rashtrya ujala

Tuesday, March 31, 2009

करेंगी डाइटिंग, तो दिखेंगी बूढ़ी!

आजकल लड़कियों में जीरो फिगर को लेकर गजब का चार्म है। स्लिम-ट्रिम दिखने के लिए वे खूब डाइटिंग करती हैं। लेकिन उन्हें सावधान हो जाना चाहिए। एक शोध में कहा गया है कि डाइटिंग से महिलाएं भले ही छरहरे बदन की मलिका बन जाएं, उनके ज्यादा उम्रदराज दिखने का खतरा भी बढ़ जाता है। यानी वे समय से पहले बूढ़ी दिखने लगती हैं।अमेरिकी वैज्ञानिकों ने शोध में कहा है कि भरे गाल और हृष्ट-पुष्ट काया में महिलाएं अधिक युवा दिखती हैं।ओहियो स्थित क्लीवलैंड में केस वेस्टर्न रिजर्व यूनिवर्सिटी के डाक्टर गाययूरान ने बताया कि लगभग साढ़े चार किलो वजन घटने से एक महिला अपनी उम्र से चार साल बड़ी दिखने लगती है। वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर दो साल के अध्ययन के बाद पहुंचे। अध्ययन में उन्होंने 200 जुड़वा महिलाओं को शामिल किया। गाययूरान ने कहा, '40 साल के बाद भरी काया वाली महिलाएं उनकी तुलना में कम उम्र दिखती हैं जो दुबली पतली होती हैं।' उन्होंने बताया कि सिर्फ डाइटिंग ही नहीं, उम्रदराज दिखने में वैवाहिक जीवन की भूमिका भी अहम होती है। उन्होंने कहा, 'तलाकशुदा दंपति की तुलना में साथ रहने वाले दंपति कम उम्र के दिखते हैं।' धूम्रपान आदि करने वाले लोग भी ज्यादा उम्र के दिखते हैं। प्लास्टिक सर्जन राजीव ग्रोवर ने कहा, 'लोग मानते हैं कि छुर्रियां और काले घेरों से हम अधिक उम्र के दिखते हैं। लेकिन सच यह है कि चेहरे में बदलाव के कारण ऐसा होता है।' ग्रोवर ने कहा कि 38 साल के बाद गाल पिचकने लगते हैं। इस उम्र में ज्यादा डाइटिंग करने वालों को सावधान हो जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि चेहरा जितना ज्यादा भरा होगा, खासतौर से गाल, आप दिखने में उतनी ही जवान लगेंगी।

Wednesday, March 18, 2009

चरमपंथी से मजिस्ट्रेट बनने तक

पिछले 30 साल में भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर के डोडा निवासी अख्तर हुसैन की जिंदगी में बहुत बड़ा बदलाव आया है। उनकी जिंदगी ने कानून तोड़ने वाले एक चरमपंथी से शिक्षक और फिर कानून को लागू कराने वाले ड्यूटी मजिस्ट्रेट तक का सफर तय किया है।


वर्ष 2008 के जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के छठे चरण के दौरान 17 दिसंबर को डोडा के बीरशाला इलाके के सारे मतदान स्थलों पर कानून और व्यवस्था लागू कराने के लिए ड्यूटी मजिस्ट्रेट बनाया गया है। राज्य प्रशासन ने डोडा के सरकारी डिग्री कॉलेज में उर्दू के इस लेक्चरार को एक 'कर्मठ कार्यकर्ता' के रूप में चुना है। पुराने दिनों की याद करके अख्तर कहते हैं-मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि मैं यहाँ तक पहुँचूँगा। मैं जाहिर नहीं कर सकता कि मुझे कितना अच्छा लग रहा है कि मुझे सरकार की ओर से यह काम मिला, चुनाव संपन्न कराने के लिए मजिस्ट्रेट बनाया गया।
चरमपंथ की लहर : तब चरमपंथ अपने शिखर पर था। यह एक लहर की तरह था, जिसने हममें से ज्यादातर लड़कों को अपनी लपेट में ले लिया था। मैं जब चरमपंथ में आया और जब मैंने आत्मसमर्पण किया, तब मैं समुचित रूप से परिपक्व नहीं था।
अख़्तर ने बताया जब वे 1993 में नवीं कक्षा में पढ़ रहे थे तो उन्होंने चरमपंथ में पाँव रखा था। लड़कों को हथियारों की ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर ले जाया जाता था। हमारा गुट 'अल-जेहाद ग्रुप' था। ग़ौरतलब है कि पाकिस्तान इस बात का खंडन करता है कि उसकी भूमि पर कश्मीरी चरमपंथियों को प्रशिक्षण दिया जाता है। पाकिस्तान का कहना है कि वह कश्मीरियों को केवल कूटनीतिक समर्थन देता है। किसी खुफिया एजेंसी का नाम लिए बिना उन्होंने कहा हमें (चरमपंथी) 1996 के चुनावों में बाधा डालने के लिए कहा गया, लेकिन निजी रूप से मैं इसके पक्ष में नहीं था और मैंने इस पर अमल नहीं किया था। चार साल तक चरमपंथियों का साथ देने के बाद अपने नेता सैयद फिरदौस के साथ 1997 में उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया।
गोल्ड मेडल : अख्तर ने चरमपंथ छोड़ने के बाद अपनी पढ़ाई पूरी की। वे गर्व से बताते हैं मैं कॉलेज के दिनों में भी छात्र नेता था और मैंने पोस्ट ग्रेजुएशन गोल्ड मेडल के साथ किया।
इसके बाद तीन महीने पहले राज्य जन सेवा आयोग की परीक्षा में सफल होने पर उनकी नियुक्ति उर्दू के लेक्चरर के रूप में हुई। उन्होंने कहा मुझे शिक्षा और सीखने की शक्ति में हमेशा विश्वास रहा है, जिसने मुझे अब इस पायदान पर लाकर खड़ा कर दिया है। अब अख्तर इस नौकरी के साथ उर्दू में डॉक्टरेट भी कर रहे हैं। वे कहते हैं कि उन्हें अफसोस करने से नफरत है, इसलिए उस वक्त चरमपंथ में जाना भी ठीक था और उसे छोड़ देना भी सही निर्णय था।
कानून की शक्ति : उन्होंने चरमपंथ के उन दिनों में बंदूक की शक्ति भी देखी, लेकिन वे कहते हैं कानून को लागू कराने की शक्ति का मजा निश्चित रूप से उससे कहीं ज्यादा है, क्योंकि इससे मुझे खुद पर गर्व की अनुभूति होती है। उनके पाँच भाई हैं, जो व्यापार में लगे हुए हैं और चार बहनें हैं। कुछ महीनों पहले अख्तर की शादी हुई है।
उनकी पत्नी को भी पढ़ाई से बहुत लगाव है, इसीलिए वे भी इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की दूरस्थ शिक्षा से पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा कर रही हैं। उनके पिता एक मस्जिद में इमाम हैं। उनकी माँ उस वक्त परलोक सिधार गई थीं, जब वे चरमपंथ की ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान में थे। इस बारे में जानने के बाद जब वे डोडा वापस आए। उन्होंने कहा उस दिन मैं बहुत परेशान था। मुझे लगा था कि जैसे घर पर कुछ बहुत बुरा हो गया है। अख्तर को लगता है कि चरमपंथ ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया है और मानसिक तौर पर परिपक्व बनाया है। वे कहते हैं प्रजातंत्र ही शासन का सबसे बेहतरीन तरीका है, लेकिन इन चुनावों का कश्मीर की समस्या के हल से कोई लेना-देना नहीं है। हालाँकि चुनाव में कश्मीरी लोगों का बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना बहुत अच्छा संकेत है।

प्रदूषण की काली छाया

निर्मेश त्यागी
जैसे-जैसे
गर्मी बढ़ती जा रही है भारत में पानी की समस्या फिर से सिर उठा रही है, लेकिन हर साल ये समस्या पिछले साल के मुकाबले कहीं बड़ी हो जाती है। हालाँकि आमजन को लगता है कि बस ये गर्मियाँ निकाल लें, लेकिन ये गर्मियाँ तो हर वर्ष आनी हैं।
अगले दशक यानी 2010 से 2020 तक तो स्थिति बिगड़नी ही है, लेकिन उसका अगला दशक यानी 2020 से 2030 में तो स्थिति विनाशकारी बनने वाली है। विशेषज्ञ इन मुद्दों पर शोध कर रहे हैं और घबरा रहे हैं, लेकिन आमजन इतना दूरदर्शी नहीं है। वो तो बस सिर्फ वर्तमान वर्ष और उसमें भी गर्मियों की चिंता करता है। बारिश आते ही उसे अपनी सारी परेशानियाँ दूर होती नजर आने लगती हैं और वो फिर से पानी के प्रति बेरुखी अपना लेता है।
विश्व बैंक द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार भारत में पानी का कई प्रकार से अपव्यय होता है लेकिन सबसे अधिक है स्वच्छ जल को प्रदूषित करके उसे किसी भी योग्य न छोड़ना। ऐसे प्रदूषण से जल के स्थायी स्रोत नष्ट हो जाते हैं और वो किसी काम का नहीं रहता। अगर उसे उपयोग में लिया जाए तो वह भीषण बीमारियाँ देकर जाता है। देश के कई बड़े शहरों के बीच से बहने वाली नदियाँ प्रदूषण की काली छाया और शहरीकरण के चलते नाला बनकर रह गई हैं। इसके ढेरों उदाहरण हैं। लेकिन, पानी के अमूल्य स्रोत को बिगाड़कर भी आमजन को फिलहाल न तो कोई अफसोस हो रहा है और ना ही उसमें जागरूकता आई है। ऐसा नहीं है कि भारत में पानी की कोई कमी है। जल का प्रबंधन और बढ़ती जनसंख्या मुख्य समस्या बनकर सामने आ रहे हैं। पानी की समस्या सिर्फ पीने तक ही सीमित नहीं है। वह कई अन्य इस्तेमाल में भी नहीं आ पा रहा है। भारत की तेजी से बढ़ती आबादी देश के सभी प्राकृतिक संसाधनों पर हावी हो रही है। ज्यादातर जल संसाधन खेती के लिए किए जा रहे गलत उपयोग और दूषित पदार्थों की मिलावट के कारण गंदे हो रहे हैं। इतने गंदे कि वहाँ से पीने का पानी तो दूर की बात है, नहाने-धोने के लिए भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। प्रदूषण की ये समस्या पहले से ही चौपट हो रहे जल संसाधनों को पूरी तरह नष्ट करने के कगार पर पहुँचा रही है। इस बारे में जल प्रबंधन विशेषज्ञ राजेन्द्रसिंह ने तो यह तक कहा है कि देश में चंबल नदी को छोड़कर अन्य नदियों का पानी नहाने योग्य भी नहीं है। इन नदियों के पानी को पीने की बात तो छोड़ ही दीजिए। आँकड़ों को देखें तो भारत की आबादी 2016 तक एक अरब 26 करोड़ हो जाएगी।
अगर इसी रफ्तार से ये आबादी बढ़ती रही तो 2050 तक यह चीन की आबादी से भी अधिक हो जाएगी। भारत में विश्व की 18 प्रतिशत जनता रहती है, जबकि वह विश्व के कुल क्षेत्रफल का मात्र 2।4 प्रतिशत ही है। ऐसे में बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या का सारा दबाव भारत के प्राकृतिक संसाधनों पर आ रहा है जिनमें जल संसाधन प्रमुख हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार भारत में 21 प्रतिशत प्रचलित बीमारियाँ अशुद्ध पानी की वजह से फैलती हैं। संगठन के अनुसार भारत में वर्ष भर में 7 लाख लोग सिर्फ डायरिया के कारण मौत के मुँह में चले जाते हैं, जो मूल रूप से अशुद्ध पानी पीने की वजह से फैलता है। साफ-सफाई भारत में मुख्य समस्या है, जो पानी की कमी के कारण अब दिन-ब-दिन और अधिक बढ़ती जा रही है। 'वॉटर पाटर्नस इंटरनेशनल' के अनुसार भारत की ग्रामीण जनता में से सिर्फ 14 प्रतिशत ही शौच के लिए शौचालय का उपयोग करती है। शौच के बाद हाथ धोना भी एक बड़ी समस्या है। यह भी ज्यादातर ग्रामीण भारत नहीं करता। हाथ की साफ-सफाई न रखना भी बीमारियों को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अगर हाथ धो भी लिए और वो पानी गंदा हुआ तो यह भी बीमारियाँ ही फैलाएगा। एक अंतरराष्ट्रीय आँकड़े के अनुसार भारत की सिर्फ 33 प्रतिशत आबादी ही अपने लिए सफाई प्रबंध कर पाती है। जाहिर है कि पानी की कमी यहाँ भी अपना असर दिखा रही है। ऐसे में जब पीने का पानी ही मुहाल हुआ जा रहा है तो देश की जनता साफ-सफाई के लिए पानी कहाँ से जुटा पाएगी। पानी की यह कमी बीमारियों में जबरदस्त इजाफा करेगी और पानी की कमी से होने वाली मौतों में यह कोण नए तरीके से जुड़ेगा। लोगों को अभी से समझना और संभलना होगा कि वे बेहतर जल प्रबंधन करें, जल संसाधनों को प्रदूषित न करें और उन्हें नष्ट होने से भी बचाएँ। क्योंकि देर-सबेर जब भी पानी का हमला होगा तब असहाय इन्सान उसे झेलने की स्थिति में भी नहीं होगा।

Monday, March 16, 2009

अधूरी रह गई जिंदगी की परीक्षा

इंदौर shraddha कक्षा 12वीं की एक छात्रा ने रविवार सुबह स्टडी रूम बंदकर खुद को घासलेट डालकर आग लगा लगी। वह मरने के बाद देर तक जलती रही लेकिन परिजन को काफी समय बाद पता चला।नंदानगर की गली नं. 7 निवासी किराना व्यापारी दीपक गुप्ता की 18 वर्षीय बेटी श्रद्धा परीक्षा की तैयारी करने का कहकर घर की छत पर बने स्टडी रूम में सुबह गई थी। छोटे भाई शुभम (14) ने बताया करीब 11 बजे उनकी दादी चंद्रकांता छत पर गईं तो उन्हें टॉवर का दरवाजा बाहर से बंद मिला। उन्होंने श्रद्धा को आवाज लगाई लेकिन उसने दरवाजा नहीं खोला। इस पर शुभम व उसके चचेरे भाई ने स्क्रू खोलकर दरवाजा खोला। वे स्टडी रूम पहुंचे तो उसका दरवाजा तथा खिड़कियां भी अंदर से बंद थीं। इस बीच उनकी नजर दरवाजे के नीचे से निकल रहे धुएं पर पड़ी। इसके बाद शुभम ने दरवाजा तोड़ दिया।

पानी डालने पर भी नहीं बुझी आग:-अंदर का दृश्य देख शुभम तथा अन्य परिजन के रोंगटे खड़े हो गए। फर्श पर पड़ी श्रद्धा आग की लपटों में घिरी हुई थी। शोर-शराबा मचने पर रंगपंचमी खेल रहे पड़ोसी तथा मोहल्लेवासी छत पर पहुंचे। शुभम ने बाल्टी से पानी डालकर आग बुझाने की कोशिश की लेकिन नहीं बुझी। इस दौरान एक पड़ोसी ने वहीं पड़ा एक गद्दा श्रद्धा पर डाला जिसके बाद बमुश्किल आग बुझ सकी। खबर मिलते ही परदेशीपुरा पुलिस तथा एफएसएल टीम मौके पर पहुंची। ज्येष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी डॉ. सुधीर शर्मा ने बताया घटनास्थल की जांच में फर्श पर फैला घासलेट तथा माचिस की तीली भी मिली है। कमरे की छत तथा दीवारें धुएं से काली हो गईं। दरवाजा अंदर से ही बंद था। इन सब साक्ष्यों के आधार पर साफ है मामला आत्महत्या का है। पुलिस ने कमरे को सील कर दिया है।

तीन घंटे पहले तो साथ में हंसी-मजाक किया था:-शुभम ने बताया श्रद्धा को किसी प्रकार की परेशानी नहीं थी। वह आथरेमा स्कूल में कक्षा 12वीं में पढ़ती थी। 18 मार्च को उसका इंग्लिश का पेपर था जिसकी तैयारी का कहकर वह पढ़ने गई थी। सुबह उसने शुभम तथा छोटी बहन खुशबू (11) के साथ खूब हंसी-मजाक किया था, उन्हें जरा भी अंदेशा नहीं था कि थोड़ी देर बाद वह यह कदम उठा लेगी। दोपहर करीब 1 बजे उसका शव जब पोस्टमॉर्टम के लिए एमवाय अस्पताल ले जाया गया तो परिजन फूट-फूटकर रो पड़े। पड़ोसियों ने बताया उन्होंने शोर-शराबा मचने से पहले छत से धुआं उठते देखा जरूर था लेकिन यह सोचकर चुप रहे कि हो सकता है महिलाएं त्योहार होने के कारण कंडों पर बाटी सेंक रही हों।

पिता को बेटी ने दी मुखाग्नि

भोपाल. girlपुराने सामाजिक बंधनों को तोड़ते हुए शहर की नेहा कावले (22 वर्षीय) ने रविवार को सुभाष नगर विश्रामघाट पर पिता विजय कावले की पार्थिव देह को मुखाग्नि दी। श्री कावले जिला पंचायत में तकनीकी सहायक थे। ब्लड कैंसर से पीड़ित होने के कारण कल उनका निधन हो गया था।श्री कावले यहां शाहपुरा स्थित बी-241 नीलगिरि अपार्टमेंट में रहते थे। नेहा एमसीए का कोर्स करने वनस्थली (राजस्थान) गईं थीं और वर्तमान में एक प्राइवेट कंपनी में प्रशिक्षण ले रही हैं। नेहा के अलावा परिवार में मां वृशाली कावले और बहन प्रचीती कावले हैं। पिता की अंत्येष्टि के दौरान नेहा बिलख-बिलख कर रो रही थी।

Thursday, March 5, 2009

रंग ही नहीं औषधि भी हैं टेसू के फूल

निर्मेश त्यागी
फाल्गुन का महीना आते ही टेसू के रंग से होली खेलने की तैयारी शुरू हो गई है। आधुनिकता के इस युग में भी ब्रज क्षेत्र में टेसू से होली खेलने की परंपरा है। टेसू के फूल की मांग बढ़ गई है। इस बार कीमतों में कुछ इजाफा हुआ है। रासायनिक रंगों के मुकाबले ये ज्यादा सुरक्षित हैं और त्वचा रोग के लिए औषधितुल्य होते हैं।राधा संग होली खेलते कृष्ण और उन पर बरसते टेसू के रंग जैसी तमाम बातें गीत और कहानियों के माध्यम से मिलती है। बृज क्षेत्र में टेसू के फूलों से भावनात्मक लगाव शायद इसी वजह से है। जमाना बदला तो केमिकल के रंगों की भरमार हो गई है। इसके बाद भी बृज क्षेत्र में होली पर टेसू के रंगों का प्रयोग होता है। परंपरा को आज भी यहां के लोग निभाते है। टेसू के फूल में औषधि के बहुत से गुण है।शहर के दर्जनों व्यापारी ऐसे हैं जो इसका कारोबार बखूबी कर रहे हैं।

टेसू के यह फूल मुख्यत: झांसी, मऊरानीपुर और मध्य प्रदेश के इलाकों से यहां आते हैं। टेसू का फूल असाध्य चर्म रोगों में भी लाभप्रद होता है। हल्के गुनगुने पानी में डालकर सूजन वाली जगह धोने से सूजन समाप्त होती है। होलिका दहन से पांच दिन रंग भरनी एकादशी से ही टेसू के रंगों की जरूरत होती है। इस दिन देवालयों पहुंचने वाले लोगों पर टेसू के रंग की बरसात की जाती है।फर्म पुरुषोत्तम दस मोहन लाल के स्वामी मोहन दास माहेश्वरी का कहना है कि इस बार गर्म मौसम की वजह से फूल की पैदावार पर असर पड़ा है। यही वजह है कि इस बार इसकी कीमत में दो रुपये का इजाफा हुआ है। उनका कहना है कि आधा किलो टेसू के फूल पन्द्रह लीटर पानी में लिए बहुत है।बृज के मथुरा, आगरा, हाथरस, दाऊजी, गोकुल आदि क्षेत्र में इसका जबरदस्त प्रचलन है। नंदगांव बरसाने की लठामार होली हो या फिर दाऊजी का हुरंगा, इनमें टेसू के फूलों का जमकर प्रयोग होता है। बिहारी के मंदिर में खेली जाने वाली होली में भी टेसू के फूलों का प्रचलन है।त्वचा रोग विशेषज्ञ का कहना है कि टेसू के फूल त्वचा रोग में लाभकारी है। कहना है कि टेसू के फूल को घिस कर चिकन पाक्स के रोगियों को लगाया जा सकता है। इससे एलर्जी नहीं होती है जबकि केमिकल वाले रंग-गुलाल त्वचा के लिए हानिकारक है। इनसे शरीर पर जलन होती है।

Wednesday, March 4, 2009

शादी पर बिजली की मार

यदि आप मैरिज हॉल में शादी करने का मन बना रहे हैं तो एक बार यह पता कर लें कि बिजली का बिल कहीं आपके बजट के बाहर तो नहीं है। प्रदेशभर में किसी भी मैरिज हॉल में शादी करने पर लोगों को बिजली के बिल का छह गुना तक भुगतान करना पड़ रहा है। ऐसा मैरिज हॉल में शादी करने पर गैर घरेलू बिलिंग की वजह से हो रहा है। जबकि वही शादी आप अपने घर या अन्य किसी स्थान पर करते हैं, तो बिजली की बिलिंग घरेलू दरों पर हो रही है।नियामक आयोग द्वारा मैरिज हॉल के बिजली कनेक्शन को गैर घरेलू किए जाने की वजह से यह पेंचीदगी हो गई है। विद्युत वितरण कंपनी के वर्तमान टैरिफ में इस बात का उल्लेख है कि मैरिज हॉल में बिजली का कनेक्शन गैर घरेलू दिया जाए, जबकि इसी टैरिफ में इस बात का भी उल्लेख है कि यदि शादी के लिए किसी व्यक्ति द्वारा अस्थाई कनेक्शन लिया जाता है तो वह घरेलू दरों पर दिया जाए।

अस्थाई कनेक्शन भी गैर घरेलू:-टैरिफ के आधार पर बिजली कंपनी शादी हॉल में विवाह करने वालों को अस्थाई कनेक्शन भी गैर घरेलू दरों पर दे रही है, जिससे सभी अधिभार जोड़ने के बाद उपभोक्ता को बिजली की दर 30 से 40 रुपए प्रति यूनिट के हिसाब से देना पड़ रही है। जबकि यही शादी वह कहीं और से करता है तो उसे सभी अधिभार जोड़कर मात्र पांच से सात रुपए प्रति यूनिट के हिसाब से बिल देना होगा।

यह है परेशानी:-बिजली कम्पनी का मानना है कि एक परिसर में दो तरह के बिजली के कनेक्शन नहीं दिए जा सकते। चूंकि मैरिज हॉल में गैर घरेलू कनेक्शन रहता है इसलिए वहां अस्थाई कनेक्शन भी गैर घरेलू ही दिया जाएगा। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यदि कोई गैर घरेलू उपयोग वाले परिसर का उपयोग रहने के लिए करता है तो उसे घरेलू कनेक्शन ही दिया जाता है इसलिए कम्पनी का यह तर्क गलत है।

ऐसे लुट रहे हैं लोग:-जब लोग मैरिज हॉल बुक करने जाते हैं तब मैरिज हॉल का संचालक यह बताता है कि बिजली का कनेक्शन आपको स्वयं लेना पड़ेगा और जितनी बिजली जलेगी उसका आपको बिल देना होगा। संचालक यह नहीं बताता कि वहां से शादी करने पर बिलिंग गैर घरेलू दरों पर होंगी जो अत्याधिक हैं। लोगों को यह भ्रम रहता है कि बिल लगभग पांच से सात हजार रुपए आएगा और वह इस ओर ध्यान नहीं देते लेकिन जब बिल तीस से चालीस हजार रुपए आ रहा है तो लोगों के होश उड़ रहे हैं।

अर्थशास्त्र बदल देगा गठबंधन की राजनीति

चुनावी नार गढ़े जा रहे हैं। लेकिन इस बार के चुनाव में किसी नेता के पक्ष में कोई लहर नहीं है। जबकि चुनाव में नारों की भी जरूरत होती है और नेता की भी। सत्ताताधारी कांग्रेस के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार डॉ. मनमोहन सिंह पूरी तरह स्वस्थ नहीं है। उन्होंने पिछले संसद सत्र में भाग नहीं लिया। प्रधानमंत्री पद के प्रतीक्षार्थी राहुल गांधी आगे आने वाले कठिन आर्थिक दौर में देश की कमान संभालने को अभी तैयार नहीं हैं। भारतीय जनता पार्टी ने लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्र पद के प्रत्याशी के तौर पर पेश किया है। लेकिन 83 वर्षीय आडवाणी के पक्ष में भी कोई लहर जैसी बात नहीं है।नेतृत्व की कोई स्पष्ट लहर न होने की स्थिति में अर्थशास्त्र ही दोनों प्रमुख पार्टियों के बीच में विजेता पार्टी को चुनेगा, जो अगली सरकार बनाएगी। अनिश्चितता से भर अगले सालों में देश का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी कौन स्वीकार करगा? यह बड़ा सवाल है क्योंकि बहुत कम नेता खासकर नई शुरुआत करने जा रहे नेता ऐसे मुश्किल समय में जिम्मेदारी संभालना चाहेंगे।

ताजा आर्थिक संकेतकों के अनुसार पिछले अक्टूबर से दिसंबर के दौरान सकल घरलू उत्पादन (जीडीपी) की विकास दर मात्र 5।3 फीसदी रही। पिछले छह साल में किसी तिमाही में यह सबसे धीमी विकास दर रही। इस तरह मौजूदा वित्त वर्ष की तीन तिमाहियों यानि 9 महीनों के दौरान विकास दर 6.9 फीसदी रही। औद्योगिक उत्पादन में गिरावट के स्पष्ट संकेत हैं। अब कृषि क्षेत्र भी सिकुड़ रहा है। हालांकि जीडीपी का सरकारी आंकड़ा कुछ समय पुराना होता है और इसमें बदलाव पूरी तरह दिखाई नहीं देता है। यह पूरी तरह विश्वसनीय भी नहीं है। मौजूदा हालात खासकर गांवों में स्थितियां तेजी से बदल रही हैं। किसानों के लिए कर्जमाफी योजना लागू होने के बाद कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों में कर्ज वितरण में भारी गिरावट आई है। सरकार कृषि क्षेत्र के लिए कर्ज वितरण में कमी की बात स्वीकार नहीं करना चाहती है। लेकिन जमीनी स्थिति बताती है कि सार्वजनिक और निजी बैंकों ने अक्टूबर से दिसंबर के दौरान किसानों को कर्ज देना एक तरह से बंद ही कर दिया। बिजनेस भास्कर पंजाब, हरियाणा व दूसर तमाम राज्य में कृषि क्षेत्र को कर्ज वितरण घटने की ओर लगातार संकेत देता रहा है।कृषि क्षेत्र के लिए कर्ज वितरण की वास्तविकता यह है कि इन कर्जो का बड़ा हिस्सा दैनिक जरूरत की उपभोक्ता वस्तुओं, कंज्यूमर डयूरबल्स और दोपहिया वाहनों की खरीद में खर्च हो रहा है। कंपनियों की बिक्री पर इसका थोड़ा असर पड़ने भी लगा है। अक्टूबर से दिसंबर की पिछली तिमाही कोई सामान्य दौर नहीं था। कंपनियों में घबराहट थी कि पता नहीं अर्थव्यवस्था क्या स्वरूप लेगी। दुनियाभर में बैंकों के दिवालिया होने के कारण भी लोगों ने खरीद संबंधी फैसले टाल दिए। सरकारी अर्थशास्त्री उम्मीद कर रहे हैं चालू जनवरी-मार्च की तिमाही में विकास दर सुधर जाएगी। वे अनुमान के विपरीत उम्मीद कर रहे हैं कि विकास दर की गिरावट जारी नहीं रहेगी। अंतरिम बजट में सरकार ने सात फीसदी विकास दर के आधार पर राजस्व प्राप्ति का अनुमान लगाया था। इस आधार पर वित्तीय घाटा 5.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया। अगर राज्यों के वित्तीय घाटे को भी जोड़ दें तो यह नौ फीसदी बैठता है।अमेरिकन इनवेस्टमेंट बैंक गोल्डमैन सैक्स के अध्ययन के अनुसार वित्त वर्ष 2009 में वित्तीय घाटा 10.3 फीसदी रहेगा। मानकों के अनुसार दस फीसदी वित्तीय घाटा काफी ज्यादा है। नई सरकार को इससे जूझना होगा। किसी सरकार के लिए टैक्स रट बढ़ाना और रियायत वापस लेना अलोकप्रिय उपाय होगा, ऐसे में नई सरकार के लिए अर्थव्यवस्था और बजट के लिहाज से आने वाला समय मुश्किल भरा होगा।अब सवाल उठता है कि अलोकप्रिय होने वाली सरकार का नेतृत्व कौन करना चाहेगा, जबकि अगले पांच वर्षो के दौरान वित्तीय संतुलन अधिक खराब रहने वाला है। नया गठबंधन ऐसा स्वरूप ले सकता है जिसे कांग्रेस बाहर से समर्थन दे सकती है। इससे राहुल गांधी को अपनी सारी गलतियों के लिए नई सरकार की आलोचना करने का मौका मिल जाएगा। कांग्रेस को सरकार विरोधी माहौल से बचने का मौका मिल जाएगा। एक-दो साल के लिए अन्य पार्टी की सरकार बनवाना अहम राजनीतिक फैसला होगा। द्वारा यतीश राजावत