rashtrya ujala

Sunday, December 28, 2008

पाक में मतदान केन्द्र पर विस्फोट, 8 मरे

पाकिस्तान के अशांत पश्चिमोत्तर क्षेत्र में एक संसदीय क्षेत्र में हो रहे उपचुनाव के दौरान मतदान केन्द्र पर रविवार को हुए कार बम विस्फोट में एक पुलिसकर्मी सहित आठ लोग मारे गए, जबकि 25 अन्य घायल हो गए। टीवी चैनलों पर आई खबरों के अनुसार पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत के बुनेर जिले में सरकारी स्कूल में बनाए गए मतदान केन्द्र के बाहर अज्ञात हमलावरों ने विस्फोटकों से भरी कार को उड़ा दिया। मारे गए आठ लोगों में सिपाही बहादार जैब शामिल है। 29 लोग घायल हो गए। सांसद अब्दुल मतीन खान की मृत्यु के कारण इस संसदीय सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं। विस्फोट मतदान शुरू होने के 90 मिनट बाद हुआ। ऐसी भी खबरें हैं कि मतदान केन्द्र पर आए मतदाताओं पर आसपास की पहाड़ियों पर रहने वाले लोगों ने गोलियाँ बरसाईं। हमले के लिए किसी भी समूह ने जिम्मेदारी नहीं ली है। इससे पूर्व भी इस क्षेत्र में दो विरोधी दलों के समर्थकों के बीच झड़प हो गई।

कश्मीर में नेका-कांग्रेस गठबंधन तय

जम्मू-कश्मीर के चुनाव परिणाम और मिल रहे संकेत राज्य में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के गठजोड़ की ही सरकार बनती दिखा रहे हैं। नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला ने साफ तौर पर कांग्रेस से समर्थन मांगने की बात कह दी है तो कांग्रेस की औपचारिक 'वेटिंग गेम' के साथ ही वरिष्ठ नेता भी साफ कह रहे हैं कि नेशनल कांफ्रेंस के साथ मिल कर सरकार बनाना ही व्यावहारिक होगा। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता में हुई कोर ग्रुप की बैठक में वर्तमान स्थिति पर चर्चा के बाद संशय है तो बस इतना कि सरकार में शामिल हों या बाहर से समर्थन दें।कांग्रेस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी [पीडीपी] की पिछली सरकार के अनुभव के बाद नई सरकार के गठन से पहले गठबंधन के फार्मूले को लेकर जबरदस्त मोल-तोल होने की संभावना है। मामला कश्मीर का है, इसलिए सरकार गठन से पहले केंद्र भी नेशनल कांफ्रेंस से कई बातें साफ करना चाहेगा। संभव है कि सोमवार को नेशनल कांफ्रेंस की तरफ से औपचारिक तौर पर समर्थन मांगने की कवायद शुरू हो।नेशनल कांफ्रेंस के फारूक और उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस का समर्थन मांगने की बात कहने के साथ ही यह भी कहा है कि वह भाजपा का समर्थन लेने के बजाय विपक्ष में बैठना पसंद करेंगे। हालांकि भाजपा ने भी राज्य में सरकार बनाने के लिए किसी अन्य दल को समर्थन देने की बात से इनकार कर दिया है। पीडीपी की महबूबा मुफ्ती जान रही हैं कि पिछली सरकार के वक्त जिस तरह उनकी पार्टी ने कांग्रेस से समर्थन वापस लेकर सरकार गिराई उसे देखते हुए कांग्रेस का उनके साथ आना बेहद मुश्किल है। हालांकि पीडीपी ने जिस तरह संप्रग सरकार बचाने के लिए लोकसभा में सरकार के पक्ष में मतदान किया था, उसे दरकिनार नहीं किया जा सकता। लेकिन उस वक्त नेशनल कांफ्रेंस ने भी सरकार का साथ दिया था। उमर ने तो सरकार के पक्ष में संसद में जम कर तकरीर भी की थी।रविवार की शाम सोनिया के आवास पर प्रणब मुखर्जी, ए के एंटनी, जम्मू-कश्मीर के प्रभारी पृथ्वीराज जैसे वरिष्ठ नेताओं से सभी मुद्दों पर विचार-विमर्श हुआ। पार्टी सूत्रों के अनुसार नेशनल कांफ्रेंस के साथ मिली-जुली सरकार बनना तय है। इसके स्वरूप को लेकर कांग्रेस नेतृत्व सोमवार को चर्चा करेगा। इन दोनों दलों के साथ आने का एक बड़ा कारण कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी और उमर अब्दुल्ला की दोस्ती भी रहेगी। चुनावी नतीजों के बाद फारूक अब्दुल्ला ने साफ कर दिया कि नेशनल कांफ्रेंस के नेतृत्व वाली सरकार की कमान उमर ही संभालेंगे। ऐसे में उमर को मुख्यमंत्री स्वीकार करने में कांग्रेस को शायद ही कोई एतराज होगा।पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद भी कांग्रेस के नेशनल कांफ्रेंस के साथ जाने के हिमायती हैं।हालांकि उन्होंने कहा कि इसका फैसला प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को करना है। डा. कर्ण सिंह ने भी अपनी निजी राय की आड़ में कहा है कि नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के गठजोड़ की सरकार ज्यादा व्यावहारिक नजर आ रही है। पीडीपी के साथ गठबंधन के पिछले अनुभवों को देखते हुए भी आजाद पीडीपी के साथ जाने के हक में नहीं हैं।

Friday, December 26, 2008

कम होंगे दिल के घाव

अमेरिकी डॉक्टर ऐसी दवा बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे दिल के दौरे से होने वाले स्थायी नुकसान को कम किया जा सके। अमेरिकी शोधार्थियों ने पाया कि चूहों में बनने वाली एक खास प्रोटीन का रास्ता बंद करने से दिल को हुआ नुकसान कुछ हद तक कम हो गया।


इस शोध का विवरण 'नेचर ेल बायोलॉजी' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। जब दिल के दौरे के दौरान इसे रक्त की आपूर्ति करने वाली किसी एक धमनी के बंद हो जाने से दिल को ऑक्सीजन की सख्त जरूरत होती है तो यह कई प्रकार से दिल को नुकसान पहुँचाती है। इस शुरुआती क्षति से सूजन होती है, जिससे कोलेजन (एक तरह का प्रोटीन) स्कार कोशिका का जन्म होता है। इस प्रक्रिया को उस अंग का फाइब्रोसिस कहते हैं, जो इसके रक्त पंप करने की क्षमता में स्थायी रूप से बाधा डाल सकती है।
चूहों पर प्रयोग : यूनीवर्सिटी ऑफ विस्कांसिस मेडिसन और न्यूयॉर्क की कोर्नेल यूनिवर्सिटी के शोधार्थी ऐसे केमिकल मैसेंजर की तलाश कर रहे हैं, जो रक्त प्रवाह जारी रखने में मदद करता रहे।
वे खासतौर पर एसएफआरपी-2 नामक प्रोटीन की भूमिका पर गौर कर रहे हैं, जिसका संबंध इससे पहले कोलेजन के निर्धारण के साथ नहीं माना जाता था।उन्होंने परीक्षण के लिए ऐसे चूहों पर प्रयोग किया, जिनमें इस प्रोटीन का अभाव था। उन्होंने इस पर गौर किया कि दिल के दौरे के बाद इनमें क्या अंतर रहता है। उन्होंने पाया कि इस प्रोटीन के अभाव वाले चूहों के दिलों में घाव बहुत कम थे।
इसके एक शोधार्थी प्रोफेसर डेनियल ग्रीनस्पान ने कहा महत्वपूर्ण है कि हमने पाया कि जब हमने फाइब्रोसिस का स्तर कम किया तो चूहों में दिल की कार्यक्षमता स्पष्ट रूप से बढ़ती गई। हालाँकि इस प्रोटीन एसएफआरपी-2 को प्रयोग अभी तक मानव में नहीं किया गया है, फिर भी उम्मीद है कि ऐसी दवा मानव में दिल के दौरे के कुछ घंटों में ही इसका प्रभाव कम कर सकेगी। लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज में मॉलिक्युलर कार्डियोलॉजी के रीडर डॉ. पॉल रिले ने कहा कि यह खोज उत्साहवर्धक है। उन्होंने कहा फाइब्रोसिस बहुत महत्वपूर्ण है। निश्चित रूप से हमें कोलेजन के जमा होने को बचने की जरूरत है। उनके अनुसार ऐसे इलाज करने का सवाल ही पैदा नहीं होता, जिसमें नई माँसपेशियाँ या रक्तवाहिनियाँ विकसित की जाएँ, क्योंकि अगर ज्यादा घाव होंगे तो यह इसे ठीक प्रकार से काम करने से रोकेगा। इसके बजाय फाइब्रोसिस को कम करने से ज्यादा सफलता की उम्मीद है। शोधार्थियों ने कहा कि जिगर और फेफेड़ों की दूसरी ऐसी बीमारियों में भी इस प्रोटीन का रास्ता बंद करने से फायदा हो सकता है, जिनमें बड़े घाव और नुकसान होते हैं।

Friday, December 19, 2008

इस्लाम नफरत का मजहब नहीं है

छब्बीस नवंबर 2008 को मुंबई ने आतंकी हमलों का सबसे बुरा रूप देखा। दस आतंकवादी कई इमारतों में घुस गए, अंधाधुँध गोलियाँ चलाईं और कितने ही लोग मारे गए और जख्मी भी हुए। कहा जाता है कि पैगम्बर मोहम्मद के दौर में एक शख्स था। उसका मुख्य काम यही था कि पैगम्बर के बारे में अनाप-शनाप बोलता रहे और उनके बारे में गलत अफवाहें फैलाए। इस आदमी का बेटा अपने बाप की इस आदत से बहुत खफा रहता था। वह धर्मगुरु के पास गया और उसने उनसे अपने पिता को जान से मार देने की इजाजत माँगी। धर्मगुरु ने उसे ऐसा करने से मना कर दिया, क्योंकि ऐसा करने पर लोग कहते कि उन्होंने अपने

एक घटना में, धर्मगुरु मूसा ईश्वर से प्रार्थना करते हैं- 'हे ईश्वर, मेरे अनुयायियों से सबकुछ ले ले, मगर उनका विवेक उनसे मत छीन।' ईश्वर उत्तर देते हैं- 'हे मूसा, अगर हम किसी समुदाय से कोई चीज लेने का निर्णय करते हैं, तो यह उनका विवेक है, जो हम लेते है

अनुयायियों को कत्लोगारत में लिप्त होने की शिक्षा दी है। इस घटना से जो संदेश मिलता है उसका मतलब यह है कि कोई भी ऐसा काम जिससे इस्लाम का नाम खराब होता हो, नहीं किया जाना चाहिए। ये सारी घटनाएँ हदीसों में दर्ज हैं, लेकिन लोग इनसे सबक नहीं लेते क्योंकि वे इनका गहरा अध्ययन नहीं करते।
यहूदी शास्त्रों में भी बहुत सारी कहानियाँ हैं। एक घटना में, धर्मगुरु मूसा ईश्वर से प्रार्थना करते हैं- 'हे ईश्वर, मेरे अनुयायियों से सबकुछ ले ले, मगर उनका विवेक उनसे मत छीन।' ईश्वर उत्तर देते हैं- 'हे मूसा, अगर हम किसी समुदाय से कोई चीज लेने का निर्णय करते हैं, तो यह उनका विवेक है, जो हम लेते हैं।'
आज बहुत सारे मुसलमान अपना विवेक खो बैठे हैं, हाल में मुंबई में हुई वारदातों से यह साफ जाहिर होता है। जो मुसलमान मुंबई में हुए हमलों में शरीक बताए जाते हैं, उन्हें क्या मिला? फिलिस्तीन में, अरब पिछले साठ वर्षों से लड़ाई लड़ रहे हैं, उन्हें आज तक कुछ हासिल नहीं हुआ। बहुत सी जगहों पर मुसलमान आत्मघाती बम के रूप में इस्तेमाल हो रहे हैं जबकि इस्लाम में आत्महत्या को गैरशरई या गैर इस्लामी करार दिया गया है। यह पतन और विवेकहीनता का परिणाम है। जो लोग इस तरह की कार्रवाइयों में लगे हैं, वे इस बात से अनजान हैं कि एक दिन उन्हें अल्लाह के सामने जाना होगा और अपने किए का हिसाब-किताब देना होगा। इस पागलपन की वजह क्या है और इसकी शुरुआत कहाँ से हुई? इसका कारण है- नफरत! नफरत इंसान से कुछ भी करवा सकती है। नफरत शैतान से शुरू हुई।
जब अल्लाह ने आदम की रचना की, तो उन्होंने फरिश्तों और शैतान दोनों को उनकी इबादत में झुकने को कहा। शैतान ने ऐसा करने से मना कर दिया, तब अल्लाह ने उससे कहा, 'तुम और तुम्हारे अनुयायी नर्क में जाएँगे।' शैतान ने इंसान और इंसानियत के प्रति अपने मन में ऐसी घृणा पाल ली कि यह जानते हुए भी कि उसकी जगह नर्क होगी, उसने अल्लाह का हुक्म नहीं माना। नफरत इतनी अंधी होती है कि वह किसी को नर्क तक में ले जाती है। मैंने अपनी पढ़ाई-लिखाई मुस्लिम पाठशालाओं और मदरसों में की है। मैंने मुसलमानों की अनगिनत सभाओं में शिरकत की है और इनमें से कई स्थानों पर मुसलमानों के दिमाग में नफरत और गौरव की भावनाएँ भरते हुए देखा है। उन्हें पढ़ाया जाता है- 'हम धरती पर अल्लाह के खलीफा और नुमाइंदे हैं।' मैं एक बार एक अरब से मिला, जिसने मुझसे पहला सवाल यही पूछा- हम कौन हैं? फिर उसी ने यह भी कहा- हम जमीन पर खुदा के खलीफा हैं। मैंने उसे बताया कि यह हमारी हदीसों में कहीं भी नहीं लिखा है। सही-अल-बुखारी कहते हैं कि मुसलमान धरती पर अल्लाह की गवाहियाँ हैं। इसका मतलब यह हुआ कि उन्हें धरती पर अल्लाह का संदेश फैलाना है। यही बात कुरान में कही गई है कि मुसलमानों का काम अल्लाह के संदेश को फैलाना और उसकी हिदायतों के अनुसार जिंदगी बसर करना है। पर हुआ क्या है कि मुसलमानों ने तमाम तरह की तहरीकें शुरू कर दीं और सत्ता में दखल करने को लेकर प्रचार शुरू कर दिया। यह सोच तब से बनी जब मुगल साम्राज्य का पतन होने लगा, और मुसलमानों ने शेष दुनिया को शोषक के रूप में देखना शुरू किया, जो उनसे उनके अधिकार और सत्ता छीनना चाहते थे। राजनीतिक सत्ता परीक्षा के प्रश्न-पत्र की तरह है। एक प्रश्न-पत्र कभी भी किसी एक के अधिकार में नहीं होता, यह एक हाथ से दूसरे हाथ में जाएगा, क्योंकि अल्लाह हर समुदाय का इम्तहान लेना चाहता है। लिहाजा अगर आज राजनीतिक सत्ता आपसे ले ली गई है तो आपको धीरज रखना होगा। पहले सत्ता आपके पास थी तो इम्तहान का पर्चा आपके पास था, और अब, जब सत्ता किसी और को सौंप दी गई है तो यह उनका पर्चा है। किसी ने भी मुसलमानों को नहीं बताया कि उनकी सत्ता के इम्तहान का पर्चा अब खत्म हो गया है और अब उन्हें अन्य रचनात्मक गतिविधियों जैसे शिक्षा, समाज सुधार, स्वास्थ्य आदि के मसलों पर काम करना चाहिए। उदाहरण के लिए फिलिस्तीन में यह खुदा का फैसला था कि राजनीतिक सत्ता किसी और के हाथों में हो, सो मुसलमानों को इसे कबूल कर लेना चाहिए, लेकिन वे साठ साल से लड़ रहे हैं और इस लड़ाई से उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ। दूसरे विश्वयुद्ध से पहले जापानियों की सोच वही थी, जो अभी मुसलमानों की है। उस समय

इतिहास की यह घटना मुझे यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि मुसलमानों के भीतर से नफरत खत्म क्यों नहीं होती? ऐसा इसलिए कि मुसलमानों की नफरत एक खास दिमागी सोच का प्रतिबिम्ब है

हिरोहितो जापान का सम्राट था। जापानियों के मन में यह धारणा घुसी हुई थी कि उनका राजा दुनिया को शासित करने के लिए पैदा हुआ है। नतीजतन उन्होंने कितने ही देशों के साथ युद्ध किया। ये जापानी थे जिन्होंने आत्मघाती बमों की शुरुआत की जिसे हम 'हारा-किरी' के नाम से जानते हैं।
लेकिन 1945 में अमेरिका ने जापान पर दो एटम बम गिराए और जापानी सेना को नेस्तनाबूद कर दिया। जापान को लज्जाजनक हार का सामना करना पड़ा। तब जापानियों को समझ में आया कि राजा, खुदा नहीं था, वर्ना वह उन्हें बचा लेता। उसके बाद इतिहास गवाह है, जापान ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इतिहास की यह घटना मुझे यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि मुसलमानों के भीतर से नफरत खत्म क्यों नहीं होती? ऐसा इसलिए कि मुसलमानों की नफरत एक खास दिमागी सोच का प्रतिबिम्ब है। जापानियों का विश्वास है कि - राजा ही ईश्वर है- गलत साबित हुआ और वह धारणा खत्म हो गई, लेकिन आमतौर पर दिमाग में जमी हुई धारणाएँ अपनेःआप खत्म नहीं होतीं। इन्हें तभी दूर किया जा सकता है जब इनके विरुद्ध एक तरह की 'डिकंडीशनिंग' की जाए यानी नकारात्मक सोच पर वास्तविकता की गहरी चोट पड़े।अब मोहम्मद साहब जैसे धर्मगुरु तो रहे नहीं जो अपने अनुयायियों की सोच को इस हद तक प्रभावित कर सकें। यह एक मुश्किल काम है। सैद्धांतिक सोच को बदलने के लिए मुसलमानों को अपने भीतर से पहल करनी होगी ताकि उन्हें अपनी नफरत से बाहर निकलने में मदद मिल सके।
मौलाना वहीदुद्दीन खान

युद्ध के लिए उकसा रहा है पाकिस्तान

भारत भी युद्ध के लिए पूरी तरस से तैयार
हाल के कई संकेतों से पता लगता है कि मुंबई पर हमला करने वाले आतंकवादियों का उद्‍देश्य भारत को सैन्य कार्रवाई के लिए भड़काना है। भारतीय सीमा से लगे पाक क्षेत्र में पाकिस्तानी वायुसेना की गतिविधियाँ बढ़ गई हैं और स्थिति यहाँ तक पहुँच गई है कि भारत को अपनी वायु रक्षा तैयारी का जायजा लेने के लिए विवश होना पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में पाकिस्तान की ओर से यह आरोप लगाया गया था कि भारतीय विमानों ने पाक हवाई सीमाक्षेत्र का अतिक्रमण किया है।

भारत की ओर से सुरक्षा तैयारियों को सुनिश्च‍ित किया जा रहा है ताकि पाक वायु सेना हमारी वायुसीमा का उल्लंघन न करे। पाकिस्तानी लड़ाकू विमान अपनी सीमा में रहते हुए आक्रामक तेवर दिखा रहे हैं ताकि भारत को युद्ध के लिए भड़काया जा सके

सरकारी सूत्रों का कहना है कि भारत की ओर से सुरक्षा तैयारियों को सुनिश्च‍ित किया जा रहा है, ताकि पाक वायुसेना हमारी वायु सीमा का उल्लंघन न करे। पाकिस्तानी लड़ाकू विमान अपनी सीमा में रहते हुए आक्रामक तेवर दिखा रहे हैं, ताकि भारत को युद्ध के लिए भड़काया जा सके और उनकी आतंकवादी गतिविधियों पर से दुनिया का ध्यान हट सके। हालाँकि अभी तक पाकिस्तानी विमानों ने भारतीय हवाई सीमा का उल्लंघन नहीं किया है, लेकिन वे भारतीय वायु सीमा के बहुत करीब उड़ान भर रहे हैं। भारत इन परिवर्तनों पर नजर रखे हुए है।

बुधवार को ही भारतीय वायुसेना ने दिल्ली की सुरक्षा के लिए तीन मिग-29 विमानों को पश्चिमी उप्र के हिंडन एयरबेस पर तैनात किया था। इसके लिए आपातकाल में अम्बाला या बरेली से विमान मँगाए जाने की जरूरत नहीं समझी गई। गुरुवार को रक्षामंत्री एके एंटनी ने तीनों सेनाओं के प्रमुख और रक्षा सचिव के साथ सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की और सेना की तैयारियों का जायजा लिया।

रक्षा मंत्री ने तीनों सेना प्रमुखों से भी पूछा कि वे संबंधित खुफिया सूचनाओं के मद्देनजर किस प्रकार से प्रतिरक्षा की समुचित व्यवस्था को सुनिश्चित करने जा रहे हैं। युद्ध होने की स्थिति में कौन से महत्वपूर्ण उपकरणों की जरूरत होगी

रक्षामंत्री ने तीनों सेना प्रमुखों से भी पूछा कि वे संबंधित खुफिया सूचनाओं के मद्देनजर किस प्रकार से प्रतिरक्षा की समुचित व्यवस्था को सुनिश्चित करने जा रहे हैं। इस बैठक में कुछ महत्वपूर्ण बातें यह भी रखी गईं कि युद्ध होने की स्थिति में कौन-से महत्वपूर्ण उपकरणों की जरूरत होगी और कौन-कौन-से हथियार हमें मिलने वाले हैं, ताकि उन्हें जल्दी से जल्दी पाने की कोशिश की जाए। इस बैठक में समुद्र तटीय और समुद्री किनारों पर स्थित ‍संपत्तियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सभ‍ी एजेंसियों से मिली खुफिया जानकारी को साझा करने और उसके अनुरूप तैयारी रखने की बात भी कही गई। हालाँकि भारत ने यह बात बार-बार दोहराई है कि भारतीय वायुसेना ने पाक अधिकृत कश्मीर के आतंकवादी शिविरों की टोह लेने की कोशिश नहीं की है फिर भी पाकिस्तान की ओर से ऐसी कार्रवाइयाँ की जा रही हैं, ताकि भारत भड़ककर हमला कर दे। यह कार्रवाइयाँ राजनयिक स्तर से लेकर सैन्य स्तर तक चल रही हैं।
इस स्थित‍ि के मद्‍देनजर भारत इसराइल से स्पाइडर लो लेवल क्विक रिएक्शन मिसाइलों को लेना चाहता है। 18 ऐसी मिसाइलों की खरीद के बाद भी सरकार 14 और मिसाइलें लेने की तैयारी कर रही है। इनके मिलने से हमें पाक वायुसेना की तैयारियों की तुलना में बेहतर स्थिति प्राप्त होगी। इनके अलावा भारत को 126 लड़ाकू विमान खरीदना हैं और अग्रिम रक्षापंक्ति के लिए रूस से सुखोई-तीस लड़ाकू विमानों को प्राप्त करने की कोशिश की जा रही है, ताकि देश के लड़ाकू विमानों के बेड़े को मजबूत बनाया जा सके। साथ ही देश अपनी मिसाइल रक्षा कवच तैयारियों को भी बढ़ाना चाहता है। मुंबई पर हमला करने वाले आतंकियों का मकसद भी भारत को सैन्य कार्रवाई के लिए उकसाने का था। उल्लेखनीय है कि दिसंबर 2001 में संसद पर हुए हमले के बाद भी ऐसा हुआ था और तब अगर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का बहाना बनाकर पाक एक लाख पाकिस्तानी फौजी अफगानिस्तान सीमा से हटाकर भारतीय सीमा की ओर भेज देता तो इससे वहाँ अमेरिका और अफगानिस्तान के साथ जंग में उलझे तालिबान और अल कायदा को साँस लेने की फुरसत मिल जाती। वे वहाँ नए सिरे से अपनी मुहिम को आगे बढ़ा पाते। अगर तब भारत और पाकिस्तान के बीच में युद्ध शुरू हो जाता तो स्वाभाविक है कि सारी दुनिया का ध्यान अल कायदा और तालिबान से हट जाता।

पाकिस्तान के इस खेल का नतीजा पाकिस्तान के विघटन के रूप में सामने आ सकता था जो भारत के लिए कम खतरनाक नहीं होता क्योंकि अभी तक तालिबान और अल कायदा के जो तत्व पाकिस्तान तक सीमित हैं वे सीधे भारत पर हमला करने की स्थित में होते

पाकिस्तान के इस खेल का नतीजा पाकिस्तान के विघटन के रूप में सामने आ सकता था जो भारत के लिए कम खतरनाक नहीं होता, क्योंकि अभी तक तालिबान और अल कायदा के जो तत्व पाकिस्तान तक सीमित हैं वे सीधे भारत पर हमला करने की स्थित में होते। पाकिस्तान यह सब करने के इरादे से ही सक्रिय है, इसलिए उसके हाथ में खेलने का तो कोई औचित्य नहीं है। अगर दूसरे तरीके से सोचें तो मुंबई के हमलों की तुलना अमेरिका के 9/11 से की जा सकती है। सिर्फ पैमाने के स्तर पर ही देखें तो 9/11 के हमलों में मुंबई के 15 गुने से भी ज्यादा लोग मारे गए थे। पिछले 60 सालों में अमेरिका पर बाहरी हमले की यह पहली घटना थी। इस घटना ने दुनिया के बारे में अमेरिका का नजरिया बदल दिया। मुंबई हमला ठीक-ठीक उसी तरह भारत का विश्व-दृष्टिकोण बदल पाएगा, इसमें संदेह है। यह तुलना हमारी सोच को यहाँ तक ले जाती है कि 9/11 के बाद अमेरिका द्वारा शुरू किया गया ग्लोबल वार ऑन टेरर बिलकुल ठीक था इसलिए भारत को भी आगा-पीछा सोचे बिना पाकिस्तान पर हमला कर ‍देना चाहिए, जबकि पाकिस्तान तो यही चाहता है कि दोनों देशों के बीच युद्ध हो और पहले से कुंद हो चुके वार ऑन टेरर की धार और भी कुंद हो सके। जबकि वास्तविकता यही है कि बुश की रची यह लड़ाई बुरी तरह नाकाम साबित हुई।
यह दस लाख से ज्यादा मौतों की वजह बनी, इस्लामोफोबिया का दानव इसने ही खड़ा किया और आतंकवाद तथा वैश्विक असुरक्षा में इससे जबरदस्त वृद्धि देखने को मिली। क्या हम पाकिस्तान पर हमला करके तालिबान और अल कायदा के उन तत्वों का सफाया कर सकते हैं जो पाकिस्तान में न केवल अपनी जड़ें जमा चुके हैं, वरन पाक के कट्‍टरपंथी समाज का आधार स्तम्भ बन चु्के हैं? भारत पर जो हमला हुआ है वह क्या आईएसआई और उसके पैदा किए गए आतंकवादी संगठनों की मदद के बिना पूरा हो सकता था? भारत में जो आतंकवादी घटनाएँ होती हैं क्या वे अपने आप होती हैं? आज पाकिस्तान में यह स्थिति है कि प्रशिक्षित आतंकवादी संगठनों को आईएसआई या पाक सेना भी नियंत्रित नहीं कर सकती है। इसलिए यह नहीं माना जा सकता है कि लश्कर-ए-तोइबा, आईएसआई, पाकिस्तानी सेना और वहाँ की निर्वाचित सरकार के बीच किसी तरह के सीधे समीकरण हों, क्योंकि पाक सरकार का भी इन पर कोई सीधा नियंत्रण नहीं है। इसलिए पाकिस्तानी सरकार का सबसे बड़ा हथियार यही बन गया है कि अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई या दबाव का सामना करने के लिए भारत को युद्ध के लिए भड़का दिया जाए। इसलिए भारत के लिए इस मामले में सही रास्ता यही है कि वह अपने आंतरिक सुरक्षा उपायों को पुख्ता करे और पाकिस्तान को अपने यहाँ मौजूद आतंकवादी ढाँचों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई के लिए मजबूर करे। आक्रामकता को अभी इससे ज्यादा खींचना देश के लिए अच्छा नहीं रहेगा, क्योंकि पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन, सेना और आईएसआई यही चाहते हैं कि भारत बौखलाकर हमला कर दे। अगर हम भी ऐसा करते हैं तो इससे पाकिस्तान में आतंकवादी तत्वों के ही मंसूबे पूरे हो जाएँगे।

Thursday, December 11, 2008

पूर्व सांसद की फांसी उम्रकैद में बदली गई

पटना। बिहार के गोपालगंज जिले के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णया की हत्या के मामले में पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शिवर्कीति सिंह और एफएम़. महफूज आलम की दो सदस्यीय खंडपीठ ने बुधवार को पूर्व सांसद आनंद मोहन की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया।
इस मामले के शेष छह आरोपियों को भी बरी कर दिया गया। पटना व्यवहार न्यायालय के अपर सत्र न्यायाधीश (एडीजे) रामश्रेष्ठ राय की अदालत ने इस मामले में पिछले वर्ष अक्टूबर में आनंद मोहन, अरुण कुमार सिंह और पूर्व विधायक अखलाक अहमद को फांसी की सजा सुनाई थी, जबकि आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद और सह आरोपियों मुन्ना शुक्ला, शशिशेखर ठाकुर एवं हरेन्द्र प्रसाद को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। निचली अदालत द्वारा फांसी की सजा दिए जाने के बाद से आनंद मोहन, अखलाक अहमद और अरुण कुमार न्यायिक हिरासत में हैं। गोपालगंज के जिलाधिकारी की हत्या 5 दिसंबर 1994 को मुजफ्फरपुर-गोपालगंज पथ पर दिनदहाड़े कर दी गई थी।

संयुक्त राष्ट्र के सहारे ही जमात ने पसारे थे पैर

मुंबई हमलों के लिए जिम्मेवार आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के मुखौटे 'जमात-उद-दावा' पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने भले ही पाबंदी लगा दी हो, लेकिन सच्चाई यह भी है कि आतंकी कारनामों को अंजाम देने में अहम भूमिका निभाने वाला यह संगठन संयुक्त राष्ट्र की वजह से ही फला- फूला। इसे यूएन की अनदेखी का ही नतीजा कहा जा सकता है कि सन 2002 में खुद सुरक्षा परिषद द्वारा प्रतिबंधित लश्कर का 'राजनीतिक-सामाजिक' यह संगठन पाकिस्तान की जमीन पर अपनी गतिविधियां इतने व्यापक स्तर पर बढ़ाने में कामयाब रहा। इस कदर कि वह सामाजिक संगठन का नकाब ओढ़ कर करीब ढाई हजार से भी ज्यादा दफ्तरों के जरिए आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा को मजबूत करता रहा। कभी उसे आतंकवादियों की खेप पहुंचा कर तो कभी उसके लिए हथियार हासिल करने का जरिया बनकर।सन 2005 में पाकिस्तान पर बरपे भूकंप के कहर के बाद राहत कार्यो में जमात-उद-दावा की मदद लेकर यूएन ने उसे अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए ठोस आधार प्रदान कर दिया था। यही नहीं, लश्कर के हाथ-पैर माने जाने वाले इस संगठन ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रायोजित भूकंप राहत कार्यो को बखूबी अंजाम देकर तारीफ भी कम नहीं कमाई थी। और यहीं से हुई थी जमात-उद-दावा के पैर जमाने की शुरुआत। यूएन ने भले ही अब जमात पर शिकंजा कस दिया हो, लेकिन विदेश मंत्रालय में सुरक्षा परिषद पर अंगुली उठाई जा रही है। मंत्रालय के रणनीतिकारों का सीधा सवाल है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के निशाने पर रहने के बावजूद लश्कर का ही एक संगठन आतंकी कारनामों के लिए अपनी हर जरूरत को पूरा करने में कैसे सफल रहा? कैसे यह संगठन परिषद के सदस्य देशों की नजरों से बच कर यूएन भूकंप राहत अभियान को अपने असली मकसद का जरिया बना ले गया?विदेश मंत्रालय में संयुक्त राष्ट्र की गतिविधियों पर नजर रखने वाले आला अधिकारी यह मानने को कतई तैयार नहीं हैं कि पंद्रह देशों की सदस्यता वाली सुरक्षा परिषद को इतने सालों में जमात के कारनामों की खबर तक नहीं हुई होगी। उनका दावा है कि सुरक्षा परिषद में चीन जैसे कुछ मुल्कों की वजह से जमात अपनी साजिश में कामयाब रहा। इसकी पुष्टि में विदेश मंत्रालय के आला अफसर जमात पर पाबंदी लगाने के यूएनएससी के प्रयासों पर बीजिंग के विरोध को आधार बनाते हैं। उनका कहना है कि पाकिस्तान में भूकंप राहत में हाथ बंटाने के पीछे जमात की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी सकारात्मक छवि बनाने की ही चाल थी।

Saturday, December 6, 2008

अंकुरित भोजन : वर्तमान की जरूरत

अंकुरण से भोज्य पदार्थ के पोषक तत्वों में बढ़ोतरी नैसर्गिक रूप से होती है, इसलिए इनकी पाचनशीलता बढ़ाते हुए इनके सेवन से किसी हानिकारक परिणाम की कोई गुंजाइश नहीं रहती है। अनाज में गेहूँ, ज्वार, बाजरा, साबुत दालों में मूँग, मोठ, चवला, काला चना, काबुली चना, सोयाबीन आदि को आसानी से अंकुरित कर इनसे विभिन्न स्वादिष्ट एवं पौष्टिक व्यंजन बनाए जा सकते हैं।
अंकुरण से खाद्यान्नों को अधिक पौष्टिक व सुपाच्य बनाने के अलावा और भी कई फायदे हैं, जो अच्छे पोषण की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हैं।
ख़ड़े अनाजों व दालों के अंकुरण से उनमें मौजूद अनेक पोषक तत्वों की मात्रा दोगुनी से भी ज्यादा हो जाती है, मसलन सूखे बीजों में विटामिन 'सी' की मात्रा लगभग नहीं के बराबर होती है। इन बीजों के अंकुरित होने पर यही मात्रा लगभग दस गुना हो जाती है। अंकुरण की प्रक्रिया से विटामिन बी कॉम्प्लेक्स खासतौर पर थायमिन यानी विटामिन बी1, राइबोप्लेविन यानी विटामिन बी2 व नायसिन की मात्रा भी दोगुनी हो जाती है। इसके अलावा शाकाहार में पाए जाने वाले 'केरोटीन' नामक पदार्थ, जो शरीर में विटामिन ए का निर्माण करता है, की भी मात्रा बढ़ जाती है।

* सर्दियों में अंकुरण की प्रक्रिया धीमी होती है। कई बार 24 घंटे से भी अधिक समय अंकुरण आने में लग जाता है। अतः इन दिनों भीगे हुए अनाज को गरम स्थान में रखने का विशेष तौर से ध्यान रखना चाहिए।

विटामिन ए आँखों व त्वचा के स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। इतना ही नहीं, अंकुरीकरण से अनाजों में मौजूद लौहतत्व का शरीर में अवशोषण बढ़ जाता है। लौहतत्व खून में हिमोग्लोबीन के निर्माण के लिए निहायत जरूरी है।
अंकुरीकरण की प्रक्रिया में अनाज/दालों से कार्बोहाइट्रेड व प्रोटीन और अधिक सुपाच्य हो जाते हैं। अनाज पानी सोखकर फूल जाते हैं, जिनसे उनकी ऊपरी परत फट जाती है व इनका रेशा नरम हो जाता है। परिणामस्वरूप पकाने में कम समय लगता है। इसी कारण अंकुरित अनाज बच्चों व वृद्धों की पाचन क्षमता के अनुकूल बन जाते हैं।
अच्छा अंकुरण कैसे करें
* एकदम सही अंकुरीकरण के लिए अनाज/साबुत दालों को कम से कम आठ घंटे इतने पानी में भिगोना चाहिए कि वह सारा पानी सोख लें व दाना फूल जाए। इन फूले हुए दानों को किसी नरम, पतले सूती कपड़े में बांधकर पोटली बना लेना चाहिए। इस पोटली को ढंककर गरम स्थान में रखना चाहिए। पोटली को थोड़े-थोड़े समय बाद गीला करते रहें।
* 12 से 24 घंटे में अच्छे अंकुर निकल आते हैं। वैसे अंकुरित किए हुए मूँग, मोठ आदि बाजार में भी उपलब्ध होते हैं, किन्तु इनकी गुणवत्ता की जानकारी अवश्य होना चाहिए। यदि दूषित जल के प्रयोग से अंकुरण हुआ है तो खाद्यान्न शरीर में रोगाणुओं के वाहक भी हो सकते हैं।
* आजकल बाजार में विशेष प्रकार के जालीदार पात्र 'स्प्राउटमेकर' के नाम से मिलने लगे हैं, जिनका उपयोग खाद्यान्नों के अंकुरीकरण के लिए किया जाता है। खाद्यान्नों के अंकुरित होने का समय तापमान पर निर्भर करता है।
* सर्दियों में अंकुरण की प्रक्रिया धीमी होती है। कई बार 24 घंटे से भी अधिक समय अंकुरण आने में लग जाता है। अतः इन दिनों भीगे हुए अनाज को गरम स्थान में रखने का विशेष तौर से ध्यान रखना चाहिए। इसके ठीक विपरीत गर्मियों में अंकुर जल्दी ही निकल जाते हैं। स्वाद व गुणवत्ता की दृष्टि से एक सेंटीमीटर तक के अंकुर स्वादिष्ट होने के साथ-साथ इनके स्वाद में भी मिठास में कमी आने लगती है।
* अंकुरित खाद्यान्नों को कच्चा ही नमक, काली मिर्च, नीबू अथवा सलाद मसाला के साथ सेवन किया जा सकता है। आधे पके रूप में किसे हुए प्याज, पत्तागोभी, टमाटर, ककड़ी व गाजर के साथ पौष्टिक सलाद भी बनाया जा सकता है। अंकुरित खाद्यान्नों का सेवन परिवार के स्वास्थ्य की गारंटी है।

दस उपाय हार्ट अटैक से बचाए


दस उपायों को अपनाकर हृदय की बीमारियों को रोका जा सकता है-
1. अपने कोलेस्ट्रोल स्तर को 130 एमजी/ डीएल तक रखिए- कोलेस्ट्रोल के मुख्य स्रोत जीव उत्पाद हैं, जिनसे जितना अधिक हो, बचने की कोशिश करनी चाहिए। अगर आपके यकृत यानी लीवर में अतिरिक्त कोलेस्ट्रोल का निर्माण हो रहा हो तब आपको कोलेस्ट्रोल घटाने वाली दवाओं का सेवन करना पड़ सकता है।
2. अपना सारा भोजन बगैर तेल के बनाएँ लेकिन मसाले का प्रयोग बंद नहीं करें- मसाले हमें भोजन का स्वाद देते हैं न कि तेल का। हमारे 'जीरो ऑयल' भोजन निर्माण विधि का प्रयोग करें और हजारों हजार जीरो ऑयल भोजन स्वाद के साथ समझौता किए बगैर तैयार करें। तेल ट्रिगलिराइड्स होते हैं और रक्त स्तर 130 एमजी/ डीएल के नीचे रखा जाना चाहिए।
3. अपने तनावों को लगभग 50 प्रतिशत तक कम करें- इससे आपको हृदय रोग को रोकने में मदद मिलेगी, क्योंकि मनोवैज्ञानिक तनाव हृदय की बीमारियों की मुख्य वजह है। इससे आपको बेहतर जीवन स्तर बनाए रखने में भी मदद मिलेगी।
4. हमेशा ही रक्त दबाव को 120/80 एमएमएचजी के आसपास रखें- बढ़ा हुआ रक्त दबाव विशेष रूप से 130/ 90 से ऊपर आपके ब्लोकेज (अवरोध) को दुगनी रफ्तार से बढ़ाएगा। तनाव में कमी, ध्यान, नमक में कमी तथा यहाँ तक कि हल्की दवाएँ लेकर भी रक्त दबाव को कम करना चाहिए।
5. अपने वजन को सामान्य रखें- आपका बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) 25 से नीचे रहना चाहिए। इसकी गणना आप अपने किलोग्राम वजन को मीटर में अपने कद के स्क्वेयर के साथ घटाकर कर सकते हैं। तेल नहीं खाकर एवं निम्न रेशे वाले अनाजों तथा उच्च किस्म के सलादों के सेवन द्वारा आप अपने वजन को नियंत्रित कर सकते हैं।
6.नियमित रूप से आधे घंटे तक टहलना जरूरी- टहलने की रफ्तार इतनी होनी चाहिए, जिससे सीने में दर्द नहीं हो और हाँफें भी नहीं। यह आपके अच्छे कोलेस्ट्रोल यानी एचडीएल कोलेस्ट्रोल को बढ़ाने में आपकी मदद कर सकता है।


7. 15 मिनट तक ध्यान और हल्के योग व्यायाम रोज करें- यह आपके तनाव तथा रक्त दबाव को कम करेगा। आपको सक्रिय रखेगा और आपके हृदय रोग को नियंत्रित करने में मददगार साबित होगा।
8. भोजन में रेशे और एंटी ऑक्सीडेंट्स- भोजन में अधिक सलाद, सब्जियों तथा फलों का प्रयोग करें। ये आपके भोजन में रेशे और एंटी ऑक्सीडेंट्स के स्रोत हैं और एचडीएल या गुड कोलेस्ट्रोल को बढ़ाने में सहायक होते हैं।
9. अगर आप मधुमेह से पीड़ित हैं तो शकर को नियंत्रित रखें- आपका फास्टिंग ब्लड शुगर 100 एमजी/ डीएल से नीचे होना चाहिए और खाने के दो घंटे बाद उसे 140 एमजी/ डीएल से नीचे होना चाहिए। व्यायाम, वजन में कमी, भोजन में अधिक रेशा लेकर तथा मीठे भोज्य पदार्थों से बचते हुए मधुमेह को खतरनाक न बनने दें। अगर आवश्यक हो तो हल्की दवाओं के सेवन से फायदा पहुँच सकता है।
10. हार्ट अटैक से पूरी तरह बचाव- यही हार्ट अटैक से बचने का सबसे आसान संदेश है और हार्ट में अधिक रुकावटें न होने दें। यदि आप इन्हें घटा सकते हैं, तो हार्ट अटैक कभी नहीं होगा।

Wednesday, December 3, 2008

आतंकवाद के खिलाफ एक नई जंग

पिछले बुधवार को गेटवे के पास ताज में दहशतगर्दियों ने जो खूनी खेल शुरू किया था आज उसी समय वहीं स्थान लेकिन ना गोलियों की आवाज, न हैंडग्रेनेड के धमाके, ना ही एम्बुलैन्स में जाते शव। सिर्फ था तो लोगों का आतंकवाद के खिलाफ जंग लड़ने का एक नया संकल्प और पूरी मुंबई जैसे यहाँ सिमट गई थी। यह उन आतंकवादियों को जवाब था जो तीन रातों तक यहाँ पर खूनी खेल खेल रहे थे। लोगों में नेताओं के खिलाफ आक्रोश इस कदर था, जिसका इजहार वह सिर्फ लिख कर ही नहीं कर रहे थे बल्कि जुबाँ से भी कर रहे थे। 72 घंटे बाद ताज पर तिरंगा लहराया गया था, लेकिन आज तो यहाँ हजारों तिरंगे लहरा रहे थे। लोगों की भीड़ को किसी एक पक्ष या संघटन ने नहीं बुलाया था, बल्कि लोग खुद आए थे। लोग शाम पाँच बजे से गेटवे के पास आ रहे थे और देर रात तक आ ही रहे थे। जहाँगीर आर्ट गैलरी से लेकर नरीमन हाऊस तक के रास्ते लोगों से भर गए थे। रास्तों के दोनों ओर सफेद कपड़े लगा कर लोग उस पर अपनी संवेदनाएँ लिख रहे थे। इन लोगों में 20 से 25 उम्र के वह युवा थे जो अपनी रातें डिस्कों में बिताते हैं, लेकिन आज वह भी आतंकवाद और निकम्‍मी सरकार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए आगे आए थे।
इनके साथ ही वयस्कों, महिलाओं की संख्या भी बड़ी तादाद में थी। अपंग और विदेशी नागरिक भी श्रद्धांजलि देने गेटवे पहुँच गए थे। गेटवे पर कम से कम 50 हजार लोग इकट्ठा हुए थे। इनके हाथों में बैनर थे जिस पर राज ठाकरे से लेकर देशमुख, पाटील और रामगोपाल वर्मा तक सब पर व्यंग्य कसे गए थे। पहली बार मुंबई की गलियों में पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे भी लगे। इसी भीड़ में तकरीबन मुस्लिमों का एक गुट आया, जिन्होंने हाथ में बैनर लिया था और उस पर लिखा था कि पाकिस्तान को आतंकी राष्ट्र घोषित करें। इनका लोगों ने तालियों से स्वागत किया। इनमें बुरखाधारी महिलाएँ भी थी। इसी तरह पारसी महिलाओं का एक समुदाय पुलिस मुख्यालय के सामने हाथ में बैनर लेकर खड़ा था। गली-गली में शोर हैं पाकिस्तान चोर है और पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारों के साथ राष्ट्रगान भी गाया जा रहा था। एक बैनर पर लिखा था 47 में स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी थी, अब एके-47 हाथ में दो। अब गाँधीगिरी नहीं चलेगी। एक बैनर पर लिखा था देशमुख ताज हमें सौंप दों हम रामगोपाल वर्मा से अच्छी फिल्म बनाएँगे। एक पर लिखा था शरम करो राज, आज के दिन तो बाहर आते। साथ ही युवाओं के बैनर पर लिखा था कि उन्हें आईबी, रॉ और गृह मंत्रालय में काम दिया जाए। एक पर लिखा था नई फिल्म देशमुखी- ए फिल्म बाय रामगोपाल वर्मा एंड द मेन एक्टर- यू नो व्हू? बढ़ती भीड़ को देखते हुए पुलिस ने गेटवे के पास से लोगों को हटाना शुरू कर दिया था। पूरा माहौल देशभक्ती से भर गया था।

अब हवाई आतंक का खतरा भारत पर

मुंबई में भारतीय समुद्रतटों की सुरक्षा पहले ही भेदी जा चुकी है, इसके बाद रक्षामंत्री एके एंटनी ने बुधवार को सशस्त्र बलों को हवाई रास्ते से संभावित खतरे के प्रति आगाह किया जैसा कि अमेरिका में 9/11 का हमला था।
एंटनी ने सशस्त्र बलों को हवाई रास्ते से संभावित आतंकवादी खतरे का जवाब देने के लिए तैयार रहने और अल कायदा द्वारा वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले जैसे घटनाक्रम की पुनरावृत्ति न होने देने के लिए तैयार रहने को कहा। तीनों सेनाओं के प्रमुखों और रक्षा अधिकारियों के साथ बैठक में एंटनी ने सभी सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों के बीच समन्वय का आह्वान किया। बैठक में नौसेना प्रमुख एडमिरल सुरीश मेहता वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल फली होमी मेजर थलसेना प्रमुख जनरल दीपक कपूर और रक्षा सचिव विजयसिंह मौजूद थे। मुंबई आतंकी हमलों के बाद पाकिस्तान द्वारा अपनी सेना को हाई अलर्ट करने की खबरों के मद्देनजर बैठक में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर स्थिति की समीक्षा की गई। सूत्रों ने कहा कि एंटनी ने आतंकवादियों द्वारा जमीनी मार्ग से घुसपैठ को रोकने के लिए एलओसी के आसपास सुरक्षा और सतर्कता मजबूत करने के सशस्त्र बलों के कदमों पर बातचीत की। दरअसल आतंकवादियों के प्रशिक्षण और भर्ती के लिहाज से पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) एक महत्वपूर्ण इलाका माना जाता है।
शीर्ष रक्षा अधिकारियों ने समुद्रतटों की सुरक्षा बढ़ाने की योजना पर तथा तटीय रडारों और इंटरसेप्टर नौकाओं सहित अन्य प्रणालियों को खरीदने की प्रक्रिया तेज करने पर चर्चा की। सू़त्रों ने कहा कि बैठक में विशेष तौर पर देश में हवाई अड्डों के आतंकवादियों के निशाने पर होने की खुफिया चेतावनी पर चिंता जताई गई और नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो से सभी महत्वपूर्ण हवाई अड्डों की सुरक्षा के संबंध में रेड अलर्ट जारी करने पर भी बात हुई। संकेत दिया गया कि खुफिया एजेंसियाँ महत्वपूर्ण तिथियों जैसे छह दिसंबर 26 जनवरी आदि से पहले नियमित चेतावनी देती रही हैं, लेकिन रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि एंटनी ने बलों और खासतौर पर वायुसेना से अधिक सतर्क रहने के लिए और किसी भी खतरे को रोकने के लिए कहा। एंटनी विशेष तौर पर रक्षा और खुफिया एजेंसियों में समन्वय की कमी को लेकर नाखुश थे। उन्होंने सशस्त्र बलों और खासतौर पर नौसेना तथा तटरक्षक के प्रति खुफिया एजेंसियों से मिली विशेष जानकारी पर ध्यान नहीं दिए जाने पर निराश जताई, जबकि एजेंसियों ने समुद्री मार्ग से आतंकी हमलों के बारे में आगाह किया था। रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि दोनों ओर से समन्वय की कमी देखी गई चाहे यह रक्षा बलों से हो या खुफिया एजेंसियों से। इसलिए दोनों को दी गई चेतावनी के बिंदुओं पर स्पष्ट रुख अख्तियार करना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि जानकारियों पर कार्रवाई हो, जिससे कि मुंबई जैसे हमलों के समय सोते न रह जाए।