rashtrya ujala

Thursday, December 31, 2009

महिला के हाथ होगी गांव की सरकार

अगली जिला प्रमुख ओबीसी वर्ग की महिला होगी। इससे पहले एक बार महिला जिला प्रमुख रह चुकी हैं। जयपुर में निकाली गई लॉटरी में अलवर जिला प्रमुख का पद अन्य पिछड़ावर्ग की महिला के लिए आरक्षित किया गया है। जिला प्रमुख का पद ओबीसी महिला के लिए आरक्षित होने से जिलापरिषद का चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे सामान्य वर्ग के कई दिग्गजों को झटका लगा है। वहीं एससी व एसटी वर्ग के कई नेताओं में मायूसी छा गई है। दूसरी ओर ओबीसी वर्ग के कुछ पूर्व विधायक व ग्रामीण जनप्रतिनधि रह चुके नेता अपने परिवार की महिलाओं के लिए जिला परिषद सदस्य की दावेदारी जताने की रणनीति बनाने लगे हैं। जिला परिषद के करीब ढाई दर्जन वार्डों में ओबीसी वर्ग की महिलाएं चुनाव लड़ सकती हैं। इनमें सामान्य, सामान्य महिला, ओबीसी व ओबीसी महिला के लिए आरक्षित वार्ड शामिल हैं। इससे पूर्व डॉ. किरण यादव अलवर की जिला प्रमुख रह चुकी है। वर्तमान में अलवर नगरपरिषद की सभापति, भिवाड़ी नगरपालिकाध्यक्ष पद पर भी महिला काबिज हैं। जिला परिषद में 24 महिला सदस्य चुनी जाएंगी। हालांकि शबाना खान व रुक्मणी देवी भी कार्यकारी जिलाप्रमुख रह चुकी है। उल्लेखनीय है कि महिलाएं सामान्य वार्डों व किसी वर्ग विशेष के लिए आरक्षित वार्ड में उस वर्ग की महिला भी चुनाव लड़ सकती हैं, ऐसी स्थिति में निर्वाचित होने वाली महिलाओं की संख्या 50 प्रतिशत से अधिक भी हो सकती है।

Wednesday, December 23, 2009

महिलाओं का व्यक्तित्व की पहचान बालों से

बाल खूबसूरती और तारीफ का पैमाना ही नहीं होते हैं। बल्कि ये आपके स्वभाव और पर्सनैलिटी को भी बताते हैं। बाल व्यक्तित्व की पहचान पहचान होते हैं। व्यक्ति के विचार, उसकी जीवनशैली की बहुत सी बातें बालों को देखकर बताई जा सकती है। विविध परीक्षणों में भी व्यक्तित्व की जांच के लिए बालों पर काफी अध्ययन किया गया है। आइए, जानते हैं कि बालों के प्रकार के अनुसार महिलाओ के व्यक्तित्व के बारे में।
लंबे बाल : लंबे बालों वाली महिलाएं यथार्थ की जमीन पर जीती हैं। कल्पनाओं की दुनिया में ये तभी बहती हैं जब उनका कोई ठोस परिणाम सामने आने की संभावना हो। ये बगैर घोषणाओं के काम करती हैं। बातें कम, काम ज्यादा ये इनके जीवन का मूलमंत्र होता है। परिस्थितियों पर विचार करके बोलना इन्हें अच्छा लगता है। पैसे की कीमत ये भली प्रकार से जानती हैं। इन्हें बडी किफायत से चीजों को इस्तेमाल करना आता है। साथ ही लंबे बालों वाली महिलाएं व्यावहारिक भी होती है।
घुंघराले बाल : घुंघराले बाल वाली महिलाएं कलाकार होती हैं। साहित्य और संगीत से इन्हें बहुत लगाव होता है। ऎसी महिलाएं अधिकतर कल्पनाओं के समंदर में गोते लगाती रहती हैं। इन्हें मेहमानवाजी का खास शौक होता है। इनमें बाकी लोगों से कम दूरदर्शिता पाई जाती है। किस्मत के मामले में ये दो नंबर आगे रहती हैं। ऎसी महिलाएं "जियो और जीने दो" के सिद्धांत पर भरोसा करती हैं।
पतले व कम बाल: पतले व कम बाल वाली महिलाओं को मेहनत व ईमानदारी की रोटी पर भरोसा होता है। लेकिन ऎसी महिलाएं अन्य की अपेक्षा कम रोमांटिक होती हैं। ये मुखर नहीं होती। इनका मूलमंत्र है, जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया। जो खो गया उनकों ये भुलाती जाती हैं। ऎसी महिलाएं बहुत सारे राज अपने सीने में दफन कर लेती हैं। प्यार में अक्सर ये धोखा खाती हैं। स्वभाव से ये बहुत शर्मिली होती हैं। इनका जीवन बहुत ही शांति से बीतता है।
छोटे बाल : छोटे बालों वाली महिलाएं बहुत मेहनती होती हैं। प्रबल अनुशासन में रहना इनकी आदत होती है। प्यार और नफरत इनके भीतर हमेशा विद्यमान रहते हैं। इनका व्यक्तित्व कई बार दोहरा नजर आता है। ऎसी महिलाएं पैसा भी खर्च करती हैं, पर कई बार बिल्कुल भी नहीं करती। ऎसी महिलाएं धोखेबाज नहीं होती हैं। कई बार इनकी सपाटबयानी इनको दूसरों के सामने घंमडी साबित कर देती हैं। ये थोडी स्वार्थी और महत्तवकांक्षी होती हैं। ये अपने हित के लिए ज्यादा ही व्याकुल रहती हैं। महफिल इन्हे बहुत पसंद आती है। ऎसी महिलाएं मित्रों के मामले में सलेक्टिव होती हैं।

Tuesday, December 22, 2009

न्याय की उम्मीद छोड़ मौत को गले लगाया

आरोपी को उन्नीस साल बाद सिर्फ छह माह की सजा,जोकि काफी कम होने के कारण परिजनों को लगा झटका
नई दिल्ली। उन्नीस वर्ष पूर्व एक किशोरी से छेड़छाड़ करने के मामले में हरियाणा के पूर्व डीजीपी एसपीएस राठौर को दोषी करार देते हुए छह महीने की सजा का मुद्वा संसद के दोनों सदनों में उठाया गया। इस मुद्वे को लेकर विपक्षी दलों ने सरकार को घेरते हुए कम सजा को शर्मनाक बताया। आरोपी की हरकत के कारण देश ने एक अच्छे खिलाड़ी को खो दिया। राज्य सभा में सीपीएम सांसद वृंदा करात ने इस मुद्वे को उठाते हुए कहा कि इतने बड़े मामले में केवल छह महीने की सजा सरकार के लिए शर्मनाक तो है ही साथ में इतने वर्षो बाद मिली सजा प्रशासन की पोल खोल कर रख दी है। गौरतलब है कि सीबीआई की एक विशेष कोर्ट ने उन्नीस साल पहले एक किशोरी से छेड़छाड़ करने के मामले में हरियाणा के पूर्व डीजीपी एसपीएस राठौर को दोषी करार देते हुए छह माह के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। साथ ही उन्हें 1,000 रुपए का जुर्माना भरने को कहा गया है। जुर्माना न अदा करने पर राठौर को एक माह की सजा और भुगतनी होगी।
पीडि़ता 14 वर्षीय किशोरी रुचिका गिरहोत्रा उभरती हुई टेनिस खिलाड़ी थी। वह 12 अगस्त 1990 को राठौर की छेड़छाड़ का शिकार हुई थी। उस दौरान राठौर हरियाणा में आईजी और हरियाणा टेनिस एसोसिएशन के अध्यक्ष थे। शिकायत दर्ज कराए जाने पर राठौर ने रुचिका और उसके परिजनों को परेशान करना शुरू कर दिया था, जिसके चलते घटना के तीन साल बाद रुचिका ने जहर पीकर आत्महत्या कर ली थी। पीडि़ता के परिजनों ने राठौर को सुनाई गई छह माह के सश्रम कारावास की सजा को कम बताया है। आईपीसी की धारा 354 के तहत दोषी करार दिए गए व्यक्ति को दो साल तक की कैद की सजा सुनाई जा सकती है।
इंसाफ के लिए संघर्ष करेंगे:आराधना
रुचिका की सहेली और इस घटना की एकमात्र गवाह आराधना गुप्ता इस मामले का फैसला सुनने के लिए आस्ट्रेलिया से अपने पति के साथ चंडीगढ़ आई थीं। आराधना,रुचिका की सहयोगी टेनिस खिलाड़ी और पड़ोसी थीं। घटना के वक्त वह 13 साल की थीं। आराधना ने बताया कि रुचिका की मौत के बाद उसका परिवार किसी अज्ञात जगह चला गया था। तब से यह लड़ाई उनके पिता लड़ रहे थे। उन्होंने कहा कि न्याय वह ही अच्छा होता है जोकि समय पर मिल जाए। उन्होंने 19 वर्ष बाद मिला न्याय उनके किसी काम का नहीं है क्योंकि पीडि़त परिवार बरबाद हो गया और उन्होंने अपनी बेटी को भी खो दिया।

Friday, December 18, 2009

15 वर्ष बाद हम होंगे चीन से आगे

निर्मेश त्यागी
दिल्ली। 15 वर्षों का इंतजार करने की आवश्यकता है हम चीन से आगे होंगे। इसके बाद डरने की आवश्यकता नहीं है। वैसे भी अगर भारत सरकार चीन द्वारा उत्पादित वस्तुओं को प्रतिबंधित कर दे तो चीन सरकार टूट सकती है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि चीन में तैयार किया गया माल भारत में ही बिक्री किया जाता है। जो आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं उसके बाद भारत को चीने से डरने की आवश्यकता नहीं है।
अमरीकी जगनगणना ब्यूरो के ताजा आंकड़ो के अनुसार चीन से तीन गुना अधिक जनसंख्या वृद्धि दर के कारण वर्ष 2025 तक भारत की जनसंख्या चीन से ज्यादा हो जाएगी। करीब 227 देशों की जनगणना के अनुमानों के आधार पर ब्यूरो ने अनुसार भारत की जनसंख्या वृद्धि दर 1.4 प्रतिशत है,जो चीन की तुलना में तीन गुना ज्यादा है। ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2025 तक भारत की जनसंख्या करीब 1.396 अरब और चीन की 1.394 अरब होगी। उस समय तक रूस और जापान के दुनिया के सर्वाधिक जनसंख्या वाले 10 देशों की सूची से बाहर होने की सम्भावना है। वहीं इथियोपिया और मेक्सिको इस सूची में शामिल होने वाले नए देश होंगे। प्रजनन दर में भारत अव्वल भारत में महिलाओं की प्रजनन दर औसतन 2.7 बच्चों को जन्म देने की है। यह दर घट रही है। चीन में 1990 के दशक में यह दर 2.2, 1995 में 1.8 और 2000 से 1.6 है। अमरीका में दर दो से ज्यादा है।

Friday, December 11, 2009

खूबसरत धोखा के रूप में सामने आता है रैप

निर्मेश त्यागी
आधुनिक युग में युवतियां अपने परिवार से अधिक भरोसा अपने मित्र पर करती है। जिसका परिणाम कई बार गंभीर होते हैं। भरोसे का आईना जब टूटता है जब सबकुछ समाप्त हो चुका होता है। एक युवती और युवक की दोस्ती में आखिर पर्दा हट जाता है। दोस्ती बहुत ही अच्छी होती है मगर उसमें सावधानी और दूरी न रखी जाए। अपने मेल दोस्त के साथ डेट पर जाते समय कु छ बांतों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
डेट रेप है क्या:-
डेट रेप शोषण- जो पूर्व नियोजित हो, डेट रेप जिसमें शोषण पूर्व नियोजित होता है ( स्वेच्छिक भी हो सकता है )। जिसकी शुरूआत सामान्य आकर्षण के द्वारा होती है। इस तरह के मामलों से पीडिता का स्वयं की सहमति होती है अपराघी के साथ समय व्यतीत करने की और संभत: उसने अपराघी के साथ एक से ज्यादा बार एकात स्थानों पर मुकालात की होती है। तथापि यह एक देह शोषण ही है एक विश्वासाघात जो काफी समय तक चलने वाले भावनात्मक घाव देता है।
आघुनिक युग के डेट रेप कोई अनोखी घटना नहीं है। लडके अपने महिला मित्रों को डेट पर मिलने के लिये बुलाते है तथा वहां उन्हें किसी भी तरह बहला फुसलाकर या ड्रिंक में कुछ नशीला पदार्थ मिलाकर उनका देह शोषण करते है। ?सी घटनाओं में लडकियां लडकों के खिलाफ अघिकांशत: कुछ कर भी नहीं पाती। कुछ महीने पहले घटी एक घटना ने सबको अपनी और आक्रर्षित किया और सोचने पर मजबूर कर दिया। यह घटना एक प्रसिद्ध मेटिकल इंस्टूडट में पढने वाली एक छात्रा की है जिसे उसी के मित्रों ने एक पार्टी में हवस का शिकार बनाया जो उनके साथ पार्टी कर रही थी। पीडिता ने पुलिस में दिये बयान में बताया कि उसकी ड्रिंक में कुछ नशिला पदार्थ मिलाया गया था। लडकियों को इस घटना से सबक लेते हुए अपने भविष्य को सुरक्षित करना चाहिए। एक अघिकारिक सर्वे के अनुसार ?सी महिलाए जिनका देह शोषण हुआ है पूर्व परिचित होता है एक मित्र की तरह प्रेमी पूर्व प्रेमी या मित्र के मित्र के रूप में
देह शोषण से कैसा बचा जायें -
यहा हम बात करेंगे कि आप क्या कर सकते है। जिससे कि डेट रेप की किसी भी संभावना को टाला जा सके :-
1. अपने ड्रिंक से संबंघित सावघानियां
* एस व्यक्ति से ड्रिंक मत लो जो अजनबी हो आपके लिए और जिस पर ज्यादा विश्वास न किया जा सके।
* यदि कोई व्यक्ति आपके लिए ड्रिंक खरीदने का प्रस्ताव देता है तो उसे साथ बार में जाओं और प्राप्त करों।
* यह भी जाचं ले कि ड्रिंक केन सील पैक हो यह आपके लिए तुलनात्मक रूप से ज्यदा सुरक्षात्मक होगा। यदि संभव हो तो स्वंय उसे खोले।
* किसी भी खुली हुई ड्रिंक को स्वीकार न करें यदि आप किसी मिक्स ड्रिंक ऑर्डर देते है तो नजर रखे जो व्यक्ति ड्रिंक मिक्स कर रहा है। उस पर एल्कोएल और नशीले पदाथों का सेवन जितना हो सके ना करें।
* कभी अपनी ड्रिंक को अकेला मत छोडों। किसी के लिए भी कोई अवसर ना छोंडे अपनी ड्रिंक छेडछाड करने के लिये।
* यदि आपको बाथरूम में लिये जाना है तो पहले अपनी ड्रिंक को पूरा करें या उसे फेक दे।

2. अपने मित्रों के साथ पार्टी में :-
हमेशा दोस्त मण्डली के साथ पार्टी को प्राथमिकता देनी चाहिए या एक से अघिक दोस्तों के साथ ही पार्टी में जाना चाहिए। यदि कोई महिला मित्र ज्यादा नशें में प्रतीत होती है तो उसे सुरक्षित स्थान पर ले जायें तथा उसके पेरेंटस को सूचित करें। कई रेप की कोशिशें इस तरह से नाकम की जा चुकी है तथा ?से दोस्तों को घन्यवाद दे।
3. दृढ बने:-
यदि कोई आपका शोषण करने की कोशिश करे तो उससे डरे नहीं निडर होकर उसका विरोघ करें। कई बार उसका इरादा रेप करने का नहीं होता। वह सोचता है कि लडकी अपनी प्रतिष्ठा बचाना चाहती है या फिर वह कोइ गेम खेल रही है। उसे जाने लेने दो कि यह स्वीकार ने योग्य नहीं है यह रेप है तथा यह नियमों को तोडने वाला है।
4. सार्वजनिक जगहो का चयन करें :-
डेट रेप के विरूद्व सावघानी बरते का मतलब यह नहीं है कि आप बाहर ही न जाए जैसे कॉफी शॉप और शोपिंग शॉल में और लोगों से न मिले यह सुनिश्चित करेगा कि आप अकेले और असुरक्षित नहीं है।
5 अपने आस-पास के वातावरण का देखें :-
सजग रहे ऑफिस समाप्त के बाद की गतिविघियों के लिए जैसे कि अंडरग्राउंड पार्किग व ऑफिस छत पर अकेले न जाए। रात्रि में अकेले घूमने न जाए।
6 अपन अंतर्मन पर विश्वास करे :-
अपनी अंतर्रात्मा की आवाज सुने। एक व्यक्ति के रूप में हमें सामान्यत: अपनी अच्छी भावनाओं को समझना चाहि? विशेषकर जब हम पार्टी या समारोह में भाग ले रहे है। अपनी अच्छी सोच वे योग्यता से बुरी भावनाओं पर नियंत्रण रखें।

लिखावट से सब कुछ जानिए

हम व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार को तीन श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं :
1. बहिर्मुखी व्यक्तित्व,
2. अन्तर्मुखी व्यक्तित्व और
3. मघ्यस्थ
बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाला व्यक्ति समाज में प्रत्येक व्यक्ति के साथ मानसिक और संवेदनशील रूप से बिल्कुल एक होकर कार्य करता है। कभी भी आराम नहीं करना चाहता हैं, क्योंकि समाज सेवा ही उकसा घर्म होता है और उसे संतुष्टि ही सामाजिक कार्यो से प्राप्त होती है। ऎसा व्यक्ति थोडा भारी हाथ से लिखता है और इसकी लिखावट दायीं और झुकती हुई होती है। अक्षर बडे-बडे और लिखावट गोलाई लिए होती है, यदि बडे अक्षर भारी दबाव के साथ लिखे गये हैं तो व्यक्ति समाज से यह भी चाहता है कि उसका घ्यान रखा जाए।
अन्तर्मुखी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति बचपन में उपेक्षा का शिकार समाज की उदासीनता से खिन्न आदि वजहों से अन्तर्मुखी कहलाते हैं। यह मनुष्य के प्रति विपरीत व्यवहार रखते हैं तथा सामाजिक व्यवहार को भी कोई मान्यता नहीं देते। ऎसे व्यक्तियों की लिखावट बायीं ओर झुकी होती है तथा भारी दबाव से लिखी होती है। यह व्यक्ति किसी से अपने मन की बात आसानी से नहीं कहते, शंकालु स्वभाव के होते हैं। ऎसे व्यक्ति दृढ निश्चयी होते हैं। कोई इनका निर्णय बदल नहीं सकता। यह मुसीबत में घबराते नहीं हैं, शांत रहते हैं।
जिनकी लिखावट सीघी होती है वह मघ्यस्थ व्यक्ति कहलाते हैं। ज्यादातर लोग इसी श्रेणी में आते हैं। सीघी लिखावट लगभग सभी चिन्ह सही स्थान पर लगे हुए लिखावट का झुकाव हमें व्यक्ति की निजी सोच और व्यवहार के बारे में बतालाता है। झुकाव से हमें यह भी पता चलता है कि व्यक्ति दिखावा करने वाला है या संकोची है, बातूनी है या शांत प्रकृति का है।
ऎसा देखा गया है कि अघिकतर लोग सीघा लिखते हैं और इस शैली के अनुसार वर्तमान में ही जीते हैं। यह बडे आत्म-विश्वासी होते हैं तथा स्वतंत्र रूप से चिंतन करते हैं। इनकी निर्णय लेने की क्षमता भी अच्छी होती है। जिनकी लिखावट का झुकाव दायीं और होता है वह व्यक्ति बहिर्मुखी तो होते ही हैं बल्कि सामाजिक प्रवृत्ति और व्यवहार कुशलता का पुट भी इनमें रहता है लेकिन सामाजिक प्रकृति होने के कारण यह समाज से अपने सामाजिक कार्यो की प्रशंसा की अपेक्षा भी रखते हैं। कर्मशील, भविष्य बनाने की चिंता तथा सदा कुछ न कुछ क्रियात्मक करते हुए आगे बढते रहने की इच्छा रहती है। भावनात्मक प्रवृत्ति होने के कारण लोगों के प्रति संवेदनशील होते हैं तथा उनके बीच रहना भी पसंद करते हैं।
यदि व्यक्ति की लिखावट का झुकाव बायीं ओर होता है तो व्यक्ति शांत एवं अकेला जीवन जीने की इच्छा रखता है। ऎसे व्यक्ति संवेदनशील होने के अलावा डरपोक भी होते हैं। अपने बनाए हुए सीमित दायरे से यह व्यक्ति बाहर नहीं निकल पाते जिसके फलस्वरूप आसानी से मित्र नहीं बना पाते तथा किसी से प्रभावित भी नहीं होते हैं। अन्तर्मुखी व्यक्ति होने के कारण ऎसे व्यक्ति सदा परिस्थितियों के बारे में सोचते रहते हैं। इनके विचारों में अनेक अन्तर्द्वन्द्व चलते दिखाई पडते हैं। यदि व्यक्ति अपनी लिखावट आये दिन बदलते हैं तो यह ठीक नही हैं क्योंकि लिखावट का बार-बार बदलना उनकी मानसिक स्थिति का परिचायक है जो कि अस्थिर होने के साथ-साथ अनियंत्रित भी होती है।

Thursday, December 10, 2009

सुरसा की मुंह की तरह बढ़ती मंहगाई आम व्यक्ति परेशान

दिल्ली । मंहगाई या फिर कम बारिश के कारण कृषि उत्पादन पर असर के कारण खाद्य वस्तुओं के थोक मूल्यों में काफी बढोत्तरी हुई है। इससे आम व्यक्ति के परिवार की परेशानियां काफी बढ़ गई है। मंदी का दौर होने के कारण आज रसोई को चलाना गृहणियो के लिए चुनौती साबित हो रहा है। आंकडों के अनुसार प्याज के दाम 15,सब्जियों में 13,चावल और गेंहू के कीमतों में 12 फीसदी की वृद्धि हुई। व्यापारियों का कहना है कि कीमतों में अभी गिरावट के कोई आसार नहीं है।
मंहगाई और मंदी का गठजोड़ रुकने का नाम नहीं ले रहा है। इसका सबसे अधिक असर आज आम व्यक्ति पर पड़ रहा है। इस संबंध में नोएडा के कुछ व्यापारियों से वार्ता की तो उन्होंने बताया कि कुछ ही दिनों में रसोई के प्रयोग में आने वाली वस्तुओं के कीमतें बढ़ी हैं। अब व्यापारी भी कहने लगें है कि ऐसी मंहगाई कभी नहीं देखी। सेक्टर-12 स्थित किराना व्यापारी अनिल गुप्ता ने बताया कि महंगाई के असर से दालें भी अछूती नहीं रही हैं। पहले कहा जाता था कि दाल-रोटी खाओ और प्रभू के गुण गाओ मगर अब यह भी संभव नहीं है। आम परिवार की थाली का मुख्य अंग समझी जाने वाली दाल की बढ़ती कीमतों ने प्रत्येक व्यक्ति के पसीने छूट गए। बीते वर्ष जो दालें तीस से पचास रुपए में मिलती थी वह अस्सी से सौ रुपए प्रति किलो तक जा पहुंच गई है। अरहर दाल की कीमतों ने तो सरकार को सोचने पर मजबूर कर दिया है। ऐसा कोई परिवार नहीं है कि जहां चीनी का प्रयोग न होता हो। बढ़ती कीमतों के कारण चीनी की मिठास कढ़वाहट में बदल चुकी है। चीनी चालीस रुपए को छु चुकी है। सेक्टर-12 स्थित सब्जी मंडी में व्यापार अकबर ने बताया कि बीते वर्ष सब्जियों और फलों की कीमतों में चार गुना वृद्घि हुई है। मंहगाई का असर यह हुआ है कि सब्जियां किलो के भाव बेची जाती थी। अब दुकानदार ग्राहक को पाव में बताना पड़ता हैं। प्याज,आलू,टमाटर,गोभी,गाजर,बैंगन, मूली,मटर आदि सभी सब्जियां कीमतें तीन गुने से भी अधिक हो गई है। प्याज हमेशा चर्चा में रही है राजनैतिक पार्टियों को भी परेशान किया है। इस वर्ष प्याज ने लोगों को फिर रुलाना दिया है। अब काटने में नहीं खरीदने में आंसु आ रहे हैं। इसके पीछे बताया जाता है कि नासिक की प्याज काफी आयी है। इसी कारण आज प्याज कीमत लगभग 30 रुपए किलो पहुंच चुकी है। थोक विक्रेताओं का कहना है कि अभी सब्जी और दाल कीमतों में कमी आने का कोई आसार नहीं दिखाई पड़ रहा है।

Tuesday, December 8, 2009

भरपेट खाएं वजन घटाएं

वजन घटाने के लिए पारंपरिक आहार लेने से यदि आप खाद्यप्रदार्थ की मात्रा कम लें तो आप का शरीर संतुलन रखने के लिए आप की कैलोरी को जलाने की क्षमता धीमी कर देता है। इस के परिणामस्वरूप आप की उपापचय दर भी 25 प्रतिशत तक कम हो जाती है और आप कैलोरी धीमी गति से खर्च करते हैं अत: आप कम कैलोरी वाला आहार लें तो भी आप का वजन घट नही पाता ।
वजन घटाने के पारंपरिक तरीके के अंतर्गत आप कैलोरी गिनते है और इस बात का भी घ्यान रखते है कि आप क्या क्या खा रहे है अंतत: आप इस सारी परेशानी से ऊब जाते है भूखा रहना,बेस्वाद भोजन खाना और अनेक खाद्य प्रदार्थो से वंचित रहना आप को खलने लगता है आप सारी डाइटिंग वाइटिंग भूल कर फिर वजन बढा लेते है।
चिकनाई रहित भोजन
इस के लिए सही तरीका यह है कि भोजन की मात्रा नही बल्कि उस के प्रकार पर घ्यान दिया जाए बस वह भोजन लीजिए जिस मे चिकनाई कम हो जटिल कार्बोहाइडे्रट की मात्रा अधिक हो और अधिकाधिक रेशों का समावेश हो ऎसे भोजन से बचिए,जिस मे वसा और कोलेस्टरोल की मात्रा अधिक है और जो पूरी तरह कार्बोहाइडे्रट और रेशों से रहित है सही पोष्टिक आहार (रेशे व कार्बोहाइडे्रट युक्त) के कम वसायुक्त होने के कारण बहुत सारी कैलोरी खाने के पहले ही आप का पेट भर जाता है और फिर भी आप का वजन आसानी से कम हो सकता है।
कुछ समय पूर्व गायक अदनान सामी ऊंचे सुरो वाले गीत गाने के बाद जब मंच से उतरते थे तो उन की सांस फूलने लगती थी वह काफी मोटे थे और शायद इस भय से कि कहीं दिल के दौरे का शिकार न हो जाएं वह दीवार से टेक लगा कर खडे हो जाते थे वह बताते है,बस मै ने वसा मे कटौती कर दी और जी भर के फल और सब्जियां खाने लगा,साथ ही एक्सरसाइज को भी समय दिया। कुछ महीनों में उन्होने अपना वजन 80 किलोग्राम से भी ज्यादा कम कर लिया।
आहार संबंधी कुछ बातें
यह बात बिलकुल संभव है कि जम कर खाना खाया जाए,उस का आनन्द लिया और याथ ही वजन भी कम होता रहे बस आप को कुछ बातें जानना जरूरी है।
आप का पेट जब तक पूरी तरह न बर जाए आप इन मे से कुछ भी खा सकते है। फलियां (सेम, मटर, काली सोयाबीन)फल (जामुन, संतरे, खुबानी, खरबूजा, केले तथा नाशपाती) अनाज भुट्टा, चावल, जई, गेहूं, बाजरा, जौ तथा मोठ) सब्जियां (पत्तागोभी, फूलगोभी, गाजर, सलाद के पत्ते, प्याज, शकरकंद, पालक, मशरूम, बैगन, अजवाइन के पत्ते, मेथी, चौलाई तथा टमाटर)
जटिल कार्बोहाईडे्रट पहचानना भी जरूरी है अधिकतर लोग समझते है कि डबल रोटी और आलू खाने से शरीर मोटा होता है किन्तु वास्तव में वजन उन चीजो से बढता है जो हम उन के साथ शामिल कर लेते है एक भुने हुए आलु में न तो कोलेस्टरोल होता है न ही वसा किन्तु उस पर मक्खन लगा कर या उन्हे तल कर ही आप ने एक आदर्श आहार को वर्जित बना डाला अत: वसा युक्त चीजो का इस्तेमाल करने के बजाय विभिन्न मसालो से अपने खाने का जायका बढाने का प्रयास कीजिए।
संतुलित आहार
जटिल कार्बोहाईडे्रट्स में कैलोरी की मात्रा कम होती है रेशा अधिक होता है और ये भारी भी होते है अत: कम खाने से भी आप का पेट भर जाता है इस के विपरीत साधारण कार्बोहाईडे्रट अर्थात शक्कर, अल्कोहल, शहद, शीरा आदि से पेट नही भरता उन में न तो रेशा होता है और न ही वे भारी होते है।
वसा की मात्रा घ्यान में रखते हुए संतुलित आहार लीजिए कम वसा वाले अथवा वसारहित पदार्थ खाने पर जोर दीजिए वसारहित दही अथवा पनीर ,बिना चिकनाई वाले बिस्कुट आदि तेल का इस्तेमाल कम करे। वसायुक्त आहार खाने के बाद जमा की गई कैलोरी को बाद में खर्च करना अधिक दुष्कर है बेहतर है कि अधिक मात्रा में कैलोरियां उदरस्थ ही न की जाएं प्रतिदिन सामान्य गति से 20 से 60 मिनट तक चलना ही पर्याप्त है।
सामान्य से अधिक वजन होना इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि आप ने कितनी वसा ली प्राय: मांसाहारी भोजन और तेलों के द्दारा आप के शरीर में पहुंचती है। किन्तु यदि आप इन दिशानिर्देशा पर चलेंगे तो आप सचमुच वजन घटा रख सकते है और आप की कमर के घेरे मे कमी आप के जीवन में कुछ वर्ष अवश्य जोड देती है।

Monday, December 7, 2009

अपने ही देश में परदेशी हैं पारधी: बाल्मीक निकालजे

अंग्रेज जब यहां से गए तो बहुत कुछ छोड़कर गए। उनका छोड़ा वो बहुत कुछ हमने आजतक संभाले रखा है। पारधी जमात से चिपका मिथक उन्हीं में से एक है। पारधी अपने ही अतीत और रिवाजों में कैद एक जमात है, जो अंग्रेजों के ‘गुनहगार जनजाति अधिनियम, 1871’ का शिकार होते ही हमेशा के लिए ‘गुनाहगार’ हो गई।
आजादी के बाद भी कितने तख्त बदले, ताज बदले, नहीं बदले तो पारधी जमात के हालात। तभी तो महाराष्ट्र में पारधी लोग आज भी गांव से दूर रहते हैं, या रखे जाते हैं। तभी तो उनके सामने बुनियादी हकों से जुड़ा हर सवाल मुंबई, 724 किलोमीटर की दूरी बताने वाले पत्थर सा बनकर रह जाता है।
आष्टी, जिला बीड़, महाराष्ट्र। इसके ऊपर राजर्षि शाहु ग्रामीण विकास संस्थान और इसके ऊपर बाल्मीक निकालजे का नाम लिखते ही चिट्ठी जिस ठिकाने पर पहुंचती है, वहीं बैठे हैं हम। पूरा मराठवाड़ा जानता है कि पारधी जैसी बंजारा जमातों के बीच बीते दो दशक से बाल्मीक निकालजे का नाम कितना लोकप्रिय है। आइए उनसे कुछ काम की बातें जानते हैं। ऐसी बातें, जो पारधी जमात से चाहे अनचाहे गुत्‍थमगुत्‍था हो चुकी हैं:
पारधी जमात यहां एक उलझी हुई गुत्‍थी है...
इतनी उलझी है कि सुलझाना मुश्किल हो रहा है। वैसे जानकार यह भी जानते हैं कि पारधी असल में तो लोगों की रखवाली करने वाले होते थे। इतिहास में पारधियों ने तो गुलामी के खिलाफ सबसे पहली और उग्र प्रतिक्रियाएं दी हैं। यहां के राजा निजाम से हारे, अंग्रेजों से हारे, मगर उन राजाओं के लिए लड़ने वाले पारधियों ने हार नहीं मानी। उन्होंने कई छापामार लड़ाईयां लड़ीं, और जीतीं भी। खुद शिवाजी भी उनकी युद्धशैली से प्रभावित थे। यह और बात है कि अब उनकी वीरता के वो किस्से यहां कम ही कहने-सुनने को मिलते हैं। अंग्रेज भी जब बार-बार और छापामारी अंदाज वाले हमलों से हैरान-परेशान हो गए, तो उन्होंने पारधियों को गुनहगार घोषित कर दिया। मगर आजादी के बाद तो अपनी सरकार, उसके पुलिस विभाग को यह तरीका बदलना चाहिए था, जो उन्होंने नहीं बदला।
1924 को देशभर में 52 गुनहगार बसाहट बनी। सबसे बड़ी गुनहगार बसाहट अपने शोलापुर में बनी। इसमें तार के भीतर कैदियों को रखा जाता था। 1949 को बाल साहेब खेर ने शोलापुर सेटलमेंट का तार तोड़ा। 52 को अंबेडकर साहब ने गुनहगार बताने वाले अंगेजी कानून को रद्द किया। 60 को नेहरू जी खुद शोलापुर भी आए। मगर, आज भी यहां जब चोरी होती है, तो पुलिस वाले सबसे पहले पारधी को ही पकड़ते हैं। वह अपने देश में आज भी परदेशी हैं। यहां पहला सवाल उनकी पहचान का ही बना हुआ है।
उनकी पहचान से क्या मतलब है?
हम थोड़ा सा शुरू से जान लेते हैं। पारधी, पारध शब्द से निकला है। पारध याने शिकार करने वाला। अब पारधी भी कई तरह के होते हैं। जैसे राज, बाघरी, गाय, हिरन शिकारी, गांव पारधी। राजा के पास जो शिकार का जानकार था, वे राज पारधी कहलाया। राजा बोले कि अब मुझे बाघ पर सवार होना है, उसके लिए बाघरी पारधी रखे जाते। वे ही बाघ पकड़ते, फिर उसे पालतू बनाते। एक तो बाघ को जिंदा पकड़ना ही बहुत मुश्किल है, ऊपर से उसे पालतू बनाना तो और भी मुश्किल। ऐसे ही गाय पारधी की खास सवारी गाय होती। आज भी उनके यहां एकाध गाय तो होती ही है। गाय भी ऐसी-वैसी नहीं, बाकायदा प्रशिक्षित गाय। वे बाजार से गाय खरीदने की बजाय अपनी ही गाय के बछड़े को प्रशिक्षित करते हैं। उनकी गाय सधी होती है, इतनी कि शरीर के जिस हिस्से पर पारधी हाथ रख दे, वो जान जाती है कि अब उसे आगे क्या करना है। यही गाय उनके धंधे की मां है। इसलिए पारधी कभी गाय का मांस नहीं खाते। किसी भी शिकारी के लिए हिरन के पीछे दौड़ना, उसे मारना बड़ा टेढ़ा काम है। मगर पारधी लोग गाय की मदद से शिकार के तरीके को सीधा बना लेते हैं। जैसे हिरन का शिकार करते समय, जब गाय चरती हुई आगे बढ़ती है, उसके पीछे पीछे पारधी छिपा-छिपा आता है। हिरन के नजदीक आने पर, वह उसके ऊपर अचानक छलांग मार देता है और शिकार को अपने हाथ में ले लेता है। ऐसी कई शैलियां हैं पारधियों के पास।
वैसे यकीन करना मुश्किल है, मगर पारधी पंछियों की बोलियां भी खूब जानते हैं। जैसे पारधी के तीतर जंगलों के तीतरों को गाली देते हैं, तो कई जंगली तीतर लड़ने के लिए उनके पास आ जाते हैं, वो सारे बीच में लगे जाल में फंस जाते हैं। ऐसे शिकार के कई और ढ़ंग भी हैं उनके पास। शिकार के बारे में जितनी बातें पारधियों को पता है, शायद ही कोई जानता हो।
पारधी कभी लोगों की रखवाली किया करते थे। यह समझाना कितना मुश्किल है?

अगर नई पीढ़ी पारधियों के पीछे छिपे सच जानने लगे तो शायद ही कोई उन्हें गुनाहगार कहेगा। पारधी लोगों की रखवाली के काबिल नहीं होते, तो राजा उन्हें अपने सुरक्षा सलाहकार कभी नहीं बनाते। यह दुनिया की सबसे खुफिया और ईमानदार जमातों में से भी एक है। आप उसे एनएसजी कमांडो कह सकते हैं। आज भी आप देखिए, अपने यहां कहीं-कहीं एक पारधी के हिस्से में 25 से 50 खेतों की रखवाली आती है। फिर वे आपस में तय करते हैं कि एक दूसरे के खेतों में नहीं जाएंगे। अगर किसी के खेत में चोरी हुई तो उसका नुकसान उस खेत का पारधी भरता है। उसके बाद वह अपने खुफिया नेटवर्क से चोरी का पता लगाता है। अगर पता लगा तो मामले को अपनी जात पंचायत में उठाता है। पंचायत में बात सच साबित हो जाने का मतलब है, कसूरवार को नुकसान से 5 गुना ज्यादा तक दण्ड भरना। पारधी को रखवाली के बदले साल भर का अनाज मिलता है। मतलब यह कि वह गांव की अर्थव्यवस्था का जरूरी हिस्सा रहा है।उसके जीने का रंग-ढ़ग, उसके धंधे के हिसाब से चलता है। आपने देखा होगा कि जैसे वे कमर में छोटी, एकदम कसी हुई धोती पहनता हैं। छाती पर कई जेबो वाली बण्डी, सिर पर रंग-बिरंगी पगड़ी पहनते हैं। कुल मिलाकर ऐसा पहनावा होता है, जो दौड़-भाग में आवाज न करे, न ही किसी और तरह की अड़चन दे।
समाज के बीच किस तरह की अड़चनों में फंसे हैं पारधी?
इसे यहां के एक किस्से से समझिए। एक बार पाथरड़ी तहसील में कहीं चोरी हुई। कई महीने बीते, चोर का पता न चला। उसी समय आष्टी तहसील के चीखली से थोड़ी दूरी पर, घूमते फिरते रहवसिया नाम के पारधी परिवार वहां आ ठहरा। पुलिस ने उसे ही चोरी के केस में अंदर डाल दिया। उधर रहवसिया दो महीनों तक जेल में रहा। इधर गांव में ऊंची जात वाले उसके परिवार को धमकाते, बोलते जगह खाली कर दो वरना ऐसा-वैसा। जब वह जेल से छूटकर अपने ठिकाने पर आया, तो ऊंची जात वालों ने उसे और उसके 12 साथियों को भी रस्सियों से बांध दिया। उनसे बोला गया कि तुम लोग चोर हो, गांव के लिए अपशगुन हो। कुछ लोग वहां से किसी तरह छूटे और 4 किलोमीटर दौड़ते हुए अपने कार्यालय पहुंचे। खबर मिलते ही हम यहां से 7 टेम्पों में 300 कार्यकर्ता बैठे, दलित पेंथर का नारा लगाते हुए वहां पहुंचे। तब ऊंची जात वाले अपने घरों में ताला लगाकर छिपे रहे। यहां के ऊंची जात वाले तो पारधियों को हटाने के लिए राजीव गांधी तक पहुंच गए। तब वह प्रधानमंत्री थे। वो बोले कि पारधी देश के नागरिक हैं, उन्हें हटाया नहीं जा सकता। इसके बाद पूरे इलाके में ऊंची जात वालों और बंजारा जमातों के बीच 5 साल तक संघर्ष चला। जगह-जगह पर बंजारों की बस्तियों में कई कई बार हमले हुए। मगर हमारे पास भी पक्की योजना थी। हम ऐसे मामले बार-बार थाने, कचहरी तक ले जाते। धीरे धीरे जहां-तहां ऊंची जात वाले भी ठण्डे पड़ते गए।
तो, क्या ऊंची जात वालों के खिलाफ संघर्ष करने भर से ऐसी धरणाएं बदल सकती हैं?

बदलाव की कई योजनाएं हो सकती हैं। मकसद सिर्फ यह बात समझाना है कि पारधी चोर नहीं हैं, इंसान हैं। फिर भी आम धारणा है कि पारधी बस चोर ही हैं। अगर ऐसा है भी तो हम लोगों से कहते हैं- क्या उन्हें चोरी के दलदल से निकालाना नहीं चाहिए। इस काम में लोगों के साथ पुलिस का खास रोल हो सकता है। मगर यह दोनों (पब्लिक और पुलिस) तो पारधियों को चोर से ऊपर देखने की कोशिश नहीं कर रहे हैं।
मुझे लगता है, हम सबका पहला काम यह बनता है कि उनके भीतर के डर को पहले बाहर निकालें। इसके लिए जरूरी है सबसे पहले तो उन्हें ही एकजुट करना। वे अपने कानूनों को जानें और वोट को हक से कहीं ज्यादा, एक हथियार की तरह इस्तेमाल करना सीखें। उन्हें रोजगार के वो साधन मिलें, जो स्थानीय भी हों और स्थायी भी। जैसे जिन बंजर जगहों पर वो अपने जानवर चराते रहे हैं, उन्हीं जगहों से उनसे अन्न पैदा करवाने की मुहिम को बढ़ावा मिले। यहां हमने दलित, बंजारों जमातों के 1420 परिवारों को खेती से जोड़ा है। इसलिए, वो स्कूल से लेकर पंचायतों में अपनी जगह खुद बना पा रहे हैं। पढ़े-लिखे, जागरूक लोग व्यवस्था की गलतियों से लड़ सकते हैं। इसलिए, पारधी बच्चों को एक सपना देना होगा। वह यह कि पुलिस या बाकी लोग तुम्हारे पीछे नहीं हैं। देखो, वो तो तुम्हारे साथ हैं। ऐसा सपना देखने वाले बच्चों को स्कूलों में लाना होगा। उन्हें भरोसा देना होगा कि तुम्हारे खेल, तुम्हारी संस्कृति, तुम्हारी प्रतिभाएं किसी से कम नहीं हैं। ऐसी प्रतिभाओं को मौका देकर भी उनकी पहचान बदली जा सकती है।

Thursday, December 3, 2009

अंक 13 का रहस्य

अंक 13 में अनजाना भय, चेतावनी छिपी हुई है फिर भी अंक 13 को कुछ शुभ भी कहा जा सकता है। अंक 13 से प्रभावित व्यक्ति निरंतर कठिनाइयों से जूझते हुए, निरंतर संघर्ष करते हुए विजयश्री का वरण करते हैं। मानव जीवन भी एक संघर्ष है। मोक्ष प्राप्त हेतु जातक को विभिन्न योनियों से गुजरना प़डता है अर्थात् निरंतर मृत्यु से संघर्ष करते-करते ही मोक्ष प्राप्त संभव है। राजस्थानी में एक कहावत है तीन-तेरह कर देना अर्थात् परेशान करना या बनाया काम बिग़ाड देना अधिकांश लोग आज भी तीन और तेरह से भयभीत हैं। अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन से भी 13 का गहरा संबंध रहा। उनका प्रधानमंत्रित्व काल प्रथम बार 13 दिन ही रहा फिर भी वाजपेयी ने शपथ ग्रहण हेतु, 13 तारीख को चुना तो उनकी सरकार भी 13 महीने चली लेकिन पुन: वाजपेयी ने 13वीं लोकसभा के प्रधानमंत्री के रूप में, 13 दलों के सहयोग से 13 तारीख को ही शपथ ली। लेकिन फिर 13 को ही पराजय भी देखनी प़डी। विब्सटन चर्चिल का जीवन भी अनिश्चितताओं से भरा रहा। वीर दुर्गादास का जन्म भी 13 अगस्त को हुआ। पिता ने दुर्गादास व उनकी पत्नी को निकाल दिया अर्थात् बचपन में पिता का साथ नहीं मिला और फिर कालांतर में अपने स्वामी की रक्षा हेतु कितना संघर्ष करना प़डा। अपने स्वामी को राजसिंहासन दिला दिया लेकिन स्वामी से इस सेवक का रिश्ता अच्छा नहीं रहा। अंतिम दिनों में उसे स्वामी से अलग स्वैच्छिक रूप से होना प़डा। वहीं 22 तारीख को मृत्यु हुई अर्थात् जन्म व मृत्यु पर 4 का प्रभाव हावी रहा। इनका लक्ष्य राज दिलाना भी पूर्ण हुआ। यदि किसी चंद्र पंक्ष में 13 दिन (तिथि क्षय के कारण) रह जाएं तो वह पक्ष अशुभ माना जाता है। इसी प्रकार किसी वर्ष में 13 महीनें हो जाएं अर्थात् अधिक मास आए तो अधिक मास को भी शुभ नहीं माना जाता है लेकिन आत्म कल्याण अर्थात् मोक्ष की चाह रखने वालों हेतु, यह पुरूषोत्तम मास शुभ है। महाभारत का 13 दिन तक का युद्ध तो कौरवों के पक्ष में रहा लेकिन फिर पांडवों का पल़डा भारी होने लगा। जैन धर्म में भी आचार-विचार एवं व्यवहार की शिथिलता बढ़ने लगी तो आचार्य भिक्षु ने तेरह साधु एवं तेरह श्रावकों के साथ तेरापंथ की स्थापना की। प्रारंभ में इन्हे भी विरोधियों का सामना करना प़डा लेकिन वर्तमान में तेरापंथ, जैन धर्म संप्रदाय के रूप में विख्यात है। ईसा मसीह ने भी अपने 13 शिष्यों के साथ जिस दिन भोजन किया, वही उनके जीवन का अंतिम दिन था लेकिन उसके तीन दिन पश्चात् ही वे पुन: जीवित हो उठे अर्थात् 13 सदस्यों के साथ भोजन कर कुछ प्रसिद्धि हेतु जीवन संघर्ष कराया फिर तीन दिन पश्चात् ही उनकी प्रसिद्धि प्रारंभ हुई। अत: 13 अंक का भय एक अनावश्यक तथ्य है। सत्य तो यह है कि आप 13 के अंक से खेलना शुरू करें और कुछ दृढ़ निश्चय एवं लक्ष्य रखकर, अंतिम क्षण तक संघर्ष करें, आपकी जीत सुनिश्चित है।

साड़ी एक और सात महिलाएं

नई दिल्ली. झारखंड के एक गांव में गरीबी की इतनी अति हो चुकी है कि सात महिलाएं एक साड़ी से अपना तन ढकने को विवश हैं। यह बेहद त्नासद और चौकने वाली सूचना राज्यसभा सदस्य कांग्रेस के के। केशव राव ने एक चर्चा के दौरान दी। राव देश की आंतरिक सुरक्षा संबंधी विषय पर नक्सल प्रभावित राज्यों में गरीबी और उसके कारणों पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि झारखंड में एक गांव के दौरे के दौरान वह यह देखकर दंग रह गये कि वहां सात महिलाओं के पास कुल एक साड़ी है। गरीबी और बदहाली की ये हालत है कि तन ढकने को इनके पास मात्न एक साड़ी है।

Wednesday, December 2, 2009

देर का विवाह कितना सही

बढ़ती उम्र में विवाह आकर्षण नहीं बल्कि एकदूसरे की जरूरत बन जाता है। पतिपत्नी के इस रिश्ते में प्यार, मनुहार, शारीरिक सौंदर्य का अभाव होता है और आपसी रिश्ते मात्र औपचारिकता बन जाते हैं। हमारे समाज और कानून ने भले ही शादी के लिए न्यूनतम आयु सीमा निर्धारित की है लेकिन निम्नतम आयु के पश्चात उचित उम्र का निर्धारण करने जैसा महत्तवपूर्ण निर्णय हमारी स्वय की जिम्मेदारी है। जैसे कम उम्र में विवाह के अनेक दुष्परिणाम सामने आते हैं वैसे ही देर के विवाह से भी अनेक नुकसान हो सकते हैं। परिणय बंधन में बंधने जैसा महत्तवपूर्ण कार्य सही समय पर किया जाए तो निश्चित ही जीवन के हर पहलू को शांतिपूर्ण व सुखी रूप से गुजारा जा सकता है।
शारीरिक आवश्यकता: 40 वर्ष के बाद महिलाओं में रजोवृति का समय करीब होता है। जीवन को व्यर्थ जाता देख कर, अपने शरीर पर काबू न रहने पर महिलाएं चि़डचि़डी हो जाती हैं। एक ठोस मजबूत सहारे की चाह के साथ शारीरिक चाहत भी उन्हें विवाह के लिए प्रेरित करती है। स्त्री जिस शारीरिक संतुष्टि की चाहत को युवावस्था में दबा लेती है वह उम्र बढने के साथ तीव्रतर हो जाती है और स्त्री ग्रंथि के उभरने से सेक्स की इच्छा जाग्रत होती है।
ऎसा ही कुछ पुरूषों के साथ भी होता है। अधे़डावस्था में पुरूष पुन: किशोर हो उठते हैं और वे विवाह जैसी संस्था का सहारा ढूंढ़ते हैं। लेकिन देर से किया गया विवाह न तो उन्हे शारीरिक संतुष्टि दे पाता है, साथ ही समय पर विवाह न होने से यौन संबंधी रोगों के बढ़ने का खतरा भी बढ़ जाता है।
बढ़ती परेशानियां: अधिक उम्र में विवाह होने पर पतिपत्नी दोनों ही परिपक्व हो चुके होते है। दोनों को एकदूसरे के साथ विचारों में तालमेल बिठाने में कठिनाई होती है। 30 पार की महिलाओं में प्रजनन क्षमता घटने लगती है, अत: देर से विवाह होने पर स्त्री के लिए मां बनना कठिन व कष्टदायी होता है। साथ ही एक पूर्ण स्वस्थ शिशु की जन्म की संभावनाओं में कमी आने लगती है। ढ़लती उम्र में जिंदगी जिम्मेदारियों के बोझ तले दबने लगती है और विवाह आनंद का विषय होने के बजाय साथी को ढ़ोना हो जाता है।
यदि अधे़डावस्था में विवाहित पतिपत्नी के पूर्व साथी से बच्चों हैं तो उन दो परिवारों के बच्चों में आपसी मनमुटाव हो जाता है। अधिक उम्र में विवाह होने पर विवाहित दंपत्तियों में असुरक्षा की भावना आ जाती है। दोनों को एकदूसरे पर भरोसा नहीं होता। असुरक्षा की यह भावना पतिपत्नी में विश्वास के बजाय शक और दूरी पैदा कर देती है।
देर से विवाह करने वाले स्त्रीपुरूषों के प्रति समाज का रवैया भी कुछ संदेहास्पद और मजाक का विषय बन जाता है। समाज में विवाह को युवावस्था की जरूरत माना जाता है न की अधे़डावस्था को।
देर का विवाह मतलब समझौता: जो स्त्रीपुरूष अपनी युवावस्था रिश्तों को नापसंद करने में गुजार देंते है उन्हे बाद में अपनी सभी चाहतों से समझौता करना प़डता है। ढ़लती उम्र में जैसा साथी मिलें उसी में संतोष करना प़डता है। अपनी चाहत या पसंद उम्र के इस प़डाव पर आ कर कोई मायने नहीं रखती। अधे़डावस्था में विवाह एक जरूरत बन जाती है, जिस के लिए पतिपत्नी को हर कदम पर समझौता करना प़डता है। इस विवाह का उद्देश्य मात्र एक सहारा होता है, जो वास्तव में इस उम्र में शारीरिक अक्षमताओं की वजह से सहारा बनने के बजाय बोझ ही बनता है।
ढ़लती उम्र का अहसास: युवावस्था में पतिपत्नी की अठखेलियां, उन का रूठना, मनाना और प्रेमालाप इन प्रौढ़ावस्था के विवाहितों में दूर-दूर तक नजर नहीं आता। युवक की खत्म होती शारीरिक क्षमताएं, पस्त होता रोमाचं और उत्साह, साथ ही नारी के नारीसुलभ आकर्षण का अभाव उन में एक दूसरे से प्यार, लगाव व रूचि को खत्म कर देता है। अधे़डावस्था में युवाओं जैसा उत्साह, रोमाचं व शारीरिक क्षमता नहीं रहती तब उन का एकमात्र ध्येय अपने अकेलेपन को दूर करना होता है, जिससे जीवन में नीरसता आ जाती है और दंपत्ति को अपनी ढ़लती उम्र का अहसास सताने लगता है।
अधे़डावस्था के विवाह में उत्साह व जोश की कमी के कारण जीवन में आनंद नहीं रहता और वह रिश्ता एक जरूरत और औपचारिकता बन कर रह जाता है। अधे़डावस्था में विवाह होने पर दंपत्ति के पास भविष्य के लिए योजनाएं बनाने का न तो समय होता है और ना ही उनमें उनको पूरा करने का शारीरिक सामर्थय होता है। ढ़लती उम्र का अहसास उनके जीवन मे गंभीरता व नीरसता भर देता है और परिवार में हंसीमजाक, ल़डना-झग़डना व रूठना-मनाना जैसे उत्सवों का कोई नाम नहीं होता।

Tuesday, November 10, 2009

गोत्र, जाति, संप्रदाय की सीमा लांघकर...

भारत में आए दिन कोई ऐसा मामला सुनने को मिलता है जिसमें किसी नव-विवाहित युगल का शोषण किया जा रहा हो, उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा हो और इसकी वजह खोजने पर पता चलता है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि दोनों ने शादी के लिए कुल, गौत्र, जाति या संप्रदाय की समाज में प्रचलित मान्यताओं और सीमाओं का उल्लंघन किया है.कभी इन युगलों को आर्थिक-मानसिक-शारीरिक यातनाओं से गुज़रना पड़ता है. कभी सामाजिक रूप से इन्हें बहिष्कृत किया जाता है. कभी-कभी प्यार करने या ऐसी सीमाओं को लांघकर शादी करने की क़ीमत इनकी ज़िंदगी होती है. शादी के लिए गोत्र, जाति और संप्रदाय को आधार मानना सही है. अगर आप इन पारंपरिक तरीकों को सही मानते हैं तो क्यों, और अगर नहीं तो क्यों नहीं.
अगर कोई युगल गोत्र, जाति और संप्रदाय की सीमाओं को लांघकर शादी कर भी ले तो क्या ऐसा करने के लिए उनको किसी भी तरह की सज़ा देना या उन्हें परेशान करना सही ठहराया जा सकता है. क्या सामाजिक रूढ़िवादी मान्यताएं क़ानून और वैज्ञानिकता के दायरे से बढ़कर हैं.

फर्ज़ी मुठभेड़ की बढ़ती संख्या

नौतुंबी, उम्र केवल 40 साल, लेकिन उनके फक्क चेहरे पर तैरती झांई जैसे कहीं अधिक पुरानी हो. इतनी ख़ाली आंखें कम ही दिखती हैं लेकिन इतनी ख़ाली आंखों में इतनी दृढता और भी विरल है.अपने बेटे संजीत की तस्वीर को हाथों से बार बार पोंछते हुए नौतुंबी कहती हैं, "मैंने अभी तक अपने बेटे का अंतिम संस्कार नहीं किया है। और जब तक मुझे न्याय नहीं मिल जाता करूंगी भी नहीं. आख़री सांस तक लड़ूंगी."उत्तर प्रदेश के लखीमपुर ज़िले में अपने टूटे और अस्तव्यस्त मकान के बाहर खड़ी मंजू गुप्ता की आंखों में उनकी 60 साल की उम्र से पुराना शक़ है जो सामने खड़े हर अजनबी चेहरे पर रुकता है। वो बार बार सिर पकड़ कर कहती हैं, "अब हमें कुछ नहीं कहना है. किसी से शिकायत नहीं करनी है. पुलिस से दुश्मनी कौन मोल ले. लाखों का बेटा चला गया. अब कैसी उम्मीद." राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार भारत में पिछले तीन सालों में औसतन हर तीसने दिन एक व्यक्ति की पुलिस के साथ कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मौत होती है. मरने वाले लोगों की सूची में संजीत और गौरव गुप्ता के नाम दर्ज हो गए हैं.आयोग के अनुसार पूरे देश में लगभग एक साल में कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ में लगभग 130 लोग मारे गए हैं. पिछले एक साल में ही कथित फर्ज़ी मुठभेड़ो के सबसे ज्यादा यानि 51 मामले उत्तर प्रदेश से हैं जब कि दूसरे नंबर पर है देश का एक सबसे छोटा राज्य मणिपुर जहां कम से कम 21 मामले दर्ज हुए हैं.चौंकाने वाली बात यह है कि इसी साल सबसे ज़्यादा यानि 74 शौर्य पदक मणिपुर की पुलिस को मिले और इनमें से ज्यादर मुठभेड़ों के लिए मिले जबकि शेष राज्यों की पुलिस को केवल 138 शौर्य पदक मिले.

पुलिस के दावे:-उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक एके जैन स्पेशल टास्क फ़ोर्स में लंबा समय बिता चुके हैं और फ़र्जी मुठभेड़ों के आरोपों का खंडन करते हैं. वो कहते हैं, "जब पुलिसकर्मी मुठभेड़ों में मरते हैं तो कोई यह सवाल नहीं करता. मगर जहां फ़र्ज़ी मुठभेड़ के मामले आते हैं वहां पुलिस कार्यवाई भी करती है और ताकतवर लोग भी उसकी ग़िरफ़्त में आते हैं."जहां तक मणिपुर की बात है वहां के पुलिस महानिदेशक जॉय कुमार कहते हैं, "जो लोग मुठभेड़ो में मरते हैं उनसे हथियार बरामद होते हैं. पुलिस पर फ़र्जी मुठभेड़ का आरोप लगाने वाले लोग पृथक्तावादी संगठनों के समर्थक हैं."

एके जैन

एके जैन कहते है कि मुठभेड़ में पुलिस वाले भी मारे जाते हैं और फर्जी मुठभेड़ के मामले में कार्रवाई की जाती है

23 जुलाई 2009 को संजीत की मौत के बाद से मणिपुर में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला थमा नहीं है. पिछले लगभग तीन महीनों से छात्र संगठनों के आह्वान पर स्कूल कॉलेज बंद हैं. दबाव में मणिपुर सरकार ने न्यायिक जांच के आदेश दिए और एनकाउंटर में शामिल पुलिसकर्मियों को निलंबित किया.लखीमपुर खीरी में पुलिस गौरव गुप्ता को फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मारने के आरोपों का खंडन करती है. उस पर आरोप था कि उसने एक पुलिस अधिकारी की हत्या की थी. लेकिन गौरव गुप्ता के 20 वर्षीय भाई रिक्कू का कहना है कि पुलिस उसी के सामने लखनऊ में गौरव को ग़िरफ्तार कर के ले गई थी. आज वहां कुछ राजनीतिक गुट सच्चाई को सामने लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं.

वजह क्या है?

कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ों की वजह क्या है, क्या सच्चाई है? जवाब इस बात पर निर्भर करता है कि आप कौन से चश्मे से इसे देख रहे हैं. सरकार बढती मुठभेड़ों के बारे में देश में बढ़ती आतंकवादी गतिविधियों की ओर इशारा करती है. लेकिन अगर कथित फर्ज़ी मुठभेड़ों में मरने वालों की पृष्ठभूमि पर नज़र डालें तो ज्यादातर लोग या तो छोटे मोटे अपराधी थे या उनका कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं था.एसआर दारापुरी उत्तर प्रदेश पुलिस में अतिरिक्त महानिदेशक रह चुके हैं और अब मानवाधिकार संगठन पीपल्स यूनियन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स के उपाध्यक्ष हैं. वे कहते हैं, "राजनीति में अपराधी तत्वों का बढता प्रभाव कथित फर्ज़ी मुठभेड़ों के पीछे एक बड़ा कारण है. जो राजनेता सत्ता में हैं उनके लिए काम करने वाले अपराधियों को संरक्षण मिलता है जब कि उनके विरोधियों के लिए काम करने वाले अपराधियों को ख़त्म करने के लिए पुलिस को औजार बनाया जाता है. कई मामलों में पुलिस सत्तारुढ राजनेताओं को ख़ुश करने के लिए, पदोन्नति और शौर्य पदकों के लिए भी ऐसी कार्रवाईयां करती है."मुठभेड़ फर्ज़ी है या नहीं यह साबित करना एक आम आदमी के लिए जिसका रिश्तेदार मारा गया हो वैसा ही है जैसे वो पूरी व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ रहा हो. ग़ैर सरकारी संस्थाओं की मदद से भी यह लड़ाईयां सालों खिंचती हैं.जून 2003 में 19 साल की इशरत जहां और उसके तीन दोस्त गुजरात पुलिस के हाथों मारे गए थे. इस साल गुजरात की ही एक अदालत ने इसे फ़र्जी़ मुठभेड़ करार दिया था. मगर कुछ ही दिनों में ऊपरी अदालत ने इस फ़ैसले पर रोक लगा दी. इशरत जहां की बहन और मां अब सुप्रीम कोर्ट की ओर देख रहे हैं. वो कहते हैं, कि अगर सही तरीके से जांच होगी तो हमें न्याय भी मिलेगा.कई मानवाधिकार कार्यकर्ता और गुजरात के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक रह चुके श्री कुमार मानते हैं कि आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय का एक ऐतिहासिक फ़ैसला फ़र्ज़ी मुठभेड़ की वारदातों में कमी ला सकता है.इस फ़ैसले के मुताबिक किसी भी पुलिस मुठभेड़ के बाद लाज़मी तौर पर इसमें शामिल पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ प्राथमिकी रिपोर्ट दर्ज़ हो. मुठभेड़ फर्ज़ी नहीं थी ये साबित करने का भार भी पुलिस पर हो. हालांकि इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. अब नज़र सुप्रीम कोर्ट पर है.

Thursday, October 22, 2009

सुंदर दिखने के लिए जरूरी है सुंदर सेहत

मॉडलिंग जगत से हिन्दी फिल्मों में प्रवेश करने वाली कोयना मित्रा शुरुआती दौर में 'आइटम गर्ल' के रूप में अपनी पहचान कायम करने में सफल रहीं। मेहनत और लगन के बलबूते उन्होंने बहुत जल्द आइटम गर्ल से अभिनेत्री बनने तक का सफर तय कर लिया। आइए जानते हैं कोयना की फिटनेस के राज-

आउटडोर गेम्स में दिलचस्पी:-''मैं प्रत्येक दिन जिम में लगभग डेढ़ घंटे तक व्यायाम करती हूँ। अगर आउटडोर शूटिंग कर रही होती हूँ तो यह संभव नहीं हो पाता। मेरे लिए फिटनेस बहुत जरूरी है। इसलिए व्यस्तता के बावजूद व्यायाम करने के लिए समय निकालने की पूरी कोशिश करती हूँ। जरूरी नहीं है कि जिम में समय बिताना ही व्यायाम है। मैं टहलना, तैराकी या आउटडोर गेम्स को भी व्यायाम ही मानती हूं। आउटडोर गेम्स में मेरी दिलचस्पी है। मेरी राय में आकर्षक दिखने का एक ही फार्मूला है और वह है,आपकी फिटनेस।''

डांस है बेहतर व्यायाम:-''खुशनसीब हूँ कि मेरे शरीर में वजन बढ़ने की प्रवृत्ति नहीं है। इसलिए अपना सारा ध्यान बॉडी की टोनिंग पर केंद्रित करती हूँ। वेट ट्रेनिंग करती हूँ और कार्डियो कभी-कभी ही करती हूँ। मेरे लिए सर्वोत्तम व्यायाम नृत्य या डांस है। प्रशिक्षित क्लासिकल डांसर होने के कारण मुझे डांस करना बेहद अच्छा लगता है। है।''

संतुलित भोजन का महत्व;-''संतुलित-पोषक भोजन पर ही आपके स्वास्थ्य का दारोमदार निर्भर करता है। मैं अत्यधिक मसालेदार और तैलीय भोजन से जहां तक संभव हो परहेज करती हूँ। जंक फूड्स से तो मैंने पूरी तरह दूरी बना ली है। आपको बता दूं कि मैंने चावल खाना छोड़ दिया है। नियमित समय पर भोजन करना मेरी फिटनेस का मूल मंत्र है। दिन-भर में चार बार आहार ग्रहण करती हूं। रात 8 बजे के बाद कुछ भी खाने से बचती हूँ। इसके अलावा दिन-भर में पर्याप्त मात्रा में पानी पीती हूँ। इससे त्वचा में कांति आती है और शरीर को अतिरिक्त वसा से भी छुटकारा मिलता है।''

Monday, October 19, 2009

हाथ धोने से हर दिन बच सकती है 400 बच्चों की जान

दिल्ली ! बच्चों के विकास और उनके हित के लिए कार्यरत संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनीसेफ ने कहा है कि भारत में डायरिया से प्रतिदिन 1000 बच्चों की मौत हो जाती है। बच्चों में अगर प्रतिदिन साबुन से हाथ धोने की आदत विकसित की जाए तो हर दिन 400 बच्चों की जान बचाई जा सकती है।यूनीसेफ ने गुरुवार को 'ग्लोबल हैंडवॉशिंग डे' पर जारी अपने संदेश में कहा, ''भारत में डायरिया बच्चों का सबसे बड़ा दुश्मन है। इसके कारण प्रतिदिन पांच साल से कम उम्र के 1000 बच्चे अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। हाथ धोने की आदत विकसित होने से इनमें से 40 प्रतिशत की जान बचाई जा सकती है।''यूनिसेफ के मुताबिक पानी के बेहतर रखरखाव से डायरिया के फैलने की संभावना काफी कम हो जाती है। भारत में गरीबी और अज्ञानता के कारण हाथ धोने की आदत विकसित नहीं हो सकी है, जबकि इसे आसानी से सिखाया जा सकता है क्योंकि डायरिया को रोकने का यह सबसे सस्ता और आसान उपाय है।

महिला और हृदय रोग

डॉ.पुरूषोतम लाल
मेट्रो अस्पताल, नोएडा

धमनियों में खून के थक्के यानी कोलैस्ट्रोल का जमाव, जिससे धमनियों के बंदहो जाने के कारण उचित रक्त का संचार नहीं होता है। इससे छाती में दर्द और हार्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती है। सबसे पहले प्रत्येक महिला को अपनी ब्लड कोलैस्ट्रोल और ब्लड प्रेशर की जांच करानी चाहिए।
यह सत्य है कि महिलाओं के लिए हृदय रोग आजकल सबसे ज्यादा खतरनाक बीमारी बनती जा रही है और महिलाएं इस खतरनाक रोग को लेकर सचेत नहीं हैं। यह तथ्यपूर्ण बात है कि अधिकतर महिलाएं जीवन के छठवें दशक (साठ वर्ष) बाद इस रोग से पीड़ित होती हैं। इस रोग को लेकर महिलाओं में व्याप्त गलतफहमियां मात्र रोग के बारे में सही ज्ञान अर्जित करने से ही खत्म हो सकती हैं। यह तभी होगा जब हमें रोग की उचित रोकथाम का ज्ञान हो सके। महिलाओं में इस रोग के लक्षण पुरुषों से भिन्न होते हैं। इन लक्षणों को पहचानने के लिए महिलाओं को इस बात की समझ होनी चाहिए कि यह रोग कितना भी गंभीर क्यों न हो, इससे बचा जा सकता है। हृदय रोग चाहे जैसा भी हो, रोकथाम के लिए लंबे इलाज की आवश्यकता होती है। यह बात आश्चर्यजनक हो सकती है लेकिन सत्य है। दुनिया भर में अधिकतर महिलाओं की मृत्यु और अपंगता हृदय रोग से होती है। प्रतिवर्ष इस रोग से मरने वाली महिलाओं का प्रतिशत पुरुषों की अपेक्षा अधिक होती है। यह बात मेट्रो अस्पताल के प्रबंध निदेशक व पद्म विभूषण, डा.वी.सी.राय अवार्डी डा.पुरुषोत्तम लाल ने बतायी।
हृदय में छेद होने के कारणों में धुम्रपान, उच्च रक्त चाप और कोलैस्ट्रोल प्रमुख हैं जो महिलाएं व पुरुषों पर समान रूप से प्रभाव डालते हैं। लेकिन महिलाएं कुछ विशेष बातों पर ध्यान दें तो वे इस रोग की त्रासदी से बच सकती हैं।
तमहिलाओं में रक्त कोलैस्ट्रोल का स्तर उम्र के साथ बढ़ता है। रजोनिवृत्ति (मासिक धर्म) के बाद इसका खतरा कुछ अधिक बढ़ जाता है। 45 वर्ष के बाद महिलाओं का रक्त चाप (बल्ड प्रैशर) सामान्य लेकिन हमउम्र पुरुषों की अपेक्षा अधिक पाया जाता है।
तसामान्य से अधिक भार और मोटापे का हृदय रोग से संबंध होता है। मोटापे से ग्रस्त महिलाओं की संख्या विभिन्न देशों में बढ़ रही है।
तविशेष तौर पर 35 से 50 की आयु में कम व्यायाम करना इस रोग के कारणों को बढ़ा देता है और शारीरिक निष्क्रियता के कारण स्ट्रोक (हार्ट अटैक) और सी.वी.डी.से मृत्यु की गुंजाइश दोगुनी बढ़ जाती है।
तजवान महिलाएं यदि धूम्रपान करती हैं अथवा ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, रक्त कोलैस्ट्रोल का उच्च स्तर या परिवार में सी.वी.डी. से ग्रस्त होने के का इतिहास या अनुवांशिकता हो तो जवानी में भी इस रोग से ग्रस्त होने की संभावना रहती है।
हृदय रोग से बचाव हेतु महिलाओं के लिए उपाय
उम्र बढ़ने के साथ हार्ट अटैक और स्ट्रोक की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं और विशेष तौर पर रजोनिवृत्ति (मासिक धर्म) के बाद। लेकिन धमनियों में खून के थक्को यानी कोलैस्ट्रोल का जमाव, धमनियों के बंदहो जाने के कारण उचित रक्त चाप संचार नहीं होता है। इससे छाती में दर्द और हार्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती है।
सबसे पहले प्रत्येक महिला को अपनी ब्लड कोलैस्ट्रोल और बल्ड प्रेशर की जांच करानी चाहिए। यह दोनों समस्या जितनी अधिक होंगी, हृदय रोग, सी.वी.डी. और हार्ट अटैक की संभावानाएं भी उतनी ही प्रबल हाेंगी। लिपिड प्रोफाइल के लिए रक्त की जांच 9 से 12 घंटे उपवास रखने के बाद करानी चाहिए, जिससे खून में मौजूद वसा की मात्रा और कोलैस्ट्रोल के स्तर का पता लग जाय। कोलैस्ट्रोल में एल.डी.एल. हो तो वह खतरनाक है, जबकि एच.डी.एल.अच्छा माना जाता है। रोग का ठीक पता रोगी की अन्य जांच या विवरण के बाद ही लग सकता है। जिसमें स्वास्थ्य संबंधी अन्य जानकारी और पारिवारिक हृदय रोग की हिस्ट्री भी जानना भी जरुरी है ताकि रोग का पक्का पता चल सके। डा.लाल के अनुसार जीवनशैली और खानपान में बदलाव लाकर अधिकतर महिलाएं इस ह्दय रोग को पनपने से रोक सकती हैं, यह बदलाव निम् तरीके के हो सकते हैं।
शारीरिक वजन में कमी-
शरीर का अधिक वजन होने से बल्ड प्रेशर, बल्ड कोलैस्ट्रोल और ट्राईग्लिसराइड स्तर पर प्रभाव पड़ता है। इससे टाइप-2 डायबीटिज का खतरा बढ़ जाता है। जिससे शरीर में इंसूलिन भोजन को उर्जा में बदलने में मदद नहीं करता है। टाइप-2 डायबीटिज से हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। इससे पांच सौ कैलोरी प्रतिदिन के हिसाब से (जिससे एक पाउण्ड वजन एक हफ्ते में बढ़ सकता है) हमारी 200 कैलोरी उर्जा व्यायाम से खत्म हो जाती है, जबकि शेष तीन सौ कैलोरी हम भोजन से स्वत: कम कर सकते हैं। अत: संतुलित भोजन और व्यायाम से मोटापा पर अंकुश लगाया जा सकता है।
धूम्रपान से तौबा
धूम्रपान करने वाली महिला में हार्ट अटैक की संभावना धूम्रपान न करने वाली महिला से दोगुना अधिक होती है क्योंकि सिगरेट में मौजूद टौक्सीन धमनियों को सीधा प्रभावित करते हैं। जिससे धमनियाें में रक्त संचार के लिए बाधाएं पैदा हो जाती हैं। धूम्रपान से खून की नलियां चिपचिपी हो जाती हैं, जिससे रक्त संचार में अधिक कठिनाई के कारण स्ट्रोक की संभावना बनी रहती है।
सक्रिय रहें:-
लगभग सप्ताह में प्रत्येक दिन कम से कम 30 मिनट का शारीरिक व्यायाम जरुरी है जो बढ़ रही कैलोरी को नष्ट करने में सहायक है।
वसायुक्त भोजन को त्यागें:-कोलैस्ट्रोल को बढ़ाने वाले वसायुक्त भोजन को बदल कर उसके स्थान पर कम वसा वाले पदार्थ का सेवन करें।
शाकाहार अपनाएं:- अध्ययनों के अनुसार फल और सब्जियों से हृदय रोग और रक्तचाप की समस्या को कम किया जा सकता है।
फाइबर डाइट:-संपूर्ण पोषाहार एलडीएल कोलैस्ट्रोल को कम करने में मदद करता है। अनाज से बने ब्रेड का ही सेवन करें।

Saturday, October 10, 2009

'नॉटी नारीवाद'

जोषिता वत्स
हर जमाने
में नारीवाद का अर्थ स्त्रियों द्वारा अपने अधिकारों के लिए लड़ना रहा है। आज भी नारीवाद इसीलिए है कि स्त्रियाँ अपने परति किए जा रहे अन्याय को नकारें व अपने हक के लिए आवाज उठाएँ, जो कि बिल्कुल उचित भी है। नारीवाद आज भी है, मगर उसका स्वरूप बदला है। पिछले जमाने में नारीवाद का मतलब पुरुषों से चिढ़, शादी से दूरी, बनाव-श्रृंगार से परहेज आदि होता था।
मगर आज की नारीवादी सोच न विवाह के खिलाफ और नही बाह्य सुंदरता के। वे विवाह करेंगी, मगर अपनी आकांक्षाओं का गला नहीं घोटेंगी। वे बनेंगी-सँवरेंगी मगर खुद की खुशी के लिए भी। वे खूबसूरती के बने-बनाए ढर्रे को मानें, यह जरूरी नहीं। वस्त्र भी वे मनचाहे पहनेंगी। वे पुरुषों से चिढ़ने के बजाय स्त्रियों से बहनपा रखने पर खास जोर देंगी और स्त्रियों के शक्ति समूह बनाएँगी। नारीवादी लेखिका 'एली लेवन्सन' ने इन्ही तथ्यों की ओर इंगित करते हुए एक पुस्तक लिखी है और नए जमाने के नारीवाद को 'नॉटी-नारीवाद' का नाम दिया है। ऐली लेवन्सन द्वारा लिखी गई पुस्तक 'द नॉटी गर्ल्स गाइड टू फेमिनिज्म' में उन्होंने बड़ी नवीनता के साथ यह बताया है कि कैसे नारीवाद ने इक्कीसवी सदी की लड़कियों के लिए अपने आपको पुन: अविष्कृत किया है। लेखिका का कहना है कि इस दौर की महिलाओं का नारीवाद किसी राजनीतिक विचारधारा पर नहीं खड़ा, बल्कि रोजमर्रा के अनुभवों पर खड़ा है।
नॉटी नारीवादी महिलाएँ जानती हैं कि किसी को जानने के लिए उसके कपड़ों को या रंग को ही देखना काफी नहीं है बल्कि उसका व्यक्तित्व और व्यवहार भी काफी महत्वपूर्ण होते हैं। वहीं से यह तय भी होता है कि आप क्या पहनते हैं।
वे कहती है कि मेरे लिए नारीवाद का अर्थ व्यावहारिक चुनाव से है, जैसे कि यह कि मैं हील पहनूँ या कि सपाट चप्पल यह मेरा चुनाव है। विशेषज्ञों का कहना है कि 2000 से 2009 (शून्य को नॉट भी कहते हैं, अत: इस दशक को नॉटी कहा गया है) की महिलाओं के लिए नारीवाद ने एक नया मोड़ ले लिया है। आज महिलाएँ नारी शक्ति के इस्तेमाल से इतर यह जान गई है कि वे अलग है और इसके बावजूद उन्हें समानता चाहिए। ये जीवन के प्रत्येक आयाम के व्यावहारिक चुनाव पर विश्वास रखती है और अपने नारीत्व को भी आत्मसात करती है। लेवेंसन अपनी किताब में कई उदाहरण पेश करती है और यह समझाने का प्रयास करती हैं कि महिलाओं की आपसी दोस्ती काफी मायने रखती है। पिछले कुछ दशकों में महिलाएँ अपने पति/ प्रेमी की जिंदगियों में इतनी मशगूल हो गई हैं कि वे अपनी महिला मित्रों को भूल सी गई हैं।
वे कहती हैं कि मुझे याद है कि कॉलेज के वक्त जब लड़कियों को कोई ब्वॉयफ्रेंड मिल जाता था या फिर उनकी शादी हो जाती थी तो उनके पुरुष मित्र/ पति के मित्र ही उनके मित्र हो जाया करते थे। सौभाग्य से "नॉटी" की महिलाओं ने महिलाओं की आपस की ताकत और एकता को महसूस करना शुरू किया है। आखिरकार यही एक ऐसी दोस्ती है जिसमें तुम्हें दिखावा नहीं करना होता, सुंदर नहीं बनना होता, अपने आपको बुद्धिमान भी जताना नहीं पड़ता, जैसी आप हैं आप वैसी ही स्वीकारी जाती हैं। यह काफी दुख की बात है कि मुख्यधारा की सिनेमा और टीवी भारत में "बहनआपा" (सिस्टरहुड) का प्रचार नहीं करते बेशक हमारे यहाँ "दिल चाहता है" जैसी फिल्में भी बनी जो 3 लड़कों की दोस्ती के इर्दगिर्द घूमती हैं, वहीं "जाने तू या जाने न" में मिले-जुले लड़का-लड़की वाले किरदार भी हैं, लेकिन अभी भी हमारे पास "सेक्स एंड द सिटी" जैसी फिल्मों का अभाव है। बेशक हकीकत में "बहनआपा क्लब" काफी बढ़ रहे हैं। महिलाएँ आपस में खरीददारी के लिए, बाहर खाना खाने इत्यादि के लिए भी जाती हैं। महिला मित्रों की दोस्ती बढ़े और कम से कम हफ्ते में एक बार वे आपस में जरूर मिलें यह काफी आरामदायक होता है। इसमें हम तनावमुक्त भी होते हैं और कई मुद्दों पर लंबी बात करने के बाद मुझे यह महसूस होता है कि उन मुद्दों पर मेरी समझ व संदर्भ सही हैं या मुझे अपनी राय पर कायम रहना चाहिए और यही नॉटी नारीवाद का सार तत्व भी है।
करिअर का चुनाव व समान अवसर :
लेवेंसन की किताब कहती है कि "नॉटी" लड़कियाँ श्रेष्ठता के खिलाफ नहीं हैं। बिना किसी भेदभाव के नौकरी अच्छे उम्मीदवार को ही मिलनी चाहिए चाहे वो लड़का हो या लड़की, लेकिन फिर भी हमें भेदभाव के खिलाफ बोलते रहना चाहिए। वरिष्ठ वकील सुष्मिता गांगुली कहती हैं कि "नॉटी" महिला होने के नाते मेरा मानना है कि कार्य स्थल ऐसा होना चाहिए जहाँ समान अवसर मिलें। हम चाहते हैं कि औरतों को भी आदमियों जैसे ही अवसर मिलें, जिसमें तनख्वाह व नौकरी की अन्य सुविधाएँ भी शामिल हैं।
लेवेंसन कहती हैं कि "नॉटी" नारीवाद बाह्य सुंदरता की आकांक्षा के साथ भी सही बैठता है। अगर हम मेकअप करना चाहते हैं या फिर आकर्षक कपड़े पहनना चाहते हैं तो इसकी कोई मनाही नहीं है। "नॉटी" नारीवाद इस बात की भी इजाजत देता है कि आप चाहे जैसे कपड़े पहनें, लेकिन इससे खूबसूरती के बने बनाए ढर्रे के लिए कोई जगह नहीं है और यह पहनावा व्यक्तित्व से ऊपर भी नहीं होना चाहिए। प्रियंका गाँधी की छवि "नॉटी" नारीवाद पर एकदम सही बैठती है। वे में कसी हुई टी शर्ट और पैंट में भी उतनी ही फब्ती हैं जितनी कि खादी की साड़ी में। डिजाइनर अनीता डोंगरे कहती हैं कि फैशनेबल होने से ज्यादा इसका अर्थ है कि आप अपने आपको पहचानती हैं और अपनी पहचान पा गई हैं। नॉटी नारीवादी महिलाएँ जानती हैं कि किसी को जानने के लिए उसके कपड़ों को या रंग को ही देखना काफी नहीं है बल्कि उसका व्यक्तित्व और व्यवहार भी काफी महत्वपूर्ण होते हैं। वहीं से यह तय भी होता है कि आप क्या पहनते हैं। नॉटी नारीवाद का अर्थ फैशन की दौड़ नहीं है बल्कि ऐसी महिला की प्रस्तुति है जिससे दुनिया उसे उसके गुणों से पहचाने। लेवेंसन कहती हैं कि परंपरागत रूप से नारीवाद और विवाह को एक साथ नहीं देखा जाता है। लेकिन आज विवाह करना नारीवाद के खिलाफ नहीं। आप सोचें कि इस लंबी जिंदगी को किसी और के साथ सांझी करके और खूबसूरत बनाया जा सकता है। लेकिन अगर महिलाएँ उनको दी गई उनकी ऐतिहासिक भूमिकाएँ जैसे "बीवी व माँ बनना" नहीं भी निभातीं तो भी इस नारीवाद को कोई आपत्ति नहीं है। मगर यह भी कि विवाह के लिए अपनी आकांक्षाओं का गला न घोंटें। नॉटी नारीवाद के तहत यह अवसर भी है कि आप विवाह का फैसला न करके अकेले जिंदगी जी सकती हैं और चाहें तो एकल माँ भी बन सकती हैं। यह नारीवादी अपनी इच्छाओं-आकांक्षाओं के पर्व का ही नाम है।

महिलाएँ ऐसे करें अपनी सुरक्षा

रजनी त्यागी
दिन हो
या रात, घर में हो या रास्ते में आज के समय में आपको अपनी सुरक्षा के प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता है। चोर और लुटेरों की नजर आप पर, कहीं भी हो सकती है। उन्हें बस मौका मिलने की देर है। फिर वे आपका कीमती सामान और पैसा लेकर गायब हो सकते हैं।

चाहे मंदिर जा रही हों, बाजार में हों या किसी विवाह समारोह में, महिलाओं के गले से चेन खींचने की घटनाएँ तो आजकल आम हो गई हैं। ऐसे समय में यदि आप कुछ बिंदुओं पर यदि सावधानी रखें तो अपनी सुरक्षा को लेकर आश्वस्त हो सकती हैं। आइए जानें क्या हैं ये सावधानियाँ।
रात के समय सुनसान रास्तों में अकेली ना जाएँ। चाहे आप कितनी ही आत्मविश्वासी हों या हिम्मती हों, आपातकाल के अलावा अकेली जाने से बचें। आपातकाल में भी कोशिश करें कि आप साथ में किसी को ले लें। न तो शॉर्ट कट के चक्कर में, न ही इस भुलावे में कि ये तो रोज का रास्ता है, सुनसान रास्ते का चयन करें। किसी अजनबी व्यक्ति से लिफ्ट न लें और न ही दें। खासतौर पर चार पहिया वाहन चालक से लिफ्ट लेने से बचें। यदि आपके पास वाहन नहीं है तो कोई भी सार्वजनिक परिवहन सुविधा ही सबसे बेहतर उपाय है। यदि ऑटो या टैक्सी करने की जरूरत पड़े तो भी थोड़ी सजग रहें। जहाँ तक बात लिफ्ट देने की है, चाहे महिला हों या पुरुष, लिफ्ट देने से बचें।
अधिक कीमती जेवरात पहनकर घर से बाहर ना जाएँ। सामान्य जेवर जैसे मंगलसूत्र, चेन आदि पहनकर भी यदि बाहर जाएँ तो उन्हें साड़ी के पल्लू या दुपट्टे से छुपाकर रखें। इसी तरह घर में भी ज्यादा जेवर न रखें, उनके लिए बैंक का लॉकर सबसे सुरक्षित जगह है। किसी भी अवसर पर सफर में भी ज्यादा जेवर साथ न रखें। अगर रखें हैं भी तो उनका बखान न करें और सतर्कता रखें। यदि बैग लिए हैं तो उसे कंधे पर लटकाकर रखें, हाथ में झुलाकर न चलें। इससे आपके दोनों हाथ भी स्वतंत्र रहेंगे। कार्यालय से संभव हो सके तो रात होने के पहले ही निकल जाएँ। यदि किसी जरूरी मीटिंग में देर हो भी गई हो तो समूह में ही एक साथ घर के लिए निकलें। वैसे आजकल लेट अवर्स में काम करने वालों को ऑफिस द्वारा घर तक छुड़वाने की व्यवस्था भी होती है। आभूषणों की सफाई सुनार के पास ही करवाएँ, बजाय घर पर आए किसी अजनबी से करवाने के। बैंक या किसी अन्य समय किसी अजनबी व्यक्ति को नोट गिनने को न दें। बैंक जाते समय इस बात का ढिंढोरा नहीं पीटें। न ही बैंक में किसी अजनबी को नोट गिनने के लिए दें। इस काम में बैंककर्मी आपकी सहायता कर सकते हैं। बुजुर्ग अपने साथ बैंक जाते समय किसी को जरूर रखें। यदि आपको ऐसा लगता है कि रास्ते में कोई आपकी गाड़ी का पीछा कर रहा है तो आगे ना जाएँ, कहीं रुक जाएँ और किसी पर आपको संदेह हो तो मदद लेने से नहीं हिचकें।सफर में किसी से ज्यादा प्रगाढ़ मित्रता न करें न ही हर अजनबी द्वारा दी गई चीज़ खाएँ।

Saturday, September 26, 2009

शारीरिक दर्द को गंभीरता से लें


डॉ दिनेश समूझ
फिजियोथेरेपिस्ट एवं पोस्चर स्पेशलिस्ट मेट्रो हॉस्पिटल, नोएडा

बढती व्यस्तताओं, प्रतिस्पर्धा और भागदौड से भरे जीवन में खासतौर पर दफ्तरो में काम करने वाले लोगों में कमर दर्द, पीठ दर्द, हाथ- पैर में अकडन तथा मांसपेशियों में खिचाव व दर्द जैसी समस्याएं बढती जा रही हैं। यह एक गंभीर स्थिति है और इसकी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए।
कारण
इन सभी समस्याओं के लिए रोजमर्रा के कार्य व्यवहार की छोटी-मोटी चीजें जिम्मेवार हैं जिनपर हम आम तौर पर ध्यान नहीं देते। जैसे-
घर और कार्यालय में गलत ढंग से बैठना।
भागदौड से भारी बेहद तनाव जीवनशैली।
ऐसे फर्नीचरो का उपयोग जिनके निर्माण में किसी भी मानक का पालन नहीं किया गया हो।
कार्यालयों मे काम की जगहो पर और घरो में खुली जगहों का अभाव।
व्यवस्थित तरीके से काम को नहीं करने की बुरी आदत।
तंग कपडाे व गलत तरीके के जूताें का इस्तेमाल।
अव्यवस्थित खान-पान।
कई बार ऐसा होता है कि कई जगहों पर दर्द महीनों बना रहता है, और हम उनकी उपेक्षा करते रहते हैं।
समस्याएं यहीं से शुरू होती हैं। किसी भी प्रकार के शारीरिक दर्द का लंबे समय तक बने रहना, अपने आप में एक बीमारी है और इसकी उपेक्षा भविष्य में किसी रूप में खतरनाक हो सकती है।
उदाहरण के तौर पर
गलत तरीके से बैठने पर गर्दन, कमर और घुटने में दर्द की शिकायत।
गलत तरीके से बैठने से ही पैरों में दर्द की शिकायत होती है।
अव्यवस्थित दिनचर्या और खानपान में लापरवाही करने से अन्य शारीरिक परेशानियां हो सकती हैं।
उपचार
इस प्रकार की समस्याओं को गंभीरता से लेते हुए किसी अच्छे फिजियोथेरेपिस्ट से तुरंत मिलें। अपनी समस्याओं के कारणों को जानने का प्रयास करें और समय पर निवारण करें। किसी एक आउटडोर खेल को अपनाएं। धूम्रपान व मदिरापान से बचें। शाकाहारी भोजन को प्राथमिकता दें। पानी अधिक पिएं।
कुछ सरल व्यायाम
गर्दन का व्यायाम,

गर्दन को दाएं से बाएं घुमाएं।
इस प्रक्रि या को फिर दुहराएं।
कंधो को उपर-नीचे करें।
दोनो हाथों को सिर के पीछे रखकर गर्दन को आगे-पीछे करें।
कमर का व्यायाम
एक ही स्थान पर खडे रहकर कमर को दाएं- बाएं घुमाएं।
इसी स्थिति में दोनों हाथों को सीधा रखते हुए शरीर को दाएं से बाएं घुमाएं।
हाथो के व्यायाम
किसी गेंद को दबाएं।
मुट्ठी को बार-बार खोलें व बंद करे।
पैरों के व्यायाम
पैरों को उपर-नीचे करें।
पंजो के बल थोडी देर खडे रहने की कोशिश करें।
घुटनो को उपर-नीचे करे।
कार्य स्थल के उपाय
कुर्सी पर सही तरीके से बैठें, कुर्सी पर बैठते समय यह ध्यान दें कि लगातार सहारा मिलता रहे।
लिखने के लिए सही ऊंचाई की कुर्सी-मेज का इस्तेमाल करें। मेज के ऊपर किसी-किसी अतिरिक्त ऊंचाई वाले बोर्ड का प्रयोग खतरनाक हो सकता है।
लिखते समय मेज और कुर्सी की दूरी का सामंजस्य सही होना चाहिए। लिखते समय दोनाें हाथों की कुहनियां मेज पर होनी चाहिए।
मेज पर लिखने के लिए पर्याप्त जगह होनी चाहिए।
कुर्सी पर बैठते समय ध्यान रखें कि घुटने कीलम्बाई कुल्हे से अधिक होनी चाहिए।
कंप्यूटर पर कार्य करते समय ध्यान रखें कि मॉनिटर की ऊंचाई सही हो, की-बोर्ड की स्थिति सही हो, माउस की स्थिति सही हो और कंप्यूटर शरीर से यथोचित दूरी पर हो।
कुर्सी पर बैठकर लगातार काम न करें बल्कि थोडी-थोडी देर में उठकर टहल लें।
मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए आराम बेहद जरूरी है।
व्यायाम से हमारे शरीर को स्फूर्ति मिलती है। खेल भी स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। लेकिन अधिक परेशानी होने पर डॉक्टर की सलाह लें।

तनाव और हृदय रोग



डॉ.पुरूषोतम लाल

तनाव कम होने पर किसी भी गंभीर रोग का खतरा भी कम हो जाता है। अनियमित व अंसतुलित खान-पान से और शारीरिक निष्क्रियता के कारण भी तनाव बढ़ जाता है। उचित खानपान (डाइट) की कमी के कारण शरीर में उन तत्वों की कमी हो जाती है जो कि सेहत के लिए अत्यंत ही आवश्यक होते हैं। घूमने-फिरने या हल्का व्यायाम करने से शरीर और जोड़ों में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है जिससे तनाव बढ़ जाता है। षोषक तत्वों से भरपूर और नियम के अनुसार खानपान करना समस्या को कम करने के लिए पर्याप्त है।
क्या तनाव वास्तव में हृदय रोग का कारण है?
आज की आपाधापी और तेज जीवन शैली के चलते लोगों में तनाव से संबंधित रोगों में निरंतर वृद्धि हो रही है। प्राथमिक तौर पर कार्य के अधिक दबाव और अन्य समस्याओं के कारण जनसंख्या का बड़ा हिस्सा तनाव का शिकार बनता जा रहा है। यद्यपि तनाव और चिंता मुक्ति के लिए अधिकतर लोग अपने खान-पान, फिटनेस और ध्यान पर भी जोर दे रहे हैं लेकिन यह सोचना है कि वृद्ध समेत जवान पीढ़ी भी आखिर क्यों दिन-प्रतिदिन तनाव से संबंधित समस्याओं से ग्रस्त होते जा रहे हैं? मैट्रो अस्पताल और हार्ट इंस्टीटयूट के प्रबंध निदेशक पद्म भूषण व डा.वी.सी.राय पुरस्कार प्राप्त डा.पुरूषोतम लाल का कहना है कि तनाव से हृदय रोग बढ़ने का खतरा होता है। एलिवेशन और कैटिकोलएमनीस (एपिनेफरिन और नोर एपिनेफरिन) जैसे हार्मोन्स अप्रत्यक्ष रूप से हमारे रक्तचाप बढ़ाने में सहयोग करते हैं और अनिमियत खानपान की आदत और साथ में धूम्रपान से इसका खतरा और भी ज्यादा बढ़ जाता है। यह चितंनीय सवाल है कि तनाव हमारे कोर्डियोवास्कुलर प्रणाली को किस तरह सीधा प्रभाव डालता है। यह वर्षों से चला आ रहा सामान्य ज्ञान है कि जो लोग तनाव से अधिक ग्रस्त होते हैं, उनमें स्वत: ही हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है। लेकिन क्या यह बात सही है? यदि सच है तो किस तरह के तनाव से हृदय रोग बढ़ सकते हैं और कैसे? इसके उपाय के लिए क्या किया जा सकता है?
किस तरह के तनाव की बात?
जब लोग तनाव के लिए कहते हैं तो वे दो अलग-अलग चीजों के बारे में बात कर सकते हैं:-शारीरिक तनाव व भावनात्मक तनाव। तनाव व हृदय रोग के बारे में उपलब्ध अधिकतर चिकित्सा साहित्य शारीरिक तनाव पर आधारित है लेकिन अधिकतर लोग इसे भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ मानते हैं।
शारीरिक तनाव:-व्यायाम और अन्य बाहरी शारीरिक क्रियाएं हमारे हृदय के लिए आवश्यक होती हैं। यह तनाव आमतौर पर अच्छी मानी जाती है,लेकिन यह तथ्य पूर्ण है कि शारीरिक तनाव की कमी का अभाव कोरोनरी आर्टरी रोग का बड़ा कारण होता है। इसीलिए इस तरह के तनाव प्राय: स्वास्थ्य के लिए अच्छे माने जाते हैं और लंबे समय तक हृदय सामान्य रहता है। अत्यधिक शारीरिक तनाव हृदय के लिए घातक हो सकता है, यदि कोई व्यक्ति कोरनरी आर्टरी की बीमारी से पीड़ित हो। उसके लिए अत्यधिक कसरत हानिकारक हो सकती है।
इस्कैमिक से हुई हार्ट मसल्स के कारण एनजीना (छाती में दर्द) अथवा हार्ट अटैक हो सकता है। अत: शारीरिक तनाव स्वास्थ्य के लिए सामान्यत: अच्छा होता है और जब तक आदमी हृदय रोग रहित रहे तब तक यह फायदेमंद होता है। लेकिन गलत तरीके से या अत्यधिक कसरत कुछ प्रकार के हृदय रोगों के लिए ज्यादा नुकसानदेह हो सकते हैं, लेकिन शारीरिक तनाव ह्दय रोग का कारण नहीं होता है।
भावनात्मक तनाव:-इस तनाव को प्राय: हृदय रोग का कारण माना जा सकता है। व्यक्तिगत समस्याएं, कार्य की अधिकता, दबाव, शराब का सेवन और रात को घंटों बाहर रहना आदि कारण से यह होता है। प्रत्येक व्यक्ति यहां तक कि एक चिकित्सक भी इस समस्या से ग्रस्त हो सकता है। इस तरह की तनाव ह्दय रोग का कारण हो सकती है।
इस बात के पर्याप्त प्रमाण पाए जाते हैं कि क्रोनिक इमोशनल स्ट्रेस का संबंध हृदय रोग और अल्पमृत्यु से जुड़ा हुआ है। कई अध्ययनों से पता चला है कि एक व्यक्ति जो शादीशुदा नहीं है, वह शादीशुदा पुरुष की तुलना में कम जीता है और साफ शब्दों में कहा जाए कि उसकी मृत्यु जल्दी हो जाती है। इस बात पर आम सहमति है कि पति-पत्नी के बीच भावनात्मक स्तर चरम पर होता है, जिसका प्रत्यक्ष लाभ मिलता है। अन्य अध्ययनों से मालूम होता है कि जिनके जीवन में कोई बड़ा बदलाव आया हो, जैसे कि पत्नी या किसी करीबी रिस्तेदार की मौत होना, नौकरी छूटना या किसी नई जिम्मेदारी आदि कारणों से मरने वालों का औसत अधिक होता है। जो व्यक्ति अधिक या शीघ्र गुस्से की प्रवृति के होते हैं,उनमें हृदय रोग अधिक पाया जाता है।
भावनात्मक तनाव हृदय रोग का कारण
जो लोग अधिकतर तनावपूर्ण माहौल में रहते हैं उन्हें धूम्रपान अथवा असंतुलित जीवन बिताने की आदत पड़ जाती है और वैसे व्यक्ति ज्यादातर बैठे रहते हैं। ऐसे व्यक्ति बहुत ही कम व्यायाम करते हैं। हृदय रोग ज्यादातर इन्हीं लोगों को होता है। यहां पर साफ शब्दों में कहा जाए कि ऐसे लोगों को ह्दय रोग जल्द जकड़ लेता है जो तनावपूर्ण माहौल में रहते हैं और व्यायाम के नाम पर कुछ नहीं करते हैं। यहीं इनके लिए घातक सिध्द होता है। इन व्यक्तियों में ट्राईग्लेस्राइड्स की मात्रा ज्यादा पाई जाती है जोकि महत्वपूर्ण कारण है हार्ट अटैक का। भावनात्मक तनाव से शरीर में एड्रिनेलिन पैदा होती है जोकि खून को शीघ्र जमा देती है और ऐसे व्यक्तियों में ह्दय रोग की संभावना ज्यादा होती है।
वैज्ञानिक तौर से स्ट्रेस मैनेजमेंट तकनीक को समझने या सीखने से हमें हृदय मामलों में रोगों के जोखिमों को कम करने में साहयता मिल सकती है। स्ट्रेस मैनेजमेंट से हमें इन खतरों से दूर होने का फायदा मिलता है। इससे हृदय रोग में सुधार और जोखिम तत्वों को कम किया जा सकता है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि व्यायाम करना हृदय रोग को कम करने का सबसे अच्छा उपाय है। जिससे ह्दय संबंधी रोगों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। डा.लाल के अनुसार तनाव कम होने पर किसी भी गंभीर रोग का खतरा भी कम हो जाता है। अनियमित व अंसतुलित खान-पान से और शारीरिक निष्क्रियता के कारण भी तनाव बढ़ जाता है। उचित खानपान (डाइट) की कमी के कारण शरीर में उन तत्वों की कमी हो जाती है जोकि सेहत के लिए अत्यंत ही आवश्यक होते हैं। घूमने-फिरने या हल्का व्यायाम करने से शरीर और जोड़ों में रक्त का प्रवाह कम हो पाता है। जिससे तनाव बढ़ जाता है। षोषक तत्वों से भरपूर और नियम के अनुसार खानपान करना समस्या को कम करने के लिए प्रर्याप्त है। शारीरिक व्यायाम में संतुलित दिनचर्या का होना आवश्यक है। अत: कार्य कीजिए लेकिन घर-परिवार और दोस्तों के लिए वक्त अवश्य निकालें, साथ ही जीवन में मनोरंजन और हंसी-खुशी के लिए वक्त निकालना चाहिए ताकि जीवन तनाव से मुक्त (स्ट्रेसलैस) हो सके।

Monday, August 17, 2009

कैसे रचा गया झंडा गीत


झंडा गीत को 1938 के कांग्रेस अधिवेशन में स्वीकार किया गया था। इस गीत की रचना करने वाले श्यामलाल गुप्त पार्षद कानपुर में नरवल के रहने वाले थे। उनका जन्म 16 सितंबर 1893 में वैश्य परिवार में हुआ था। गरीबी में भी उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की थी। उनमें देशभक्ति का जज्बा था, जिसे वह अपनी कविताओं में व्यक्त करते थे। कांग्रेस का सक्रिय कार्यकर्ता रहने के बाद वह 1923 में फतेहपुर के जिला कांग्रेस अध्यक्ष बने। वह सचिव नाम का अखबार भी निकालते थे।जब यह लगभग तय हो गया था कि अब आजादी मिलने ही वाली है, उस वक्त कांग्रेस ने देश के झंडे (तिरंगा) का चयन कर लिया था। लेकिन एक झंडा गीत की जरूरत महसूस की जा रही थी।इधर, गणेश शंकर विद्यार्थी पार्षद जी के काव्य कौशल के कायल थे। विद्यार्थी जी ने पार्षद जी से झंडा गीत लिखने का अनुरोध किया। पार्षद जी कई दिनों तक कोशिश करते रहे, पर वह झंडा गीत नहीं लिख पाए। जब विद्यार्थीजी ने पार्षदजी से साफ-साफ कह दिया कि मुझे हर हाल में कल सुबह तक झंडा गीत चाहिए, तो वह रात में कागज कलम लेकर बैठ गए। आधी रात तक उन्होंने झंडे पर एक गीत तो लिखा, लेकिन वह उन्हें जमा नहीं। निराश होकर दो बजे जब वह सोने के लिए लेटे, अचानक उनके भीतर भाव उमडने लगे। वह उठकर लिखने बैठ गए। पार्षद जी को लगा जैसे कि कलम अपने आप चल रही हो और भारत माता उनसे गीत लिखा रही हों। यह गीत था- विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा। यह गीत लिखकर उन्हें बहुत संतोष मिला। सुबह होते ही पार्षद जी ने यह गीत विद्यार्थी जी को भेज दिया, जो उन्हें बहुत पसंद आया। जब यह गीत महात्मा गांधी के पास गया, तो उन्होंने गीत को छोटा करने को कहा। आखिर में, 1938 में कांग्रेस के अधिवेशन में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने इसे देश के झंडा गीत की स्वीकृति दे दी। यह हरिपुरा का ऐतिहासिक अधिवेशन था। नेताजी ने झंडारोहण किया और वहां मौजूद करीब पांच हजार लोगों ने झंडागीत को एक सुर में गाया।

प्रताड़ित पतियों का शिमला घोषणापत्र

शिमला। पत्नियों के सताए पतियों ने प्रण लिया है कि अब वे किसी भी पुरुष को प्रताड़ित नहीं होने देंगे। सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन के बैनर तले एकजुट हुए प्रताड़ित पतियों ने 'शिमला घोषणापत्र' जारी किया है। मांग की है कि पत्नी द्वारा पति की प्रताड़ना रोकने के लिए अलग से पुरुष कल्याण मंत्रालय खोला जाए।उल्लेखनीय है कि पत्नी द्वारा कानून की धाराओं का दुरुपयोग कर जो जुल्म पति और उसके परिजनों के साथ किए जाते हैं, उससे कई हंसते-खेलते परिवार खत्म हो गए हैं। पतियों के साथ हो रहे अन्याय पर चर्चा के लिए शिमला में देशभर से लोग जुटे थे। दो दिन की चर्चा के बाद उक्त घोषणा पत्र जारी किया गया है। इसमें मांग की गई है कि पत्नियों द्वारा दहेज उत्पीड़न के नाम पर मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने और घरेलू हिंसा के मामलों के तहत दर्ज होने वाले मुकदमों को जमानती बनाया जाए। इसके लिए एक राष्ट्रस्तरीय कमेटी का गठन भी किया जाए। क्योंकि पतियों और उनके परिवार के खिलाफ दहेज प्रताड़ना के 98 फीसदी मामले झूठे पाए गए हैं। घोषणा पत्र में महिलाओं की तर्ज पर राष्ट्रीय पुरुष आयोग के गठन की भी मांग की गई है।स्वतंत्रता दिवस पर फाउंडेशन द्वारा आयोजित सेव इंडियन फेमिली के दूसरे राष्ट्रीय सम्मेलन में संस्था के 21 राज्यों से करीब 150 प्रतिनिधियों ने दो दिन चर्चा की। कानून की किन धाराओं का लाभ उठा कर पत्नियां पतियों को प्रताड़ित करती हैं उन पर भी चर्चा हुई। वक्ताओं ने बताया कि राष्ट्रीय अपराध अन्वेषण ब्यूरो के 2006 के आंकड़ों के मुताबिक देश में 100 में से आत्महत्या करने वाले 63 पुरुषों में से 45 फीसदी शादीशुदा होते हैं। जबकि 100 में से 37 महिलाएं आत्महत्या करती हैं। इनमें से मात्र 25 फीसदी ही शादीशुदा होती हैं। महिलाएं आत्महत्या करें तो उसे दहेज प्रताड़ना व घरेलू हिंसा कहा जाता है, लेकिन जब पुरुष आत्महत्या करे तो कारण तनाव व अन्य बताए जाते हैं।

स्लमडाग कलाकार गढ़ने की खामोश मुहिम


नई दिल्ली [निर्मेश त्यागी ]। एक खामोश मुहिम में जुटी हैं दिल्ली की संगीता अग्रवाल। हर सुबह उनको फिक्र रहती है एक ऐसे तबके के बच्चों की, जो आजादी के छह दशक बाद भी उपेक्षित है। इन बच्चों को वह पढ़ना-लिखना तो सिखाती ही हैं। साथ में बेकार घरेलू सामग्रियों को कलाकृतियों की शक्ल देने के गुर भी बताती हैं।हर पल कुछ अलग कर गुजरने की उमंग लिए 35 वर्षीय संगीता अग्रवाल रोजाना सुबह में ही निकल पड़ती हैं राजधानी दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए, उनमें एक नन्हा कलाकार गढ़ने के लिए।संगीता कहती हैं कि आजादी के 62 साल बाद भी देश में एक वर्ग उन बच्चों का है, जिन्हें कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। उनकी जिंदगी सड़क पर भीख मागते, कूड़ा बीनते व ढाबे पर नौकरी करते हुए गुजर रही है। ऐसे बच्चों को स्वयं की पहचान कराने और हकीकत के धरातल पर लाने का सही वक्तआ चुके है।इसी सपने को साकार करने के लिए संगीता बच्चों को उन सामग्रियों के सदुपयोग का सलीका सिखाती हैं, जिन्हें अनुपयोगी समझकर कचरे में फेंक दिया जाता है।दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट संगीता के लिए आर्थिक रूप से पिछड़े बच्चों को पढ़ाने-सिखाने की शुरुआत करना आसान नहीं था। उन्हें शुरू में काफी परेशानिया आईं। पुनर्वासित कालोनियों में लोग इनके पास बच्चों को भेजने से कतराते थे। इसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और कोशिश करती रहीं। इस दौरान अपने उद्देश्य में आड़े आने वाली पब्लिक रिलेशन व एडवरटाइजिंग की नौकरी को भी छोड़ दिया।

न सर्दी की परवाह, न गर्मी की फिक्र। अपनी मुहिम में वह अब तक आठ सौ बच्चों को जोड़ चुकी हैं। राजधानी के हर क्षेत्र में घूम चुकीं संगीता अब एनसीआर व महाराष्ट्र के बच्चों को इस कला से जोड़ना चाहती हैं।संगीता का कहना है कि उन्हें बर्बादी पंसद नहीं। वह भी ऐसी चीजों की, जिनका इस्तेमाल हम रोजमर्रा की जिंदगी में करते हैं। लोग प्रयोग के बाद इन चीजों को खुलेआम सड़कों, पार्क और सार्वजनिक स्थानों पर फेंककर गंदगी भी फैलाते हैं।उन्होंने बच्चों को थर्मोकोल, कार्ड बोर्ड, प्लास्टिक ग्लास, प्लेट, कप, कंप्यूटर की खराब सीडी, यहा तक कि शादी कार्डो तक के प्रयोग से नई चीजें बनाना सिखाया है। बच्चों ने भी बड़े चाव से कलात्मक वस्तुओं के निर्माण के साथ भविष्य में हर चीज का सदुपयोग करना सीखा है। इससे वह काफी खुश हैं।उन्होंने आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को साक्षर करने के साथ उन्हें ग्लास पेंटिंग, शिल्पकार कृति, कंचे, शीशे की बोतल व आयल पेस्टल पेटिंग भी सिखायी है।संगीता ने बताया कि इन बच्चों में सीखने का उत्साह इतना ज्यादा है कि वे उनकी हर कक्षा में उपस्थित रहते हैं। कक्षा लगने की जगह न होने के कारण वह पार्क, सामुदायिक भवन में ही बच्चों को सिखाती हैं।

Thursday, August 6, 2009

अनूठी मिसाल;शौर्य और सुंदरता की


स्त्रियों में सुंदरता और बुद्धिमता के एक साथ होने की कहानी अब पुरानी हो गई है। यह कहानी एक ऐसी स्त्री की है जो सौंदर्य और शौर्य की एक अद्भुत मिसाल है। इंग्लैंड की 21 वर्षीय महिला सैनिक कैटरीना हॉज ने मिस इंग्लैंड प्रतियोगिता के फाइनल में पहुँचकर सब को चौंका दिया है।
उल्लेखनीय है कि हॉज ने इराक में एक संदिग्ध इराकी चरमपंथी का साहसपूर्ण मुकाबला कर अपने दस्ते के कई सैनिकों की जान बचाई थी। वर्ष 2005 में उन्हें इस बहादुरी के बाद 'कॉम्बैट बार्बी' के नाम से जाना जाने लगा था। यदि हॉज यह प्रतियागिता जीत लेती हैं तो वह वर्ष 2008 की विश्व सुंदरी प्रतियोगिता में इंग्लैंड का प्रतिनिधित्व करेंगी। वे मिस टनब्रिज वेल्स क्राउन पहले ही जीत चुकी हैं। उन्होंने कहा कि मुझे मिस इंग्लैंड के फाइनल में पहुँचकर काफी खुशी हो रही है। मेरे लिए यह एक प्रतिष्ठा की बात है।
पार्ट-टाइम मॉडल : इराक में जब हॉज का वाहन उलट गया था तब एक इराकी विद्रोही ने बंदूक की नोक पर उनके दस्ते को बंधक बना लिया, लेकिन कारपोरल कैटरिना हॉज ने उस चरमपंथी पर घूँसे से वार करते हुए उससे बंदूक छीन ली थी। उन्होंने कहा कि दुर्घटना की वजह से हमारा वाहन तीन बार पलटा था और हम किसी भी सुरक्षा के लिए तैयार नहीं थे। जैसे ही हमने इधर-उधर देखा तो पाया कि इराकी चरमपंथी बंदूक लेकर खड़ा है। मैं समझ गई कि यदि मैंने जल्दी कोई कार्रवाई नहीं की तो जीवन खतरे में है। उन्होंने कहा कि पार्ट टाइम मॉडल और एक सैनिक की दुनिया काफी अलग है। सेना जो काम कर रही है और इस देश के लिए किया है, उसे मैं इस प्रतियागित के जरिये सबके सामने लाना चाहती हूँ। वर्तमान में हॉज इंग्लैंड के कैंबरले स्थित फर्मली पार्क अस्पताल में काम कर रही हैं और वह एक पार्ट टाइम मॉडल भी हैं। शुक्रवार को मिस इंग्लैंड फाइनल प्रतियागिता होना है।

Wednesday, August 5, 2009

आज भी स्त्री के अस्तित्व को देह के इर्द-गिर्द ही देखते हैं

इज्जत का अर्थ यौन शुचिता ही क्यों?
स्त्रियों के दिमाग में कूट-कूटकर यह बात भरी हुई है कि जबर्दस्ती वाले यौन समागम से भी वे अपवित्र हो जाती हैं। दूषित हो जाती हैं! शायद इसी मानसिकता के चलते बलात्कार के पर्यायवाची शब्दों में इज्जत, अस्मत जैसे शब्द आते हैं। बलात्कार होने पर इज्जत लुट गई, अस्मत लुट गई, सब कुछ चला गया, किसी को मुँह दिखाने काबिल नहीं रही, आँख मिलाने लायक नहीं रही, मुँह पर कालिख पुत गई वगैरह।
समझ नहीं आता कि जिसने कुछ गलत नहीं किया उसकी 'इज्जत' क्यों गई? उसे शर्म क्यों आई? ठीक है, एक हादसा था। जैसे दुनिया में अन्य हादसे होते हैं और समय के साथ चोट भरती है वैसी ही यह बात होनी चाहिए। मगर नहीं होती। सिर्फ और सिर्फ औरत के लिए ही यौन शुचिता के आग्रह के चलते हम घटना को कलंक बनाकर शिकार के माथे पर सदा-सर्वदा के लिए थोप देते हैं।
स्त्री का तथाकथित दंभ तोड़ने के लिए भी बलात्कार किया जाता है। प्रताड़ना करने हेतु आज भी गाँवों में स्त्री को निर्वस्त्र करके घुमाया जाता है। क्षेत्रीय अखबारों में इस तरह की आँचलिक खबरें अक्सर आती हैं। क्योंकि कहीं न कहीं हम स्त्री के अस्तित्व को देह के इर्द-गिर्द ही देखते हैं। गाँवों में महिला सरपंचों तक के साथ ऐसी घटनाएँ हुई हैं, जहाँ पुरुषों की अकड़ के आगे स्त्री को पदावनत करने का और कोई उपाय नजर नहीं आया तो यह किया। इसी तरह सती की अवधारणा है। जिसका ताल्लुक स्त्री की यौनिक पवित्रता से है। एक पुरुष के सिवा किसी की न होना तो उसकी एक अभिव्यक्ति भर है। यह ठीक है कि इस अभिव्यक्ति के लिए अब स्त्रियाँ पति की चिता के साथ नहीं जलाई जातीं (कभी-कभी जला भी दी जाती हैं) परंतु भारतीय समाज में सती की अवधारणा अब भी बेहद महिमा मंडित है।
जगह-जगह 'सती माता' के मंदिर हैं। शहरों में रानी सती जैसे नामों की कॉलोनियाँ, मोहल्ले हैं। सती सेल्स जैसी बिजनेस फर्म्स भी काफी हैं। सती माता के श्रद्धालुओं और भक्तों की काफी तादाद है। इस तरह की कथा-वार्ताओं पर औरतें अब भी मत्था टेकती हैं जिनमें यह जिक्र आता है कि फलाँ औरत इतनी बड़ी सती थी कि अपने बीमार पति को कंधे पर बैठाकर वेश्या के यहाँ ले गई। स्त्री और पुरुष के लिए दोहरे मापदंडों की पराकाष्ठा इन उदाहरणों में झलक जाती है।
औरत के चरित्र को दैहिकता से जोड़े रखने की सामाजिक वजहें बहुत सीधी-साधी नहीं, काफी गहरी और जटिल रही हैं। उनको समझे बगैर इस बात को नहीं समझा जा सकता कि क्यों दैहिक आचरण को ही हमने स्त्री के चरित्र का सबसे बड़ा और कभी-कभी तो एकमात्र पैमाना मान लिया है। दरअसल दुनियाभर में औरतों की वर्जिनिटी और यौन शुचिता एक खब्त रही है। स्त्री की यौनाकांक्षाओं को कुचलने के भी हर संस्कृति के अपने-अपने बहाने रहे हैं। किसी ने वंश की शुद्धता का बहाना बनाया तो किसी ने व्यभिचार रोकने का, पर फल वही निकला स्त्री की अग्निपरीक्षा! अलग-अलग तरीकों से। स्त्री पर दबाव अपने 'स्वामी' के लिए पवित्र बने रहने का। योरपीय सामंतों में, जो कि बहुधा युवा स्त्री के बूढ़े पति होते थे, चेस्टिटी बेल्ट चलते थे। यानी लिटरली स्त्री को मेटल अंडरगारमेंट पहनाकर पुरुष चाबी अपने साथ ले जाएँ। वक्त के साथ पश्चिमी संस्कृति में यह बदला, लेकिन शायद लोगों को ध्यान हो लेडी डायना को प्रिंस चार्ल्स से विवाह के पूर्व वर्जिनिटी टेस्ट करवाना पड़ा था।
फिर भी हम यह मान सकते हैं कि मोटे तौर पर पश्चिमी संस्कृति में यह सामंतवाद जारी नहीं है। किंतु दुनिया के कुछ अन्य भागों में यौन शुचिता के कड़े आग्रहों के चलते इस सदी में भी स्त्री का जो दमन होता है वह सचमुच हतप्रभ करने वाला है।मिस्र के समाज में विवाह की रात तक लड़की की यौन झिल्ली का साबुत होना एक अतिआवश्यक गुण माना जाता है। या यूँ कहें कि ऐसा होना जरूरी ही माना जाता है। यह झिल्ली लड़की के लिए चरित्र का प्रतीक व लड़की के भाई-बाप इत्यादि मर्दों के लिए घराने की इज्जत का प्रतीक मानी जाती है ताकि यह प्रमाण रहे कि स्त्री को विवाह पूर्व किसी पुरुष ने छुआ नहीं है। यौन शुचिता के इस सामाजिक हठ ने स्त्री पर वहाँ कई तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं जिसमें साइकल चलाना, खेलना-कूदना, नाचना-उछलना भी मना है ताकि झिल्ली साबुत रहे और भूले से भी यह गुमान न हो कि लड़की खराब चरित्र की है। मिस्र के कुछ गाँवों में सुहागरात को दूल्हा और दुल्हन के कुछ रिश्तेदार विवाहित जोड़े के कमरे के बाहर बैठते हैं ताकि सुबह देखकर प्रमाणित करें कि चद्दर पर रक्त का निशान है अतः दुल्हन वर्जिन थी, उसकी झिल्ली अब तक साबुत थी। यदि चादर पर रक्त न मिला, जिसका अर्थ यह मान लिया जाता है कि लड़की कुमारी नहीं है, तो लड़की का कत्ल लड़की के रिश्तेदारों द्वारा ही किया जा सकता है 'ऑनर किलिंग' नाम देकर।
यह न कपोल-कल्पना है, न पिछली सदी की बातें बल्कि ताजा सर्वेक्षणों की रिपोर्ट्स हैं। 'कैरो' में एक संस्था के रिसर्च के अनुसार हर साल मिस्र में कम से कम एक हजार स्त्रियाँ ऑनर किलिंग के नाम पर मार दी जाती है। इस दुष्टाग्रह ने अरब समाज में कुछ वैज्ञानिक कुप्रथाओं को जन्म दिया है(जैसे हमारे यहाँ साइंटिफिक मैथड से कन्या भ्रूण हत्या होती है)। कई अरब लड़कियों के विवाह पूर्व यौन झिल्ली जोड़ने के सर्जिकल ऑपरेशन करवाए जाते हैं। हालाँकि ऐसे ऑपरेशन से पुन: कुँवारी बनने पर वहाँ कानूनन रोक है परंतु पिछले दरवाजे से प्रेक्टिस जोरों से जारी है। ऐसे ऑपरेशन से औरत के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को धक्का पहुँचता है। मगर पिता, भाई, चाचा वगैरह भी यही चाहते हैं क्योंकि बेटी का कुँवारापन इज्जत का सवाल है। दक्षिण अफ्रीका के कुछ समाजों में भी जो कि कबीले भी नहीं है, अच्छे-खासे कस्बाई और शहरी समाज हैं, समय-समय पर लड़कियों का वर्जिनिटी टेस्ट करवाया जाता है। यहाँ दुल्हा, दुल्हन के परिवार को धन(लोबोला) देता है। दुल्हन के वर्जिन होने पर ही अच्छी रकम मिलती है। साउथ अफ्रीका की संसद में 2005 में ऐसी वर्जिनिट‍ी टेस्ट पर रोक लगाने के प्रस्ताव पर विचार किया गया था पररंतु प्रस्ताव गिर गया।
कुछ अफ्रीकी देशों में सामाजिक-धार्मिक देशों के तहत स्त्री योनि का अंग-भंग किया जाता है। हालाँकि जिनकी ये रस्म है वे इसे अंग-भंग मानने को तैयार नहीं है। वे इसे महिला खतना कहते हैं। परंतु यह पुरुष-खतना से बिलकुल अलग बात है। स्त्री में अंग -भंग के पश्चात यौन उत्तेजना, यौन सुख प्राप्ति की क्षमता समाप्त हो जाती है। इन समाजों में खुलेआम यह कहा जाता है कि चूँकि इससे स्त्री की यौन-आकांक्षा पर प्रतिबंध लग जाता है अत: समाज में व्यभिचार रोकने में मदद मिलती है। यह बहाना कितना कूढ़ मगज, पक्षपाती, और दोहरे मापदंड वाला है, यह इससे पता चलता है कि अफ्रीकी समाज यौन बीमारियों और एड्स का घर है। बावजूद इसके कि सेनेगल से लेकर सोमालिया और तंजानिया तक अधिकांश देशों में 90 प्रतिशत लड़कियों का पारंपरिक खतना होता है। नए जमाने के खिलाफ अपनी तथाकथित सांस्कृतिक परंपरा की रक्षा(?) में लगे लोगों को इस बारे में समझाना मुश्किल है। वे इसे अपनी संस्कृति पर बाहरी सभ्यताओं का प्रहार मानते हैं। कुप्रथाओं के समर्थन में भी समाजों के अपने तर्क होते हैं। यह हम भारतीय समाज में भी देखते हैं। मगर इतना तय है कि ये सब बातें स्त्री को सिर्फ उपभोग की वस्तु मानती है इसलिए उसकी उपस्थिति को देह और उसके चरित्र को यौन शुचिता से ऊपर नहीं मानतीं।

Friday, July 31, 2009

कश्मीर में बिगड़ते हालात

जम्मू-कश्मीर की घटनाओं को एकाकी रूप में नहीं देखा जा सकता। वहां नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के बीच जारी राजनीतिक जंग के अलावा भी बहुत से पहलू हैं। जम्मू-कश्मीर में शासन कभी आसान नहीं रहा। शोपियां मसले पर गत छह माह घाटी में काफी घमासान मचा है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को हालात से निपटने के लिए काफी जूझना पड़ा है। पीडीपी प्रमुख विपक्षी पार्टी की भूमिका निभा रही है। सीमा पार के हालात बिल्कुल अलग हैं। मुजफ्फर बेग जैसे वरिष्ठ नेता द्वारा मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पर सेक्स स्कैंडल में शामिल होने का आरोप लगाना उचित नहीं ठहराया जा सकता। उमर का परिवार है, छोटे बच्चे हैं और मेरी नजर में उन्होंने सही ढंग से काम किया है। सदन में माइक्रोफोन फेंकने वाली महबूबा मुफ्ती ने बाद में सदन में सीबीआई पत्र भी फाड़ डाला। नासमझी भरा टकराव जारी रहना दु:खद है। हम अमरनाथ यात्रा मुद्दे पर पीडीपी की भूमिका देख चुके हैं। साथ ही घाटी में पाकिस्तानी मुद्रा चलाने के बेहूदा प्रस्तावों के बारे में भी सुन चुके हैं।

इस प्रकार के सभी घटनाक्रम दुर्भाग्यपूर्ण हैं। मुझे नहीं लगता कि नेशनल कांफ्रेंस, कांग्रेस और भाजपा इस स्थिति में महज मूकदर्शक रह सकते हैं। घाटी में पिछले छह माह काफी भारी रहे हैं। सोपोर, पुलवामा, श्रीनगर में हिंसा और हत्याएं, शोपियां में दुष्कर्म और उपद्रव तथा बारामुला में हिंसा की घटनाएं हुई हैं। उमर अब्दुल्ला ने हालात को काफी हद तक काबू में रखा और हिंसा को बेकाबू होने से रोके रखा। इसी प्रकार हम पाकिस्तान में घटनाक्रम की अनदेखी नहीं कर सकते, जहां तालिबान और उग्रवादी संगठन पाकिस्तानी सेना व खुफिया एजेंसियों में पैठ बना चुके हैं। इस कारण घाटी और देश के अन्य हिस्सों में आतंकी हमलों की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता। हमारे सामने गंभीर समस्या है कि पाकिस्तान में सरकार के हाथ में नियंत्रण नहीं रह गया है। बात चाहे मुंबई पर आतंकी हमले की जांच की हो अथवा आईएसआई के आतंकी ढांचे और आत्मघाती हमलावरों की फौज की, हमारे पास अत्यधिक सावधानी से आगे बढ़ते रहने के अलावा सीमित विकल्प ही बचे हैं। साथ ही पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय का सहयोग लेने का प्रयास करना चाहिए।

वर्तमान हालात में संप्रग और मुख्य विपक्षी दल भाजपा को जम्मू-कश्मीर सरकार को समर्थन देना चाहिए। पिछले एक साल में घाटी में जो दबाव और तनाव रहा है उसे देखते हुए फारुक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला को सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने के लिए साहस और दृढ़ संकल्प की जरूरत है। जम्मू-कश्मीर में हुए चुनाव में रिकार्ड मतदान और जनादेश को देखते हुए स्पष्ट हो जाता है कि हालात बदल चुके हैं। घाटी और पाक अधिकृत कश्मीर में उग्रवादी तत्व और उनके हमदर्द अलग-थलग पड़ गए हैं। इन उग्रवादी तत्वों के वोट हासिल करने के लिए पीडीपी के प्रयास कामयाब नहीं हुए, किंतु उसके राजनीतिक तेवर और क्रियाकलाप राष्ट्रीय हितों पर आक्रामक हमला बोल रहे हैं। हम पाकिस्तान में उथल-पुथल का कश्मीर पर दुष्प्रभाव पड़ते नहीं देख सकते। जो राजनेता उग्रवादी और विभाजनकारी राजनीति का समर्थन करता है वह राजनीतिक वनवास का अधिकारी है। पाकिस्तान में भयावह हालात से सभी भलीभांति परिचित हैं। इराक और अफगानिस्तान में अव्यवस्था पर भी हमारा ध्यान है। पाकिस्तान से बातचीत में हमें बेहद सावधानी बरतनी चाहिए। लोगों द्वारा बरता गया संयम हमेशा के लिए कायम नहीं रह सकता। हाल ही में पाकिस्तान ने मुंबई हमलों पर भड़काऊ बयान दिए हैं। पाकिस्तानी गृह मंत्री रहमान मलिक के आतंकी सरगना हाफिज सईद के बारे में दिए गए बयान से संकेत मिलता है कि मुंबई हमले के सूत्रधारों को सजा देने के संबंध में पाकिस्तान से अधिक अपेक्षाएं नहीं रखनी चाहिए। भारत-पाक संयुक्त बयान पाकिस्तान के रुख पर मुहर लगाता है।

नि:संदेह वर्तमान संकेत उत्साहवर्धक नहीं कहे जा सकते। साझा बयान पर संप्रग और राजग तलवार भांजते नजर आ रहे हैं, लेकिन इसका सही आकलन मुंबई के सूत्रधारों को सजा दिलाने की पाक की वचनबद्धता पूरी होने से होगा। अमेरिका और उसके मित्र देश अफगानिस्तान और इराक में अपनी नीति की सफलता के लिए पाकिस्तान में समस्याओं के हल के लिए उतावले नजर आ रहे हैं। हम इराक और अफगानिस्तान में उलझे और वित्तीय संकट की मार झेल रहे वैश्विक समुदाय से कुछ अपेक्षा नहीं कर सकते। आर्थिक संकट के कारण वहां बड़े पैमाने पर बेरोजगारी और असंतोष फैला है, जिसका प्रभाव राजनीतिक फैसलों पर भी पड़ रहा है। अतीत में जब भी पाकिस्तान को हथियार मुहैया कराए गए इनका इस्तेमाल भारत के खिलाफ हुआ है। मीडिया में खबरें आ रही हैं कि अमेरिका और ब्रिटेन ने अफगानिस्तान और संभवत: पाकिस्तान में तालिबान से बातचीत शुरू कर दी है। हम इसे क्या समझें?

संयुक्त बयान में कुछ गड़बड़ जरूर है। संसद में बहस से कुछ सामने तो आया, किंतु संदेह अब भी बने हुए हैं, क्योंकि पाकिस्तान द्वारा अभिव्यक्त किसी भी विचार की विश्वसनीयता नहीं है। आशा की जानी चाहिए कि अमेरिका की तरफ से पाकिस्तान को मिलने वाली आर्थिक और सैन्य सहायता से भारत के हित प्रभावित नहीं होंगे। अमेरिका से सहायता के बदले पाकिस्तान स्वात घाटी में तालिबान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करेगा और भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों की तरफ से आंखें मूंदे रहेगा। सच्चाई यह है कि वार्ता करने और एक-दूसरे को सूचनाओं का आदान-प्रदान करने भर से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। क्या इसको प्रगति कहा जा सकता है? मतदान करने वाली जनता ने काफी संयम और धैर्य का प्रदर्शन किया है, किंतु हर चीज की एक सीमा होती है। संयुक्त बयान का आकलन अगले कुछ माह में होने वाली प्रगति पर निर्भर करेगा।