rashtrya ujala

Friday, January 30, 2009

कपट, कॉर्पोरेट और कठपुतलियाँ

काफी पहले की बात है, अमृतसर में 1994 में जेब कतरने वाली चार महिलाएँ पकड़ी गई थीं तो उनके माथे पर पुलिस द्वारा 'जेबकतरी' गुदवा दिया गया था। ऐसा भी अक्सर होता है कि कोई बाबू या क्लर्क दो सौ रुपए की रिश्वत लेता पाया जाता है तो उसका नाम अखबारों तक में छप जाता है। ऐसा नहीं कि छोटे लोगों की छोटी गलती गलती नहीं है, लेकिन गलती उस व्यवस्था और

दरअसल कुछ एक उम्दा मिसालों को छोड़ दें तो भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस कठपुतलियों के खेल में तब्दील हो गया है, जिसमें प्रमोटर की उँगलियों में सब धागे बँधे हैं, जिसमें नैतिकता, पारदर्शिता और सामान्य प्रजातंत्र का अभाव है

उस समाज की अवश्य है, जिसमें साहस का अभाव है, जिसके कारण वह बड़े लोगों के बड़े-बड़े अपराधों को पचाता है या कहें सर माथे चढ़ाता है, मगर उस पर उँगली कभी नहीं उठाता। अपराधों का पर्दाफाश करना तो बहुत दूर की बात है। सत्यम वाले केस में यदि रामलिंगा राजू ने स्वयं नहीं कबूला होता तो किसी की नजर उन पर पड़ी नहीं थी। या कहें किसी ने उन पर नजर डालने की होशियारी या जुर्रत नहीं की थी।

सत्यम के इंडिपेंडेंट डायरेक्टरों से लेकर चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर तक सभी ने मौन आज्ञाकारिता और जी-हुजूरी को ही सर्वोच्च गुण माना था। कंपनी में असहमति के लिए कोई जगह नहीं थी। इसके सीएफओ वदलमनी श्रीनिवास ने स्वयं इस बात का खुलासा किया है। उन्हें ताकीद थी कि वे बैंक स्टेटमेंट्स को न जाँचें! बैंक डिपॉजिट्स सीधे ही रामलिंगा राजू को भेजे जाते थे। फाइनेंस संबंधी मामलों की कमान राजू और उनके भाई संभालते थे। सीएफओ को कहा गया था कि वे वही करें, जो उन्हें कहा जाए। स्वतंत्र निदेशकों के लिए भी असुविधाजनक सवाल पूछना मना था। दरअसल कुछ एक उम्दा मिसालों को छोड़ दें तो भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस कठपुतलियों के खेल में तब्दील हो गया है, जिसमें प्रमोटर की उँगलियों में सब धागे बँधे हैं, जिसमें नैतिकता, पारदर्शिता और सामान्य प्रजातंत्र का अभाव है। असहमति के लिए वहाँ कोई जगह नहीं है और राजनीतिक साँठ-गाँठ, जी-हुजूरी और हेराफेरी का बोलबाला है। यहाँ किसी को कोई नैतिक उलझन नहीं है। 'अपनी आवाज और आत्मा घर रखकर आओ' का संदेश स्पष्ट है। फिलहाल तो सत्यम की राजनीतिज्ञों से मिलीभगत के मुद्दे पर आएँ। तेलुगुदेशम के कार्यकाल में राजू ने साइबर कार्ड खेलकर चंद्रबाबू नायडू से नजदीकी बनाई। रियल्टी के पत्ते दिखाकर वे अगले मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी के भी नजदीकी हो गए। इन नजदीकियों से उन्हें ये फायदे हुए कि उनकी गलतियाँ दबा दी गईं, उनके प्रोजेक्ट्स को बगैर गुणवत्ता जाँचे हरी झंडी मिली। उसमें नेताओं का हिस्सा तो था ही, जैसे हैदराबाद में मेट्रो रेल परियोजना का ही जायजा लें।मुख्यमंत्री से अच्छे संबंधों के चलते आंध्रप्रदेश सरकार ने राजू और उनके बेटों की कंपनी मयतास इन्फ्रास्ट्रक्चर की शाखा मयतास मेट्रो लिमिटेड को 12,000 करोड़ का हैदराबाद मेट्रो रेल प्रोजेक्ट थमा दिया। इस प्रोजेक्ट में बहुत घपले थे और हैदराबाद की बहुत बड़ी व्यावसायिक भूमि औने-पौने में ही मयतास को सौंप दी गई थी, जिनकी ओर दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन को निष्ठा और सफलता से चलाने वाले ई. श्रीधरन ने ध्यान दिलाया था मगर सरकार ने ध्यान नहीं दिया। उल्टे श्रीधरन पर मानहानि का मुकदमा लगाने की धमकी दी और प्रोजेक्ट से बाहर कर दिया। राजनेताओं से अच्छे संबंधों के चलते राजू को और भी प्रोजेक्ट्स मिले। मछलीपटनम पोर्ट प्रोजेक्ट और काकीनाड़ा में 'सेज' के तीन प्रोजेक्ट्स भी हैं। सत्यम का हैल्थ मैनेजमेंट रिसर्च फाउंडेशन भी सरकार की भागीदारी में है। सर्वधर्म समानार्थी की तर्ज पर तेलुगुदेशम और कांग्रेस से ही नहीं, भाजपा से भी सत्यम के संबंध अच्छे रहे हैं, क्योंकि सभी जगह आपसी स्वार्थों की साझीदारी है। बताया जाता है कि इस पार्टी का रुझान बताने वाले किसी सर्वे के लिए एक सेफॉलॉजी कंपनी को सत्यम की ओर से पेमेंट गया था, किंतु इस मामले में सत्यम ही नहीं और कंपनियों भी शामिल हैं। पहले तो राजनेताओं के साथ कॉर्पोरेट्स का संबंध डोनेशन देने और छोटे-मोटे स्वार्थ पूरे कर

आईटी से संबंधित कुछ युवाओं ने एक इंटरनेट गेम इजाद किया है 'नेल द थीफ'। इस खेल में खेल रहे व्यक्ति को सत्यम प्रमुख की छवि को सड़े अंडे मारना होते हैं। सबसे ज्यादा 'नकली अंडे' मारने वाले को जीतने पर आईपॉड मिलने की व्यवस्था भी है

देने तक ही था लेकिन धीरे-धीरे ढाँचागत विकास और औद्योगिकीकरण की आड़ में बड़े-बड़े उद्यम राजनीतिज्ञों और उद्योगपतियों के संयुक्त प्रयास होने लगे। इसमें आड़ लगाने वाले नौकरशाहों की बदली और निलंबन भी हुआ। आंध्रप्रदेश के ही एक उद्योगपति, जिनका स्टील में 1,800 करोड़ रुपए के टर्नओवर का दावा है, बताया जाता है कि उनके पास स्टील प्लांट ही नहीं है। ऐसा ही फर्जीवाड़ा कई हिस्सों में है।
यूके आधारित इन्वेस्टमेंट ग्रुप नोबल ने अपनी एक ताजा रिपोर्ट में जब यह खुलासा किया कि बीएसई की 500 कंपनियों में हर पाँच में से एक कंपनी के खातों में गड़बड़ है तो नोबल को धमकियाँ मिलीं कि उसकी साख पर बट्टा लगा दिया जाएगा। कॉर्पोरेट जगत में फैली अनैतिकता और फर्जीवाड़े को केवल राजनीतिक साँठ-गाँठ की शक्ति और धमकीबाजी से ही नहीं दबाया जा रहा है, अपितु कॉर्पोरेट्स इसके लिए विनम्र- भलेमानुस वाला चेहरा लगाने से भी नहीं चूक रहे। रामलिंगा राजू का ही उदाहरण लें तो उन्होंने सादगी भरे विनम्र व्यक्तित्व और उदार समाजसेवी की भी छवि बनाई।
सजगता से छवि निर्माण करने वाले उद्योगपतियों द्वारा सादगी और उदारता की किंवदंतियाँ भी फैलाई जाती हैं। भले ही भीतर कितना ही दंभ और छल हो। देश भर के लाखों इन्वेस्टर्स को सोच-समझकर चूना लगाने वाले ये व्यक्ति अपने स्टाफ के अन्य सामान्य सदस्यों की भाँति ही सत्यम का लोगो लगी सामान्य नीली टी-शर्ट पहनकर कार्यस्थल पहुँच जाते थे। हैदराबाद का मध्यम वर्ग उन्हें रोजगार प्रदान करने वाले देवता के रूप में पहचानता था। यह बात और है कि चलते-चलते यह खबर भी मिली है कि जितने एम्प्लाई सत्यम में बताए जाते हैं, उतने सचमुच में नहीं हैं। यहाँ भी फर्जीवाड़ा था। राजू द्वारा खुद ही स्कैम का खुलासा करना भी उनकी एक रणनीति ही थी। इसलिए उनको घेरे में लाना अब भी आसान कार्य नहीं है क्योंकि वकीलों की एक फौज उनके लिए दिन-रात कार्य करती रहेगी। उन्होंने 500 करोड़ रुपए का डैमेज-बीमा भी करवाया हुआ है, जिससे प्राप्त पैसा मुकदमा लड़ने के काम आएगा। व्यवस्था कब सुधरेगी, ऑडिटर्स कब अनुशासित होंगे, सेबी जैसे रेग्यूलेटर्स कब सुव्यवस्था लाएँगे, कब निदेशकों से पूछताछ होगी, कब कॉर्पोरेट जगत में पारदर्शिता आएगी, कब बड़े लोगों को भी सजा मिलेगी? इन सवालों के उत्तर मिलना मुश्किल हैं किंतु यह तो तय है कि जनता अपने तरीकों से तो अपनी भड़ास निकाल ही लेती है। एक छोटा सा उदाहरण है। आईटी से संबंधित कुछ युवाओं ने एक इंटरनेट गेम इजाद किया है 'नेल द थीफ'। इस खेल में खेल रहे व्यक्ति को सत्यम प्रमुख की छवि को सड़े अंडे मारना होते हैं। सबसे ज्यादा 'नकली अंडे' मारने वाले को जीतने पर आईपॉड मिलने की व्यवस्था भी ह - निर्मला भुराड़िया

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