यूपीए सरकार का अंतरिम बजट भी अर्थव्यवस्था के लिए निराशा वाला है। यदि दो टूक शब्दों में कहूँ तो इस सरकार ने आम आदमी के साथ धोखाधड़ी की है। इसकी कीमत किसान और जवान दोनों चुका रहे हैं। इसमें तीसरा एक वर्ग नौजवानों का जुड़ गया है। कहने का मतलब यह है कि आर्थिक तंगी से परेशान किसान इस सरकार के कार्यकाल में आत्महत्या कर रहा है तो जवान अपने वेतन आयोग को लेकर पदक लौटा रहा है। इतना ही नहीं जो नौजवान नौकरी कर रहा था उसे नौकरी से हटाया जा रहा है।
इसके बाद भी यूपीए सरकार आम आदमी का नारा लगा रही है तो यह लोगों को छलने वाली ही बात हुई। इस सरकार ने जब सत्ता संभाली थी तो देश से यह वादा किया था कि देश की आर्थिक वृद्धि दर को सात-आठ प्रतिशत पर रखेंगे, लेकिन अब यह दर नीचे जा रही है। यूपीए सरकार ने शिक्षा और स्वास्थ्य पर सकल घरेलू उत्पाद का कुल छः प्रतिशत शिक्षा पर और तीन प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करने का वादा किया था, मगर सरकार ने दो प्रतिशत उपकर शिक्षा पर ही लगा दिया। ग्रामीण रोजगार योजना के तहत सरकार ने यह वादा किया कि सरकार गरीबी नीचे जीवनयापन कर रहे परिवारों को सौ दिन का रोजगार उपलब्ध कराएगी। अब यदि कैग की रिपोर्ट को आधार मानें तो मात्र 14 प्रतिशत लोगों को ही रोजगार मिल पाया।
सरकार किसानों की बात करती है लेकिन इसी साल विदर्भ क्षेत्र में साल के पहले 47 दिनों में 112 किसानों ने आत्महत्या की। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम के तहत लाभार्थियों के नाम बैंकों में खाते खोलकर राशि जमा करने की बात थी, लेकिन अब तक एक भी खाता नहीं खुला है। महँगाई ने आम आदमी की कमर तोड़कर रख दी। मकानों की कीमतें और आवास ऋण पर घटती-बढ़ती ब्याज दरों के जाल ने आम आदमी से उसके घर का सपना छीन लिया। इसलिए कार्यवाहक वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने अगले वित्तवर्ष में राजकोषीय घाटा छः प्रतिशत के आसपास रहने का अनुमान व्यक्त किया, जबकि प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने इसे आठ प्रतिशत तक रहने का अनुमान व्यक्त किया है, लेकिन वास्तव में यह दस प्रतिशत तक जा सकता है। कुल मिलाकर इस सरकार ने देश को गहरे आर्थिक संकट में धकेल दिया है।
1 comment:
भाई, चिंतित न हो। हमारे यहां हर सरकार जनता के साथ ऐसा ही करती है फिर भी उन्हें ही चुनते हैं।
Post a Comment