rashtrya ujala

Sunday, September 28, 2008

बदलाव के दौर में हिंदी

साठ बरस पहले दीर्घ और सशक्त जन-प्रतिरोध के चलते भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के दिन लद गए। अंग्रेज भले ही बोरिया बिस्तर बांध कर चले गए, मगर अंग्रेजी जमी रही और उसका रुतबा बरकरार रहा। अंग्रेजों का साम्राज्य समाप्त होने के साथ अंग्रेजी का वर्चस्व भी क्षीण होना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो उसके मूल में नव सत्तासीन राष्ट्रीय नेताओं के मन में भाषाई सौहार्द बिगड़ने की आशंका थी। इस निर्मूल आशंका का तर्कसंगत और वस्तुपरक निराकरण उसी समय करने के बजाय 'एकता बनाए रखने' के नाम पर अंग्रेजी को बनाए रखने की युक्ति लगभग वैसी ही थी जैसे सत्ता हस्तांतरण के बावजूद तत्कालीन वाइसराय लार्ड माउंटबेटन से कुछ समय तक गवर्नर जनरल के रूप में पद पर बने रहने को कहा गया था। सच्चाई यह है कि अंग्रेजी को राजकाज से विदा करने लायक आत्मविश्वास हम अभी तक अर्जित नहीं कर पाए है। इसका कारण अंग्रेजी से अंधा प्रेम या लगाव नहीं, न ही उसकी सर्वस्वीकार्यता है, बल्कि स्वतंत्रता प्राप्ति के तत्काल बाद देश के विभिन्न क्षेत्रों से उठे भाषाई आंदोलनों की विभाजनवादी मानसिकता है, जिसके तहत भाषाई आधार पर प्रदेशों का पुनर्गठन करना पड़ा। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह अनिवार्य था, परंतु इससे भाषाई-आधार पर वोट बैंक बनाने और सहेजने की प्रवृत्तिने जोर पकड़ा। आज मुंबई में दुकानों और अन्य प्रतिष्ठानों पर मराठी भाषा में नामपट लगाने के लिए जिस तरह का धमकी भरा आग्रह किया जा रहा है उससे भाषाई वोट बैंक की अवधारणा को समझा जा सकता है।

स्वतंत्रता संग्राम के महानायक गांधीजी ने भारत जैसे विशाल, विस्तृत और बहुभाषी देश में एक सर्वमान्य और सर्वसुलभ संपर्क भाषा की कसौटी पर हिंदी को उपयुक्त पाया था और नई भूमिका के लिए उसे तैयार करने का आग्रह किया था। गांधीजी और सुभाष बाबू इस बात पर एक राय थे कि राष्ट्रीय भाषा का नाम हिंदुस्तानी होना चाहिए और उसमें यथासंभव अन्य भाषाओं के बहुप्रचलित शब्दों का समावेश होता रहे ताकि वह देश के कोने-कोने में सरलता से बोली और समझी जा सके। नेताजी ने आजाद हिंद फौज में प्रशासनिक और व्यवहारिक भाषा के रूप में जो प्रयोग किए उनसे हमें सबक लेना चाहिए था, परंतु हिंदी प्रेम के अति उत्साह और अंग्रेजी की जबर्दस्त पैरोकारी के द्वंद्व के चलते जाने-अनजाने कई तकनीकी किस्म की भूलें हुई जिनका खामियाजा हिंदी को बेवजह उठाना पड़ा। सबसे ज्यादा नुकसान हिंदी को राष्ट्रभाषा या संपर्क भाषा के बजाय 'राजभाषा' जैसे सजावटी विशेषण से विभूषित करने से हुआ। हिंदी कैसी राजभाषा बनी है, यह तो जगजाहिर है, लेकिन सरकारी कामकाज की भाषा के रूप में अंग्रेजी आराम से सिंहासन पर आरूढ़ है। दूसरी भूल शब्दावली आयोग द्वारा गढ़े गए भारी भरकम और बेजान शब्दों के अवतरण के रूप में हुई। 'लौहपथ गामिनी विराम स्थल' जैसे हास्यास्पद शब्द इसके उदाहरण हैं। तीसरी भूल दक्षिण भाषा हिंदी प्रचार सभा जैसे महत्वपूर्ण और प्रभारी अभियानों की स्वतंत्रता के बाद के समय में उपेक्षा रही। दरअसल समस्या यह है कि हम अपनी मातृभाषा से इतर भाषा का प्रयोग तो करते हैं, लेकिन उसे अपनापन देने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं।जो भी हो, वैश्वीकरण और खुले बाजार के इस दौर में हिंदी बाजार की भाषा के रूप में बिना किसी वैधानिक बैसाखी या भावनात्मक ज्वार के एक बड़ी भाषा के रूप में उभरी है। एक वृहतर संपर्क भाषा की अपनी असली भूमिका में जिस तरह यह विज्ञापन जगत और संचार माध्यमों पर सोने का अंडा देने वाली मुर्गी के रूप में छाई है उससे अंग्रेजी को कड़ी चुनौती मिली है। राजभाषा के रूप में इसकी प्रभावहीनता अब गौण होती जा रही है। ठीक है आज की तारीख में रोजगार संबंधी अवसरों के सिलसिले में अंग्रेजी लगभग अपरिहार्य है, मगर जिस तरह से कारोबार की दुनिया में हिंदी का वर्चस्व बढ़ रहा है उसे देखते हुए वह दिन दूर नहीं जब यह रोजगार दिलाऊ बन जाएगी। हिंदी की इस बढ़त का प्रभाव अन्य भारतीय भाषाओं और स्वयं हिंदी की उपभाषाओं पर पड़ा है। भोजपुरी का ही उदाहरण लें। अभी तक लगभग उपेक्षित रही यह भाषा अपनी कारोबारी क्षमता के कारण फिल्म उद्योग में मजबूती से अपने पैर जमा रही है। और इसी के साथ हिंदी में आ रहा है बदलाव। मीडिया पर प्रभुत्व जमाने के लिए हिंदी को अपनी कथित जटिलता को तिलांजलि देनी पड़ी है। बहुत से लोगों को हिंदी का यह अत्यंत लचीला और सर्वसमावेशी रूप नहीं भा रहा है, परंतु परिवर्तन तो सृष्टि का नियम है। हर चीज बदलती जा रही है तो हिंदी ही कब तक पर्दानशीं रहेगी। हिंदी ही नहीं, सभी प्रमुख भारतीय भाषाएं कारोबारी और रोजगारी दबाव में बदलाव की इस प्रक्रिया से गुजरेगी।

दुष्कर्म के आरोप में दो भारतीयों को कैद

स्विंडन में रह रहे दो भारतीय नागरिकों को एक वेश्या के साथ दुष्कर्म के आरोप में कैद की सजा सुनाई गई है। सजा की आधी अवधि पूरी होने पर उन्हें स्वदेश लौटने को बाध्य होना पड़ सकता है।यहां की एक अदालत ने अरविंदर सिंह और करनैल सिंह को पिछले सप्ताह फरवरी में किए गए एक दुष्कर्म के मामले में दोषी पाया। अरविंदर को आठ साल और करनैल को सात साल तक की सजा सुनाई गई है। ये दोनों बिजली का काम करते हैं।स्विंडन में ये मैनचेस्टर रोड पर काम करने के लिए आए थे। वहीं यह दोनों एक वेश्या को बहला- फुसलाकर एक मकान में ले गए और उसके साथ दुष्कर्म किया।

गठिया के इलाज में कारगर है योग

बाबा रामदेव ऐसे ही योग की तारीफ नहीं करते। शोधकर्ताओं ने भी माना है कि आज की भागमभाग भरी जीवनशैली में योग के लिए कुछ वक्त निकालना मानसिक शांति के साथ ही सेहत के लिहाज से भी ठीक है। हालिया शोध के मुताबिक रिह्यूंमेटाइड आर्थराइटिस [गठियारूपी जोड़ो का दर्द] के इलाज में योग काफी कारगर साबित होता है।अमीरात आर्थराइटिस फाउंडेशन के शोधकर्ताओं के अध्ययन में यह बात सामने आई है। दुबई की जोड़ों के दर्द की चिकित्सक डा. हमायरा बादशा के मुताबिक योग से रिह्यूंमेटाइड आर्थराइटिस से पीड़ित मरीज को शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दोनों रूप से फायदा पहुंचता है।उन्होंने बताया कि 'आर्थराइटिस फार योग' नामक कार्यक्रम के अंतर्गत 26 लोगों को योग सिखाया गया। इस कार्यक्रम में शामिल 21 लोग आर्थराइटिस का इलाज करा रहे थे। शोधकर्ताओं के अनुसार अध्ययन के परिणाम उल्लेखनीय रहे। अध्ययन में शामिल कुछ लोगों को जोड़ों के दर्द से इतनी राहत मिली कि उन्होंने दवाएं लेना ही बंद कर दिया।

Saturday, September 27, 2008

दिल्ली में धमाका

धमाके की जाँच
बम धमाके में घायल हुए लोगों में से कई की हालत गंभीर बताई जा रही है
राजधानी दिल्ली के महरौली इलाक़े में शनिवार की दोपहर हुए एक धमाके में एक बच्चे की मौत हो गई है और लगभग 18 लोग घायल हो गए है.घायलों में से चार लोगों की हालत गंभीर बताई जा रही है. घायलों को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया है.धमाका दक्षिणी दिल्ली के महरौली इलाके के व्यस्त चौराहों में से एक, अंधेरिया मोड़ से लगे वार्ड नंबर आठ में हुआ.शनिवार को दोपहर क़रीब सवा दो बजे हुए जिस वक्त यह धमाका हुआ, उस वक्त बाज़ार में चहल-पहल थी.जिस जगह यह धमाका हुआ है वहाँ दोनों ओर दुकानें हैं और इनके ऊपर लोगों के घर हैं. धमाके की गूँज आसपास के एक किलोमीटर के क्षेत्र में सुनी गई.

कैसे हुआ विस्फोट..?


घटनास्थल पर स्थानीय लोग
स्थानीय लोगों ने कंधों पर उठाकर घायलों को बाहर निकाला

स्थानीय लोगों ने बताया कि दो अज्ञात लोग एक काली रंग की मोटरसाइकिल पर सवार होकर यहाँ आए और एक दुकान के सामने अपना कुछ सामान छोड़कर चल दिए.इस पैकेट को एक महिला ने देखा और इन वापस जाते लोगों को टोका भी कि आपका सामान छूट गया है पर वे दोनों तेज़ी से वहाँ से निकल गए.पैकेट को एक बच्चे ने छुआ और छूते ही उसमें एक ज़ोरदार धमाका हो गया. जाँच में लगी पुलिस टीम को घटनास्थल से कुछ कील और लोहे के टुकड़े मिले हैं.पुलिस का कहना है कि इस धमाके में किसी शक्तिशाली विस्फोटक का इस्तेमाल नहीं हुआ है.इन धमाकों को पिछले दिनों दिल्ली में हुए सिलसिलेवार धमाकों से जोड़कर न देखने की सलाह भी पुलिस ने दी है.

सुरक्षा कड़ी


घटनास्थल
पुलिस विस्फोट से जुड़े तथ्यों को जुटाने में लगी है

पिछले दिनों की घटनाओं से दिल्ली के माहौल में एक तरह का तनाव तो था ही, शनिवार को हुए इस धमाके ने दिल्ली पुलिस की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं.ताज़ा घटना को देखते हुए दिल्ली पुलिस ने राजधानी में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है. लोगों से मिली जानकारी के आधार पर बम रखकर जाने वालों की तलाश का काम किया जा रहा है.पुलिस ने घटनास्थल की घेराबंदी करके तफ्तीश का काम शुरू कर दिया है. बम निरोधक दस्ते के अलावा एनएसजी के जवान और डॉग स्क्वायड की भी छानबीन में मदद ली जा रही है.पुलिस का कहना है कि मोटरसाइकिल सवार युवकों की उम्र 20 से 25 साल बताई जा रही है.ग़ौरतलब है कि दिल्ली में 13 सितंबर को पाँच सिलसिलेवार धमाके हुए थे जिसमें 22 लोग मारे गए थे.

'देश का माहौल बदलने की ज़रुरत'

अगर दिल्ली में हुए ताज़ा विस्फोटों के पीछे चूक की बात करना शुरु करें तो बात हो जाएगी, सुरक्षा इंतज़ाम की, ख़ुफ़िया तंत्र की और सतर्कता की.:>लेकिन एक बात स्पष्ट है कि आतंक की घटनाएँ सिर्फ़ तैनाती से नहीं रुक सकतीं. इसके लिए देश में माहौल को बदलना होगा और हर दिलोदिमाग में यह बात बिठानी होगी कि यह सरकार कार्रवाई करना चाहती है.अगर कुछ हुआ तो दोषी लोगों को पकड़ा जाएगा और उन्हें सज़ा दी जाएगी.इस समय जो माहौल है उसमें तो यह भी तय नहीं है कि जो घटना को अंजाम देगा उसे पकड़ा जाएगा, तय नहीं कि अगर पकड़ भी लिया गया तो सज़ा भी दी जाएगी और अगर सज़ा हो भी गई तो उसका कार्यान्वयन भी किया जाएगा.अब तक तो आतंक से जुड़ी घटनाओं में सरकार कमज़ोर ही साबित हुई है.

संकेत:>दिल्ली में जिन जगहों पर हमले हुए हैं वह एक ख़ास तरह के संकेत देता है.इस बार हमला करने वालों ने कनॉट प्लेस, ग्रेटर कैलाश और करोल बाग़ जैसी जगहों को चुना है जहाँ आमतौर पर पढ़े-लिखे और संपन्न लोग आते हैं.


गृहराज्य मंत्री के बयान पर प्रतिक्रिया
यह बहुत अफ़सोस की बात है कि ख़ुफ़िया जानकारी के बाद भी राजधानी में हमले हो गए ऐसे मंत्री को तो अपने पद से इस्तीफ़ा दे देना चाहिए
प्रकाश सिंह

तो अब हमलावर पढ़े-लिखे लोगों को भी संकेत देना चाहते हैं कि अब वो भी सुरक्षित नहीं हैं और ऐसा नहीं है कि वो उन इलाक़ों में नहीं पहुच सकते जहाँ वो जाते रहे हैं.इन हमलों से तो हमलावरों के दुस्साहस का ही परिचय मिलता है वो कहीं भी हमला कर सकते हैं और कभी भी हमला कर सकते हैं.

सख़्त क़ानून की ज़रूरत:>गृहराज्यमंत्री शकील अहमद कह रहे हैं कि उनके पास सूचनाएँ थीं कि दिल्ली में आतंकी हमले हो सकते हैं और उसके बाद भी हमले हो गए.यह बहुत अफ़सोस की बात है कि ख़ुफ़िया जानकारी के बाद भी राजधानी में हमले हो गए ऐसे मंत्री को तो अपने पद से इस्तीफ़ा दे देना चाहिए.इतने लोग मारे गए और आप अभी भी गृहमंत्रालय में बैठे हुए हैं.मैं इस बात से पूरी तरह से सहमत हूँ कि इस देश में एक सख़्त आतंक विरोधी क़ानून की ज़रूरत है बल्कि मैं तो उन लोगों में से हूँ जो मानते हैं कि पोटा जैसा क़ानून भी पुराना पड़ चुका है.जो घटनाएँ देश में हो रही हैं उसे अब पोटा से भी निपटा जा सकता.दिक़्कत यह है कि हम कार्रवाई इतनी देर से करते हैं जब मर्ज़ बहुत बढ़ चुका होता है.

Friday, September 26, 2008

माहौल खराब करती है हरि पुत्तर जैसी फिल्में

माहौल खराब करती है हरि पुत्तर जैसी फिल्मेंमुख्य कलाकार : सारिका, जैकी श्रॉफ, जेन खान, स्विनी खरे, लिलिट दूबे, सौरभ शुक्ला, विजय राज,निर्देशक : लकी कोहली एवं राजेश बजाजतकनीकी टीम : निर्माता- ए।पी।पारिगी, मुनिश पुरी एवं लकी कोहली, संगीतकार- आदेश श्रीवास्तव, गीतकार-समीर, छायांकन- फारूख मिस्त्रीफिल्म के निर्माता-निर्देशक ने हैरी पाटर से मिलता जुलता नाम हरि पुत्तर रखकर भले ही चर्चा पा ली हो, लेकिन इस फिल्म की जितनी भ‌र्त्सना की जाए कम है। बच्चों के लिए ऐसी अश्लील, फूहड़ और विवेकहीन फिल्म की कल्पना किसी अपराध से कम नहीं। भारत में बच्चों के लिए बनाई जाने वाली फिल्मों की वैसे ही कमी है। लेकिन हरि पुत्तर जैसी फिल्में माहौल को और भी गंदा व खराब करती हैं। विदेशी फिल्म से प्रेरणा लेकर बनाई गई इस फिल्म को घटिया ढंग से लिखा और फिल्मांकित किया गया है। हरि अपने माता-पिता के साथ इंग्लैंड रहने चला गया है। वहां एक दिन परिवार के सभी लोग भूल से उसे छोड़कर पिकनिक पर निकल जाते हैं। कहानी यह है कि कैसे वह गुप्त मिशन में लगे अपने पिता के प्रोजेक्ट की चिप की रक्षा करता है? यह फिल्म रोचक बन सकती थी लेकिन इसे देखकर तो यही लगता है कि हम बच्चों को कामेडी के नाम पर क्या परोस रहे हैं? सारिका और जैकी श्राफ ने इतना बुरा काम कभी नहीं किया। बाल कलाकार जैन खान को दी गई हिदायतें ही फूहड़ है, इसलिए उनके अभिनय में फूहड़ता दिखती है। सौरभ शुक्ला और विजय राज के बुरे अभिनय के लिए भी हरि पुत्तर याद की जा सकती है। यदि इस साल की सबसे बुरी फिल्मों की सूची बने तो हरि पुत्तर टॉप-5 में रहेगी।

Thursday, September 25, 2008

बसपा कार्यकर्ता ने पैसे माँगे: अमर सिंह

अमर सिंह
गृह मंत्री से नाराज़ हैं अमर सिंह
समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह ने आरोप लगाया है कि बहुजन समाज पार्टी के एक कार्यकर्ता ने सासंदों की कथित ख़रीद-फ़रोख़्त मामले में अपना बयान बदलने के लिए उनसे पाँच करोड़ रुपए की माँग की है.नई दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा कि बसपा कार्यकर्ता अज़मत अली गुरुवार सुबह उनके आवास पर आए और अपना बयान बदलने के लिए पाँच करोड़ रुपए की माँग की.उन्होंने कहा कि अज़मत अली का कहना था कि वह संसदीय समिति के सामने मनमाफ़िक बयान देकर उनकी छवि बिगड़ने से बचा सकते हैं.पुलिस अमर सिंह के घर से अज़मत अली को अपने साथ पूछताछ के लिए ले गई है.

आरोप:>सपा नेता ने आरोप लगाया कि उन्होंने गृहमंत्री शिवराज पाटिल से कहा कि वह पुलिस भेजकर अज़मत अली के ख़िलाफ़ ब्लैकमेलिंग का मामला दर्ज कराएँ, लेकिन उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया.


मैंने गृह मंत्री शिवराज पाटिल से फ़ोन पर अनुरोध किया कि वह अज़मत अली को गिरफ़्तार करने के लिए पुलिस भेजें लेकिन उन्होंने मेरे अनुरोध को अस्वीकार कर दिया और कहा कि मैं ख़ुद पुलिस से शिकायत करुँ
असर सिंह, सपा महासचिव

उन्होंने कहा, "मैंने गृह मंत्री शिवराज पाटिल से फ़ोन पर अनुरोध किया कि वह अज़मत अली को गिरफ़्तार करने के लिए पुलिस भेजें लेकिन उन्होंने मेरे अनुरोध को अस्वीकार कर दिया और कहा कि मैं ख़ुद पुलिस से शिकायत करुँ"अमर सिंह ने कहा कि यह सोचने वाली बात है कि अगर गृह मंत्री अगर अमर सिंह के साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं तो आम आदमी की क्या हालत होगी.ग़ौरतलब है कि भाजपा के तीन सांसदों ने प्रधानमंत्री की ओर से लाए गए विश्वास मत प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान लोकसभा में नोटों के बंडल दिखाकर आरोप लगाए थे कि उन्हें सरकार के पक्ष में मतदान करने के लिए पैसे दिए गए हैं.लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने इस मामले की जाँच के लिए एक सात सदस्यीय जाँच समिति गठित की थी. कांग्रेस सदस्य वी किशोर चंद्रदेव समिति के अध्यक्ष हैं.

उपदेश नहीं सेवा स्वीकारें

जोरापारा स्थित काली मंदिर में चल रहे श्रीमद्भागवत के विश्राम दिवस वृन्दावन धाम के ललित वल्लभ नागार्च ने कृष्ण के सोलह हजार एक सौ आठ विवाहों का वर्णन किया। महाराज युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के वर्णन में उन्होंने कहा कि कृष्ण सभी लोगों को यज्ञ में उच्च पद प्रदान कर स्वयं यज्ञ में आये अतिथियों के चरण धोने एवं झूठी पत्तल उठाने की सेवा स्वीकार कर उपदेश देते हैं कि कभी भी कोई धार्मिक कार्य हो तो वहां पद स्वीकार न करके सेवा करनी चाहिए। उन्होंने बताया कि यह धर्म का मर्म है अत: धार्मिक होना सरल है, मार्मिक होना कठिन है। सुदामा प्रसंग में कहा कि सुदामा के जीवन में बड़े-बड़े कष्ट आये फिर भी सुदामा ने संसारी जीवों को छोड़कर साक्षात् परमात्मा से भी कुछ भी नहीं मांगा। भगवान श्रीकृष्ण को यही कहना पड़ा कि सुदामा जैसे अन्य भक्तों के सामने जाने की मेरी सामर्थ्य नहीं है। नागार्च ने कहा कि एक दिन श्रीकृष्ण ने अपने नाती पोताओं को बुलाकर कहा कि मेरी द्वारिकापुरी में संत-महात्मा आते, ठहरते, खाते रहते हैं, आप लोग ऐसा न सोचना कि मेरा खा रहे हैं। यदि संत अपराध हो गया तो मैं नहीं बचा पाऊंगा। नव योगेश्वर, दत्तात्रेय के चौबीस गुरू, कृष्ण उद्धव संवाद, कलियुग दोष, हरिनाम महिमा, शुकदेव पूजन, परिक्षीत मोक्ष, जनमेजय यज्ञ, पुराण लक्षण, मार्कण्डेय चरित्र चरित्र वर्णन के उपरांत मुख्य परिक्षीत रविन्द्र शर्मा ने एवं कार्यक्रम के संयोजक हित रस रसिक मंडल के समस्त सदस्यों ने व्यास जी एवं संग पधारे विद्वान पंडितों, संगीतकारों का पुष्पमाला पहनाकर उत्तरीय उढाकर स्वागत किया। जापर कृपाराम की होई, ता पर कृपा करे सब कोई : विजय कौशल रायपुर, 20 जनवरी। शंकर नर में आयोजित रामकथा के प्रथम दिन पं. विजय कौशल महाराज ने कहा कि राम की कृपा तब होती है जब हम ईश्वर के बनाए हुए प्राकृतिक नियमों के अनुरूप आचरण करते हैं उन्होंने राम नाम का महत्व बताते हुए कलियुग को केवल नाम का आधार बताया राम नाम के श्रवण स्मरण मात्र से ही मुक्ति हो जाती है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा जो कानों से श्रवण होता है वह हृद्य में आत्मसात होता है वही ईश्वर साक्षात्कार का मार्ग मिलता है आप भी मेरे बताये हुए रास्तों का अनुसरण कीजिए आपको भी प्रभु के दर्शन अवश्य होंगे। उन्होंने कहा कि पुतना ने स्तनों पर विष लगाकर स्तनपान कराया फिर भी उन्हें मुक्ति मिली तो हम निर्मल मन से उन्हें याद करें तो हमें भी मुक्ति अवश्य मिलेंगी। कथा शुभारंभ के अवसर पर विशिष्ट अतिथि संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने सहपरिवार तथा श्रवण किया। राम के गुणगान से काल भी प्रसन्न होते हैं : राजेश्वरानंद रायपुर, 20 जनवरी। रामकृष्ण मिशन विवेकानंद आश्रम में विवेकानंद जयंती के उपलक्ष्य में हनुमत् चरित पर प्रवचन इस अवसर पर स्वामी राजेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि हनुमान जी महाकाल हैं। उन्हें कराल महाकाल कालं कृपालम् कहा गया है। हनुमान जी भगवान श्री राम के प्रताप भगवान के गुण गाने से काल भी प्रसन्न हो जाते हैं। हनुमान जी भगवान की कथा सुनाकर लक्ष्मण जी को प्रसन्न कर देते हैं। जिसे अपने बिस्तर पर काल दिखता है, वहीं भगवान की ओर बढ़ता है। उन्होंने कहा कि भगवान की ओर बढ़ने का मार्ग हनुमान जी दिखाते हैं। हनुमान जी संकट में सदा आगे रहते हैं और कुछ पाने में सदा पीछे रहते हैं दूसरों की अवसर देते हैं। उन्होंने बताया कि कुसंग को छोड़कर जो भी व्यक्ति भगवान की शरणागति लेगा, उसकी अनेक जन्मों की बिगड़ी बात अभी बन जाएगी व उसकी वासन की निवृत्ति आज अभी और इसी क्षण हो जाएगी। वह जन्म जन्मांतरों की वासना को नष्ट कर जन्म मरण के बंधन से मुख्य हो जाएगा। इच्छा सभी जन्मों का मूल है। इच्छा, तृष्णा, तृषा की प्यास कभी नहीं पूर्ण होती। इसके कारण मनुष्य सदा अशांत रहते हैं। तन की प्यास तृषा और मन की प्यास तृष्णा है। श्री हनुमान को कोई भी तृष्णा की प्यास नहीं है, क्योंकि वे सर्वदा भगवान का नाम लेते रहते हैं।

Wednesday, September 24, 2008

प्यार की ऐसी सजा, न देखी न सुनी

सऊदी अरब के कातिफ में रहने वाली इस किशोरी को एक सामान्य लड़की की तरह ही जाना जा सकता है। पर हकीकत इससे कही अलग है। इस किशोरी के साथ सात लोगों ने दुष्कर्म किया। इतना ही नही, उसे पुलिस और न्यायिक अधिकारियों ने भी यातनाएं दी। सऊदी के न्याय मंत्रालय का कहना है कि यह लड़की एक कालगर्ल है। लोगों से शारीरिक संबंध बनाना इसकी आदत है। यह सब ये इस देश को बदनाम करने के लिए कर रही है। इसके बारे मे तब पता चला जब यह केस अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों का हिस्सा बना। अभी भी इस लड़की को घर पर ही हिरासत मे रखा गया है। उसके परिवार पर निगरानी रखी जा रही है। उसके फोन टेप किए जा रहे है।

इस मामले में सऊदी के सबसे बड़े मानवाधिकार वकील अब्द अल रहमान अल लाहेम को निलंबित कर दिया गया है। इस लड़की की खता बस इतनी थी कि इसने अपनी आपबीती पर खामोश नही रहने का फैसला किया। जब वह पहली बार न्याय मांगने गई तब कोर्ट ने भी यह कहकर उसे 90 कोड़े लगाने का आदेश दिया कि उसने कई के साथ संबंध स्थापित किए है। मीडिया कवरेज होने का भी उसे खामियाजा भुगतना पड़ा और उसकी सजा बढ़ाकर दो सौ कोड़े व छह महीने की कैद कर दी गई। अमेरिका ने भी इस मामले पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए राजकुमार साउद अल फैजल से कहा कि वे सरकार से इस अत्याचार के बारे में तहसील से जानकारी ले। मध्य पूर्व के देशों की मानवाधिकार मामलों की विशेषज्ञ फरीदा दीफ का कहना है कि सऊदी न्याय मंत्रालय तो लड़की को पीडि़त मानने को तैयार ही नही है। उन लोगों ने तो उस पर मानहानि का मुकदमा तक दायर कर रखा है। इस लड़की ने अपनी जो आपबीती सुनाई वह दिल दहला देने वाली थी। उसे फोन पर ही उसके ही हमउम्र लड़के से प्यार हो गया। वो लड़का जिसे उसने कभी देखा भी नही था। यह लड़का उसे यह कहकर धमकाता भी था कि वो उसे अपना एक फोटो दे दे नही तो इस बात को उसके घर पर बता देगा। कुछ दिन बाद लड़की की कही और शादी हो गई। लड़की ने अपने पूर्व प्रेमी से अपनी फोटो वापस करने की गुजारिश की। लड़का उसे फुसलाकर फोटो देने के बहाने लांग ड्राइव पर एक सुनसान जगह पर ले गया। जहां पर सात लोगों ने उसके साथ दुष्कर्म किया। मुसीबतें अभी भी थमीं नही थी। जब कोर्ट में मामला पहुंचा तो वहां भी लड़की को ही दोषी ठहराया गया। उसे 90 कोड़े मारने की सजा दी गई और कहा कि तुम खुशनसीब हो कि तुम्हें जेल नसीब नहीं हुई। दरअसल, अब यह मामला शिया और सुन्नी के बीच की लड़ाई बन गया है। भुक्तभोगी लड़की शिया है जबकि सातों लड़के सुन्नी। गौरतलब है कि सऊदी कानून के मुताबिक वहां किसी भी लड़की का सार्वजनिक स्थान पर अपने सगे-संबंधियों को छोड़कर किसी अन्य पुरुष के साथ घूमना मना है। कालगर्ल आदि के मामलों में पकड़े जाने पर कोड़े लगाने या मृत्युदंड तक की सजा दी सकती है। लड़की का पति भी इससे बुरी तरह डरा हुआ है। पुलिस उसकी फरियाद को अनसुना कर देती है और आरोपी उसके घर के सामने घूमकर सारे कानूनों को धता बता रहे है।

करीना की सेहत का राज योग और डाइट

करीना कपूर किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। सन् 2000 में फिल्म 'रिफ्यूजी' से अपने कॅरियर की शुरुआत करते हुए तकरीबन 25 से ज्यादा फिल्मों में वह अपने ग्लैमर व अभिनय का जादू बिखेर चुकी हैं। 'चमेली', 'खुशी', 'फिदा', 'देव', 'ओमकारा' और 'जब वी मेट' जैसी कुछ उत्कृष्ट फिल्में भी उनकी सफलता के खाते में दर्ज है। इन दिनों वह अभिनेता सैफ अली खान के साथ अपनी अंतरंगता को लेकर कुछ ज्यादा ही चर्चा में है। आइए जानते करीना कपूर की फिटनेस का राज-

योग व व्यायाम:>करीना कपूर बताती है, ''मैं अतीत में योग व व्यायाम के संदर्भ में गंभीर नहीं थी। समय मिला तो कर लिया, अन्यथा जाने दिया। फिल्म 'टसन' की शूटिंग के दोरान मेरे डायरेक्टर का कहना था कि मैं कहीं ज्यादा मोटी हो चुकी हूं। 'टसन' में मेरे कुछ एक्शन सीन थे। डायरेक्टर चाहते थे कि मैं अगर थोड़ा वजन कम कर लूं तो मुझ पर फिल्माए गए एक्शन सीन काफी हद तक वास्तविक लगेंगे। उनकी सलाह पर मैंने आठ माह तक योग और कुछ अन्य व्यायाम किए। योगाचार्य भरत ठाकुर ने मुझे योग का एक माह का कोर्स करवाया। इसका अच्छा असर मेरी हेल्थ व बॉडी फिगर पर पड़ा। अब नियमित वर्कआउट करने की मेरी आदत पड़ चुकी है। योग करते हुए मैं कब अध्यात्म से जुड़ गयी, मुझे पता नहीं चला। अब मैं मेडिटेशन और प्रार्थना पर भी विश्वास करने लगी हूं। योग व मेडिटेशन से आप तनावमुक्त रहते हैं।''

डाइट:>''शुरुआत में मैं खानपान पर जरा भी नियंत्रण नहीं रखती थी। भूख लगने पर खूब डटकर भोजन करती थी। दो साल पहले तक मुझे चिकेन से बने व्यंजन बहुत पसंद थे, मगर अब मैं शाकाहारी बन चुकी हूं। गत दो सालों से मैं मुंबई के जाने-माने डायटीशियन रुजता दिवेकर के निर्देशन में एक डाइट-चार्ट पर अमल कर रही हूं। मिर्च-मसाला, तेल, केक, पेस्ट्री, आइसक्रीम और मिठाइयों से मुझे दूर रहने की सलाह दी गयी है। अब मैं भी समझ गयी हूं कि जरूरत से ज्यादा कैलोरी लेने का मतलब है- मोटापे को दावत देना। अब मैं 'वेट कांशस' भी हो गयी हूं। ज्यों ही मेरा वजन बढ़ता है, मैं अपने वर्क आउट के समय में वृद्धि कर देती हूं। मुझे इसका बेहतर परिणाम मिल रहा है। ''

जरूरी है नींद:>करीना कहती है कि मैं प्रतिदिन कम से कम 8 घंटे सोती हूं। किसी वजह से अगर शूटिंग देर रात तक चलती है, तो अगले दिन 12 बजे तक सोती हूं।ऐसी स्थिति में दोपहर या दिन ढलने के बाद, जब जितना वक्त मिलता है वर्क आउट करती हूं। कभी-कभी शूटिंग के समय लंच-ब्रेक के दौरान भी आधे घंटे की नींद ले लेती हूं। कभी घर से स्टूडियो की दूरी तय करते समय भी एक झपकी ले लेती हूं। पर्याप्त नींद लेने से आप में पर्याप्त ऊर्जा का निर्माण होता है। आप खुद में ज्यादा ताजगी महसूस करते हैं।

पीती हूं पर्याप्त पानी:>''त्वचा को सुंदर बनाने और सेहत के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पीना लाभप्रद है। घर से बाहर रहने पर मैं ज्यादातर लिक्विड डाइट लेती हूं ताकि शरीर में ज्यादा से ज्यादा पानी जाए। इसके लिए रसदार फल, नारियल अथवा नींबू पानी पीना बेहतर होता है।''


Tuesday, September 23, 2008

मजदूरों ने पार की इंसानियत की सारी हदें
जिस समय निष्कासित कर्मचारी कंपनी के अंदर घुसकर तोड़फोड़ कर रहे थे, उस वक्त कंपनी के प्रथम तल पर प्रबंधकों की बोर्ड रूम में बैठक चल रही थी। कर्मचारी हाथों में डंडे व लोहे की राड लेकर वहां पहुंच गए। इससे प्रबंधक इधर-उधर भागने लगे। कई प्रबंधक डर के मारे बाथरूम व सीढि़यों के नीचे छिप गए, लेकिन कर्मचारियों ने उन्हें वहां भी नहीं बख्शा।
कंपनी के प्रबंधक अनिल शर्मा को बाथरूम के अंदर पीटा गया। कंपनी के तीनों बाथरूम के अंदर भारी मात्रा में खून व मांस के टुकड़े मंगलवार को भी पड़े मिले। सीढि़यों का भी यही हाल है। उन पर खून बिखरा पड़ा है, जिसे देखने से लगता है कि निष्कासित मजदूरों ने वहां पर इंसानियत की सारी हदें पार कर दी थीं। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि कर्मचारियों को पहले से पता था कि कौन सा प्रबंधक कहां बैठता है। इसलिए उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से उन्हीं कमरों को अपना निशाना बनाया, जिन प्रबंधकों के खिलाफ ज्यादा रोष था। कमरों के शीशे व उनमें रखे कंप्यूटरों को चकनाचूर कर दिया गया। जान बचाने के लिए प्रबंधकों ने कर्मचारियों के सामने हाथ तक जोड़े थे, लेकिन उस समय कर्मचारी इतने क्रूर थे कि उन्होंने प्रबंधकों के सिरों पर लोहे की राड से वार करते समय यह तक नहीं सोचा कि इससे उनकी जान भी जा सकती है।
गेट से घुसे हमलावर
कंपनी में अंदर प्रवेश करने के लिए तीन अलग अलग स्थानों पर बड़े द्वार बने हुए हैं। घटना के समय तीनों गेट पर पांच-पांच सुरक्षा गार्ड तैनात थे। गेट को फांद कर कोई अंदर न जा सके, इसके लिए कंटीली तार लगाए गए थे। मजदूरों ने अंदर घुसने के लिए इन तीनों ही गेट का इस्तेमाल किया। घटना से पूर्व उन्होंने इन गेटों को घेर लिया था, ताकि कोई बाहर न जा सके।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार अंदर स्थिति बिगड़ने के बाद कंपनी में काम कर रहे अन्य मजूदर बाहर जाने के लिए उन दो गेट के तरफ भागे, जो सिर्फ सामान लाने ले जाने के लिए खोले जाते हैं। मजदूरों ने यह सोचकर इन गेट को खोला कि निष्कासित कर्मचारी मुख्य गेट पर होंगे, लेकिन जैसे ही उन्होंने बाहर जाने के लिए गेट खोला तो वहां पहले से पचास साठ मजदूर खड़े हुए थे। जिससे जाहिर होता है कि उन्होंने पूर्व नियोजित योजना के तहत तीनों गेट को घेर लिया था। गेट खुलते ही निष्कासित मजूदर मारपीट करते हुए अंदर आ गए। हथियारों से लैस मजदूरों को सुरक्षा गार्ड नहीं रोक सके। हरि नामक मजदूर ने बताया कि निष्कासित कर्मचारियों ने उनको निशाना बनाते हुए लाठी डंडे बरसा दिए। किसी तरह उन्होंने भागकर जान बचाई।
दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी भी थे निशाने पर
निष्कासित कर्मचारियों ने न केवल कंपनी प्रबंधकों को अपना निशाना बनाया, बल्कि दैनिक वेतनभोगी मजूदर भी उनके निशाने पर थे। कर्मचारियों का गुस्सा इन दैनिक वेतनभोगियों पर इसलिए अधिक था क्योंकि कंपनी ने स्थाई मजदूरों को निकाल कर उनको तवज्जो दी। निष्कासित कर्मचारी चाहते थे कि दैनिक वेतनभोगी कंपनी में काम न करें, ताकि काम न होने पर प्रबंधकों पर दबाव बनाया जा सके। इसलिए उनके साथ निष्कासित कर्मचारियों ने जमकर मारपीट की। उपद्रवी कर्मचारी उत्पादन कक्ष में अंदर घुस गए और उन्होंने जाते ही मशीनों पर काम कर रहे मजदूरों को अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया।
सीईओ हत्या मामले में 137 गिरफ्तार
इटली की बहुराष्ट्रीय कंपनी ग्रेजियानो ट्रांसमिशनी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड में सीईओ की पीटकर हत्या और तोड़फोड़ करने के मामले में पुलिस ने सोमवार को देर रात 137 कर्मचारियों को गिरफ्तार कर लिया। इनमें से 63 कर्मचारियों को मंगलवार को नोएडा फेस दो स्थित सीजेएम कोर्ट में पेश किया। कोर्ट ने उन्हें 14 दिन तक न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया, जबकि 74 कर्मचारियों को एसडीएम दादरी कोर्ट में पेश किया। कर्मचारियों की तरफ से जमानत की अर्जी पेश न किए जाने पर उन्हें जेल भेज दिया गया। सीईओ की हत्या से कंपनी में दूसरे दिन भी सन्नाटा पसरा रहा। घटना के बाद दहशत में आए कर्मचारी काम छोड़कर चले गए हैं। कंपनी को अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया गया है।बुधवार को कंपनी के ग्रुप सीईओ लेमबर्टो इटली से ग्रेटर नोएडा पहुंचकर मौके का जायजा लेंगे और कंपनी को आगे चलाने अथवा बंद करने के बारे में घोषणा करेंगे। वह मंगलवार को इटली से भारत के लिए रवाना हो चुके हैं। उधर, सीईओ ललित किशोर चौधरी के शव पोस्टमार्टम के बाद सुबह परिजन को सौंप दिया गया। दोपहर बाद दिल्ली के निगमबोध घाट पर परिजन व मित्रों ने उनको अंतिम विदाई दी।
उल्लेखनीय है कि उद्योग केंद्र के प्लाट संख्या 14 में स्थित ग्रेजियानो ट्रासमिशनी इंडिया प्रा. लि. से निकाले गए कर्मचारियों ने सोमवार को कंपनी के अंदर जमकर तोड़फोड़ की थी। इस दौरान मजदूरों ने कंपनी के सीईओ एवं एमडी ललित किशोर की पीट-पीट कर हत्या कर दी थी। हमले में कंपनी के करीब तीन दर्जन कर्मचारी व अधिकारी भी घायल हो गए थे।
कंपनी के कारखाना प्रबंधक एलके गुप्ता की शिकायत पर थाना बिसरख में 19 नामजद व सौ से ज्यादा अज्ञात मजदूरों के खिलाफ केस दर्ज किया था। पुलिस ने 63 मजदूरों के खिलाफ हत्या, तोड़फोड़ बलवा व 74 के खिलाफ शांति भंग करने का मामला दर्ज किया था। कंपनी में हिंसा के बाद डरे व सहमे अन्य कर्मचारी काम छोड़कर चले गए हैं। मंगलवार को कंपनी के अंदर सन्नाटा पसरा रहा। उत्पादन कार्य पूरी तरह से ठप हो गया है। सुरक्षा के लिहाज से कंपनी के अंदर सिर्फ गार्ड तैनात थे। कंपनी के बाहर पुलिस व पीएसी तैनात कर दी गई। इटली की ओरलिकॉन ग्रुप ने ग्रेटर नोएडा में ग्रेजियानो ट्रासमिशनी इंडिया प्रा। लि़ के नाम से अपनी यूनिट लगा रखी है। इस यूनिट के सीईओ ललित किशोर चौधरी थे। सोमवार को कंपनी की तरफ से इटली में ओरलिकॉन ग्रुप के सीईओ लेमबर्टो को घटना की सूचना दी गई थी। सूत्रों का कहना है कि इस घटना के बाद कंपनी यहां से अपनी यूनिट किसी दूसरे शहर में शिफ्ट कर सकती है। इटली की भारत में यह पहली कंपनी है।
नोएडा व ग्रेनो में उद्योग चलाना टेढ़ी खीर
आए दिन हो रही हड़ताल, कर्मचारियों की गुंडागर्दी, नेताओं की गंदी राजनीति के चलते नोएडा व ग्रेटर नोएडा में उद्योगों को चलाना टेढ़ी खीर होता जा रहा है। श्रम विभाग, पुलिस व प्रशासन समय पर कार्रवाई नहीं करते। इसके चलते कर्मचारियों के साथ छुटभैया नेता व गुंडे मिलकर उद्योगों को बंद कराने में जुटे हुए हैं। ऐसे में उद्यमी अपनी सुरक्षा को लेकर बेहद चिंतित हैं। इसके चलते पिछले सात वर्ष से जिले में किसी भी बहुराष्ट्रीय कंपनी ने निवेश नहीं किया है, बल्कि यहां की कंपनियां अन्य राज्यों में पलायन कर रही हैं। उद्यमियों के मुताबिक पिछले पांच वर्ष में यहां लगभग तीन सौ से भी कम छोटी इकाइयां लगीं, लेकिन लगभग दो हजार से अधिक उद्योग पलायन कर गए।
ग्रेटर नोएडा में मल्टीनेशनल कंपनी ग्रेजिआनो में मजदूरों ने जिस तरह से सीईओ की हत्या कर दी, इससे साफ हो गया है कि यहां उद्यमी व उद्योगों का भविष्य सुरक्षित नहीं है। इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के गौतमबुद्ध नगर चेप्टर के चेयरमैन जितेंद्र पारिक का कहना है कि जिन सपनों के साथ यहां कंपनी लगाई थी, वे दुस्वप्न में बदल गए हैं। उद्योग व उद्यमियों की सुरक्षा के मुद्दे को हर बार उद्योग बंधु की बैठक व पुलिस अधिकारियों के साथ होने वाली बैठक में उठाया जाता रहा है। पुलिस उद्योगों को सुरक्षा देने के नाम पर कुछ नहीं कर रही है। अगर पुलिस ने अपनी कार्यशैली में परिवर्तन करके उद्योगों को सुरक्षा नहीं दी तो वह दिन दूर नहीं जब यहां की मल्टीनेशनल व छोटी कंपनियां डेबू मोटर्स की तरह कर्मचारियों की हिंसा की भेंट चढ़कर बंद हो जाएंगी।
एसोसिएशन ऑफ ग्रेटर नोएडा इंडस्ट्रीज के महासचिव आदित्य घिल्डियाल का कहना है कि आए दिन होती हड़ताल के चलते बडे़ उद्योग ठीक से काम नहीं कर पा रहे हैं। जिले में बिगड़ती सुरक्षा व्यवस्था, श्रम विभाग व प्रशासन की लापरवाही के चलते जो माहौल बिगड़ा है, उसका असर है कि पिछले कई साल से जिले में एक भी मल्टीनेशनल कंपनी ने अपने प्लांट नहीं लगाए हैं। विदेशी निवेश पूरी तरह रुक गया है। एसोसिएशन ऑफ ग्रेटर नोएडा इंडस्ट्रीज के उपाध्यक्ष पीपी शर्मा का कहना है कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो जिले में कंपनी चलाने के लिए उद्यमियों को निजी फोर्स खड़ी करनी पड़ेगी। पुलिस व प्रशासन से मदद न मिलने से स्थिति से नहीं निपटा जा सकता।
फेस-दो इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष पीजेबी खुराना का कहना है कि करोड़ों रुपये खर्च कर लगाई गई कंपनी व उद्यमी की सुरक्षा करने में पुलिस प्रशासन पूरी तरह नाकाम है।
हर पखवाड़े सुनी जाएंगी समस्याएं:डीएम
जिला अधिकारी श्रवण कुमार शर्मा का कहना है कि घटना की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए हर पखवाड़े जिला प्रशासन उद्यमियों के साथ बैठक कर उनकी मजदूरों व सुरक्षा संबंधित समस्याओं का निराकरण करेगा। अगर किसी कंपनी में मजदूरों को लेकर कोई विवाद पैदा हो रहा है, उसे तत्काल दूर करने का प्रयास किया जाएगा। अगर किसी कंपनी में सुरक्षा को लेकर खतरा पैदा होने की संभावना होगी तो वहां पर सुरक्षा व्यवस्था उपलब्ध कराई जाएगी। एसएसपी आरके चतुर्वेदी ने कहा उद्यमियों में किसी प्रकार का भय नहीं होना चाहिए। अगर किसी उद्यमी को लगता है कि किसी बात लेकर मजदूरों में अशांति पैदा होने वाली है तो उसे तुरंत सुरक्षा प्रदान की जाएगी। सोमवार की तत्कालिक घटना थी। इससे पहले कंपनी को सुरक्षा प्रदान की गई थी। कंपनी की तरफ से कहा गया था कि अब कोई विवाद नहीं है इसलिए एक दिन पहले सुरक्षा व्यवस्था हटा ली गई थी। घटना की सूचना मिलने के बाद पुलिस के देरी से पहुंचने की शिकायत मिलने पर बिसरख थाना प्रभारी को निलंबित किया जा चुका है। सुरक्षा को लेकर किसी प्रकार की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की kजाएग
बेरोजगार बनते थे सिमी नेताओं का निशाना
सिमी नेता रमजान के पवित्र महीने में भी अपने नापाक इरादों को अमलीजामा पहनाने की साजिशें बुनते थे। इफ्तार पार्टियों के नाम पर होने वाली गुप्त बैठकों में धन उगाही की रणनीति बनाई जाती थी। विवादास्पद ढांचा गिराए जाने और गुजरात दंगों की कहानियां सुनाकर युवकों के दिमाग में जहर भरा जाता था। जब इससे भी बात नहीं बनती थी तो उन्हें पैसे और पद का लालच दिया जाता था।
सीरियल बम धमाकों के आरोपी आमील परवेज ने मध्यप्रदेश पुलिस को पूछताछ में ये जानकारी दी है। उसने बताया कि 2001 में सिमी पर प्रतिबंध लगने के बाद इसके नेता भूमिगत रहकर अपनी गतिविधियों को अंजाम देते रहे। मुस्लिम युवकों को अपने नापाक मकसद में शामिल करने के लिए विवादास्पद ढांचा गिराए जाने व गुजरात दंगों की कहानिया सुनाकर भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल किया जाता था। जब इससे भी बात नहीं बनती तो पैसा और पद का लालच दिया जाता था। आमील ने बताया कि सिमी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शाहिद बद्र, वर्तमान अध्यक्ष सफदर नागौरी व सिमी की सेंट्रल एडवाइजरी कमेटी के सदस्य अब्दुल सुभान किशोर उम्र के युवकों को बहलाते थे। प्रतिबंध के बाद सिमी लड़खड़ाने लगी थी। तब सिमी का राष्ट्रीय अध्यक्ष शाहिद बद्र थे।
लेकिन नागौैरी को कमान मिलते ही हालात बदलने लगे। उसने राजस्थान, बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु का दौरा किया और सिमी को फिर से खड़ा कर दिया। वह काम के लिए पढ़े-लिखे लेकिन बेरोजगार युवकों को चुनता था। फिर उन्हें इस्लाम के नाम पर गुमराह करता और अपनी साजिश का हिस्सा बना लेता था। कुछ दिनों पहले इदौर के चोरल में हुई बैठक में नागौरी ने सिमी की बिगड़ती आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए सभी राज्यों से धन जुटाने का टारगेट तय किया था। मध्यप्रदेश से तीन लाख, कर्नाटक से पाच लाख, गुजरात से तीन लाख, केरल से एक लाख, महाराष्ट्र से दो लाख रुपए की व्यवस्था करनी थी। सिमी नेता इफ्तार पार्टियों, ईद आदि मौकों पर कटने वाले बकरों की खाल बेचकर भी धन जुटाते थे।
नागौरी समेत पांच आरोपी पुलिस हिरासत में
सिमी प्रमुख सफदर नागौरी समेत अहमदाबाद बम धमाकों के पाचों आरोपियों की रिमाड अवधि समाप्त होने के बाद एक अन्य मामले में उन्हें 24 घटे के लिए पुलिस हिरासत में सौंप दिया गया है। मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले में सफदर नागौरी, कमरुद्दीन नागौैरी, हाफिज हुसैन, कर्नाटक निवासी आमील परवेज तथा केरल के शिवली अब्दुल करीम की मंगलवार को 14 दिन की रिमाड अवधि पूरी हो गई थी। इसके बाद पुलिस ने इन्हें मेट्रो कोर्ट में पेश किया। कोर्ट ने पाचों को खाडिया बम विस्फोट के मामले में चौबीस घटे के लिए पुलिस हिरासत में सौंप दिय

Thursday, September 18, 2008

छात्रवृत्तियों के लिए 30 अरब मंजूर

केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 11वीं योजना के दौरान उच्च शिक्षा छात्रवृत्तियों और अक्षम विद्यार्थियों को शिक्षा सुविधाएं प्रदान करने के लिए करीब 30 अरब रुपए की धनराशि को आज मंजूरी दी। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने विज्ञान के क्षेत्र में अन्वेषणापरक शिक्षा के लिए 820 करोड़ रुपए की छात्रवृत्तियां मंजूर की। छात्रवृत्तियां इसी सत्र से दी जाने लगेंगी। मंत्रिमंडल ने कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में अध्ययनरत छात्रों को दी जाने वाली छात्रवृत्तियों के लिए 1000 करोड़ रुपए की धनराशि मंजूर की। साधनहीन विद्यार्थियों की शिक्षा के लिए 12 अरब 60 करोड़ 80 लाख रुपए की धनराशि मंजूर की गई, जिससे 5 लाख 20 हजार विद्यार्थी लाभान्वित होंगे।

Wednesday, September 17, 2008

हिन्दी में आत्महत्या

एमिटी विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले एक छात्र ने इसलिए खुदकशी कर ली क्योंकि वह अँगरेजी में कमजोर था। नोएडा में अँगरेजी भाषा के दबाव को लेकर यह शायद दूसरी खुदकशी की खबर है। एमिटी विश्वविद्यालय ने यह जरूर कहा है कि उनके संस्थान ने अँगरेजी दास्ता बढ़ाने के लिए उस छात्र पर कोई दबाव नहीं डाला था लेकिन आत्महत्या करने वाले रवि भाटी के पिता ने रिपोर्ट दर्ज कराई है कि उनके बेटे ने अँगरेजी में कमजोर होने की वजह से परेशान होकर आत्महत्या की है। वह प्रबंधन का छात्र था। यह हिन्दी दिवस की ही घटना है। 14 सितंबर के दिन हिन्दी दिवस मनाया जाता है। यह हिन्दी का अँगरेजी के आमने-सामने हो जाने का दिन है। यह सिर्फ भाषा का मसला नहीं है। हैसियत का मसला भी है। भाषा और हैसियत में गहरा संबंध है। जरूर वह छात्र हिन्दी भाषी रहा होगा। प्रबंधन के पाठ्यक्रम अँगरेजी हार की दरकार रखते हैं। उनमें आर्ट अँगरेजी 'उच्चकोटि की साहित्यिक व्यंजनाओं अलंकारों वाली नहीं होती, सामान्य से वाक्य एक अलग विद्या के बारे में बताते हैं।
प्रबंधन में एक बड़ा हिस्सा गणित की जरूरत को बताता है। कैट-मैट की प्रवेश परीक्षा में जो कुछ पूछा जाता है, वह गणितीय सोच की तीव्रगति और सही गलत के सुपरफास्ट बारीक विवेक की भी परीक्षा होती है। अँगरेजी भाषा के रूप में वह बहुत कठिन नहीं होती। जो कठिन होता है वह प्रबुद्धता को परखने के क्षेत्र होते हैं। लाखों की नौकरी दिलाने वाले ऐसे पाठ्यक्रम स्पर्धात्मक जगत में आसान तो हो ही नहीं सकते। हिन्दी क्षेत्र के मध्यवर्गी माता-पिता अपनी संतानों को इस स्पर्धात्मकता में डालते हैं। कच्चे-पक्के अँगरेजी स्कूलों में थोड़ा सिखाकर या इससे भी रहित नौजवान स्पर्धा में या दाखिला-खरीद के जरिए ऐसे संस्थानों में पढ़ने लगते हैं लेकिन यदि कोई संस्थान डिग्री देता है, कागज का टुकड़ा नहीं, तो वह एक स्तर तो रखेगा ही। छात्र पर यही दबाव बन जाता है भाषा माध्यम और विषय को न समझ पाने का।
यथार्थ आत्मकुंठित करता रहता है, आत्मा मरती रहती है, कोई कमजोर मन वाला आत्महत्या कर लेता है, इससे दुख होता है। अँगरेजी भाषा के कारण आत्महत्या दरअसल उस कमजोर हैसियत का आत्मदंड है, जो स्पर्धा में पीछे रह जाना नहीं चाहती मगर जिसके पास स्पर्धा के साधन नहीं हैं। भाषाएँ अर्जित की जाती हैं, मातृभाषा भी। एक अर्थ में भाषा मुफ्त में मिली लगती है, मुफ्त होती। मनुष्य को ज्ञान कमाना पड़ता है, जो सहज मिलता लगता है, वह भी मेहनत से आता है। भाषा तो एक विकसित औजार है। अच्छी हिन्दी पढ़ने वाला भी इसे अर्जित करता है। हिन्दी भी सेंतमेंत में नहीं मिलती, जबकि लगता है कि मिलती है। अँगरेजी का माने तो ज्यादा है। बहरहाल रवि की आत्महत्या ने हिन्दी दिवस के दिन जनप्रियों के भाषणों और लेखों के मुकाबले हिन्दी को यह संदेश दिया है कि हिन्दी को, हिन्दीजन को, स्पर्धा में रहना है तो स्पर्धा का अर्जन करना होगा। जब संस्कृत शासकों की भाषा रही, तब संस्कृत में ज्ञान अर्जित करने के बहुत दाम और ताकत लगती थी, अब अँगरेजीके लिए है। हिन्दी के लिए भी दाम लगे, ताकत लगे, उसमें दुनियाभर के ज्ञानलिन की ताकत आए तो ऐसी घटनाएँ रुकेंगी। गलतफहमी दूर करनी होगी कि हिन्दी सेंतमें में मिलती है। और उसके भी दाम हैं चाहे अभी कम पैसे हैं, क्वालिटी बनाओगे तो दाम भी बढ़ेंगे। तब शायद हिन्दी में आत्महत्या नहीं होगी।

...तो तौकीर को फाँसी दी जाए-जुबैदा

धमाकों के आरोपी की माँ ने मीडिया से कहा
दिल्ली बम धमाकों के संदिग्ध सूत्रधार अब्दुल सुभान उस्मान कुरैशी उर्फ तौकीर की माँ जुबैदा कुरैशी ने बुधवार को यहाँ दावा किया कि उनका बेटा निर्दोष है। अगर वह दोषी साबित होता है तो उसे सरे आम उनके सामने फाँसजाए।
वकील मोबीन सोलकर के साथ मीडिया के सामने आईं जुबैदा ने तौकीर से अपील भी की कि वह सामने आए और स्थिति साफ करे। उन्होंने कहा उनके परिवार की छवि साफ है। वह इस तरह की गतिविधियों का हिस्सा नहीं हो सकता। उनका बेटा निर्दोष है। जुबैदा ने कहा अगर तौकीर विस्फोट करने या किसी तरह ही समाज विरोधी गतिविधियों का दोषी पाया जाता है तो उसे हमारे सामने सजा दी जा सकती है। सोलकर ने बताया तौकीर वर्ष 2001 से अपने अभिभावकों से अलग रह रहा है। पिछले दो वर्षों में उसने अपनी पत्नी से संपर्क नहीं किया, जो ठाणे जिले के मीरा रोड में रहती हैं।
सोलकर ने बताया बारहवीं कक्षा के बाद तौकीर ने कम्प्यूटर साइंस में डिप्लोमा हासिल किया। उसे विप्रो कंपनी में नौकरी मिली। 1999 में तौकीर ने निकाह किया और उसके तीन बच्चे हैं।उल्लेखनीय है कि तौकीर पर दिल्ली बम विस्फोटों का मास्टर माइंड होने के अलावा यह आरोप भी है कि इंडियन मुजाहिदीन के नाम से मीडिया आदि को जो ई-मेल भेजे जा रहे हैं, उनके पीछे भी तौकीर का 'कम्प्यूटर विशेषज्ञ' दिमाग है। यह ई-मेल मुंबई के विभिन्न ठिकानों से कम्प्यूटर के वाई-फाई कनेक्शन हैक कर भेजे जा रहे हैं। इस बीच मुंबई के प्रमुख मुस्लिम धर्मगुरुओं ने धमाकों के लिए इंडियन मुजाहिदीन की निंदा की। उन्होंने कहा इस तरह की घटनाओं से देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ता है और एक तरह से इंडियन मुजाहिदीन संघ परिवार और भाजपा के हाथों खेल रहा है, जो लोगों को धार्मिक आधार पर बाँटकर देश की सत्ता चलाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कट्टरपंथियों या अतिवादियों की संख्या 5 से दस फीसदी से अधिक नहीं है, लेकिन वे बहुसंख्य धर्मनिरपेक्ष किंतु खामोश बहुसंख्या को गुमराह कर रहे हैं। यह देश के लिए खतरनाक है।
तौकीर का बहनोई एटीएस के शिकंजे में
अहमदाबाद और दिल्ली बम धमाकों का फरार मास्टर माइंड अब्दुल सुभान कुरैशी उर्फ तौकीर के बहनोई राजू को महाराष्ट्र के आतंकवाद ‍‍रोधी दस्ते (एटीएस) ने बुधवार सुबह एक मस्जिद के बाहर से गिरफ्तार कर लिया। प्राप्त जानकारी के अनुसार एटीएस की टीम ने राजू और चार अन्य लोगों को सेहरी की नमाज के बाद नयानगर, मीरारोड़ इलाके की एक मस्जिद के बाहर से गिरफ्तार किया। ये सभी मुंबई पुलिस की मोस्ट वांटेड लिस्ट में शामिल थे।बताया जाता है कि गिरफ्तार किए गए सभी लोग तौकीर के लिए सूचनाएँ जुटाने का काम करते थे। उल्लेखनीय है कि अहमदाबाद और दिल्ली बम विस्फोटों से पहले तौकीर ने ही धमाकों से जुड़े ई-मेल भेजे थे। एटीएस सूत्रों ने उम्मीद जताई इन लोगों से पूछताछ के बाद तौकीर के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकती है।

Tuesday, September 16, 2008

सोनिया के निवास पर महारैली करेंगे पत्रकार

अंतरिम राहत मिलने में हो रही देरी से नाराज देश भर के हजारों पत्रकार और गैर पत्रकार 24 सितंबर को संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी के आवास तक महारैली निकालेंगे।कांफेडरेशन आफ न्यूज पेपर एंड न्यूज एजेंसी इंप्लाइज आर्गेनाइजेशंस के बैनर तले देश में समाचार पत्र उद्योगों से संबद्ध सभी राष्ट्रीय फेडरेशन, ट्रेड यूनियनें और स्थानीय यूनियनें इस महारैली में हिस्सा लेंगे। कांफेडरेशन के महासचिव एमएस यादव ने बताया कि कांफेडरेशन की मंगलवार को हुई आपात बैठक में सरकार द्वारा अंतरिम राहत की अधिसूचना जारी करने में की जा रही देरी पर चिंता व्यक्त की गई। साथ ही फैसला किया गया कि 24 सितंबर को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया के आवास पर प्रदर्शन किया जाएगा। उन्होंने बताया कि कांफेडरेशन के नेता श्रम मंत्री आस्कर फर्नाडिस सहित सभी प्रमुख केंद्रीय मंत्रियों से मिले और विपक्षी दलों के नेताओं से भी बात की, लेकिन नतीजा सिफर रहा। यादव ने कहा कि संप्रग सरकार मालिकों के दबाव में जानबूझ कर अंतरिम राहत की अधिसूचना जारी करने में देरी कर रही है, जबकि उसे अपनी जेब से पैसा नहीं देना है। पत्रकारों और समाचार पत्र उद्योग के अन्य कर्मचारियों को वेतन भत्ते तो मालिकों को देने होते हैं।यादव ने कहा कि मंहगाई के इस दौर में जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। हाल ही में केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए छठे वेतन बोर्ड की सिफारिशों को लागू किया, लेकिन देश के लाखों पत्रकारों और गैर पत्रकारों की समस्याओं से उसने मुंह मोड़ा हुआ है। यादव ने मांग की कि अंतरिम राहत की राशि बढ़ाकर 40 प्रतिशत की जानी चाहिए। पत्रकारों और गैर पत्रकारों के लिए गठित वेतन बोर्डो ने 30 प्रतिशत अंतरिम राहत की सिफारिश कर दी है और हमेशा सरकार बोर्ड की सिफारिश के बाद राहत राशि में वृद्धि करती आई है। यादव ने कहा कि वेतन बोर्ड द्वारा अंतरिम राहत के बारे में सिफारिश किए हुए तीन महीने बीत गए हैं। 28 जून को सिफारिश की गई थी, लेकिन इतना समय बीतने के बाद भी अभी तक इस संबंध में अधिसूचना जारी नहीं हो सकी है।उन्होंने बताया कि सोनिया के आवास पर प्रदर्शन में दिल्ली, उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, आंध्रप्रदेश, केरल, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और चंडीगढ़ की सभी प्रमुख अखबारी ट्रेड यूनियनें शामिल होंगी।यादव ने कहा कि हम सोनिया गांधी से मिलकर अपनी परेशानी से उन्हें अवगत कराएंगे। इससे पहले भी जब हमने कांग्रेस अध्यक्ष से गुहार लगाई थी तो उन्होंने हमारी मांगों पर ध्यान दिया था। अब जबकि सरकार हमारी बात नहीं सुन रही है, हमारे पास उनके सामने यह मुद्दा उठाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि सोनिया से मुलाकात का भी कोई नतीजा नहीं निकला तो पूरे देश में हड़ताल की जाएगी और हम घूम-घूम कर जनता को बताएंगे कि किस तरह संप्रग सरकार मालिकों के दबाव में देश के लाखों पत्रकारों और गैर पत्रकारों के हक को मार रही है। कांफेडरेशन में देशभर के अखबार जगत से जुड़ी पांच बड़ी फेडरेशन और ट्रेड यूनियनें शामिल हैं। कांफेडरेशन की बैठक में इंडियन जर्नलिस्ट्स यूनियन [आईजेयू] के अध्यक्ष सुरेश अखौरी, आल इंडिया न्यूजपेपर इंप्लाइज फेडरेशन [एआईएनईएफ] के नेता के एल कपूर नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स [आई] के अध्यक्ष नंद किशोर त्रिखा, फेडरेशन आफ पीटीआई इंप्लाइज यूनियन के महासचिव एमएस यादव और यूएनआई वर्कर्स यूनियन के नेता राजेश वर्मा और एमएल जोशी शामिल हुए।

केंद्र में आते ही अफजल को फांसी: राजनाथ

भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह यहां पूरे चुनावी मूड में थे। चुनावी वायदों की झड़ी लगाते हुए उन्होंने घोषणा की कि केंद्र में भाजपा की सरकार बनते ही आतंकी अफजल को फांसी पर लटका दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि यूपी की मायावती सरकार की मनमानी पर अंकुश लगेगा, किसानों को चार फीसदी ब्याज दर पर ऋण मिलेगा और महंगाई पर नियंत्रण किया जाएगा।भाजपा अध्यक्ष सोमवार को उत्तर प्रदेश के बहराइच में पार्टी की 'विजय संकल्प रैली' को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने चुनाव आयोग से मांग की कि कश्मीर में पाकिस्तान का झंडा उठाने वाले संगठनों के समर्थक राजनीतिक दलों की मान्यता खत्म करके उन्हें चुनाव लड़ने से रोका जाए। पोटा कानून खत्म करके यूपीए सरकार ने सुरक्षाबलों का मनोबल तोड़ दिया। केंद्र में भाजपा सरकार बनते ही आतंकवाद का सफाया कर दिया जाएगा। उन्होंने मुसलमानों से अपील की कि वे आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सुरक्षाबलों का सहयोग करें। देवबंद दारुल उलूम ने आतंकवाद का विरोध करके सराहनीय पहल की।भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि बहराइच बहादुरों की धरती है। यहां महाराजा सोहेलदेव पैदा हुए, जिन्होंने विदेशी आक्रांताओं से लोहा लिया। पर दुर्भाग्य है कि ऐसी वीर-भूमि आज गोकशी की घटनाओं के लिए चर्चा में है। सिंह ने आरोप लगाया कि बसपा ने एक भी चुनावी वायदों पूरा नहीं किया।उन्होंने सवाल किया कि मुलायम सिंह अमर सिंह को जेल भेजने की घोषणाओं का क्या हुआ? उन्होंने कहा कि अगर उनके ऊपर कभी भ्रष्टाचार का आरोप लगा, तो वह राजनीति छोड़ देंगे। भाजपा सरकार बनने पर किसानों को चार फीसदी ब्याज दर पर ऋण दिया जाएगा। धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1100 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया जाएगा।

नेपाल बदल रहा है, रिश्ते भी बदलेंगे : प्रचंड

जब तक पुरानी संधियां नहीं टूटेंगी,तब तक नए समझौते नहीं हो सकते।
भारतीय सेना में नेपाली गोरखाओं के होने का कोई मतलब नहीं है। हां। अगर ओलंपिक का समापन समारोह नहीं होता तब शायद मैं चीन नहीं जाता।दस वर्षों तक सशस्त्र संघर्ष का नेतृत्व करने के बाद जनतांत्रिक चुनाव के जरिए सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' बिना किसी लाग-लपेट के यह कह रह हैं कि नेपाल में व्यवस्था के स्तर पर एक क्रांति ने आकार लिया है। इस नाते अब नेपाल के भारत सहित दुनिया के तमाम मुल्कों के साथ रिश्तों का व्याकरण भी बदलेगा। प्रचंड मानते हैं कि अब द्विपक्षीय रिश्तों को एक नए आयाम से देखने की जरूरत है। प्रचंड नेपाल में संसदीय लोकतंत्र के स्थान पर जनोन्मुखी लोकतंत्र का मॉडल लाने की बात कर रहे हैं। वे खुद मानते हैं कि उनका यह प्रयोग जोखिम भरा है लेकिन वे ऐसा करने के लिए कटिबध्द नजर आते हैं। भारत के साथ 1950 और उसके बाद हुई सभी संधियों की वे समीक्षा चाहते हैं। अब तक पारंपरिक रूप से नेपाल के प्रधानमंत्री शपथ ग्रहण के बाद पहली यात्रा भारत की किया करते थे, लेकिन प्रचंड ने ऐसा नहीं किया। इन्हीं तमाम मुद्दों पर प्रचंड से देशबन्धु ने उनके दिल्ली प्रवास के दौरान विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश -
नेपाल में राजनीतिक व्यवस्था का स्वरूप क्या होगा, क्या यह संसदीय लोकतंत्र के रूप में उभरेगी?
हम नेपाल में लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाएंगे, लेकिन यह संसदीय लोकतंत्र नहीं होगा। हम एक नए लोकतंत्र के स्वरूप को बनाना चाहते हैं, जो पारंपरिक लोकतंत्र से अलग होगा। हम लोकतंत्र स्थापित करने के लिए पुराने मानदंडों को नहीं अपनाएंगे। इसके लिए हमने एसेंबली में एक नीति भी रखी थी, जिसे सर्वसम्मति से पारित भी कर दिया गया है। यह संसदीय लोकतंत्र नहीं, जनोन्मुखी लोकतंत्र होगा। इस तरह के प्रयोग लगातार जारी रहेंगे, क्योंकि हमें एक नई व्यवस्था का मॉडल सामने रखना है, जिसमें पीडित-शोषित एक महत्वपूर्ण भूमिका में हाेंगे। सही अर्थों में जनता की सरकार होगी। नेपाल एक प्रयोग होगा, जिसका असर भारत ही नहीं पूरे दक्षिण एशिया पर पड़ेगा। यह जोखिम भरा काम है, लेकिन हमें अपने सिध्दांतों पर पूरा विश्वास है। क्या वजह थी कि प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद आपकी पहली यात्रा भारत के स्थान पर चीन की हुई?
चीन भी हमारा पडाेसी देश है, क्योंकि हम ओलिपिंक के उद्धाटन समारोह में शामिल नहीं हो पाए थे। इसलिए समापन समारोह में चले गए। भारत और नेपाल के संबंध और चीन और नेपाल के संबंध की तुलना नहीं की जा सकती। भारत के साथ नेपाल के संबंध बहुत पुराने हैं, दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक ऐतिहासिक व आर्थिक लेन-देन का संबंध है, यह संबंध काफी गहरा है। हम चीन के साथ भी संबंध बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इन दोनों संबंधों की कभी किसी स्तर पर तुलना नहीं की जा सकती।
क्या बीजिंग में ओलिंपिक नहीं होता, तो आप चीन नहीं जाते? हां। शायद तब मैं चीन नहीं जाता।
आपने कहा था कि भारतीय सेना के गोरखा रेजीमेंट में नेपाली गोरखा शामिल नहीं होंगे। इसके पीछे क्या तर्क है?
हां, यह सही है। भारतीय सेना में नेपाली गोरखाओं के होने का कोई मतलब नहीं है। जहां तक मुझे पता है भारतीय सेना में लगभग चालीस हजार नेपाली गोरख ा हैं। असल में 1950 के बाद के जितने भी समझौते हैं, उनमें बदलाव की जरूरत है।
इन्हीं समझौतों में भारतीय सेना में नेपाली गोरखों के शामिल होने की भी बात है। इन समझौतों में सुधार किया जाएगा, तो यह परंपरा भी खत्म होगी। भारत की आपकी यह पहली राजनीतिक यात्रा है, भारत सरकार का रुख आपको कैसा लगा?
मेरी प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह से मुलाकात हुई, विदेशमंत्री प्रणब मुखर्जी से भी मैं मिला हूं। इसके अलावा मैंने भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रमुख नेताओं से भी मुलाकातें की हैं। भारतीय नेतृत्व से मैंने साफ-साफ कहा है कि भारत और नेपाल के बीच 1950 में हुई संधि को यही खत्म किया जाए। जब तक पुरानी संधि नहीं टूटेगी, तब तक नया समझौता नहीं हो सकता। हमने उनसे सीमा सुरक्षा, जल संसाधन से संबंधित मुद्दे पर भी बदलाव करने की बात कही है। नेपाल की व्यवस्था में क्रांति आई है और इसलिए दूसरे देशों के साथ उसके संबंधों को भी एक नए आयाम से देखा जाना चाहिए।
आप 1950 की संधि में क्या बदलाव चाहते हैं, इसको लेकर आपकी नई दिल्ली से क्या बातचीत हुई है?
दरअसल 1950 के बाद की सभी संधियों में बदलाव की जरूरत है। नदी जल बटवारे को लेकर दोनाें देशों के बीच जो संधियां हुई हैं और उनमें जो शर्तें रखी गई हैं, उनपर विचार करने की जरूरत है। यही बात कोसी और गंडक नदी के समझौते को लेकर भी है। यही बात भारतीय सेनाओं में नेपाली गोरखाओं के बारे में भी है। दोनाें देशाें की सीमाओं से संबंधित बातें भी समझौते में शामिल हैं। भारत सरकार भी मान रही है कि इन संधियों में बदलाव की जरूरत है। इन सभी संधियों की समीक्षा होगी। इसके लिए टास्क फोर्स का गठन किया जाएगा। जो सभी संधियों की समीक्षा करेगा। वही तय करेगा कि किन संधियों को पूरी तरह से बदलने की जरूरत है और किन संधियों में संशोधन की जरूरत है। जल्द ही इस संबंध में दोनों देशाें का संयुक्त बयान जारी होगा। आप नेपाल में भारतीयों से निवेश की अपील कर रहे हैं, लेकिन पूर्व में वहां भारतीय निवेशकों को सुरक्षा का संकट रहा है। ऐसे में अब निवेशकों को सुरक्षा का भरोसा कैसे दिलाएंगे ?
मैं चाहता हूं की नेपाल भी औद्योगिक रूप से विकसित हो। मैंने निवेशकों को कहा है कि वे नेपाल में निवश करें। निवेशकों को वहां हर तरह की सुरक्षा प्रदान की जाएगी। औद्योगिक सुरक्षा के लिए जो भी संभव होगा हम करेंगे। मैं पिछली घटनाओं में नहीं जाना चाहता। लेकिन अब यह भरोसा जरूर दिलाना चाहूंगा कि नेपाल में उद्योग लगाने वालों को सरकार पूरी सुरक्षा उपलब्ध कराएगी।
देशबन्धु विशेष साक्षात्कार

Monday, September 15, 2008

ब्रिटेन का पहला सरकारी हिंदू स्कूल

ब्रिटेन का पहला सरकारी हिंदू स्कूल सोमवार से खुल जाएगा। स्कूल के पहले बैच में 30 स्टूडेंट होंगे। यहां हिंदू धर्म और सांस्कृतिक मूल्यों के साथ ब्रिटिश शिक्षा दी जाएगी। ब्रिटेन में इस तरह के कई स्कूल चल रहे हैं लेकिन ब्रिटिश सरकार द्वारा चलाया जाने वाला यह पहला हिंदू स्कूल होगा। सरकार की मंजूरी के 3 साल बाद और एक करोड़ पाउंड (तकरीबन 81 करोड़ रुपये) की लागत से बने इस स्कूल को कृष्णा अवंती प्राइमरी स्कूल नाम दिया गया है। यह लंदन के हैरो में स्थित है। स्कूल की हेड नैना परमार कहती हैं कि यह ब्रिटेन के दस लाख हिंदुओं के लिए बड़ी उपलब्धि है। हमारा मकसद प्रभावी, शांत और खुशनुमा शैक्षिक माहौल तैयार करना है। हम स्टूडंट्स को वैदिक ज्ञान भी देंगे। इसमें हर साल 5 से 11 साल तक के बच्चों को एडमिशन दिया जाएगा। 2014 तक इसमें 236 बच्चों को एडमिशन दिए जाने का लक्ष्य है।

भारत के साथ अतुलनीय रिश्ता: प्रचंड


नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कुमार दहल यानी प्रचंड ने कहा है कि भारत के साथ संबंध उनके लिए काफ़ी अहमियत रखते हैं और चीन के साथ इसकी तुलना नहीं की जा सकती.:उन्होंने इस बात से इनकार किया कि नेपाल का ध्यान चीन की ओर ज़्यादा है. लेकिन प्रचंड ने यह भी स्पष्ट किया कि उनका देश चीन के साथ भी संबंध बढ़ाना चाहता है.सोमवार को प्रचंड ने भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाक़ात की है. पाँच दिनों की भारत यात्रा पर प्रचंड रविवार को दिल्ली पहुँचे थे.प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अलावा प्रचंड ने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी से भी मुलाक़ात की।

सुरक्षा:प्रचंड ने एक कार्यक्रम में भारतीय उद्योगपतियों को भी संबोधित किया. उन्होंने कहा कि नेपाल में भारतीय निवेशकों को पूरी सुरक्षा दी जाएगी.हालाँकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सुरक्षा के मामले पर भारत से विचार-विमर्श की आवश्यकता है.उन्होंने कहा, "सांस्कृतिक, भौगोलिक और ऐतिहासिक रिश्तों को देखते हुए भारत के साथ संबंध काफ़ी अहमियत रखता है. लेकिन वे चीन के साथ भी संबंधों में बेहतरी चाहते हैं."बीजिंग ओलंपिक के समय प्रचंड चीन दौरे पर गए थे. लेकिन प्रचंड ने स्पष्ट किया कि भारत दौरा ही प्रधानमंत्री बनने के बाद उनका पहला आधिकारिक दौरा है. हालाँकि उन्होंने बीजिंग जाने पर चीन के नेताओं से मुलाक़ात की थी.दिल्ली में एक कार्यक्रम में भारतीय उद्योगपतियों को संबोधित करते हुए प्रचंड ने उन्हें नेपाल में निवेश करने का न्यौता भी दिया.

Sunday, September 14, 2008

डिग्री शिक्षकों के लिए खुलेगा खजाना

पढ़ाई-लिखाई में होनहार हैं-तो प्रतिभा का सही इस्तेमाल करिए। विश्वविद्यालय या कालेज के शिक्षक बनने का सपना देखिए। आने वाला समय डिग्री शिक्षकों का है। उनका सम्मान और बढ़ना ही है, साथ ही वेतनमान भी इतना आकर्षक होगा कि शिक्षक खुद को गौरवान्वित महसूस करेंगे। इतना ही नहीं, सेवानिवृत्ति आयु भी पैंसठ साल हो सकती है। अधिक काबिल हैं तो कुछ और भी मौके मिलेंगे।विश्वविद्यालयों व कालेजों के शिक्षकों के नए वेतनमान व सुविधाओं के लिए गठित 'वेतन समीक्षा समिति' के चेयरमैन प्रो. जीके चढ्डा ने अपनी रिपोर्ट तो अभी यूजीसी को नहीं दी है, लेकिन शिक्षकों के और सुनहरे भविष्य के संकेत जरूर दिए हैं। शनिवार से शुरू दो दिनी बैठक के बाद रविवार को उन्होंने पत्रकारों से कहा,'समिति के दिमाग में केंद्रीय कर्मचारियों के लिए हाल में लागू हुई छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट भी है। लेकिन हमारी कोशिश इस रिपोर्ट से भी आगे बढ़कर शिक्षकों के लिए और बेहतर करने की है। हम चाहते हैं कि शिक्षक बनने वाला कोई भी व्यक्ति तनख्वाह के मामले में हीन न महसूस करे'।उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा से जुड़े शिक्षकों के वेतनमान व सुविधाओं में कई विसंगतियां हैं। दक्षतारोध [स्टेगनेशन] एक बड़ी समस्या है। समिति इसे सुधारने की मंशा रखती है। लिहाजा सालाना वेतनवृद्धि के अलावा हर एक साल छोड़कर खास वेतनवृद्धि की सिफारिश की जा सकती है। चेयरमैन के मुताबिक समिति पढ़ाने के क्षेत्र में आने वालों को उनकी नियुक्ति और सेवानिवृत्ति-दोनों मौकों पर खास प्रोत्साहन दिए जाने का ख्याल रखती है। शिक्षकों के रिटायरमेंट की आयु सीमा में अभी बहुत भिन्नता है। यह कहीं 55, कहीं 58 तो कहीं-कहीं 60 और 65 साल भी है। समिति राष्ट्रीय स्तर पर इसमें एकरूपता की हिमायती है। उसकी मंशा सेवानिवृत्ति की आयु 65 साल करने की है। सेवानिवृत्ति के बाद भी शिक्षक को फिर से नौकरी में रखने का रास्ता भी खोला जा सकता है। इसी तरह किसी शिक्षक में ज्यादा काबलियत और संभावनाएं दिखती हैं-तो उसे खास पैकेज देकर नियुक्ति कर ली जानी चाहिए।प्रो. चढ्डा ने यह खुलासा तो नहीं किया कि शिक्षकों की जवाबदेही किस रूप में तय की जाएगी, लेकिन यह जरूर कहा कि उनके कामकाज का मूल्याकंन होगा। मूल्यांकन में छात्रों को भी शामिल किया जा सकता है। यह देखा जाएगा कि शिक्षक संस्थान को कितना समय देता है और उसके पढ़ाने के नतीजे क्या आते हैं। समिति विश्वविद्यालयों व कालेजों के भीतर शिक्षकों की वरिष्ठता व कनिष्ठता के आधार पर अलग-अलग स्तर तय करने की हिमायती है।मालूम हो कि यूजीसी ने वेतन समीक्षा समिति को रिपोर्ट के लिए एक साल का समय दिया था जो दस दिन पहले खत्म हो चुका है। इसे बढ़ाया भी जा सकता है। प्रो. चढ्डा ने पत्रकारों के बार-बार पूछने पर यह नहीं बताया कि रिपोर्ट कब देंगे, लेकिन उम्मीद है कि तीन महीने के भीतर उनकी रिपोर्ट आ जाएगी।

पाक ने 16 भारतीय मछुआरे पकड़े

जामनगर के औखा बंदरगाह इलाके में पाकिस्तान मरीन सिक्युरिटी एजेंसी ने समुद्री सीमा से गुजरात के 16 मछुआरों को गिरफ्तार कर लिया।नेशनल फिश फोरम गुजरात से प्राप्त जानकारी के अनुसार रविवार सुबह गुजरात के 16 मछुआरे तीन बोट लेकर औखा बंदरगाह से निकले थे। अरब सागर में समुद्री सीमा को अनजाने में पार कर लेने के बाद पाकिस्तान मरीन सिक्युरिटी एजेंसी ने उन्हे गिरफ्तार कर उनकी तीन बोट जब्त कर ली। इन मछुआरों की गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान के कब्जे में गुजरात के मछुआरों की संख्या 392 पहुच गई है।

Saturday, September 13, 2008

भारत में आतंक का साया

राजधानी दिल्ली के अलावा देश के अन्य स्थानों पर पिछले 15 वर्षों के दौरान हुए बम धमाकों की प्रमुख घटनाओं का वर्षक्रमानुसार ब्योरा इस प्रकार है-
मार्च 1993- मुम्बई में हुए श्रृंखलाबद्ध बम धमाकों में 257 लोगों की मृत्यु, एक हजार से ज्यादा घायल।
1 अक्टूबर 2001- आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर राज्य विधानसभा परिसर में बम विस्फोट कर 35 लोगों की हत्या की।
(अगस्त 2003- मुम्बई में दो टैक्सियों में रखे बमों में विस्फोट, 52 मरे और 100 से ज्यादा घायल।
8 सितंबर 2006- नासिक के मालेगाँव में मस्जिद के पास तीन विस्फोट, 37 मरे और सौ से अधिक घायल।
11 जुलाई 2006- मुंबई की लोकल ट्रेनों में धमाके, 200 लोग मारे और 700 से ज्यादा घायल।
7 मार्च 2006- वाराणसी में रेलवे स्टेशन और संकटमोचन मंदिर में धमाके, 20 मरे।
23 नवंबर 2007- लखनऊ, फैजाबाद और वाराणसी की अदालतों में धमाके, 13 मरे, 75 घायल।
11 अक्टूबर 2007- अजमेर के ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में धमाके, दो मरे, 14 घायल।
25 अगस्त 2007- हैदराबाद में बम विस्फोट, 42 मरे, सौ घायल।
18 मई 2007- हैदराबाद की मक्का मस्जिद में धमाके, 11 मरे।
18 फरवरी 2007- समझौता एक्सप्रेस में दो धमाके , 60 मरे।
एक जनवरी 2008- उत्तरप्रदेश के रामपुर में सीआरपीएफ के शिविर पर हमला, सात पुलिसकर्मी समेत आठ मारे गए।
मई 2008- जयपुर में 12 मिनट के अंदर हुए आठ बम विस्फोटों में 65 लोगों की मृत्यु, 150 घायल।
जुलाई 2008- बेंगलुरु में नौ बम धमाकों में दो लोग मरे, 12 घायल।
26 जुलाई 2008- अहमदाबाद में सीरियल ब्लास्ट, 50 से अधिक मरे।

सीरियल धमाकों से दहली दिल्ली, 25 लोग की मौत


सीरियल बम धमाकों से थर्राई दिल्ली
17 मिनट, 5 धमाके
नई दिल्ली, 13 सितम्बर । दिल्ली में शाम 6 बजे 17 मिनट के अंदर एकाएक 5 धमाके हुए। इसमें कनॉट प्लेस इलाके में 2, करोलबाग के गफ्फार मार्केट में एक और ग्रेटर कैलाश के एम ब्लॉक मार्केट में 2 ब्लास्ट हुए। धमाके में 25 लोगों की मौत हो गई है जबकि घायलों की तादाद 130 है।
पहला धमाका करोलबाग के गफ्फार मार्केट में एक ऑटोरिक्शा में हुआ जहां लगभग 130 लोग घायल हो गए हैं। घायलों को नजदीक के गंगाराम अस्पताल में भर्ती कराया गया है।गफ्फार मार्केट के भीड़-भाड़ वाले इलाके में जब विस्फोट हुआ तो वहां अफरा-तफरी फैल गई। कई दमकल वाहन उस इलाके में पहुंचे लेकिन संकरी गलियों से इन वाहनों और एंबुलेंस का उस क्षेत्र में दाखिल होने में काफ़ी दिक्कत पेश आई। उस धमाके में कई लोग हताहत हुए, क्योंकि शनिवार की शाम वहां काफी गहमागहमी थी।
कनॉट प्लेस में अलग-अलग जगहों पर दो धमाके हुए बाराखंबा रोड पर स्थित गोपाल दास बिल्डिंग में एक धमाका हुआ तो दूसरा 10 मिनट बाद कनॉट प्लेस स्थित मेट्रो स्टेशन के पास सेंट्रल पार्क में हुआ। यहां पर हुए घायलों को नजदीक के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में पहुंचाया गया है। एक प्रत्यक्षदर्शी के मुताबिक बाराखंभा रोड पर गोपालदास इमारत के पास धमाके की आवाज सुनाई दी और फिर मैने एक कूड़ेदान के पास से धुआं उठता देखा। मैंने एक महिला को गिरते हुए भी देखा। एक ऑटो में कुछ घायलों को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन देखते ही देखते ऑटो का फ़र्श ख़ून से भर गया। कई लोगों को पुलिस वाहनों ने अस्पताल पहुंचाया।पुलिस ने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है। जबकि दक्षिणी दिल्ली के ग्रेटर कैलाश पार्ट 1 के एम ब्लॉक मार्केट में अलग-अलग जगहों पर दो धमाके हुए। दोनों धमाके मार्केट के दोनों अलग-अलग छोरों पर हुआ। इसके अलावा पुलिस ने दो जिंदा बम बरामद किया है एक चिल्ड्रेंस पार्क से और दूसरा कनॉट प्लेस के रीगल सिनेमा के पास एक कूड़ेदान से। दोनों बमों को बम निरोधक दस्ता द्वारा निष्यि कर दिया गया है। गौरतलब है कि सभी धमाके दिल्ली के व्यस्तम बाजारों में हुआ है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने इन धमाकों की कड़ी निंदा की है और लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है।वहीं दिल्ली के वाइंट कमिश्नर करनैल सिंह का कहना है कि इन ब्लास्ट में आरडीएक्स का इस्तेमाल नहीं किया गया है। धमाके से पांच मिनट पहले इंडियन मुजाहिदीन की तरफ से एक ई-मेल भेजा गया है जिसमें लिखा गया है कि हमारा वादा पूरा हो गया है। सबसे पहला धमाका दिल्ली के गफ्फार मार्केट में हुआ। गौरतलब है कि गफ्फार मार्केट मोबाइल फोन के खरीद-फरोख्त के लिए एक बड़ा बाजार है।धमाके को देखते हुए भीड़-भाड़ वाले इलाके की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। रेलवे स्टेशन, बस स्टेंड और धार्मिक स्थलों पर आने-जाने वाले लोगों पर पैनी नजर रखी जा रही है। कनॉट प्लेस से दो संदिग्ध लोगों को हिरासत में लिया गया है। वहीं एक बच्चा का कहना है कि उसने कूड़ेदान में बम रखते हुए आतंकियों को देखा है और उसे दोबारा देखने से उसे पहचान लेगा। बच्चा का कहना है कि बम रखने वाला आतंकी ऑटोरिक्शा से आया था और कूड़ेदान में काले पॉलीथीन में बम रखकर निकल गया। वो काले रंग के कपड़े पहने हुए थे।
यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, गृहमंत्री शिवराज पाटिल और दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने अस्पतालों में जाकर घायलों का हाल-चाल पूछा। दिल्ली सरकार ने मृतकाें के परिजनों को पांच-पांच लाख और घायलों को 50-50 हजार रुपए की सहायता राशि देने का भी ऐलान किया है। उधर, देर रात दिल्ली के तमाम इलाकों में सेना की विशेष मशीनों की सहायता से बमों को ढूंढ़ने का काम जारी रहा। दिल्ली से लगी सभी सीमाओं पर भारी चौकसी बरती जा रही है और सघन चैकिंग अभियान जारी है।
इंडिया गेट और मेट्रो भी थे निशाने पर
सीरियल बम धमाकों से थर्राई दिल्ली में कई और धमाकों की साजिश आतंकवादियों ने रची थी। उनका इरादा इस हमले को कई गुना बड़ा बनाने का था। यह साजिश कितनी भयावह थी, इसका अंदाजा इस बात से होता है कि आतंकवादियों ने इंडिया गेट के पास भी विस्फोट करना चाहते थे। इतना ही नहीं आतंकियों के निशाने पर दिल्ली की मेट्रो रेल सेवा भी थी। पुलिस ने समय रहते इस बम का पता लगा लिया और उसे निष्यि कर दिया। इतना ही नहीं कनॉट प्लेस के रीगल प्लाज़ा की इमारत में दो बम और सेंट्रल पार्क तथा पालिका बाजार में एक-एक बम पाए जाने की भी खबर है। इन बमों को समय रहते निष्यि कर दिया गया।
मैंने देखा था आतंकवादी"मैंने आतंकवादी को बम रखते हुए देखा है। वह काले रंग का कुर्ता-पायजामा पहने हुए थे और वह एक काली पॉलिथिन में बम एक कूड़ेदान में रखकर चला गया। मैं वहां गुब्बारा बेचता हूं।" यह बयान है राजधानी दिल्ली में हुए सनसनीखेज सीरियल ब्लास्ट के बाद कनॉट प्लेस इलाके की बाराखंभा रोड पर गुब्बारा बेचने वाला 12 साल के राहुल का। राहुल इन धमाकों का एक बेहद अहम चश्मदीद हो सकता है। दिल्ली पुलिस राहुल से पूछताछ कर रही है। राहुल के मुताबिक उसने बाराखंभा रोड पर बम धमाके से करीब 10 मिनट पहले एक मूंछ और बड़ी दाढ़ी वाले आदमी को एक काली पॉलिथिन में कोई चीज रखते हुए देखा था। राहुल के मुताबिक वह ऑटो से आया था और काली पॉलिथिन में सामान रखने के बाद फौरन चला गया। पुलिस राहुल के बयान को अहम मान रही है। राहुल से पूछताछ जारी है।
देश के प्रमुख विस्फोटों का घटनाक्रम
राजधानी दिल्ली के अलावा देश के अन्य स्थानों पर पिछले 15 वर्षों के दौरान हुए बम धमाकों की प्रमुख घटनाओं का वर्षक्रमानुसार ब्यौरा इस प्रकार है! मार्च 1993 -मुम्बई में हुए श्रृंखलाबद्ध बम धमाकों में 257 लोगों की मृत्यु एक हजार से ज्यादा घायल!
1.एक अक्टूबर 2001- आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर राज्य विधानसभा परिसर में बम विस्फोट कर 35 लोगों की हत्या की!
2.अगस्त 2003- मुम्बई में दो टैक्सियों में रखे बमों में विस्फोट ः 52 मरे ् 100 से ज्यादा घायल!
3.मार्च 2006- वाराणसी के संकटमोचन मंदिर और छावनी रेलवे स्टेशन पर सिलसिलेवार बम धमाकों में 20 लोगों की मृत्यु!
4.जुलाई 2006- मुम्बई की लोकल ट्रेनों में हुए सात बम विस्फोटों में 200 लोग मारे - 700 से ज्यादा घायल!
5.सितम्बर 2006- महाराष्ट्र के मालेगांव में एक मस्जिद के पास बम धमाका ः 30 लोग मरे ् 100 जख्मी!
6.फरवरी 2007- भारत-पाकिस्तान के बीच चलने वाली ट्रेन में दो बम धमाकों में 66 यात्रियों की मृत्यु!
7.मई 2007- हैदराबाद में मक्का मस्जिद में हुए विस्फोट में 11 मरे!
8.अक्टूबर 2007- अजमेर शरीफ दरगाह में हुए बम धमाके में दो मरे!
9.मई 2008- जयपुर में 12 मिनट के अंदर हुए आठ बम विस्फोटों में 65 लोगों की मृत्यु ् 150 घायल!
10.जुलाई 2008- बेंगलूर में नौ बम धमाकों में दो लोग मरे ् 12 घायल!

Thursday, September 11, 2008

आठ हजार छात्रों को न्यायालय ने दी राहत

यूपीटीयू से संबद्ध निजी संस्थानों में रिक्त सीटों को भर चुके कॉलेजों को उच्च न्यायालय ने राहत दी है। न्यायालय ने यूपी टेक्निकल इंस्टीट्यूशन फाउंडेशन द्वारा दायर याचिका पर फैसला देते हुए कॉलेजों द्वारा किए गए प्रवेश को वैध करार दिया है। इससे करीब आठ हजार छात्रों के भविष्य पर लटकी तलवार हट गई है। बाकी बची सीटों के लिए यूपीटीयू को काउंसलिंग करने का अधिकार होगा।यूपीटीयू ने प्रदेश के निजी तकनीकी संस्थानों में रिक्त बची करीब 13 हजार सीटों के लिए काउंसिलिंग का एक और चरण आयोजित करने की घोषणा की है। यह चरण 12 सितंबर से आयोजित किया जाना है, लेकिन कई संस्थानों ने रिक्त सीटों पर प्रबंधन कोटे के तहत छात्रों को दाखिला दे दिया था। विवि की काउंसिलिंग की घोषणा के विरोध में इन संस्थानों ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। बुधवार को उच्च न्यायालय ने इस पर अपना फैसला सुनाते हुए कॉलेजों के प्रवेश को वैध करार दिया है। कॉलेजों को निर्देश दिया है कि वे रिक्त सीटों पर प्रवेश ले चुके छात्रों की सूची 12 सितंबर तक विवि में जमा करा दें। इस फैसले से प्रवेश ले चुके करीब आठ हजार छात्रों ने राहत की सांस ली है। न्यायालय ने बाकी बची सीटों के लिए काउंसलिंग कराने की अनुमति यूपीटीयू को दे दी है।फाउंडेशन के महासचिव अतुल जैन का कहना है कि शासन ने 14 फरवरी 08 को एक शासनादेश जारी कर संस्थानों को रिक्त सीटों पर दाखिले करने की अनुमति दी थी। इसके बाद कॉलेजों ने छात्रों को दाखिला दे दिया। अब यूपीटीयू ने इन सीटों के लिए काउंसलिंग कराने की घोषणा कर दी। इससे छात्रों व कॉलेजों के सामने असमंजस की स्थिति पैदा हो गई थी। लेकिन उच्च न्यायालय ने प्रवेश को वैध करार देकर इस पर विराम लगा दिया है। हालांकि जिन कॉलेजों में अभी भी सीटें रिक्त है उनके लिए यूपीटीयू काउंसलिंग करा सकेगा।

राष्ट्रपति का वेतन 1.5 लाख प्रतिमाह हुआ

नई दिल्ली राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के वेतन में तीन गुना वेतन वृद्धि हो गई है और अब उन्हें डेढ़ लाख रुपए प्रति माह वेतन मिला करेगा।इस वेतन वृद्धि का फैसला आज यहां केन्द्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने किया। राष्ट्रपति को अबतक प्रतिमाह 50 हजार रुपए वेतन मिलता था, जो अब बढ़कर डेढ़ लाख रुपए हो गया है। यह वृद्धि जनवरी 2006 से लागू मानी जाएगी।

सैन्य बलों का असंतोष प्रधानमंत्री के समक्ष
राष्ट्रपति के साथ-साथ उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी और राज्यों के राज्यपालों की वेतन वृद्धि को भी मंजूरी दी गई।उपराष्ट्रपति असांरी को अब सवा लाख रुपए प्रतिमाह वेतन मिलेगा, जबकि राज्यपालों का वेतन बढ़ाकर एक लाख दस हजार रुपए प्रतिमाह कर दिया गया है।मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति की बैठक में पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व उपराष्ट्रपति और पूर्व राज्यपालों अथवा उनके परिवार के लिए सेवानिवृति लाभ को भी तर्कसंगत बनाने का निर्णय लिया गया है।

छठा वेतन आयोग एक सितम्बर से लागू
इस लिहाज से पूर्व राष्ट्रपति एपीजे. अब्दुल कलाम, उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत तथा उनसे पहले राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति रहे एवं उनकी पत्नियों को मिलने वाले सेवानिवृति भत्तों में भी वृद्धि संभव है।सरकार केन्द्रीय कर्मचारियों के लिये छठे वेतन आयोग की सिफारिशें पहले ही लागू कर चुकी है।इस महीने से केन्द्रीय कर्मचारियों को बढ़े वेतन मिलेंगे। इसी कड़ी में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपालों के वेतन में भी वृद्धि कर दी गई है जोकि 1 जनवरी 2006 से लागू मानी जाएगी।

Wednesday, September 10, 2008

महिलाओं के लिए साहस का एक आदर्श उदाहरण

35 वर्षीय कोमा मोहन्ती एक पूर्ण-विकसित एड्स रोगी बनने की ओर अग्रसर है। उसकी इस दुर्भाग्यपूर्ण अवस्था में उसका एकमात्र सहारा है, उसकी धंसी हुई आंखें और उसकी कष्टासाध्य, निस्तेज चाल। वास्तव में, वह ओड़िसा के गंजम जिले की उन महिलाओं के लिए साहस का एक आदर्श उदाहरण है जो ऐसी कष्टकर अवस्था में जी रही हैं।काम के बेहतर अवसरों की तलाश में कोमा के पति त्रिनाथ ने जब गंजम जिले के पुरूषोत्तमपुर विकासखण्ड में बसे अपने गांव से गुजरात की ओर पलायन किया, तब कोमा के जीवन में पहले तो खुशहाली आई, लेकिन फिर सारी आशाएं चूर-चूर हुई और उसका जीवन बर्बाद हो गया। उसके द्वारा भेजी जाने वाली अपर्याप्त ही सही पर नियमित राशि के चलते उनके तीन बच्चों का स्कूल जाना तो खैर निश्चित हुआ। इसके बाद, साल-दो साल में इक्का-दुक्का अवसरों पर जब-जब वह घर आया अपने परिवार के लिए संदूक भर कपडे-लत्ते, खेल-खिलौने लाया। ऐसी ही किसी एक गृह-यात्रा में कपड़े-लत्तों, खेल-खिलौनों के साथ-साथ एक बिन बताया एचआईवी (ह्युमन इम्युनोडेफिसिएन्शी) वायरस भी उसके साथ चला आया। 2006 में हुए एक परीक्षण में उसके एचआईवी पॉजिटिव होने का प्रमाण भी मिला। बाद में, उसी साल उस खतरनाक बीमारी ने उसके प्राण भी लील लिए।कहीं ये 'संक्रमण' उनकी जान को न लग जाए, इस डर से उसके गांव का कोई भी व्यक्ति उसके दाह-संस्कार में नहीं आया। ऐसे समय, 'निर्माता' नामक एक स्थानीय एनजीओ ने इस काम में कोमा की मदद की, लेकिन पति के इस दुर्भाग्यपूर्ण अन्त से ही प्रारंभ हुआ सामाजिक स्वीकार्य पाने हेतु कोमा का दीर्घ व असम्भव-सा संघर्ष। ओड़िसा की एड्स कण्ट्रोल सोसाइटी (ओएसएसीएस) के अनुसार दिसम्बर 2007 तक प्रदेश भर में एड्स के कारण हुई मौतों में से 35 प्रतिशत मौतें गंजम जिले में हुए तथा कुल 8,200 एचआईवी-पॉजिटिव रोगियों में से 37।8 प्रतिशत रोगी अकेली गंजम जिले में थे।कोमा जैसी एचआईवीएड्स (डब्ल्यूएलएचए) पीड़ित महिलाएं हिम्मत बटोर न केवल इस भयावह रोग का सामना दिलेरी से कर रही हैं, बल्कि अपने साथ होने वाले भेदभाव से भी दो-चार हो रही हैं। अपने समर्थन-समूहों के बीच जानकारी व चेतना बांटकर वे अपना खोया सम्मान भी वापस पा रही हैं। पति की मृत्यु के बाद, नवम्बर 2006 में कोमा एचआईवी-संक्रमित पाई गई। कुछ दिनों बाद ही, 14 वर्ष का उसका सबसे बड़ा बेटा संतोष, गांव वालों द्वारा इस संदेह में सताए जाने पर कि उसे भी एचआईवी है, निकट के आम के बाग में मृत अवस्था में एक पेड़ से लटका पाया गया था। उसकी 13 वर्षीय बेटी गिरिजानंदिनी और उसका 12 वर्षीय बेटा निरंजन भी स्कूल में अपने साथियों द्वारा बहिष्कृत हुए, और अन्तत: उन्हें शालात्याग करना पड़ा। कोमा के कष्ट यहीं खत्म न हुए। बार-बार होने वाले सर्दी-जुकाम व एलर्जी भरे फोडे-फ़ुंसियों से परेशान हो जब-जब वह इलाज के लिए भटकुमरादा जन स्वास्थ्य केन्द्र (पीएचसी) जाती, वहां के स्वास्थ्य कर्मी उसे घण्टों प्रतीक्षा में खड़ा रखते क्योंकि वे अचआईवी संक्रमित रोगियों को किसी न किसी बहाने टालना चाहते। शरीर व मन, दोनों से थकी-हारी कोमा अपना व अपने दोनों शेष बच्चों का जीवन समाप्त करने का सोचती, लेकिन निर्माता के कार्यकर्ता सर्बेश्वर महापात्र तथा कोमा के पड़ोसी व स्कूल के प्रधानाचार्य कृष्णचन्द्र दास की लगातार समझाइश के चलते कोमा ने ऐसा दु:साहस नही किया। दास साहब ने तो सारे अभिभावकों की स्कूल में एक विशेष मीटिंग बुलाई और कोमा को उस अवसर पर उद्धाटन दीप प्रावलित करने को कहा ताकि समुदाय में व्यापक स्तर पर उसके व उसके बच्चों के प्रति एक स्वीकार्य भाव उत्पन्न हो। अध्यापकों व अभिभावकों ने दास बाबू के इस कदम का विरोध भी किया पर वे टस से मस न हुए। सरकार ने फरवरी 2008 में मधुबाबू पेंशन योजना के तहत 200 रूपए मासिक की एक सहायता घोषित की।सरकार की इस पहल से एड्स के कारण बनी विधवाओं को आर्थिक व मानसिक सबल मिलने की आशा है। धीमे ही सही, पर एक निश्चित परिवर्तन की आहट सुनाई तो देती है। (नाम-परिवर्तन नहीं किया गया है, रिपोर्ट में उल्लिखित मअन्तत: दास बाबू की यह कोशिश फल लाई। दो महीने के भीतर, कोमा के दोनों बच्चों की स्कूल-वापसी हुई और इस वर्ष की अन्तिम परीक्षा में तो कमाल ही हो गया, कोमा के पुत्र ने कुल मिलाकर 65 प्रतिशत अंक पाये, जबकि उसकी बहन 60 प्रतिशत अंकों से उत्तीर्ण हुई। आज चाहे कोमा का स्वास्थ्य ढलान पर हो, पर उसका मन काफी दृढ़ है। ठीक महसूस करने पर वह पड़ोस के गांवों और स्कूलों में एचआईवीएड्स संबंधी जागरूकता रैलियों का नेतृत्व करती है और स्व-सहायता समूहों की बैठकों को संबोधित करती है।गंजम में महिलाएं अब एचआईवी एड्स पर खुल कर बात करती हैं, जिसमें झिझक या शर्म कहीं नहीं होती। इन विधवाओं के कष्टों को देखते हुए ओड़िसाहिलाओं ने स्वैच्छिक एवं सार्वजनिक ढंग से अपना एचआईवी पीड़ित होना घोषित किया है।)

सुंदर पत्तियों वाला पौधा-फर्न

पौधा-फर्न
निर्मेश त्यागी बागवानी
उमस और गरमी के नुमाइंदे ''फर्न'' की 10,000 से भी अधिक प्रजातियां उपलब्ध हैं। इस का वानस्पतिक नाम ''एस्पैरेगस स्प्रैंगरी'' है। जड़, तने व पत्ते वाले खूबसूरत फर्न की एक खासियत है कि यह फूलविहीन होता है, पर सुंदर कोमल पत्तियों के कारण यह दुनिया के अधिकतर भागों में उगाया जाता है।
फर्न की जडें रेशेदार होती है और गुच्छों में बढ़ती हैं। इस पौधे की टहनी सिमटी हुई फिरकी या गट्टेनुमा निकलती है और धीरे-धीरे बढ़ती हुई पेड़ों के केन्द्र से चारों तरफ फैल जाती है, ठीक उसी प्रकार जैसे फुहारे से पानी की धार निकल कर चारों तरफ फैल जाती है।
टहनी के दोनों तरफ प्रजातियों के अनुसार तरह-तरह की पत्तियां आती हैं जो सुंदर, चमकीली, हलके व गहरे हरे रंग की होती हैं। पत्तियों के पीछे तरफ छोटे-छोटे तिल जितने उभार होते हैं, उन से भी पेड़ तैयार किए जाते हैं, ये अधिकतर छाया के पौधे हैं, अत: इन्हें सीधा धूप का प्रकाश नहीं लगना चाहिए।फर्न चिकनी मिट्टी या एसिडिक मिट्टी में अधिक अच्छी तरह पनपते हैं। वैसे इन को अन्य तरह की मिट्टी में भी उगा सकते हैं। परंतु इन्हें गोबर या पत्तियों की खाद की अन्य पौधों की तुलना में अधिक मात्रा में जरूरत होती है। अच्छा तो यह रहता है, खाद और मिट्टी का अनुपात बराबर हो।गर्मी शुरू होने पर ही फर्न को लगाना चाहिए। फर्न की कई प्रजातियां उपलब्ध हैं पार्सले फर्न, ब्लैडर फर्न, सेंसिटिव फर्न, ऑस्ट्रिच फर्न, ओक फर्न, फ्लावरिंग फर्न, एथुरियमस्ट फर्न, स्कूरियल फुट फर्न, स्टैगहॉर्न फर्न (नाम के अनुरूप हिरन के सींगों जैसी लगती है), मैडनहेयर फर्न (ऐसा महसूस होता है, जैसे किसी युवती के खूबसूरत बाल हों) आदि। फर्न की कुछ प्रजातियां कठोर होती हैं। ऐसी प्रजातियों को अकसर बगीचों में देखा जा सकता है। ये प्रतिकूल परिस्थितियों में भी फलफूल जाती हैं। जबकि परिस्थियों में भी फलफूल जाती हैं। जब कि नाजुक प्रजातियों को उचित वातावरण में ही पालना पड़ता है। बसंत ऋतु में फर्न की जड़ों के गुच्छों को अलग-अलग कर के लगाया जा सकता है। कुछ जातियों के फर्न के पत्तों के पीछे की तरफ छोटे-छोटे पौधे बन जाते हैं, जिन को अलग कर के नए पौधे तैयार किए जाते हैं।
फर्न की पत्तियों के पीछे की तरफ छोटे-छोटे तिलनुमा सोर्स होते हैं, उन को तोड़ कर लिफाफे में रख लेना चाहिए, सूखने पर उन में से पाउडर निकलता है। इस पाउडर को मिट्टी और खाद के मिश्रण में जब बीज लगाएं, तब ऊपर बुरक दें।
अन्य बीचों की तरह उस के ऊपर मिट्टी नहीं डालते हैं। फर्न को सर्दी के दिनों में कम पानी देना चाहिए, परंतु जडें सूखनी नहीं चाहिए। कई बार अधिक पानी से जडें ग़ल भी जाती है। यद्यपि अन्य पौधों की तुलना में फर्न अधिक पानी पीता है। फर्न की कई प्रजातियों से हैंगिंग बास्केट बनाना उत्तम रहता है। इस के लिए गमले के चारों तरफ मास (काईदार घास) बांध दें। जब पेड़ बढ़ता है, तब धीरे-धीरे मास पर भी फैल जाता है। पौधे को हस्तांतरित करते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि फर्न की जड़ों को कम से कम नुकसान पहुंचे तथा जड़ों की मिट्टी कम से कम झडे। पत्तों की बहुतायत के कारण फर्न पौधों में कीडे-मकोड़ों के छिप कर बैठने का भी अंदेशा रहता है। पौधे को किसी प्रकार की क्षति न पहुंचे, इसके लिए समय-समय पर कोई भी कीटनाशक दवा, जो बाजार में उपलब्ध हो (रोजर, नोवान, डिमिक्रान, रडार आदि) का छिड़काव अवश्य करें।

Tuesday, September 9, 2008

अदालती पैसों की हेराफेरी: कई सवाल...

एक जज को यह अधिकार है कि वह कि वह किसी अपराधी को फांसी या उम्रक़ैद की सज़ा दे दे.जज को अधिकार है कि वह संसद के बनाए गए क़ानून को असंवैधानिक पाने पर रद्द कर दे. अपार धन संपदा वाले विवाद में भी अदालत ही फ़ैसला करती है.सबसे बड़ी बात यह है कि जज को यह भी अधिकार है कि वह बड़े से बड़े अफसर और मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री को कठघरे में खड़ा कर दोषी पाए जाने पर उसे पद से बेदख़ल कर दे. जेल भेज दे या कानून में निर्धारित दूसरी कोई सज़ा दे दे.लेकिन क़ानून किसी को अपने ही मामले में दरोगा या जज बनने का अधिकार नहीं देता.एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए भारत के संविधान में स्वतंत्र न्यायपालिका की व्यवस्था है. अब तो यह स्वतंत्रता जजों की नियुक्ति से लेकर उनके संपूर्ण आतंरिक प्रशासन में भी है.यह स्वतंत्रता न्यायपालिका के सदस्यों पर सामूहिक ज़िम्मेदारी भी डालती है कि वह अपनी व्यवस्था को पूरी तरह न्यायपूर्ण, सत्यनिष्ठ, पारदर्शी और संदेह से परे रखे.

डगमगाता भरोसा


बहुत ज़्यादा चिंताजनक है भ्रष्टाचार का यह स्वरूप कि न्यायालय के कर्मचारी प्रोविडेंट फंड से धन निकालें और न्यायिक अधिकारियों को उससे लाभ पहुँचाएं. यह बहुत दुखद है और न्यायपालिका के ऊपर बहुत बड़ा प्रश्न चिह्न है
न्यायमूर्ति कमलेश्वर नाथ, इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज

लेकिन गाज़ियाबाद ज़िला अदालत के वित्तीय प्रशासन में जो अभूतपूर्व और अफ़सोसनाक घोटाला हुआ है, उसने इस विश्वास को हिलाकर रख दिया है और कई गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं.इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज न्यायमूर्ति कमलेश्वर नाथ का कहना है, "बहुत ज़्यादा चिंताजनक है भ्रष्टाचार का यह स्वरूप कि न्यायालय के कर्मचारी प्रोविडेंट फंड से धन निकालें और न्यायिक अधिकारियों को उससे लाभ पहुँचाएं. यह बहुत दुखद है और न्यायपालिका के ऊपर बहुत बड़ा प्रश्न चिह्न है."संक्षेप मे मामला यह है कि गाज़ियाबाद ज़िला अदालत में पिछले सात सालों मे कर्मचारियों के जीपीएफ़ खातों से करीब सात करोड़ रुपए फर्ज़ी तौर से निकाल लिया गया.यह पैसा कुछ कर्मचारियों और कुछ ग़ैर-कर्मचारियों के नाम से निकाला गया और फिर ज़िला अदालत के जूनियर जज से लेकर, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों ने इसका इस्तेमाल अपने घरेलू ख़र्च और ऐशो-आराम पर किया.हाईकोर्ट के विजिलेंस सेल ने इस मामले को पकड़ा. लेकिन कोर्ट की तरफ़ से फ़रवरी मे 82 लोगों के ख़िलाफ़ रिपोर्ट पुलिस में लिखाई गई.लेकिन इसमें किसी जज का नाम नहीं था जो आपने आप में एक रहस्य का विषय है कि ऐसा भेदभाव क्यों हुआ.पुलिस ने फ़टाफ़ट कर्मचारियों और अन्य लोगों की धर-पकड़ की. मुख्य अभियुक्त कोर्ट के नाज़िर समेत 61 लोग गिरफ़्तार कर लिए गए.

'ठीक से हो जाँच-पड़ताल'

कमलेश्वर नाथ
कमलेश्वर हाईकोर्ट जज रहे हैं और इस मामले को न्यायपालिका की साख़ पर सवाल मानते हैं

मामले की जांच-पड़ताल ठीक से हो इसलिए गाज़ियाबाद बार एसोशिएशन ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर करके मामले की सीबीआई जांच की मांग की.बार एसोसिएशन के अध्यक्ष देवेन्द्र शर्मा का कहना है, "हो सकता है कि पुलिस जजों से पूछताछ न कर सके, इसलिए हमने सीबीआई जांच की मांग की है."हाईकोर्ट ने 19 मार्च के अपने आदेश में लिखा है कि 'गाजियाबाद जजशिप में इस घोटाले ने सारे घोटालों को पीछे छोड़ दिया है.'सरकारी वकील ने अदालत को बताया कि अभी तक जो कुछ सामने आया है वह बहुत थोड़ा है और इस मामले का दायरा बहुत व्यापक है जो गहराई से छानबीन के बाद ही पता चलेगा.जांच अधिकारी ने भी अदालत को बताया कि भलीभांति जांच में उसे बड़ी दिक्कत आ रही है.हाईकोर्ट इससे पहले कई मामलों में सीबीआई जांच का आदेश दे चुका है. लेकिन कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि बड़े-बड़े न्यायाधीशों के शामिल होने के कारण स्थानीय पुलिस इस मामले की जांच ठीक से नहीं कर सकेगी.और इस तरह कोर्ट ने सीबीआई जाँच की मांग नामंज़ूर कर दी. जांच ठीक से करने के लिए अदालत ने पुलिस को कई निर्देश भी दिए.

सीबीआई जाँच की अपील


हो सकता है की पुलिस जजों से पूछताछ न कर सके, न उनको गिरफ़्तार कर सके, इसलिए हमने सीबीआई जांच की मांग की है
देवेन्द्र शर्मा, गाजियाबाद बार एसोसिएशन के अध्यक्ष

मायावती सरकार अपनी तरफ़ से भी अनेक मामलों में सीबीआई जाँच की माँग केंद्र सरकार से कर चुकी है.लेकिन उसने भी इस मामले में कोई पहल नही की. बार एसोसिएशन ने अब सुप्रीम कोर्ट में अपील की है जिस पर अगले हफ़्ते सुनवाई होनी है.लोकल पुलिस के पास न तो सीबीआई जैसी स्वतंत्रता है, न उतने विशेषज्ञ अधिकारी और संसाधन.फिर भी इस बात की तारीफ़ करनी पड़ेगी कि स्थानीय पुलिस ने 55 बैंको से जानकारी जुटाई, जहाँ यह धन जमा हुआ था और 69 लोगों के पते-ठिकाने ढूँढ़ कर उन्हें गिरफ़्तार किया.इतने अभियुक्तों के मामले की पैरवी करने के लिए न तो पर्याप्त कर्मचारी लगाए गए, न ही कम्प्यूटर, फ़ोटोकॉपी मशीन और ट्रांसपोर्ट का इंतज़ाम था.गंभीर मोड़ तब आया जब मुख्य अभियुक्त ने अपना जुर्म स्वीकार करके पूरे मामले से परदा उठा दिया.मुक़दमे के मुख्य अभियुक्त आशुतोष अस्थाना ने मजिस्ट्रेट के सामने 30 पेज का कलमबंद बयान रिकार्ड कराया है.इसमें उन्होंने बताया है कि उन्होंने और दूसरे कर्मचारियों ने लगातार सात सालों तक यह धन कैसे निकलवाया. यह धन न्यायिक प्रशासन देखने वाले अधिकारियों की सहमति और स्वीकृति के बिना निकाला नहीं जा सकता था.

'बेटा-बेटी के ख़र्च से फर्नीचर तक'


ईश्वर चंद्र द्विवेदी
द्विवेदी का कहना है कि अगर जाँच में किसी का नाम आया है तो पूछताछ में कोई हर्ज नहीं है

अस्थाना ने अपने बयान में विस्तार से इस बारे में दावा किया कि किस जज को कितना रुपया हर महीने घर ख़र्च के लिए दिया जाता था.उन्होंने अपने बयान में बता कि किस जज के बेटा-बेटी को क्या-क्या सामान ख़रीदवाया. किस-किस जज के इलाहाबाद, लखनऊ और कोलकाता स्थित मकान में कितने फर्नीचर और दूसरे सामान भिजवाए. और किस-किस जज और उनके परिवार के लोगों को घूमने के लिए टैक्सियों का इंतज़ाम किया और किस ट्रेवल एजेंट को कितना भुगतान किया गया.मज़े की बात है कि इसमें से तमाम भुगतान उन्हें फ़र्जी तौर पर कोर्ट का कर्मचारी दिखाकर किया गया.शायद बड़े अधिकारियों को यह आशंका नहीं थी कि आशुतोष अस्थाना कोर्ट में अपने जुर्म का इक़बाल करके सबका भांडा फोड़ देंगे.यहीं से इस जाँच की दिशा बदल गई. भ्रष्टाचार और गबन के संदेह के घेरे में आए जजों से पूछताछ करने के बजाय लोकल पुलिस बहाने ढूँढने लगी कि कैसे उसे इस मामले से मुक्ति मिले.आईपीएस अधिकारी रहे इश्वर चंद्र द्विवेदी 11 सालों तक सीबीआई के डीआईजी रहें हैं और उत्तरप्रदेश के पुलिस महानिदेशक पद से सेवानिवृत हुए हैं.उनका कहना है, "देखिए जो क्रिमिनल प्रोसीजर कोड है वह विभिन्न अभियुक्तों में कोई फ़र्क नहीं करता, जज हो या कोई सामान्य व्यक्ति हो, एक अभियुक्त, अपराध का अभियुक्त ही है. ऐसे में मुक़दमे में पुलिस के पास विवेचना करने के अलावा और कोई विकल्प है ही नही. अगर वह नहीं कर रहे हैं तो वो मेरी राय में अपना कर्तव्य नहीं निभा रहे हैं. जिन जजों का नाम आया है, उनसे पूछताछ करने में कोई रोक नही है."

'क़ानून से ऊपर कोई नहीं'


देखिए जो क्रिमिनल प्रोसीजर कोड है वह विभिन्न अभियुक्तों में कोई फ़र्क नहीं करता, जज हो या कोई सामान्य व्यक्ति हो, एक अभियुक्त, अपराध का अभियुक्त ही है. ऐसे में मुक़दमे में पुलिस के पास विवेचना करने के अलावा और कोई विकल्प है ही नही. अगर वह नहीं कर रहे हैं तो वो मेरी राय में अपना कर्तव्य नहीं निभा रहे हैं. जिन जजों का नाम आया है, उनसे पूछताछ करने में कोई रोक नही है
इश्वर चंद्र द्विवेदी, सीबीआई के रिटायर्ड डीआईजी

एक जज ने गुजरात के बहुचर्चित मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश की कॉपी मुझे ढूंढ कर दी जिसमे कोर्ट ने कहा था, "कोई भी आदमी चाहे जितने बड़े पद पर हो, वह क़ानून से ऊपर नहीं हैं और उसे आपराधिक क़ानून को तोड़ने की सज़ा अवश्य भुगतनी पड़ेगी."सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि एक मजिस्ट्रेट, जज या किसी अन्य न्यायिक अधिकारी को एक अपराध के लिए किसी सामान्य नागरिक की तरह ही आपराधिक मुक़दमे का सामना करना पड़ेगा.अदालत ने न्यायपालिका की स्वततंत्रता और आपराधिक मामलों की सही विवेचना के बीच संतुलन के लिए कुछ मार्गदर्शक सिद्धांत तय किए.इसमे ख़ासकर यह कहा गया कि अगर किसी अपराध के लिए एक न्यायिक अधिकारी को गिरफ़्तार करना है तो ज़िला जज या हाईकोर्ट को सूचना देकर ऐसा किया जाए.1985 में जजों को संरक्षण देने का जो क़ानून बनाया गया उसमें भी केवल न्यायिक या प्रशासनिक कार्यों के लिए संरक्षण की बात कही गई है, न कि भ्रष्टाचार या अपराध के लिए. यह मामला तो न्यायिक कार्य से संबंधित है भी नहीं.दंड प्रक्रिया संहिता में पुलिस के जांच अधिकारी को विवेचना के दौरान संदिग्ध अभियुक्तों और गवाहों का बयान दर्ज करने, उनसे पूछताछ करने का पूरा अधिकार हैं. क़ानूनी तौर पर कोर्ट भी इस काम में कोई दखलंदाज़ी नहीं कर सकता.लेकिन 12 मई को हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के महाधिवक्ता ज्योतिंद्र मिश्र की उपस्थिति, यानी उनकी सलाह से, गाज़ियाबाद के पुलिस कप्तान दीपक रतन ने अदालत से प्रार्थना की कि उन कुछ लोगों के ख़िलाफ़ आगे कार्रवाई की अनुमति दी जाए जिनके मामले में शामिल होने की जानकारी विवेचना के दौरान सामने आई है.

जजों की तरफ़ इशारा


मुख्य न्यायाधीश अब कोई क़दम उठा सकते हैं

पुलिस की अपील में इशारा जजों की तरफ़ था. कोर्ट ने अपने आदेश में सिर्फ़ यह कहा, "पुलिस कप्तान माननीय मुख्य न्यायाधीश से आवश्यक अनुमति प्राप्त करेंगे, अगर इसकी कोई ज़रूरत हो तो."जानकारों का कहना है कि अव्वल तो विवेचना के लिए अनुमति माँगने की ज़रूरत नहीं थी और अगर एहतियातन न्यायपालिका का सम्मान रखने के लिए ऐसा करना भी था तो यह काम पत्राचार से हो सकता था, इसके लिए अदालत में प्रार्थना की ज़रूरत नहीं थी.ख़ैर अब आगे जो हुआ वह और भी विचलित करने वाला हैं.ख़बरों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस केजी बालाकृष्णन ने एसएसपी गाज़ियाबाद से कहा कि पहले वह हर जज के लिए अपने सवालों की सूची उन्हें भेजें और विवेचना अधिकारी लिखित उत्तर से संतुष्ट न हों तो वह 'मेरिट' के आधार पर व्यक्तिगत पूछताछ की अनुमति देने पर विचार करेंगे.न्यायमूर्ति कमलेश्वर नाथ उन लोगों में हैं जो इसे ठीक नहीं मानते.वे कहते हैं, "यह सवाल देने की जो प्रक्रिया है वह शायद 'सेल्फ़ डिफ़ीटिंग' है. जिस आदमी को आप सवाल दे रहे हैं वह अपने आप को पहले से ही तैयार रखता है कि हमे किस बात पर क्या कहना है. दूसरी बात यह है कि एक प्रश्न पूछा गया, उसका कुछ उत्तर आया, उस उत्तर के परिप्रेक्ष्य में ऐसा दूसरा प्रश्न उठ सकता है जो प्रश्नावली में न हो. उसका उत्तर कैसे मिल मिलेगा?"कमलेश्वर कहते हैं, "भारत के मुख्य न्यायाधीश हमारी न्यायपालिका के सर्वोच्च अधिकारी हैं. उनका उत्तरदायित्व है कि पूरे भारत की न्यायपालिका की गरिमा की रक्षा करें. जब इतना गंभीर आरोप है तो उसके बारे में अलग-अलग सवाल बनाकर मुख्य न्यायाधीश के पास भेजा जाए कि वे उस पर संबंधित न्यायाधीश से पूछें यह उचित नही मालूम होता. जाँच का यह काम पुलिस का है. यह जज का काम नहीं है. न्यायपालिका अपने प्रशासनिक दायरे में जो चाहे जाँच करा ले, उसमें पुलिस का कोई हस्तक्षेप नही है."

विवेचना की रफ़्तार पर असर


यह सवाल देने की जो प्रक्रिया है वह शायद 'सेल्फ़ डिफ़ीटिंग' है. जिस आदमी को आप सवाल दे रहे हैं वह अपने आप को पहले से ही तैयार रखता है कि हमे किस बात पर क्या कहना है. दूसरी बात यह है कि एक प्रश्न पूछा गया, उसका कुछ उत्तर आया, उस उत्तर के परिप्रेक्ष्य में ऐसा दूसरा प्रश्न उठ सकता है जो प्रश्नावली में न हो. उसका उत्तर कैसे मिल मिलेगा
न्यायमूर्ति कमलेश्वर नाथ, इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज

क़रीब एक महीने से गाज़ियाबाद पुलिस अपने सवालों की सूची तैयार कर रही हैं। आगे की विवेचना एक तरह से ठप है.भारत की न्यायपालिका में अब तक के सबसे बड़े इस घोटाले में मुक़दमा दर्ज हुए करीब छह महीने हो रहे हैं.पुलिस सूत्रों के अनुसार इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश हेमंत लक्ष्मण गोखले ने अभी तक कोई प्रशासनिक क़दम नहीं उठाया है और संपर्क करने के बावजूद उनका कार्यालय कुछ भी बताने में हिचक रहा है.अगर ऐसा ही चलता रहा तो आश्चर्य नहीं कि इनमें से कुछ जज जिनपर आरोप लगे हैं, वे प्रमोशन पाकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट पहुँच जाएँ.इसी इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज गंभीर आरोपों के बावजूद देश के एक हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश हो गए.और, याद दिलाने की ज़रूरत नहीं कि भारत के एक मुख्य न्यायाधीश पर अपने बेटे को व्यावसायिक लाभ पहुँचाने के आरोप लगे, जबकि उन्हें ऐसे मुक़दमों की सुनवाई से अलग हो जाना चाहिए था. रिटायर होने के बावजूद अभी तक उनके ख़िलाफ़ कोई जाँच नही बैठ पाई.ये सारे सवाल किसी भी सभ्य और लोकतांत्रिक समाज को विचलित कर सकते हैं.आदमी जब सब जगह से हार जाता है तो वह अदालत का दरवाज़ा खटखटाता है. अगर न्यायपालिका से भी उसका भरोसा उठ जाएगा तो कहाँ जाएगा वह?

'इंसाफ़ मिलने में देरी एक बड़ी चुनौती'
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अदालतों में बर्षों से लंबित मामलों की सुनवाई न होने को एक बड़ी चुनौती बताते हुए कहा है कि सरकार 'फैमिली कोर्ट' गठित करने की दिशा में क़दम बढ़ा सकती है.:उन्होंने भ्रष्टाचार के मामलों से निपटने के लिए विशेष अदालतों के गठन की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वह खुद भी इस सुझाव से सहमत हैं कि भ्रष्टाचार के मामलों से निपटने के लिए विशेष अदालतों का तुरंत गठन किया जाना चाहिए.उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने उन्हें लिखित सुझाव दिए हैं. इनमें भ्रष्टाचार के मामलों से निपटने के लिए विशेष अदालतों के तत्काल गठन करने की जरूरत का सुझाव भी शामिल है, इससे जनता में न्यायिक प्रणाली के प्रति विश्वास बढे़गा.उन्होंने आगाह किया कि न्याय मिलने में देरी की समस्या से नहीं निपटा गया तो लंबित मामलों की संख्या इतनी अधिक हो जाएगी कि उसके बोझ से समूची न्याय प्रणाली चरमरा सकती है.इस समस्या का हल खोजने के लिए मिले अन्य सुझावों में न्यायिक अधिकारियों और न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाए जाने के सुझाव का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि हाल ही में हाई कोर्ट में 152 नए पद सृजित किए गए हैं और सुप्रीम कोर्ट में भी न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाई जाएगी.इस मौके पर मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन ने भारतीय न्यायिक प्रणाली के विश्व में बेहतर होने का दावा करते हुए कहा कि अदालतें देश की आर्थिक प्रगति और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.उनका कहना था कि नागरिकों की सुरक्षा के लिए निष्पक्ष और जवाबदेह न्यायपालिका के साथ पर्याप्त क़ानूनी तंत्र और बुनियादी सुविधाएं भी होनी चाहिए.
'निजी मामलों पर जनहित याचिका नहीं'
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक दिशा-निर्देश जारी कर स्पष्ट कर दिया है कि किस मामले पर जनहित याचिका (पीआईएल) सुनी जा सकती है और किस मामले पर ऐसा नहीं हो सकता.:निजी या व्यक्तिगत विवाद के मामलों को जनहित याचिका के दायरे से बाहर निकाल दिया गया है.माना जा रहा है कि जनहित याचिकाओं की संख्या में बेतहाशा वृद्धि पर लगाम लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने यह क़दम उठाया है.अदालत ने जिस तरह के मामलों को जनहित याचिका के तौर पर नहीं सुनने का निर्णय लिया है उनमें ज़्यादातर मामले व्यक्तिगत क़िस्म के हैं.न्यायालय का पीआईएल सेल इन दिशा-निर्देशों के आधार पर याचिकाओं की छँटनी करके उचित मामलों को न्यायाधीश के सामने रखेगा.

'दाख़िला में दख़ल नहीं..'


स्कूली बच्चियाँ
शीर्ष अदालत ने शिक्षण संस्थानों में दाख़िले वाली याचिकाओं को पीआईएल नहीं माना

उच्चतम न्यायालय से जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार भू-स्वामी और किराएदार के झगड़ों को कोर्ट पीआईएल के तौर पर नहीं निबटाएगी.मेडिकल कॉलेजों या दूसरे शिक्षण संस्थानों में दाख़िला को लेकर भी किसी तरह के मामले अब जनहित याचिका नहीं माने जाएँगे.नियोक्ता के साथ सेवा को लेकर विवाद, पेंशन और रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली सहायता के मामले भी इस श्रेणी से बाहर हो गए हैं.कोर्ट ने यह भी साफ़ किया है कि केंद्र या राज्य सरकार और स्थानीय निकायों के ख़िलाफ़ सभी तरह की शिकायतों की सुनवाई इस दायरे में नहीं की जा सकेगी.सुप्रीम कोर्ट ने उन मामलों को भी जनहित याचिका के तहत सुनने से इनकार कर दिया है जिनमें उच्च न्यायालय या निचली अदालतों में मुक़दमे की सुनवाई पहले कराने की अपील की जाती है.बच्चों, पत्नी या माँ-बाप को गुज़ारे की रक़म के लिए अपराध संहिता की संबंधित धारा के तहत मामला दायर करने या सक्षम न्यायालयों का दरवाज़ा खटखटाने कहा गया है.

'जनहित के मामले'


बाल मज़दूर
बेसहारा बच्चों और बँधुआ मज़दूरी के मामले पीआईएल के दायरे में रखे गए हैं

सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में दिसंबर महीने की पहली तारीख़ को कोर्ट की संपूर्ण पीठ के फ़ैसले को आधार बनाते हुए ये दिशा-निर्देश तैयार किए हैं.दिशा-निर्देश तैयार करने में शीर्ष अदालत के बाद के फैसलों का भी ख़्याल रखा गया है.कोर्ट ने जनहित याचिकाओं के तहत सुनवाई के लिए दस तरह के मामलों को चिह्नित किया है.बँधुआ मज़दूरी, बेसहारा बच्चे, न्यूनतम मज़दूरी नहीं मिलना, अनियमित तौर पर काम करने वाले मज़दूरों का शोषण और श्रम क़ानूनों का उल्लंघन ऐसे मामले हैं जिन्हें अदालत जनहित याचिका के तहत सुनेगी.सुप्रीम कोर्ट जेल में चौदह साल बिताने के बाद रिहाई की अपील, जेल में उत्पीड़न, मौत जैसी शिकायतों पर जनहित याचिका के तौर पर गौर करेगा.

उत्पीड़न के मामलों की सुनवाई


भारतीय महिला
महिलाओं के उत्पीड़न के मामलों को जनिहत याचिका माना गया है

प्राथमिकी दर्ज करने में पुलिस की आनाकानी, पुलिस उत्पीड़न और हिरासत में मौत के मामले भी पीआईएल के तहत सुने जाएँगे.महिला उत्पीड़न की शिकायतें जनहित याचिका के दायरे में रखी गई हैं. बी लात्कार, हत्या और अपहरण के अलावा दहेज उत्पीड़न और पत्नी को जलाने के मामले इसमें शामिल हैं.अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और आर्थिक रूप से कमज़ोर तबके के लोगों के उत्पीड़न को भी अदालत इस दायरे में सुनने को तैयार है.दंगा पीड़ितों की अपील और पारिवारिक पेंशन की माँग करने वाली याचिकाएँ भी पीआईएल के लायक मानी गई हैं.कोर्ट ने प्रदूषण, पारिस्थितिकी में गड़बड़ी, मादक पदार्थ, खाद्य सामग्री में मिलावट के अलावा सांस्कृतिक जगह, प्रचीन धरोहर, जंगल, जंगली जानवर की देखभाल और आम लोगों के व्यापक हित के मामलों को जनहित याचिका के तहत सुनने का रास्ता खुला रखा है.