rashtrya ujala

Thursday, December 31, 2009

महिला के हाथ होगी गांव की सरकार

अगली जिला प्रमुख ओबीसी वर्ग की महिला होगी। इससे पहले एक बार महिला जिला प्रमुख रह चुकी हैं। जयपुर में निकाली गई लॉटरी में अलवर जिला प्रमुख का पद अन्य पिछड़ावर्ग की महिला के लिए आरक्षित किया गया है। जिला प्रमुख का पद ओबीसी महिला के लिए आरक्षित होने से जिलापरिषद का चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे सामान्य वर्ग के कई दिग्गजों को झटका लगा है। वहीं एससी व एसटी वर्ग के कई नेताओं में मायूसी छा गई है। दूसरी ओर ओबीसी वर्ग के कुछ पूर्व विधायक व ग्रामीण जनप्रतिनधि रह चुके नेता अपने परिवार की महिलाओं के लिए जिला परिषद सदस्य की दावेदारी जताने की रणनीति बनाने लगे हैं। जिला परिषद के करीब ढाई दर्जन वार्डों में ओबीसी वर्ग की महिलाएं चुनाव लड़ सकती हैं। इनमें सामान्य, सामान्य महिला, ओबीसी व ओबीसी महिला के लिए आरक्षित वार्ड शामिल हैं। इससे पूर्व डॉ. किरण यादव अलवर की जिला प्रमुख रह चुकी है। वर्तमान में अलवर नगरपरिषद की सभापति, भिवाड़ी नगरपालिकाध्यक्ष पद पर भी महिला काबिज हैं। जिला परिषद में 24 महिला सदस्य चुनी जाएंगी। हालांकि शबाना खान व रुक्मणी देवी भी कार्यकारी जिलाप्रमुख रह चुकी है। उल्लेखनीय है कि महिलाएं सामान्य वार्डों व किसी वर्ग विशेष के लिए आरक्षित वार्ड में उस वर्ग की महिला भी चुनाव लड़ सकती हैं, ऐसी स्थिति में निर्वाचित होने वाली महिलाओं की संख्या 50 प्रतिशत से अधिक भी हो सकती है।

Wednesday, December 23, 2009

महिलाओं का व्यक्तित्व की पहचान बालों से

बाल खूबसूरती और तारीफ का पैमाना ही नहीं होते हैं। बल्कि ये आपके स्वभाव और पर्सनैलिटी को भी बताते हैं। बाल व्यक्तित्व की पहचान पहचान होते हैं। व्यक्ति के विचार, उसकी जीवनशैली की बहुत सी बातें बालों को देखकर बताई जा सकती है। विविध परीक्षणों में भी व्यक्तित्व की जांच के लिए बालों पर काफी अध्ययन किया गया है। आइए, जानते हैं कि बालों के प्रकार के अनुसार महिलाओ के व्यक्तित्व के बारे में।
लंबे बाल : लंबे बालों वाली महिलाएं यथार्थ की जमीन पर जीती हैं। कल्पनाओं की दुनिया में ये तभी बहती हैं जब उनका कोई ठोस परिणाम सामने आने की संभावना हो। ये बगैर घोषणाओं के काम करती हैं। बातें कम, काम ज्यादा ये इनके जीवन का मूलमंत्र होता है। परिस्थितियों पर विचार करके बोलना इन्हें अच्छा लगता है। पैसे की कीमत ये भली प्रकार से जानती हैं। इन्हें बडी किफायत से चीजों को इस्तेमाल करना आता है। साथ ही लंबे बालों वाली महिलाएं व्यावहारिक भी होती है।
घुंघराले बाल : घुंघराले बाल वाली महिलाएं कलाकार होती हैं। साहित्य और संगीत से इन्हें बहुत लगाव होता है। ऎसी महिलाएं अधिकतर कल्पनाओं के समंदर में गोते लगाती रहती हैं। इन्हें मेहमानवाजी का खास शौक होता है। इनमें बाकी लोगों से कम दूरदर्शिता पाई जाती है। किस्मत के मामले में ये दो नंबर आगे रहती हैं। ऎसी महिलाएं "जियो और जीने दो" के सिद्धांत पर भरोसा करती हैं।
पतले व कम बाल: पतले व कम बाल वाली महिलाओं को मेहनत व ईमानदारी की रोटी पर भरोसा होता है। लेकिन ऎसी महिलाएं अन्य की अपेक्षा कम रोमांटिक होती हैं। ये मुखर नहीं होती। इनका मूलमंत्र है, जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया। जो खो गया उनकों ये भुलाती जाती हैं। ऎसी महिलाएं बहुत सारे राज अपने सीने में दफन कर लेती हैं। प्यार में अक्सर ये धोखा खाती हैं। स्वभाव से ये बहुत शर्मिली होती हैं। इनका जीवन बहुत ही शांति से बीतता है।
छोटे बाल : छोटे बालों वाली महिलाएं बहुत मेहनती होती हैं। प्रबल अनुशासन में रहना इनकी आदत होती है। प्यार और नफरत इनके भीतर हमेशा विद्यमान रहते हैं। इनका व्यक्तित्व कई बार दोहरा नजर आता है। ऎसी महिलाएं पैसा भी खर्च करती हैं, पर कई बार बिल्कुल भी नहीं करती। ऎसी महिलाएं धोखेबाज नहीं होती हैं। कई बार इनकी सपाटबयानी इनको दूसरों के सामने घंमडी साबित कर देती हैं। ये थोडी स्वार्थी और महत्तवकांक्षी होती हैं। ये अपने हित के लिए ज्यादा ही व्याकुल रहती हैं। महफिल इन्हे बहुत पसंद आती है। ऎसी महिलाएं मित्रों के मामले में सलेक्टिव होती हैं।

Tuesday, December 22, 2009

न्याय की उम्मीद छोड़ मौत को गले लगाया

आरोपी को उन्नीस साल बाद सिर्फ छह माह की सजा,जोकि काफी कम होने के कारण परिजनों को लगा झटका
नई दिल्ली। उन्नीस वर्ष पूर्व एक किशोरी से छेड़छाड़ करने के मामले में हरियाणा के पूर्व डीजीपी एसपीएस राठौर को दोषी करार देते हुए छह महीने की सजा का मुद्वा संसद के दोनों सदनों में उठाया गया। इस मुद्वे को लेकर विपक्षी दलों ने सरकार को घेरते हुए कम सजा को शर्मनाक बताया। आरोपी की हरकत के कारण देश ने एक अच्छे खिलाड़ी को खो दिया। राज्य सभा में सीपीएम सांसद वृंदा करात ने इस मुद्वे को उठाते हुए कहा कि इतने बड़े मामले में केवल छह महीने की सजा सरकार के लिए शर्मनाक तो है ही साथ में इतने वर्षो बाद मिली सजा प्रशासन की पोल खोल कर रख दी है। गौरतलब है कि सीबीआई की एक विशेष कोर्ट ने उन्नीस साल पहले एक किशोरी से छेड़छाड़ करने के मामले में हरियाणा के पूर्व डीजीपी एसपीएस राठौर को दोषी करार देते हुए छह माह के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। साथ ही उन्हें 1,000 रुपए का जुर्माना भरने को कहा गया है। जुर्माना न अदा करने पर राठौर को एक माह की सजा और भुगतनी होगी।
पीडि़ता 14 वर्षीय किशोरी रुचिका गिरहोत्रा उभरती हुई टेनिस खिलाड़ी थी। वह 12 अगस्त 1990 को राठौर की छेड़छाड़ का शिकार हुई थी। उस दौरान राठौर हरियाणा में आईजी और हरियाणा टेनिस एसोसिएशन के अध्यक्ष थे। शिकायत दर्ज कराए जाने पर राठौर ने रुचिका और उसके परिजनों को परेशान करना शुरू कर दिया था, जिसके चलते घटना के तीन साल बाद रुचिका ने जहर पीकर आत्महत्या कर ली थी। पीडि़ता के परिजनों ने राठौर को सुनाई गई छह माह के सश्रम कारावास की सजा को कम बताया है। आईपीसी की धारा 354 के तहत दोषी करार दिए गए व्यक्ति को दो साल तक की कैद की सजा सुनाई जा सकती है।
इंसाफ के लिए संघर्ष करेंगे:आराधना
रुचिका की सहेली और इस घटना की एकमात्र गवाह आराधना गुप्ता इस मामले का फैसला सुनने के लिए आस्ट्रेलिया से अपने पति के साथ चंडीगढ़ आई थीं। आराधना,रुचिका की सहयोगी टेनिस खिलाड़ी और पड़ोसी थीं। घटना के वक्त वह 13 साल की थीं। आराधना ने बताया कि रुचिका की मौत के बाद उसका परिवार किसी अज्ञात जगह चला गया था। तब से यह लड़ाई उनके पिता लड़ रहे थे। उन्होंने कहा कि न्याय वह ही अच्छा होता है जोकि समय पर मिल जाए। उन्होंने 19 वर्ष बाद मिला न्याय उनके किसी काम का नहीं है क्योंकि पीडि़त परिवार बरबाद हो गया और उन्होंने अपनी बेटी को भी खो दिया।

Friday, December 18, 2009

15 वर्ष बाद हम होंगे चीन से आगे

निर्मेश त्यागी
दिल्ली। 15 वर्षों का इंतजार करने की आवश्यकता है हम चीन से आगे होंगे। इसके बाद डरने की आवश्यकता नहीं है। वैसे भी अगर भारत सरकार चीन द्वारा उत्पादित वस्तुओं को प्रतिबंधित कर दे तो चीन सरकार टूट सकती है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि चीन में तैयार किया गया माल भारत में ही बिक्री किया जाता है। जो आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं उसके बाद भारत को चीने से डरने की आवश्यकता नहीं है।
अमरीकी जगनगणना ब्यूरो के ताजा आंकड़ो के अनुसार चीन से तीन गुना अधिक जनसंख्या वृद्धि दर के कारण वर्ष 2025 तक भारत की जनसंख्या चीन से ज्यादा हो जाएगी। करीब 227 देशों की जनगणना के अनुमानों के आधार पर ब्यूरो ने अनुसार भारत की जनसंख्या वृद्धि दर 1.4 प्रतिशत है,जो चीन की तुलना में तीन गुना ज्यादा है। ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2025 तक भारत की जनसंख्या करीब 1.396 अरब और चीन की 1.394 अरब होगी। उस समय तक रूस और जापान के दुनिया के सर्वाधिक जनसंख्या वाले 10 देशों की सूची से बाहर होने की सम्भावना है। वहीं इथियोपिया और मेक्सिको इस सूची में शामिल होने वाले नए देश होंगे। प्रजनन दर में भारत अव्वल भारत में महिलाओं की प्रजनन दर औसतन 2.7 बच्चों को जन्म देने की है। यह दर घट रही है। चीन में 1990 के दशक में यह दर 2.2, 1995 में 1.8 और 2000 से 1.6 है। अमरीका में दर दो से ज्यादा है।

Friday, December 11, 2009

खूबसरत धोखा के रूप में सामने आता है रैप

निर्मेश त्यागी
आधुनिक युग में युवतियां अपने परिवार से अधिक भरोसा अपने मित्र पर करती है। जिसका परिणाम कई बार गंभीर होते हैं। भरोसे का आईना जब टूटता है जब सबकुछ समाप्त हो चुका होता है। एक युवती और युवक की दोस्ती में आखिर पर्दा हट जाता है। दोस्ती बहुत ही अच्छी होती है मगर उसमें सावधानी और दूरी न रखी जाए। अपने मेल दोस्त के साथ डेट पर जाते समय कु छ बांतों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
डेट रेप है क्या:-
डेट रेप शोषण- जो पूर्व नियोजित हो, डेट रेप जिसमें शोषण पूर्व नियोजित होता है ( स्वेच्छिक भी हो सकता है )। जिसकी शुरूआत सामान्य आकर्षण के द्वारा होती है। इस तरह के मामलों से पीडिता का स्वयं की सहमति होती है अपराघी के साथ समय व्यतीत करने की और संभत: उसने अपराघी के साथ एक से ज्यादा बार एकात स्थानों पर मुकालात की होती है। तथापि यह एक देह शोषण ही है एक विश्वासाघात जो काफी समय तक चलने वाले भावनात्मक घाव देता है।
आघुनिक युग के डेट रेप कोई अनोखी घटना नहीं है। लडके अपने महिला मित्रों को डेट पर मिलने के लिये बुलाते है तथा वहां उन्हें किसी भी तरह बहला फुसलाकर या ड्रिंक में कुछ नशीला पदार्थ मिलाकर उनका देह शोषण करते है। ?सी घटनाओं में लडकियां लडकों के खिलाफ अघिकांशत: कुछ कर भी नहीं पाती। कुछ महीने पहले घटी एक घटना ने सबको अपनी और आक्रर्षित किया और सोचने पर मजबूर कर दिया। यह घटना एक प्रसिद्ध मेटिकल इंस्टूडट में पढने वाली एक छात्रा की है जिसे उसी के मित्रों ने एक पार्टी में हवस का शिकार बनाया जो उनके साथ पार्टी कर रही थी। पीडिता ने पुलिस में दिये बयान में बताया कि उसकी ड्रिंक में कुछ नशिला पदार्थ मिलाया गया था। लडकियों को इस घटना से सबक लेते हुए अपने भविष्य को सुरक्षित करना चाहिए। एक अघिकारिक सर्वे के अनुसार ?सी महिलाए जिनका देह शोषण हुआ है पूर्व परिचित होता है एक मित्र की तरह प्रेमी पूर्व प्रेमी या मित्र के मित्र के रूप में
देह शोषण से कैसा बचा जायें -
यहा हम बात करेंगे कि आप क्या कर सकते है। जिससे कि डेट रेप की किसी भी संभावना को टाला जा सके :-
1. अपने ड्रिंक से संबंघित सावघानियां
* एस व्यक्ति से ड्रिंक मत लो जो अजनबी हो आपके लिए और जिस पर ज्यादा विश्वास न किया जा सके।
* यदि कोई व्यक्ति आपके लिए ड्रिंक खरीदने का प्रस्ताव देता है तो उसे साथ बार में जाओं और प्राप्त करों।
* यह भी जाचं ले कि ड्रिंक केन सील पैक हो यह आपके लिए तुलनात्मक रूप से ज्यदा सुरक्षात्मक होगा। यदि संभव हो तो स्वंय उसे खोले।
* किसी भी खुली हुई ड्रिंक को स्वीकार न करें यदि आप किसी मिक्स ड्रिंक ऑर्डर देते है तो नजर रखे जो व्यक्ति ड्रिंक मिक्स कर रहा है। उस पर एल्कोएल और नशीले पदाथों का सेवन जितना हो सके ना करें।
* कभी अपनी ड्रिंक को अकेला मत छोडों। किसी के लिए भी कोई अवसर ना छोंडे अपनी ड्रिंक छेडछाड करने के लिये।
* यदि आपको बाथरूम में लिये जाना है तो पहले अपनी ड्रिंक को पूरा करें या उसे फेक दे।

2. अपने मित्रों के साथ पार्टी में :-
हमेशा दोस्त मण्डली के साथ पार्टी को प्राथमिकता देनी चाहिए या एक से अघिक दोस्तों के साथ ही पार्टी में जाना चाहिए। यदि कोई महिला मित्र ज्यादा नशें में प्रतीत होती है तो उसे सुरक्षित स्थान पर ले जायें तथा उसके पेरेंटस को सूचित करें। कई रेप की कोशिशें इस तरह से नाकम की जा चुकी है तथा ?से दोस्तों को घन्यवाद दे।
3. दृढ बने:-
यदि कोई आपका शोषण करने की कोशिश करे तो उससे डरे नहीं निडर होकर उसका विरोघ करें। कई बार उसका इरादा रेप करने का नहीं होता। वह सोचता है कि लडकी अपनी प्रतिष्ठा बचाना चाहती है या फिर वह कोइ गेम खेल रही है। उसे जाने लेने दो कि यह स्वीकार ने योग्य नहीं है यह रेप है तथा यह नियमों को तोडने वाला है।
4. सार्वजनिक जगहो का चयन करें :-
डेट रेप के विरूद्व सावघानी बरते का मतलब यह नहीं है कि आप बाहर ही न जाए जैसे कॉफी शॉप और शोपिंग शॉल में और लोगों से न मिले यह सुनिश्चित करेगा कि आप अकेले और असुरक्षित नहीं है।
5 अपने आस-पास के वातावरण का देखें :-
सजग रहे ऑफिस समाप्त के बाद की गतिविघियों के लिए जैसे कि अंडरग्राउंड पार्किग व ऑफिस छत पर अकेले न जाए। रात्रि में अकेले घूमने न जाए।
6 अपन अंतर्मन पर विश्वास करे :-
अपनी अंतर्रात्मा की आवाज सुने। एक व्यक्ति के रूप में हमें सामान्यत: अपनी अच्छी भावनाओं को समझना चाहि? विशेषकर जब हम पार्टी या समारोह में भाग ले रहे है। अपनी अच्छी सोच वे योग्यता से बुरी भावनाओं पर नियंत्रण रखें।

लिखावट से सब कुछ जानिए

हम व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार को तीन श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं :
1. बहिर्मुखी व्यक्तित्व,
2. अन्तर्मुखी व्यक्तित्व और
3. मघ्यस्थ
बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाला व्यक्ति समाज में प्रत्येक व्यक्ति के साथ मानसिक और संवेदनशील रूप से बिल्कुल एक होकर कार्य करता है। कभी भी आराम नहीं करना चाहता हैं, क्योंकि समाज सेवा ही उकसा घर्म होता है और उसे संतुष्टि ही सामाजिक कार्यो से प्राप्त होती है। ऎसा व्यक्ति थोडा भारी हाथ से लिखता है और इसकी लिखावट दायीं और झुकती हुई होती है। अक्षर बडे-बडे और लिखावट गोलाई लिए होती है, यदि बडे अक्षर भारी दबाव के साथ लिखे गये हैं तो व्यक्ति समाज से यह भी चाहता है कि उसका घ्यान रखा जाए।
अन्तर्मुखी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति बचपन में उपेक्षा का शिकार समाज की उदासीनता से खिन्न आदि वजहों से अन्तर्मुखी कहलाते हैं। यह मनुष्य के प्रति विपरीत व्यवहार रखते हैं तथा सामाजिक व्यवहार को भी कोई मान्यता नहीं देते। ऎसे व्यक्तियों की लिखावट बायीं ओर झुकी होती है तथा भारी दबाव से लिखी होती है। यह व्यक्ति किसी से अपने मन की बात आसानी से नहीं कहते, शंकालु स्वभाव के होते हैं। ऎसे व्यक्ति दृढ निश्चयी होते हैं। कोई इनका निर्णय बदल नहीं सकता। यह मुसीबत में घबराते नहीं हैं, शांत रहते हैं।
जिनकी लिखावट सीघी होती है वह मघ्यस्थ व्यक्ति कहलाते हैं। ज्यादातर लोग इसी श्रेणी में आते हैं। सीघी लिखावट लगभग सभी चिन्ह सही स्थान पर लगे हुए लिखावट का झुकाव हमें व्यक्ति की निजी सोच और व्यवहार के बारे में बतालाता है। झुकाव से हमें यह भी पता चलता है कि व्यक्ति दिखावा करने वाला है या संकोची है, बातूनी है या शांत प्रकृति का है।
ऎसा देखा गया है कि अघिकतर लोग सीघा लिखते हैं और इस शैली के अनुसार वर्तमान में ही जीते हैं। यह बडे आत्म-विश्वासी होते हैं तथा स्वतंत्र रूप से चिंतन करते हैं। इनकी निर्णय लेने की क्षमता भी अच्छी होती है। जिनकी लिखावट का झुकाव दायीं और होता है वह व्यक्ति बहिर्मुखी तो होते ही हैं बल्कि सामाजिक प्रवृत्ति और व्यवहार कुशलता का पुट भी इनमें रहता है लेकिन सामाजिक प्रकृति होने के कारण यह समाज से अपने सामाजिक कार्यो की प्रशंसा की अपेक्षा भी रखते हैं। कर्मशील, भविष्य बनाने की चिंता तथा सदा कुछ न कुछ क्रियात्मक करते हुए आगे बढते रहने की इच्छा रहती है। भावनात्मक प्रवृत्ति होने के कारण लोगों के प्रति संवेदनशील होते हैं तथा उनके बीच रहना भी पसंद करते हैं।
यदि व्यक्ति की लिखावट का झुकाव बायीं ओर होता है तो व्यक्ति शांत एवं अकेला जीवन जीने की इच्छा रखता है। ऎसे व्यक्ति संवेदनशील होने के अलावा डरपोक भी होते हैं। अपने बनाए हुए सीमित दायरे से यह व्यक्ति बाहर नहीं निकल पाते जिसके फलस्वरूप आसानी से मित्र नहीं बना पाते तथा किसी से प्रभावित भी नहीं होते हैं। अन्तर्मुखी व्यक्ति होने के कारण ऎसे व्यक्ति सदा परिस्थितियों के बारे में सोचते रहते हैं। इनके विचारों में अनेक अन्तर्द्वन्द्व चलते दिखाई पडते हैं। यदि व्यक्ति अपनी लिखावट आये दिन बदलते हैं तो यह ठीक नही हैं क्योंकि लिखावट का बार-बार बदलना उनकी मानसिक स्थिति का परिचायक है जो कि अस्थिर होने के साथ-साथ अनियंत्रित भी होती है।

Thursday, December 10, 2009

सुरसा की मुंह की तरह बढ़ती मंहगाई आम व्यक्ति परेशान

दिल्ली । मंहगाई या फिर कम बारिश के कारण कृषि उत्पादन पर असर के कारण खाद्य वस्तुओं के थोक मूल्यों में काफी बढोत्तरी हुई है। इससे आम व्यक्ति के परिवार की परेशानियां काफी बढ़ गई है। मंदी का दौर होने के कारण आज रसोई को चलाना गृहणियो के लिए चुनौती साबित हो रहा है। आंकडों के अनुसार प्याज के दाम 15,सब्जियों में 13,चावल और गेंहू के कीमतों में 12 फीसदी की वृद्धि हुई। व्यापारियों का कहना है कि कीमतों में अभी गिरावट के कोई आसार नहीं है।
मंहगाई और मंदी का गठजोड़ रुकने का नाम नहीं ले रहा है। इसका सबसे अधिक असर आज आम व्यक्ति पर पड़ रहा है। इस संबंध में नोएडा के कुछ व्यापारियों से वार्ता की तो उन्होंने बताया कि कुछ ही दिनों में रसोई के प्रयोग में आने वाली वस्तुओं के कीमतें बढ़ी हैं। अब व्यापारी भी कहने लगें है कि ऐसी मंहगाई कभी नहीं देखी। सेक्टर-12 स्थित किराना व्यापारी अनिल गुप्ता ने बताया कि महंगाई के असर से दालें भी अछूती नहीं रही हैं। पहले कहा जाता था कि दाल-रोटी खाओ और प्रभू के गुण गाओ मगर अब यह भी संभव नहीं है। आम परिवार की थाली का मुख्य अंग समझी जाने वाली दाल की बढ़ती कीमतों ने प्रत्येक व्यक्ति के पसीने छूट गए। बीते वर्ष जो दालें तीस से पचास रुपए में मिलती थी वह अस्सी से सौ रुपए प्रति किलो तक जा पहुंच गई है। अरहर दाल की कीमतों ने तो सरकार को सोचने पर मजबूर कर दिया है। ऐसा कोई परिवार नहीं है कि जहां चीनी का प्रयोग न होता हो। बढ़ती कीमतों के कारण चीनी की मिठास कढ़वाहट में बदल चुकी है। चीनी चालीस रुपए को छु चुकी है। सेक्टर-12 स्थित सब्जी मंडी में व्यापार अकबर ने बताया कि बीते वर्ष सब्जियों और फलों की कीमतों में चार गुना वृद्घि हुई है। मंहगाई का असर यह हुआ है कि सब्जियां किलो के भाव बेची जाती थी। अब दुकानदार ग्राहक को पाव में बताना पड़ता हैं। प्याज,आलू,टमाटर,गोभी,गाजर,बैंगन, मूली,मटर आदि सभी सब्जियां कीमतें तीन गुने से भी अधिक हो गई है। प्याज हमेशा चर्चा में रही है राजनैतिक पार्टियों को भी परेशान किया है। इस वर्ष प्याज ने लोगों को फिर रुलाना दिया है। अब काटने में नहीं खरीदने में आंसु आ रहे हैं। इसके पीछे बताया जाता है कि नासिक की प्याज काफी आयी है। इसी कारण आज प्याज कीमत लगभग 30 रुपए किलो पहुंच चुकी है। थोक विक्रेताओं का कहना है कि अभी सब्जी और दाल कीमतों में कमी आने का कोई आसार नहीं दिखाई पड़ रहा है।

Tuesday, December 8, 2009

भरपेट खाएं वजन घटाएं

वजन घटाने के लिए पारंपरिक आहार लेने से यदि आप खाद्यप्रदार्थ की मात्रा कम लें तो आप का शरीर संतुलन रखने के लिए आप की कैलोरी को जलाने की क्षमता धीमी कर देता है। इस के परिणामस्वरूप आप की उपापचय दर भी 25 प्रतिशत तक कम हो जाती है और आप कैलोरी धीमी गति से खर्च करते हैं अत: आप कम कैलोरी वाला आहार लें तो भी आप का वजन घट नही पाता ।
वजन घटाने के पारंपरिक तरीके के अंतर्गत आप कैलोरी गिनते है और इस बात का भी घ्यान रखते है कि आप क्या क्या खा रहे है अंतत: आप इस सारी परेशानी से ऊब जाते है भूखा रहना,बेस्वाद भोजन खाना और अनेक खाद्य प्रदार्थो से वंचित रहना आप को खलने लगता है आप सारी डाइटिंग वाइटिंग भूल कर फिर वजन बढा लेते है।
चिकनाई रहित भोजन
इस के लिए सही तरीका यह है कि भोजन की मात्रा नही बल्कि उस के प्रकार पर घ्यान दिया जाए बस वह भोजन लीजिए जिस मे चिकनाई कम हो जटिल कार्बोहाइडे्रट की मात्रा अधिक हो और अधिकाधिक रेशों का समावेश हो ऎसे भोजन से बचिए,जिस मे वसा और कोलेस्टरोल की मात्रा अधिक है और जो पूरी तरह कार्बोहाइडे्रट और रेशों से रहित है सही पोष्टिक आहार (रेशे व कार्बोहाइडे्रट युक्त) के कम वसायुक्त होने के कारण बहुत सारी कैलोरी खाने के पहले ही आप का पेट भर जाता है और फिर भी आप का वजन आसानी से कम हो सकता है।
कुछ समय पूर्व गायक अदनान सामी ऊंचे सुरो वाले गीत गाने के बाद जब मंच से उतरते थे तो उन की सांस फूलने लगती थी वह काफी मोटे थे और शायद इस भय से कि कहीं दिल के दौरे का शिकार न हो जाएं वह दीवार से टेक लगा कर खडे हो जाते थे वह बताते है,बस मै ने वसा मे कटौती कर दी और जी भर के फल और सब्जियां खाने लगा,साथ ही एक्सरसाइज को भी समय दिया। कुछ महीनों में उन्होने अपना वजन 80 किलोग्राम से भी ज्यादा कम कर लिया।
आहार संबंधी कुछ बातें
यह बात बिलकुल संभव है कि जम कर खाना खाया जाए,उस का आनन्द लिया और याथ ही वजन भी कम होता रहे बस आप को कुछ बातें जानना जरूरी है।
आप का पेट जब तक पूरी तरह न बर जाए आप इन मे से कुछ भी खा सकते है। फलियां (सेम, मटर, काली सोयाबीन)फल (जामुन, संतरे, खुबानी, खरबूजा, केले तथा नाशपाती) अनाज भुट्टा, चावल, जई, गेहूं, बाजरा, जौ तथा मोठ) सब्जियां (पत्तागोभी, फूलगोभी, गाजर, सलाद के पत्ते, प्याज, शकरकंद, पालक, मशरूम, बैगन, अजवाइन के पत्ते, मेथी, चौलाई तथा टमाटर)
जटिल कार्बोहाईडे्रट पहचानना भी जरूरी है अधिकतर लोग समझते है कि डबल रोटी और आलू खाने से शरीर मोटा होता है किन्तु वास्तव में वजन उन चीजो से बढता है जो हम उन के साथ शामिल कर लेते है एक भुने हुए आलु में न तो कोलेस्टरोल होता है न ही वसा किन्तु उस पर मक्खन लगा कर या उन्हे तल कर ही आप ने एक आदर्श आहार को वर्जित बना डाला अत: वसा युक्त चीजो का इस्तेमाल करने के बजाय विभिन्न मसालो से अपने खाने का जायका बढाने का प्रयास कीजिए।
संतुलित आहार
जटिल कार्बोहाईडे्रट्स में कैलोरी की मात्रा कम होती है रेशा अधिक होता है और ये भारी भी होते है अत: कम खाने से भी आप का पेट भर जाता है इस के विपरीत साधारण कार्बोहाईडे्रट अर्थात शक्कर, अल्कोहल, शहद, शीरा आदि से पेट नही भरता उन में न तो रेशा होता है और न ही वे भारी होते है।
वसा की मात्रा घ्यान में रखते हुए संतुलित आहार लीजिए कम वसा वाले अथवा वसारहित पदार्थ खाने पर जोर दीजिए वसारहित दही अथवा पनीर ,बिना चिकनाई वाले बिस्कुट आदि तेल का इस्तेमाल कम करे। वसायुक्त आहार खाने के बाद जमा की गई कैलोरी को बाद में खर्च करना अधिक दुष्कर है बेहतर है कि अधिक मात्रा में कैलोरियां उदरस्थ ही न की जाएं प्रतिदिन सामान्य गति से 20 से 60 मिनट तक चलना ही पर्याप्त है।
सामान्य से अधिक वजन होना इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि आप ने कितनी वसा ली प्राय: मांसाहारी भोजन और तेलों के द्दारा आप के शरीर में पहुंचती है। किन्तु यदि आप इन दिशानिर्देशा पर चलेंगे तो आप सचमुच वजन घटा रख सकते है और आप की कमर के घेरे मे कमी आप के जीवन में कुछ वर्ष अवश्य जोड देती है।

Monday, December 7, 2009

अपने ही देश में परदेशी हैं पारधी: बाल्मीक निकालजे

अंग्रेज जब यहां से गए तो बहुत कुछ छोड़कर गए। उनका छोड़ा वो बहुत कुछ हमने आजतक संभाले रखा है। पारधी जमात से चिपका मिथक उन्हीं में से एक है। पारधी अपने ही अतीत और रिवाजों में कैद एक जमात है, जो अंग्रेजों के ‘गुनहगार जनजाति अधिनियम, 1871’ का शिकार होते ही हमेशा के लिए ‘गुनाहगार’ हो गई।
आजादी के बाद भी कितने तख्त बदले, ताज बदले, नहीं बदले तो पारधी जमात के हालात। तभी तो महाराष्ट्र में पारधी लोग आज भी गांव से दूर रहते हैं, या रखे जाते हैं। तभी तो उनके सामने बुनियादी हकों से जुड़ा हर सवाल मुंबई, 724 किलोमीटर की दूरी बताने वाले पत्थर सा बनकर रह जाता है।
आष्टी, जिला बीड़, महाराष्ट्र। इसके ऊपर राजर्षि शाहु ग्रामीण विकास संस्थान और इसके ऊपर बाल्मीक निकालजे का नाम लिखते ही चिट्ठी जिस ठिकाने पर पहुंचती है, वहीं बैठे हैं हम। पूरा मराठवाड़ा जानता है कि पारधी जैसी बंजारा जमातों के बीच बीते दो दशक से बाल्मीक निकालजे का नाम कितना लोकप्रिय है। आइए उनसे कुछ काम की बातें जानते हैं। ऐसी बातें, जो पारधी जमात से चाहे अनचाहे गुत्‍थमगुत्‍था हो चुकी हैं:
पारधी जमात यहां एक उलझी हुई गुत्‍थी है...
इतनी उलझी है कि सुलझाना मुश्किल हो रहा है। वैसे जानकार यह भी जानते हैं कि पारधी असल में तो लोगों की रखवाली करने वाले होते थे। इतिहास में पारधियों ने तो गुलामी के खिलाफ सबसे पहली और उग्र प्रतिक्रियाएं दी हैं। यहां के राजा निजाम से हारे, अंग्रेजों से हारे, मगर उन राजाओं के लिए लड़ने वाले पारधियों ने हार नहीं मानी। उन्होंने कई छापामार लड़ाईयां लड़ीं, और जीतीं भी। खुद शिवाजी भी उनकी युद्धशैली से प्रभावित थे। यह और बात है कि अब उनकी वीरता के वो किस्से यहां कम ही कहने-सुनने को मिलते हैं। अंग्रेज भी जब बार-बार और छापामारी अंदाज वाले हमलों से हैरान-परेशान हो गए, तो उन्होंने पारधियों को गुनहगार घोषित कर दिया। मगर आजादी के बाद तो अपनी सरकार, उसके पुलिस विभाग को यह तरीका बदलना चाहिए था, जो उन्होंने नहीं बदला।
1924 को देशभर में 52 गुनहगार बसाहट बनी। सबसे बड़ी गुनहगार बसाहट अपने शोलापुर में बनी। इसमें तार के भीतर कैदियों को रखा जाता था। 1949 को बाल साहेब खेर ने शोलापुर सेटलमेंट का तार तोड़ा। 52 को अंबेडकर साहब ने गुनहगार बताने वाले अंगेजी कानून को रद्द किया। 60 को नेहरू जी खुद शोलापुर भी आए। मगर, आज भी यहां जब चोरी होती है, तो पुलिस वाले सबसे पहले पारधी को ही पकड़ते हैं। वह अपने देश में आज भी परदेशी हैं। यहां पहला सवाल उनकी पहचान का ही बना हुआ है।
उनकी पहचान से क्या मतलब है?
हम थोड़ा सा शुरू से जान लेते हैं। पारधी, पारध शब्द से निकला है। पारध याने शिकार करने वाला। अब पारधी भी कई तरह के होते हैं। जैसे राज, बाघरी, गाय, हिरन शिकारी, गांव पारधी। राजा के पास जो शिकार का जानकार था, वे राज पारधी कहलाया। राजा बोले कि अब मुझे बाघ पर सवार होना है, उसके लिए बाघरी पारधी रखे जाते। वे ही बाघ पकड़ते, फिर उसे पालतू बनाते। एक तो बाघ को जिंदा पकड़ना ही बहुत मुश्किल है, ऊपर से उसे पालतू बनाना तो और भी मुश्किल। ऐसे ही गाय पारधी की खास सवारी गाय होती। आज भी उनके यहां एकाध गाय तो होती ही है। गाय भी ऐसी-वैसी नहीं, बाकायदा प्रशिक्षित गाय। वे बाजार से गाय खरीदने की बजाय अपनी ही गाय के बछड़े को प्रशिक्षित करते हैं। उनकी गाय सधी होती है, इतनी कि शरीर के जिस हिस्से पर पारधी हाथ रख दे, वो जान जाती है कि अब उसे आगे क्या करना है। यही गाय उनके धंधे की मां है। इसलिए पारधी कभी गाय का मांस नहीं खाते। किसी भी शिकारी के लिए हिरन के पीछे दौड़ना, उसे मारना बड़ा टेढ़ा काम है। मगर पारधी लोग गाय की मदद से शिकार के तरीके को सीधा बना लेते हैं। जैसे हिरन का शिकार करते समय, जब गाय चरती हुई आगे बढ़ती है, उसके पीछे पीछे पारधी छिपा-छिपा आता है। हिरन के नजदीक आने पर, वह उसके ऊपर अचानक छलांग मार देता है और शिकार को अपने हाथ में ले लेता है। ऐसी कई शैलियां हैं पारधियों के पास।
वैसे यकीन करना मुश्किल है, मगर पारधी पंछियों की बोलियां भी खूब जानते हैं। जैसे पारधी के तीतर जंगलों के तीतरों को गाली देते हैं, तो कई जंगली तीतर लड़ने के लिए उनके पास आ जाते हैं, वो सारे बीच में लगे जाल में फंस जाते हैं। ऐसे शिकार के कई और ढ़ंग भी हैं उनके पास। शिकार के बारे में जितनी बातें पारधियों को पता है, शायद ही कोई जानता हो।
पारधी कभी लोगों की रखवाली किया करते थे। यह समझाना कितना मुश्किल है?

अगर नई पीढ़ी पारधियों के पीछे छिपे सच जानने लगे तो शायद ही कोई उन्हें गुनाहगार कहेगा। पारधी लोगों की रखवाली के काबिल नहीं होते, तो राजा उन्हें अपने सुरक्षा सलाहकार कभी नहीं बनाते। यह दुनिया की सबसे खुफिया और ईमानदार जमातों में से भी एक है। आप उसे एनएसजी कमांडो कह सकते हैं। आज भी आप देखिए, अपने यहां कहीं-कहीं एक पारधी के हिस्से में 25 से 50 खेतों की रखवाली आती है। फिर वे आपस में तय करते हैं कि एक दूसरे के खेतों में नहीं जाएंगे। अगर किसी के खेत में चोरी हुई तो उसका नुकसान उस खेत का पारधी भरता है। उसके बाद वह अपने खुफिया नेटवर्क से चोरी का पता लगाता है। अगर पता लगा तो मामले को अपनी जात पंचायत में उठाता है। पंचायत में बात सच साबित हो जाने का मतलब है, कसूरवार को नुकसान से 5 गुना ज्यादा तक दण्ड भरना। पारधी को रखवाली के बदले साल भर का अनाज मिलता है। मतलब यह कि वह गांव की अर्थव्यवस्था का जरूरी हिस्सा रहा है।उसके जीने का रंग-ढ़ग, उसके धंधे के हिसाब से चलता है। आपने देखा होगा कि जैसे वे कमर में छोटी, एकदम कसी हुई धोती पहनता हैं। छाती पर कई जेबो वाली बण्डी, सिर पर रंग-बिरंगी पगड़ी पहनते हैं। कुल मिलाकर ऐसा पहनावा होता है, जो दौड़-भाग में आवाज न करे, न ही किसी और तरह की अड़चन दे।
समाज के बीच किस तरह की अड़चनों में फंसे हैं पारधी?
इसे यहां के एक किस्से से समझिए। एक बार पाथरड़ी तहसील में कहीं चोरी हुई। कई महीने बीते, चोर का पता न चला। उसी समय आष्टी तहसील के चीखली से थोड़ी दूरी पर, घूमते फिरते रहवसिया नाम के पारधी परिवार वहां आ ठहरा। पुलिस ने उसे ही चोरी के केस में अंदर डाल दिया। उधर रहवसिया दो महीनों तक जेल में रहा। इधर गांव में ऊंची जात वाले उसके परिवार को धमकाते, बोलते जगह खाली कर दो वरना ऐसा-वैसा। जब वह जेल से छूटकर अपने ठिकाने पर आया, तो ऊंची जात वालों ने उसे और उसके 12 साथियों को भी रस्सियों से बांध दिया। उनसे बोला गया कि तुम लोग चोर हो, गांव के लिए अपशगुन हो। कुछ लोग वहां से किसी तरह छूटे और 4 किलोमीटर दौड़ते हुए अपने कार्यालय पहुंचे। खबर मिलते ही हम यहां से 7 टेम्पों में 300 कार्यकर्ता बैठे, दलित पेंथर का नारा लगाते हुए वहां पहुंचे। तब ऊंची जात वाले अपने घरों में ताला लगाकर छिपे रहे। यहां के ऊंची जात वाले तो पारधियों को हटाने के लिए राजीव गांधी तक पहुंच गए। तब वह प्रधानमंत्री थे। वो बोले कि पारधी देश के नागरिक हैं, उन्हें हटाया नहीं जा सकता। इसके बाद पूरे इलाके में ऊंची जात वालों और बंजारा जमातों के बीच 5 साल तक संघर्ष चला। जगह-जगह पर बंजारों की बस्तियों में कई कई बार हमले हुए। मगर हमारे पास भी पक्की योजना थी। हम ऐसे मामले बार-बार थाने, कचहरी तक ले जाते। धीरे धीरे जहां-तहां ऊंची जात वाले भी ठण्डे पड़ते गए।
तो, क्या ऊंची जात वालों के खिलाफ संघर्ष करने भर से ऐसी धरणाएं बदल सकती हैं?

बदलाव की कई योजनाएं हो सकती हैं। मकसद सिर्फ यह बात समझाना है कि पारधी चोर नहीं हैं, इंसान हैं। फिर भी आम धारणा है कि पारधी बस चोर ही हैं। अगर ऐसा है भी तो हम लोगों से कहते हैं- क्या उन्हें चोरी के दलदल से निकालाना नहीं चाहिए। इस काम में लोगों के साथ पुलिस का खास रोल हो सकता है। मगर यह दोनों (पब्लिक और पुलिस) तो पारधियों को चोर से ऊपर देखने की कोशिश नहीं कर रहे हैं।
मुझे लगता है, हम सबका पहला काम यह बनता है कि उनके भीतर के डर को पहले बाहर निकालें। इसके लिए जरूरी है सबसे पहले तो उन्हें ही एकजुट करना। वे अपने कानूनों को जानें और वोट को हक से कहीं ज्यादा, एक हथियार की तरह इस्तेमाल करना सीखें। उन्हें रोजगार के वो साधन मिलें, जो स्थानीय भी हों और स्थायी भी। जैसे जिन बंजर जगहों पर वो अपने जानवर चराते रहे हैं, उन्हीं जगहों से उनसे अन्न पैदा करवाने की मुहिम को बढ़ावा मिले। यहां हमने दलित, बंजारों जमातों के 1420 परिवारों को खेती से जोड़ा है। इसलिए, वो स्कूल से लेकर पंचायतों में अपनी जगह खुद बना पा रहे हैं। पढ़े-लिखे, जागरूक लोग व्यवस्था की गलतियों से लड़ सकते हैं। इसलिए, पारधी बच्चों को एक सपना देना होगा। वह यह कि पुलिस या बाकी लोग तुम्हारे पीछे नहीं हैं। देखो, वो तो तुम्हारे साथ हैं। ऐसा सपना देखने वाले बच्चों को स्कूलों में लाना होगा। उन्हें भरोसा देना होगा कि तुम्हारे खेल, तुम्हारी संस्कृति, तुम्हारी प्रतिभाएं किसी से कम नहीं हैं। ऐसी प्रतिभाओं को मौका देकर भी उनकी पहचान बदली जा सकती है।

Thursday, December 3, 2009

अंक 13 का रहस्य

अंक 13 में अनजाना भय, चेतावनी छिपी हुई है फिर भी अंक 13 को कुछ शुभ भी कहा जा सकता है। अंक 13 से प्रभावित व्यक्ति निरंतर कठिनाइयों से जूझते हुए, निरंतर संघर्ष करते हुए विजयश्री का वरण करते हैं। मानव जीवन भी एक संघर्ष है। मोक्ष प्राप्त हेतु जातक को विभिन्न योनियों से गुजरना प़डता है अर्थात् निरंतर मृत्यु से संघर्ष करते-करते ही मोक्ष प्राप्त संभव है। राजस्थानी में एक कहावत है तीन-तेरह कर देना अर्थात् परेशान करना या बनाया काम बिग़ाड देना अधिकांश लोग आज भी तीन और तेरह से भयभीत हैं। अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन से भी 13 का गहरा संबंध रहा। उनका प्रधानमंत्रित्व काल प्रथम बार 13 दिन ही रहा फिर भी वाजपेयी ने शपथ ग्रहण हेतु, 13 तारीख को चुना तो उनकी सरकार भी 13 महीने चली लेकिन पुन: वाजपेयी ने 13वीं लोकसभा के प्रधानमंत्री के रूप में, 13 दलों के सहयोग से 13 तारीख को ही शपथ ली। लेकिन फिर 13 को ही पराजय भी देखनी प़डी। विब्सटन चर्चिल का जीवन भी अनिश्चितताओं से भरा रहा। वीर दुर्गादास का जन्म भी 13 अगस्त को हुआ। पिता ने दुर्गादास व उनकी पत्नी को निकाल दिया अर्थात् बचपन में पिता का साथ नहीं मिला और फिर कालांतर में अपने स्वामी की रक्षा हेतु कितना संघर्ष करना प़डा। अपने स्वामी को राजसिंहासन दिला दिया लेकिन स्वामी से इस सेवक का रिश्ता अच्छा नहीं रहा। अंतिम दिनों में उसे स्वामी से अलग स्वैच्छिक रूप से होना प़डा। वहीं 22 तारीख को मृत्यु हुई अर्थात् जन्म व मृत्यु पर 4 का प्रभाव हावी रहा। इनका लक्ष्य राज दिलाना भी पूर्ण हुआ। यदि किसी चंद्र पंक्ष में 13 दिन (तिथि क्षय के कारण) रह जाएं तो वह पक्ष अशुभ माना जाता है। इसी प्रकार किसी वर्ष में 13 महीनें हो जाएं अर्थात् अधिक मास आए तो अधिक मास को भी शुभ नहीं माना जाता है लेकिन आत्म कल्याण अर्थात् मोक्ष की चाह रखने वालों हेतु, यह पुरूषोत्तम मास शुभ है। महाभारत का 13 दिन तक का युद्ध तो कौरवों के पक्ष में रहा लेकिन फिर पांडवों का पल़डा भारी होने लगा। जैन धर्म में भी आचार-विचार एवं व्यवहार की शिथिलता बढ़ने लगी तो आचार्य भिक्षु ने तेरह साधु एवं तेरह श्रावकों के साथ तेरापंथ की स्थापना की। प्रारंभ में इन्हे भी विरोधियों का सामना करना प़डा लेकिन वर्तमान में तेरापंथ, जैन धर्म संप्रदाय के रूप में विख्यात है। ईसा मसीह ने भी अपने 13 शिष्यों के साथ जिस दिन भोजन किया, वही उनके जीवन का अंतिम दिन था लेकिन उसके तीन दिन पश्चात् ही वे पुन: जीवित हो उठे अर्थात् 13 सदस्यों के साथ भोजन कर कुछ प्रसिद्धि हेतु जीवन संघर्ष कराया फिर तीन दिन पश्चात् ही उनकी प्रसिद्धि प्रारंभ हुई। अत: 13 अंक का भय एक अनावश्यक तथ्य है। सत्य तो यह है कि आप 13 के अंक से खेलना शुरू करें और कुछ दृढ़ निश्चय एवं लक्ष्य रखकर, अंतिम क्षण तक संघर्ष करें, आपकी जीत सुनिश्चित है।

साड़ी एक और सात महिलाएं

नई दिल्ली. झारखंड के एक गांव में गरीबी की इतनी अति हो चुकी है कि सात महिलाएं एक साड़ी से अपना तन ढकने को विवश हैं। यह बेहद त्नासद और चौकने वाली सूचना राज्यसभा सदस्य कांग्रेस के के। केशव राव ने एक चर्चा के दौरान दी। राव देश की आंतरिक सुरक्षा संबंधी विषय पर नक्सल प्रभावित राज्यों में गरीबी और उसके कारणों पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि झारखंड में एक गांव के दौरे के दौरान वह यह देखकर दंग रह गये कि वहां सात महिलाओं के पास कुल एक साड़ी है। गरीबी और बदहाली की ये हालत है कि तन ढकने को इनके पास मात्न एक साड़ी है।

Wednesday, December 2, 2009

देर का विवाह कितना सही

बढ़ती उम्र में विवाह आकर्षण नहीं बल्कि एकदूसरे की जरूरत बन जाता है। पतिपत्नी के इस रिश्ते में प्यार, मनुहार, शारीरिक सौंदर्य का अभाव होता है और आपसी रिश्ते मात्र औपचारिकता बन जाते हैं। हमारे समाज और कानून ने भले ही शादी के लिए न्यूनतम आयु सीमा निर्धारित की है लेकिन निम्नतम आयु के पश्चात उचित उम्र का निर्धारण करने जैसा महत्तवपूर्ण निर्णय हमारी स्वय की जिम्मेदारी है। जैसे कम उम्र में विवाह के अनेक दुष्परिणाम सामने आते हैं वैसे ही देर के विवाह से भी अनेक नुकसान हो सकते हैं। परिणय बंधन में बंधने जैसा महत्तवपूर्ण कार्य सही समय पर किया जाए तो निश्चित ही जीवन के हर पहलू को शांतिपूर्ण व सुखी रूप से गुजारा जा सकता है।
शारीरिक आवश्यकता: 40 वर्ष के बाद महिलाओं में रजोवृति का समय करीब होता है। जीवन को व्यर्थ जाता देख कर, अपने शरीर पर काबू न रहने पर महिलाएं चि़डचि़डी हो जाती हैं। एक ठोस मजबूत सहारे की चाह के साथ शारीरिक चाहत भी उन्हें विवाह के लिए प्रेरित करती है। स्त्री जिस शारीरिक संतुष्टि की चाहत को युवावस्था में दबा लेती है वह उम्र बढने के साथ तीव्रतर हो जाती है और स्त्री ग्रंथि के उभरने से सेक्स की इच्छा जाग्रत होती है।
ऎसा ही कुछ पुरूषों के साथ भी होता है। अधे़डावस्था में पुरूष पुन: किशोर हो उठते हैं और वे विवाह जैसी संस्था का सहारा ढूंढ़ते हैं। लेकिन देर से किया गया विवाह न तो उन्हे शारीरिक संतुष्टि दे पाता है, साथ ही समय पर विवाह न होने से यौन संबंधी रोगों के बढ़ने का खतरा भी बढ़ जाता है।
बढ़ती परेशानियां: अधिक उम्र में विवाह होने पर पतिपत्नी दोनों ही परिपक्व हो चुके होते है। दोनों को एकदूसरे के साथ विचारों में तालमेल बिठाने में कठिनाई होती है। 30 पार की महिलाओं में प्रजनन क्षमता घटने लगती है, अत: देर से विवाह होने पर स्त्री के लिए मां बनना कठिन व कष्टदायी होता है। साथ ही एक पूर्ण स्वस्थ शिशु की जन्म की संभावनाओं में कमी आने लगती है। ढ़लती उम्र में जिंदगी जिम्मेदारियों के बोझ तले दबने लगती है और विवाह आनंद का विषय होने के बजाय साथी को ढ़ोना हो जाता है।
यदि अधे़डावस्था में विवाहित पतिपत्नी के पूर्व साथी से बच्चों हैं तो उन दो परिवारों के बच्चों में आपसी मनमुटाव हो जाता है। अधिक उम्र में विवाह होने पर विवाहित दंपत्तियों में असुरक्षा की भावना आ जाती है। दोनों को एकदूसरे पर भरोसा नहीं होता। असुरक्षा की यह भावना पतिपत्नी में विश्वास के बजाय शक और दूरी पैदा कर देती है।
देर से विवाह करने वाले स्त्रीपुरूषों के प्रति समाज का रवैया भी कुछ संदेहास्पद और मजाक का विषय बन जाता है। समाज में विवाह को युवावस्था की जरूरत माना जाता है न की अधे़डावस्था को।
देर का विवाह मतलब समझौता: जो स्त्रीपुरूष अपनी युवावस्था रिश्तों को नापसंद करने में गुजार देंते है उन्हे बाद में अपनी सभी चाहतों से समझौता करना प़डता है। ढ़लती उम्र में जैसा साथी मिलें उसी में संतोष करना प़डता है। अपनी चाहत या पसंद उम्र के इस प़डाव पर आ कर कोई मायने नहीं रखती। अधे़डावस्था में विवाह एक जरूरत बन जाती है, जिस के लिए पतिपत्नी को हर कदम पर समझौता करना प़डता है। इस विवाह का उद्देश्य मात्र एक सहारा होता है, जो वास्तव में इस उम्र में शारीरिक अक्षमताओं की वजह से सहारा बनने के बजाय बोझ ही बनता है।
ढ़लती उम्र का अहसास: युवावस्था में पतिपत्नी की अठखेलियां, उन का रूठना, मनाना और प्रेमालाप इन प्रौढ़ावस्था के विवाहितों में दूर-दूर तक नजर नहीं आता। युवक की खत्म होती शारीरिक क्षमताएं, पस्त होता रोमाचं और उत्साह, साथ ही नारी के नारीसुलभ आकर्षण का अभाव उन में एक दूसरे से प्यार, लगाव व रूचि को खत्म कर देता है। अधे़डावस्था में युवाओं जैसा उत्साह, रोमाचं व शारीरिक क्षमता नहीं रहती तब उन का एकमात्र ध्येय अपने अकेलेपन को दूर करना होता है, जिससे जीवन में नीरसता आ जाती है और दंपत्ति को अपनी ढ़लती उम्र का अहसास सताने लगता है।
अधे़डावस्था के विवाह में उत्साह व जोश की कमी के कारण जीवन में आनंद नहीं रहता और वह रिश्ता एक जरूरत और औपचारिकता बन कर रह जाता है। अधे़डावस्था में विवाह होने पर दंपत्ति के पास भविष्य के लिए योजनाएं बनाने का न तो समय होता है और ना ही उनमें उनको पूरा करने का शारीरिक सामर्थय होता है। ढ़लती उम्र का अहसास उनके जीवन मे गंभीरता व नीरसता भर देता है और परिवार में हंसीमजाक, ल़डना-झग़डना व रूठना-मनाना जैसे उत्सवों का कोई नाम नहीं होता।