rashtrya ujala

Tuesday, November 10, 2009

गोत्र, जाति, संप्रदाय की सीमा लांघकर...

भारत में आए दिन कोई ऐसा मामला सुनने को मिलता है जिसमें किसी नव-विवाहित युगल का शोषण किया जा रहा हो, उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा हो और इसकी वजह खोजने पर पता चलता है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि दोनों ने शादी के लिए कुल, गौत्र, जाति या संप्रदाय की समाज में प्रचलित मान्यताओं और सीमाओं का उल्लंघन किया है.कभी इन युगलों को आर्थिक-मानसिक-शारीरिक यातनाओं से गुज़रना पड़ता है. कभी सामाजिक रूप से इन्हें बहिष्कृत किया जाता है. कभी-कभी प्यार करने या ऐसी सीमाओं को लांघकर शादी करने की क़ीमत इनकी ज़िंदगी होती है. शादी के लिए गोत्र, जाति और संप्रदाय को आधार मानना सही है. अगर आप इन पारंपरिक तरीकों को सही मानते हैं तो क्यों, और अगर नहीं तो क्यों नहीं.
अगर कोई युगल गोत्र, जाति और संप्रदाय की सीमाओं को लांघकर शादी कर भी ले तो क्या ऐसा करने के लिए उनको किसी भी तरह की सज़ा देना या उन्हें परेशान करना सही ठहराया जा सकता है. क्या सामाजिक रूढ़िवादी मान्यताएं क़ानून और वैज्ञानिकता के दायरे से बढ़कर हैं.

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