निर्मेश त्यागी
ऐसे में दिल का धड़कना लाजिमी है,क्योंकि वेलेंटाइन डे है आज। युगों-युगों से बसंत का मंद समीर,खिले हुए फूल,गुनगुनाती धूप और मन में उठती मीठी सी तरंग। ऐसे माहौल में दिल का धड़कना तो लाजिमी ही है। यह अलग बात है कि खुशगवार मौसम की वजह से मन में आने वाले मुहब्बत से भरे इस सुरीले अहसास को आधुनिकता ने वेलेंटाइन डे का नाम दे दिया गया है। कुछ ऐसा ही बताते हैं मानव शरीर पर मौसम के बदलावों का अध्ययन करने वाले आयुर्वेदाचार्य। आयुर्वेदाचार्यों के मुताबिक दरअसल प्यार का दिन यानि वेलेंटाइन डे दिल का मामला नहीं बल्कि मौसम का मामला है।
आयुर्वेदाचार्य बताते हैं कि बसंत ऋतु में चलने वाली मंद समीर रोम छिद्रों के माध्यम से सीधे शरीर के भीतर प्रवेश कर जाती है। इससे शरीर के भीतर स्फूर्ति का अहसास होता है। आयुर्वेदाचार्यों का कहना हैै कि बसंत का मौसम ऐसा प्रभाव डालता है कि मानव प्रेम भावनाओं के वशीभूत होकर कार्य करने लगता है। शरीर की अग्रि भी इस दौरान काफी प्रबल हो जाती हैै। अग्रि के प्रबल होने के बाद मनुष्य भी पशु-पक्षियों की तरह विपरीत लिंग की ओर आकर्षित होता है। पाचन बढिय़ा हो जाता हैै। भूख ज्यादा लगती हैै।
प्रमुख आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ.अजय चौधरी बसंत ऋतु के शरीर पर पडऩे वाले प्रभाव के बारे में बताते हैं,कि पूरे मौसम में शरीर में धातुओं का पोषण की प्रक्रिया जारी रहती है। इसकी वजह से इनसान मानसिक तौर पर प्रेम के लिए काफी हद तक तैयार हो जाता है। डॉ.चौधरी के मुताबिक यही मुख्य वजह है,जिससे वेलेंटाइन डे बसंत में ही पड़ता हैै। युवाओं के अलावा इस ऋतु का प्रभाव बुजुर्गों पर भी पड़ता है। बुजुर्गों की कमर और पीठ दर्द से संबंधित शिकायतें काफी कम हो जाती है। गुस्सा करने वालों लोग थोड़े शांत पड़ जाते हैं और बात बात में झल्लाने वालों की झल्लाहट कम हो जाती हैै। बसंत के खुशगार मौसम का असर पशुओं व पक्षियों पर भी पड़ता है। पशु चिकित्सक डॉ.एच.के.शर्मा के अनुसार मौसम में आए बदलाव के कारण जानवरों की उग्रता भी कम होगी और वे बजाय मारने,काटने,भैंकने के प्यार प्रदर्शित करते हैं।
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