैसे आप अलग-अलग उम्र में स्वस्थ रह सकते हैं। जीवन के किस उम्र में आपको किस तरह की देखभाल की जरूरत पड़ सकती है और आप क्या कर सकते हैं।
उम्र के अलग-अलग पड़ाव में अपने को जानें-
30 साल तक अगर आप तीस मीटर की दूरी से पेड़ के गिरते पत्ते को देख सकते हैं तो समझिए आपकी आँखें सही हैं। आपके दिल की धड़कन एक मिनट में साठ बार धड़कती है। आप आराम से आगे की ओर झुककर कोई भी चीज उठा सकते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि आपका शरीर बिलकुल सही आकार में है।
अगर आप लगातार बैठे रहते हैं तो थोड़े-थोड़े समय पर अपनी स्थिति बदलते रहें। लिफ्ट के बजाय सीढ़ियों का प्रयोग करें। इस उम्र में बहुत लोग काफी तेज आवाज में संगीत सुनते हैं, यह गलत है। पढ़ने या टीवी देखने से आँखों के रेटिना में सूजन आ सकती है। आपको अपने दिल की चिंता करने की जरूरत नहीं वे बिलकुल ठीक होते हैं। आपको सिगरेट और वसायुक्त भोजन से दूर रहना चाहिए।




30 से 45 साल तक अगर इस उम्र में आप चश्मा भी पहनते हैं तो चिंता करने की जरूरत नहीं। आपकी आँखें सही हैं। अगर आप एक मीटर की दूरी से घड़ी की टिक-टिक सुन सकते हैं तो आपकी सुनने की शक्ति सही है। अगर आप कम्प्यूटर पर लगातार काम करते हैं तो आपको कुछ आराम करने की जरूरत पड़ सकती है। बहुत ज्यादा शोर और वह भी लगातार, आपके लिए ठीक नहीं है।
अगर आपको हाईब्लड प्रेशर है और आप बहुत ज्यादा शोर-शराबे के बीच रहते हैं तो इसमें कोई संदेह नहीं कि आपको डॉक्टर की जरूरत पड़ सकती है। इस उम्र में आपकी धड़कन 53 से 75 पल्सप्रति मिनट होनी चाहिए। बेहतर स्वास्थ्य के लिए कम वसायुक्त खाना खाना चाहिए। साल में एक बार अपनी जाँच जरूर कराएँ। तीस से ऊपर की औरतों को साल में एक बार अपने डॉक्टर से अवश्य मिलना चाहिए ताकि वे स्तन कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से बच सकें। 46-65 साल तक इस उम्र तक आते-आते आपका दिल थोड़ी ज्यादा देखभाल चाहता है। बहुत ज्यादा तनाव आपके लिए खतरनाक हो सकता है। साल में एक बार अपने डॉक्टर से अपने दिल की जाँच करानी चाहिए। पार्क में टहलना, जॉगिंग करना फायदेमंद हो सकता है। आपको सही नंबर का चश्मा पहनना चाहिए वरना आप ग्लूकोमा से ग्रस्त हो सकते हैं। इस उम्र में किसी तरह का पीठ दर्द, कमर दर्द, पैरों में सूजन इन सारे लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। कुछ बातों का ध्यान रखकर आप इस तरह की समस्याओं को कम कर सकते हैं जैसे हमेशा मुलायम सोल के जूते पहने। नरम जमीन पर जागिंग करें। बहुत ज्यादा भारी चीजें न उठाएँ। हमेशा सही गद्दे और सिर्फ एक तकिया का इस्तेमाल करें।


66 और उसके ऊपर इस उम्र तक आते-आते शरीर की अवस्था थोड़ी खराब हो जाती है। इस उम्र में मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है। अपने ब्लड-शुगर की जाँच करवाते रहना चाहिए। दिल का भी ध्यान रखना चाहिए, खासकर उन लोगों के लिए जिनका वजन ज्यादा है और जो लोग सिगरेट और शराब का सेवन करते हैं। अगर आप बाकी का जीवन सही तरीके से जीना चाहते हैं तो जरूरी है कि आपकी हड्डियाँ मजबूत रहें। इसके लिए जरूरत होती है- कैल्शियम की और व्यायाम की। तब आप किसी भी उम्र के हों, निश्चित रूप से स्वस्थ रहेंगे

Wednesday, November 19, 2008

खोता जा रहा है मासूम बचपन

दुनियाभर में बच्चों के कल्याण के लिए बहुत से कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद गरीब और उपेक्षित बच्चों का कल्याण नहीं हो पा रहा। कहीं वे बाल मजदूरी के शिकार हैं तो कहीं उन्हें स्कूल के दर्शन तक नसीब नहीं। कहीं उनका यौन उत्पीड़न हो रहा है तो कहीं वे कुपोषण और भूख के चलते मौत के शिकार हो रहे हैं। दुनियाभर में बच्चों पर होने वाली ज्यादतियों को रोकने और उनके कल्याण के उद्देश्य से 14 दिसंबर 1954 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में हर साल 20 नवम्बर को विश्व बाल दिवस मनाने संबंधी प्रस्ताव 836 (9) रखा गया, जिसके स्वीकार होने पर वैश्विक स्तर पर बाल दिवस का आयोजन अस्तित्व में आ गया।
विश्व बाल दिवस के उद्देश्य आज तक पूरे नहीं हो पाए हैं, जिससे बाल अधिकार संरक्षण से संबंधित संगठन ही नहीं, बल्कि खुद संयुक्त राष्ट्र भी चिंतित है।संयुक्त राष्ट्र में महासचिव की ओर से बाल एवं सशस्त्र संघर्ष मामलों से संबंधित विशेष प्रतिनिधि राधिका कुमारस्वामी का कहना है कि दुनियाभर में बच्चों की हत्या, यौन उत्पीड़न, अपहरण और उन्हें अपंग बना देने जैसी घटनाएँ जारी हैं। इन्हें रोकने के लिए किए गए प्रयासों में थोड़ी प्रगति तो हुई है, लेकिन अभी प्रयासों को दुगुना किए जाने की जरूरत है।
अफगानिस्तान और श्रीलंका जैसे देशों में तो हालात और भी खराब हैं, जहाँ व्रिदोही संगठन बच्चों के हाथों में बंदूक और हथगोले थमकार उनका बचपन लील जाते हैं। कुमारस्वामी का कहना है कि इराक, चाड, मध्य अफ्रीकी गणराज्य और अफगानिस्तान जैसे देशों में बच्चों की हालत दयनीय है। वर्ष 2000 में विश्वभर के नेताओं ने 2015 तक सहस्राब्दि विकास लक्ष्य हासिल करने की समय सीमा रखी। यूनीसेफ का कहना है कि इसमें रखे गए आठ लक्ष्यों में से छह सीधे-सीधे बच्चों से जुड़े हैं, लेकिन इन्हें हासिल करने की दिशा में कुछ विशेष दिखाई नहीं दे रहा है। कई बाल अधिकार संरक्षण कार्यकर्ता बच्चों के कल्याण से संबंधित कोई कारगर नीति न बन पाने की वजह राजनेताओं को मानते हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य संध्या बजाज का कहना है कि बच्चों के कल्याण के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। उन्होंने कहा कि क्योंकि बच्चे मतदाता नहीं होते, इसलिए वे नेताओं के एजेंडे शामिल नहीं होते। संध्या ने कहा मेरा निजी विचार यह है कि बच्चों को मतदान का अधिकार दे दिया जाना चाहिए, ताकि नेता उनके बारे में भी सोचे।

जब जॉब खोना पड़े

लगभग रोज ही विभिन्‍न कंपनियों द्वारा अपने कर्मचारियों की तादाद घटाने के लिए तरह-तरह की कसरत करने की खबरें आ रही हैं। कहीं स्वैच्छिक (?) छुट्टी पर भेजा जा रहा है, कहीं आधे वेतन पर कुछ सालों के लिए समाजसेवा के लिए कार्मिकों को मुक्त किया जा रहा है, तो कहीं सीधे ही बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है कि निकलो भाई, हम आपका बोझ अब नहीं उठा सकते। लेकिन इसके बावजूद शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा, जिसकी जिंदगी में इस वजह से कोई बड़ा परिवर्तन न आए।
अगर इस दौर में आप प्रभावित होने से बचे हैं, तो आप खुशकिस्मत हैं। लेकिन यदि प्रभावित हुए हैं, तो आपको कुछ तरीकों पर जरूर सोचना चाहिए, जिनको अपनाकर आप इस परिस्थिति से बाहर निकल सकते हैं और नए सिरे से मुस्करा सकते हैं।
1. शांत बने रहें : चाहे यह अपेक्षित हो या नहीं, चाहे यह कैसे भी हुआ हो, आपको शांत बने रहने की जरूरत है।



पहले उत्तेजित या तनावग्रस्त होने पर आप अनजाने ऐसा कुछ भी कर सकते हैं, जो आपको नहीं करना चाहिये। एमिली पोस्ट के निदेशक और 'एटिकेट एडवांटेज इन बिजनेस' के लेखक पीटर पोस्ट कहते हैं- 'आपको कंपनी से बाहर किया जाना आपके लिए खुशी की बात तो नहीं ही है, जबकि यह निर्णय आपका अपना नहीं हो। भले ही आपको बाहर किया जा रहा है, लेकिन इसे ध्यान में रखिए कि आपके बॉस और आपके सहकर्मियों से आप हमेशा के लिए विदा नहीं ले रहे हैं, संभवत: फिर उनसे सामना हो सकता है। अपनी भावनाओं को काबू में रखना बहुत ही अच्छी बात है'
एक प्रबंधन सलाहकार कंपनी की उपाध्यक्ष बारबरा बारा के मुताबिक- आपको हमेशा पेशेवराना तरीके से विदा लेनी चाहिए। आप चाहें या न चाहें, लेकिन जहाँ से आप बाहर जा रहे हैं, वह कंपनी सदैव आपके लिए एक सन्दर्भ का कार्य करेगी।
2. अपने पुराने एम्प्लॉयर का अधिकतम उपयोग करें : हो सकता है कि छोड़ी जा रही कंपनी आपको छोड़ने के एवज में पुनर्प्रशिक्षण या कार्मिक सहायता कार्यक्रम या अन्य किसी प्रकार के लाभ का प्रस्ताव दे रही हो, जिसे अपनाने से आगे करियर में मदद मिल सकने के लिए आपको यह विकल्प खुला रखना चाहिए, उस हर चीज के साथ, जो आप कर सकते हैं। भले ही आपकी परिस्थिति तात्कालिक अस्थिरता का शिकार हो, लेकिन इसका असर आपकी असीमित संभावनाओं पर नहीं पड़ना चाहिए, जो आपके आगे बरकरार होती हैं।
मानव संसाधन सलाहकार आइरिन कोयलर के अनुसार- यह आपको बाहर निकल जाने और तनावग्रस्त हो जाने के लिए प्रेरित करता है, मगर बाहर निकलने से पहले आप हर एक से सम्पर्क सूचनाएँ और राय-मशविरा जरूर प्राप्त कर लें। किसी कंपनी से प्रस्थान करने की दशा में वहाँ के कार्मिकों, आपके अधिकारियों से आपका अन्तर्व्यवहार आपकी भावी योजनाओं को प्रभावित करता है, इसलिए उन लोगों के सामने समस्याएँ कम आती हैं और समर्थन ज्यादा मिलते हैं, जो संबंधों को हर हाल में मधुर बनाए रखने में यकीन रखते हैं।
3. पेशेवर सलाह प्राप्त करिए : एक सेवेरेंस समझौते पर हस्ताक्षर करने की दशा में पहले इसका भली-भाँति अवलोकन अवश्य करें। कभी-कभी इस पैकेज में सौदेबाजी की संभावना होती है, खासकर तब, जब भारी मात्रा में छँटनी के बजाय एक-दो लोगों के साथ ऐसा किया जा रहा हो। समझौते को समुचित और वास्तविक लाभप्रद स्तर तक लाने के लिए अटार्नी की मदद ली जानी चाहिए। इसे सामान्यतय: अटार्नी द्वारा ही तैयार किया जाता है और इससे मानव संसाधन विभाग जुड़ा होता है, जिसमें अधिकतम प्राप्त करने की प्रत्याशा में प्रयास किए जाने चाहिए।
4. इसे अपने करियर के पुनरावलोकन के अवसर के रूप में देखिए : कार्य से बाहर किया जाना अच्छी चीज तो नहीं ही हो सकती, लेकिन यह आपको एक कदम पीछे जाकर यह देखने का आपको मौका भी देता है, कि क्या आपको कुछ अलग हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए? इससे आप अपनी योग्यताओं/क्षमताओं को नए तरह से प्रयोग कर सकते हैं, या उस तरह से भी, जैसे आपने पहले सोचा भी नहीं हो। खाली वक्त में स्वैच्छिक, स्वयंसेवी के तौर पर कार्य के अवसरों का उपयोग किए जाने में समझदारी है। यह आपकी योग्यताओं को तरोताजा रखता है और नए संपर्कों का लाभ उठाने के अवसर देता है। अपने अगले बेहतरीन विकल्प के बारे में सोचने का समय निकालें। देखिए कि क्या विकल्प मौजूद हैं और अन्य संगठनों के लिए आप किस तरह से क्या कर सकते हैं।
5. अपनी वित्तीय स्थिति पर निगाह रखिए : अचानक कार्यमुक्ति आपकी आमदनी और वित्तीय स्थिति में बड़ा परिवर्तन लाती है।



के एवज में होने वाली सभी वित्तीय प्राप्तियों को और अपनी बचतों का आगणन करें और देखें कि कितने वक्त के बाद आपको वास्तव में नौकरी करने की जरूरत पड़ेगी। वित्तीय स्थिति अधिक मजबूत होने की दशा में, 'एक अधिक बेहतर' नौकरी की तलाश में लगने वाले समय से आप समझौता कर सकते हैं। अधिक पैसे पास न होने की दशा में आपको अधिक सतर्कता से काम लेना होगा। सामूहिक योजनाओं का लाभ उठाएँ, जिनमें कम व्यय पर आपकी कई प्रकार की आवश्यकताएँ पूरी हो सकती हैं।

6. अपने सम्पर्कों के सम्पर्क में रहें : लोग बिना नौकरी की नई स्थिति में एकाएक आने के बाद अपने ईष्ट-मित्रों, परिजनों से कतराना शुरू कर देते हैं। किसी और को ऐसी परिस्थिति में पाकर आप जिस तरह उसकी मदद करने को आतुर होते हैं, उसी तरह दूसरे भी आपकी मदद कर सकते हैं, इसलिए सम्पर्क में रहना बेहतर है। सभी अनौपचारिक सम्पर्कों के अलावा औपचारिक सम्पर्क, जैसे सोशल नेटवर्किंग आदि भी नई नौकरी की खोज, या तनावमुक्ति में आपकी मदद कर सकते हैं। अपने सम्पर्कों का बुद्धिमत्तापूर्वक इस्तेमाल करें।
7. सक्रिय बने रहिए और लोगों की पहुँच में रहें : एक नियमित कार्य के बिना चीजों के साथ तालमेल बिठाए रखना दुष्कर कार्य है। कई महीनों तक लगातार नौकरी की खोज हताशा और निराशा से भी सामना करा सकती है। अपनी बेहतरी के लिए, अपनी दिनचर्या को नियमित रखने का पूरा प्रयास करें, सक्रियतापूर्वक अपने मेलजोल को जारी रखते हुए नौकरी की तलाश करें। सब कुछ समाप्त नहीं हो गया है, ऐसी सोच के साथ अपनी जिंदगी से व्यक्तिगत आनंद और मनोरंजन के लम्हों से बिलकुल बेगाने न हों। विपरीत परिस्थिति का सामना करके जब आप फिर से जिंदगी का संतुलन साधते हैं, तो यह आपको और अधिक मजबूत तथा योग्य बनाता हुआ आपके आत्मविश्वास और प्रतिभा को निखारने वाला होता है।

Saturday, November 15, 2008

गर्भ चिन्तामणि रस

डॉ .बी .पी .सिंह प्रयाग होस्पिटल नॉएडा
दुर्बल देह
वाली स्त्री जब गर्भवती होती है तो उसे अपने शरीर के साथ-साथ गर्भस्थ शिशु का भी पालन-पोषण करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में यदि उसको पोषक आहार और अन्य पौष्टिक पदार्थों का सेवन करने को न मिले तो उसका तथा गर्भस्थ शिशु का शरीर और स्वास्थ्य अच्छा नहीं रह पाता। ऐसी स्थिति में सेवन करने योग्य श्रेष्ठ योग 'गर्भ चिन्तामणि रस' का परिचय प्रस्तुत है।

घटक द्रव्य : शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, लौह भस्म 20-20 ग्राम, अभ्रक भस्म 40 ग्राम, कपूर, वंगभस्म, ताम्र भस्म, जायफल, जावित्री, गोखरू के बीज, शतावर, खरैंटी और गंगरेन 20-20 ग्राम।
निर्माण विधि : पारद और गन्धक को मिलाकर कज्जली करके सभी भस्म मिला लें। फिर काष्ठौधियों को कूट-पीसकर महीन चूर्ण बना लें। शतावर के रस या काढ़े में इन सबको डालकर दिनभर खरल में घुटाई करें, फिर 2-2 रत्ती की गोलियाँ बना लें।
सेवन विधि : सुबह-शाम 1-1 गोली दूध के साथ गर्भकाल के शुरू होते ही यानी प्रथम मास से ही शुरू कर देना चाहिए और नियमित रूप से पूरे गर्भकाल तक सेवन करना चाहिए।
लाभ : यह गर्भवती और गर्भस्थ शिशु के लिए बहुत पोषक है। इसका सेवन करने से गर्भकाल में होने वाली व्याधियाँ जैसे सुबह उठने पर उल्‍टी होना, जी मिचलाना, गर्भकाल में कभी ज्वर होना, जलन होना, अरुचि, दुर्बलता, अतिसार आदि नहीं होती और हो रही हों तो इसके सेवन से ठीक हो जाती हैं।
* गर्भस्थ शिशु का शरीर पुष्ट और बलवान रहता है। गर्भकाल में कभी अचानक रक्त स्राव होने लगे तो इस रस के साथ प्रवालपिष्टी एक रत्ती देने से लाभ होता है और रक्त स्राव होना बन्द हो जाता है। यह योग बना बनाया बाजार में मिलता है।

मोबाइल फोन का असर सेहत पर

विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रमुख ने उन बच्चों के माता-पिताओं को कड़ी चेतावनी दी है, जिनके बच्चे मोबाइल फोन पर अपना ज्यादा से ज्यादा समय खपाते हैं। डब्ल्यूएचओ महानिदेशक ग्रो हर्लेन बर्टलैंड का कहना है कि खेल-खेल में घंटों बतियाने वाले बच्चे नहीं जानते कि मोबाइल फोन से होने वाले खतरे उनके स्वास्थ्य के लिए कितने घातक हो सकते हैं। इस बारे में कुछ परीक्षण भी किए गए हैं और पाया है कि जिन स्थानों पर मोबाइल का लगातार प्रयोग किया जाता है, वहाँ विद्युत चुंबकीय तरंगें भी बहुत ज्यादा होती हैं। हालाँकि इस बारे में कोई निर्णयात्मक वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि मोबाइल फोन का दीर्घकालीन उपयोग स्वास्थ्य पर दीर्घकालीन नकारात्मक प्रभाव छोड़ता हो। बर्टलैंड का अपना मोबाइल फोन नहीं है। उनका कहना है कि ऐसा उन्होंने स्वयं को इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक तरंगों से बचाने के लिए किया है, क्योंकि इससे उन्हें भयानक सिर दर्द होता है। हाल में फिनलैंड के वैज्ञानिकों ने एक अनुसंधान कर बताया कि मोबाइल फोन से होने वाले विकिरण से मस्तिष्क में बदलाव आ जाता है। उन्होंने पाया कि मानवीय सेलों के मोबाइल फोन के विकिरण का सामना करने पर मस्तिष्क को सुरक्षित रूप से रक्त पहुँचाने वाले बैरियर को नुकसान पहुँचता है। विशेषज्ञों की राय है कि इससे बचने का एक ही उपाय है मोबाइल फोन पर कम और छोटा वार्तालाप किया जाए।

Friday, November 14, 2008

सफेद बाल की समस्या व निवारण

बालों का सफेद होना आम बात है। कई बार कम उम्र के लोगों के बाल सफेद हो जाते हैं और वे विभिन्न केमिकल्स द्वारा उन्हें रंगकर काले करने का प्रयास करते हैं। केमिकल्स से बालों की जड़ें कमजोर हो जाती हैं, साथ ही अन्य दूसरे साइड इफेक्ट्स भी आ जाते हैं। यहाँ सफेद बालों हेतु घरेलू नुस्खे से उपचार की जानकारी इस प्रकार है-

सफेद बालों हेतु घरेलू खिजा

पिसी हुई सूखी मेहँदी एक कप, कॉफी पावडर पिसा हुआ 1 चम्मच, दही 1 चम्मच, नीबू का रस 1 चम्मच, पिसा कत्था 1 चम्मच, ब्राह्मी बूटी का चूर्ण 1 चम्मच, आँवला चूर्ण 1 चम्मच और सूखे पोदीने का चूर्ण 1 चम्मच। इतनी मात्रा एक बार प्रयोग करने की है। इसे एक सप्ताह में एक बार या दो सप्ताह में एक बार अवकाश के दिन प्रयोग करना चाहिए।

सभी सामग्री पर्याप्त मात्रा में पानी लेकर भिगो दें और दो घण्टे तक रखा रहने दें। पानी इतना लें कि लेप गाढ़ा रहे, ताकि बालों में लगा रह सके। यदि बालों में रंग न लाना हो तो इस नुस्खे से कॉफी और कत्था हटा दें। पानी में दो घण्टे तक गलाने के बाद इस लेप को सिर के बालों में खूब अच्छी तरह, जड़ों तक लगाएँ और घण्टेभर तक सूखने दें।

इसके बाद बालों को पानी से धो डालें। बालों को धोने के लिए किसी भी प्रकार के साबुन का प्रयोग न करके, खेत या बाग की साफ मिट्टी, जो कि गहराई से ली गई हो, पानी में गलाकर, कपड़े से पानी छानकर, इस पानी से बालों को धोना चाहिए। मिट्टी के पानी से बाल धोने पर एक-एक बाल खिल जाता है जैसे शैम्पू से धोए हों।

लाभ : इस नुस्खे का प्रति सप्ताह प्रयोग करने से जहाँ बाल सुन्दर व मजबूत रहते हैं, वहीं सिर दर्द, अनिद्रा, शरीर की अतिरिक्त गर्मी, आँखों की जलन आदि व्याधियाँ दूर होती हैं। जिनके बाल अधपके होंगे वे इस नुस्खे के प्रयोग से काले दिखाई देंगे। खिजाब (हेयर डाई) लगाने की अपेक्षा इस नुस्खे का प्रयोग करना श्रेष्ठ है, क्योंकि खिजाब में जो केमिकल्स होते हैं, वे त्वचा पर बुरा असर करते हैं और रहे-सहे काले बाल भी सफेद हो जाते हैं। इस नुस्खे के सेवन से ऐसा कोई दुष्परिणाम नहीं होता।

* आमलकी रसायन आधा चम्मच प्रतिदिन सेवन करने से बाल प्राकृतिक रूप से जड़ से काले हो जाते हैं।

* एक छोटी कटोरी मेहँदी पावडर लें, इसमें दो बड़े चम्मच चाय का पानी, दो चम्मच आँवला पावडर, शिकाकाई व रीठा पावडर, एक चम्मच नीबू का रस, दो चम्मच दही, एक अंडा (जो अंडा न लेना चाहें वे न लें), आधा चम्मच नारियल तेल व थोड़ा-सा कत्था। यह सामग्री लोहे की कड़ाही में रात को भिगो दें। सुबह हाथों में दस्ताने पहनकर बालों में लगाएँ, त्वचा को बचाएँ, ताकि रंग न लगने पाए। दो घंटे बाद धो लें। यह आयुर्वेदिक खिजाब है, इससे बाल काले होंगे, लेकिन इन्हें कोई नुकसान नहीं होगा।

* सफेद बालों को कभी भी उखाड़ें नहीं, ऐसा करने से ये ज्यादा संख्या में बढ़ते हैं। सफेद बाल निकालना हों तो कैंची से काट दें या उन्हें काला करने वाला उपाय अपनाएँ।

* त्रिफला, नील, लोहे का बुरादा- तीनों 1-1 चम्मच लेकर भृंगराज पौधे के रस में डालकर रात को लोहे की कड़ाही में रख दें। प्रातः इसे बालों में लगाकर, सूख जाने के बाद धो डालें।

* जपा (जवाकुसुम या जास्बंद) के फूल और आँवला, एक साथ कूट-पीसकर लुगदी बनाकर, इसमें बराबर वजन में लौह चूर्ण मिलाकर पीस लें। इसे बालों में लगाकर सूखने के बाद धो डालें।

* रात को सोते समय नाक में दोनों तरफ षडबिन्दु तेल की 2-2 बूँद नियमित रूप से टपकाते रहें।

ये सभी प्रयोग धीरे-धीरे बालों को काला करने वाले हैं। कोई भी एक प्रयोग लगातार 5-6 माह तक करते रहें। षडबिन्दु तेल का प्रयोग अन्य प्रयोग करते हुए भी कर सकते हैं।
आयुर्वेदिघरेलू लेप

सामग्री : 1 किलो शुद्ध मेहँदी, 25 ग्राम साबुत आँवला, 25 ग्राम आँवला पावडर, 25 ग्राम साबुत शिकाकाई, 25 ग्राम शिकाकाई पावडर, 25 ग्राम साबुत भृंगराज, 25 ग्राम भृंगराज पावडर, 25 ग्राम साबुत ब्राह्मी, 25 ग्राम ब्राह्मी पावडर।

लोहे की बड़ी कड़ाही में 5 लीटर पानी डालें व सभी सामग्री डालकर 3-4 घण्टे तक पकने दें। ठंडा करके फ्रिज में रख लें व पहले सप्ताह में दो बार, बाद में एक बार फिर महीने में तीन बार, तत्पश्चात्‌ महीने में दो बार लगाते रहें।

इस प्रयोग से बाल लाल नहीं, बल्कि कालापन लिए हुए दिखने लगेंगे व सफेद बाल इन काले बालों में ऐसे मिल जाएँगे कि देखने वाला भी उसकी मात्रा का अन्दाजा नहीं लगा पाएगा।

आवश्यकतानुसार अण्डे या दही का प्रयोग भी कर सकते हैं, ताकि बालों में रूखापन न रहे। पैक लगाने के दूसरे दिन सिर में आयुर्वेदिक तेल की मालिश अवश्य करें।

सफेद बालों हेतु तेल

नुस्खा 1 : मेहँदी, नीम और बेर की पत्तियाँ, पोदीना और अमरबेल, इन सबको पानी से धो साफ करके, सिल पर पानी के छींटे मारते हुए पीसकर लुगदी बना लें। लोहे की कढ़ाई में काले तिल या नारियल का तेल डालकर लुगदी डाल दें और आँच पर चढ़ाकर गर्म करें।

इसे इतनी देर तक तपाएँ कि लुग्दी जलकर काली पड़ जाए और तेल से झाग उठने लगें। अब कढ़ाई उतारकर किसी सुरक्षित स्थान पर ढँककर तीन दिन रखें। चौथे दिन तेल को कपड़े से छानकर ढक्कनदार काँच की बोतलों में भर लें। बस तेल तैयार है।

रात को सोने से पहले कटोरी में तेल लेकर, दोनों हाथों की उँगलियाँ तेल में डुबोकर बालों की जड़ों में लगाकर 15-20 मिनट तक मालिश करें। इस प्रयोग से बाल जड़ से काले पैदा होने लगते हैं, सिर में ठण्डक बनी रहती है और गहरी नींद आती है, यानी अनिद्रा रोग गायब हो जाता है।

इस तेल का प्रयोग करते समय किसी भी प्रकार का तेल, साबुन या शैम्पू का प्रयोग करना सख्त मना है। बालों को धोने के लिए मुल्तानी मिट्टी या खेत की मिट्टी पानी में गलाकर कपड़े से छान लें और छना हुआ पानी बालों में लगाकर मसलें फिर साफ पानी से बालों को पोंछकर सुखा लें। बाल गीले न रखें, पूरी तरह बाल सूखने पर ही तेल लगाएँ।
नुस्खा 2 : नारियल तेल एक लीटर, मेथी दाना 25 ग्राम, करी पत्ता 25 ग्राम, तेज पत्ता 5 पत्ते, त्रिफला चूर्ण 25 ग्राम, शिकाकाई पावडर 25 ग्राम, जासवंद पावडर 25 ग्राम।


सभी सामग्रियों को मिलाकर तेल में पकाएँ। ठंडा होने पर छानकर रख लें। सप्ताह में दो बार यह तेल लगाएँ।
नुस्खा 3 : मुल्तानी मिट्टी को रात को दही के साथ भिगो दें, दूसरी ओर एक अन्य बर्तन में त्रिफला चूर्ण और शिकाकाई भी भिगो दें, फिर त्रिफला चूर्ण वाला पानी निथारकर मुल्तानी मिट्टी वाले बर्तन में डालकर अच्छी तरह फेंट लें। इससे सिर के बालों को सप्ताह में 2 बार, नहीं तो कम से कम एक बार तो अवश्य धोएँ, बाल मुलायम रहेंगे और काले बने रहेंगे। बाल यदि झड़ते हों तो वह रोग भी इस प्रयोग से खत्म हो जाएगा।