| |
इसके अलावा यह भी माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु वैकुंठ के दरवाजे खोलकर बैठे रहते हैं और इस दिन अच्छा काम करने से भगवान के पास आसानी से पहुँचा जा सकता है। कहीं राजू ने इसीलिए तो पाप कबूल करने के लिए वैकुंठ एकादशी को नहीं चुना कि भगवान विष्णु खुश हो जाएँ?
* क्या राजू के ये धार्मिक विश्वास ही पापों की स्वीकारोक्ति का कारण हैं? वैकुंठ एकादशी के दिन यह सब होना क्या महज इत्तेफाक है?
राजू दक्षिण भारतीय हैं और सवर्ण भी। हो सकता है वे इस सब पर यकीन करते हों। अगर वाकई ऐसा है, तो हजारों-हजार लोगों का इहलोक बिगाड़ने वाले राजू का परलोक कैसे सुधर सकता है? वैकुंठ एकादशी वाली बात को बिना कारण तूल नहीं दिया जा रहा।
इसमें एक पेंच है। पेंच यह कि क्या वाकई राजू अपनी अंतरआत्मा की आवाज पर गलती मान रहे हैं या इसमें भी वे इन्वेस्टमेंट कर रहे हैं। अगर वो अंतरआत्मा की आवाज पर गलती मान रहे हैं तो माना जा सकता है कि राजू का जेंटलमैन बनना सहज है। अगर ऐसा नहीं है तो यही समझा जाएगा कि राजू परलोक में भी इन्वेस्टमेंट कर रहे हैं।परलोक में इन्वेस्टमेंट ...वैकुंठ एकादशी के दिन पापों की स्वीकारोक्ति ...ताकि धरती पर खूब धन भोगने के साथ-साथ आसमान में भगवान के घर भी ऐश्वर्य का इंतजाम हो जाए? फिर पाप कबूल करने का यह भी अजब तरीका हुआ कि थाने पर जाकर कबूल करने और गिरफ्तारी देने के बजाय कहीं जा छिपे हैं और लोगों को नजर ही नहीं आ रहे। इसे सुविधाजनक शहादत क्यों न कहा जाए?
* क्या वाकई भगवान विष्णु राजू को माफ कर देंगे? वैसे करना तो नहीं चाहिए। भगवान विष्णु अगर सारे निवेशकों की तरफ से, सारे ठगे गए लोगों की तरफ से, कंपनी के मासूम कर्मचारियों की तरफ से राजू को माफ कर देंगे, तो यह अन्याय होगा।
हमारे आर्थिक ढाँचे को हर वो महत्वाकांक्षी व्यक्ति भेद देता है, जो जैसे-तैसे जल्दी से अमीर बन जाना चाहता हो, फिर चाहे वो हर्षद मेहता हो या किसान से सत्यम के मालिक बने राजू। क्या अब कुछ ऐसा नहीं करना चाहिए कि कोई आम आदमी को ठग न सके। क्या इसके लिए भी वैकुंठ एकादशी जैसे किसी खास दिन की जरूरत है?
* राजू का परलोक तो उनके हिसाब से सुधर गया, देखना यह है कि न्यायिक प्रक्रिया से गुजरने के बाद राजू को इस इहलोक में कितनी सजा मिलती है और जेल के दरवाजे उनके लिए खुलते हैं या नह
No comments:
Post a Comment