rashtrya ujala

Monday, August 17, 2009

कैसे रचा गया झंडा गीत


झंडा गीत को 1938 के कांग्रेस अधिवेशन में स्वीकार किया गया था। इस गीत की रचना करने वाले श्यामलाल गुप्त पार्षद कानपुर में नरवल के रहने वाले थे। उनका जन्म 16 सितंबर 1893 में वैश्य परिवार में हुआ था। गरीबी में भी उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की थी। उनमें देशभक्ति का जज्बा था, जिसे वह अपनी कविताओं में व्यक्त करते थे। कांग्रेस का सक्रिय कार्यकर्ता रहने के बाद वह 1923 में फतेहपुर के जिला कांग्रेस अध्यक्ष बने। वह सचिव नाम का अखबार भी निकालते थे।जब यह लगभग तय हो गया था कि अब आजादी मिलने ही वाली है, उस वक्त कांग्रेस ने देश के झंडे (तिरंगा) का चयन कर लिया था। लेकिन एक झंडा गीत की जरूरत महसूस की जा रही थी।इधर, गणेश शंकर विद्यार्थी पार्षद जी के काव्य कौशल के कायल थे। विद्यार्थी जी ने पार्षद जी से झंडा गीत लिखने का अनुरोध किया। पार्षद जी कई दिनों तक कोशिश करते रहे, पर वह झंडा गीत नहीं लिख पाए। जब विद्यार्थीजी ने पार्षदजी से साफ-साफ कह दिया कि मुझे हर हाल में कल सुबह तक झंडा गीत चाहिए, तो वह रात में कागज कलम लेकर बैठ गए। आधी रात तक उन्होंने झंडे पर एक गीत तो लिखा, लेकिन वह उन्हें जमा नहीं। निराश होकर दो बजे जब वह सोने के लिए लेटे, अचानक उनके भीतर भाव उमडने लगे। वह उठकर लिखने बैठ गए। पार्षद जी को लगा जैसे कि कलम अपने आप चल रही हो और भारत माता उनसे गीत लिखा रही हों। यह गीत था- विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा। यह गीत लिखकर उन्हें बहुत संतोष मिला। सुबह होते ही पार्षद जी ने यह गीत विद्यार्थी जी को भेज दिया, जो उन्हें बहुत पसंद आया। जब यह गीत महात्मा गांधी के पास गया, तो उन्होंने गीत को छोटा करने को कहा। आखिर में, 1938 में कांग्रेस के अधिवेशन में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने इसे देश के झंडा गीत की स्वीकृति दे दी। यह हरिपुरा का ऐतिहासिक अधिवेशन था। नेताजी ने झंडारोहण किया और वहां मौजूद करीब पांच हजार लोगों ने झंडागीत को एक सुर में गाया।

1 comment:

Vinashaay sharma said...

अच्छी जान्कारी