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Thursday, July 15, 2010

हाशिये पर है जनसंख्या कम करने का फलसफा

मारे देश में हर खास दिन को किसी दिवस के रूप में मनाया जाता है। जनसंख्या दिवस उन्हीं दिवसों में से एक है। जो हर साल सन् १९८७ से ११ जुलाई को मनाया जा रहा है। दरअसल ११ जुलाई १९८७ में ही विश्व की जनसंख्या पांच बिलियन हुई थी, पर हकीकत में इस दिवस में ऐसा कुछ नहीं है कि इसे मनाया जाए। क्योंकि न तो हम ११ जुलाई को जनसंख्या कम करने के लिए कोई प्रण लेते हैं और न ही इस बाबत किसी तरह का सकारात्मक कदम उठाते हैं। केवल ११ जुलाई सन् १९८७ में विश्व की जनसंख्या को ५ बिलियन के आंकड़ें तक पहुंचने के उपलक्ष्य में, इस दिन को च्किसी खास दिवसज् के रुप मनाया जाना कहीं से भी तार्किक नहीं लगता है।
पारंपरिक रुप से इस बार भी जनसंख्या के दशकीय वृद्धि का वास्तविक आकलन करने के लिए जनगणना (२०११) के काम की शुरुआत हो चुकी है। इसका शुभारंभ १० अप्रैल २०१० को कांग्रेस प्रेसीडेंट श्रीमती सोनिया गाँधी की निजी जानकारी को सरकारी खातों में दर्ज करके किया गया।
ज्ञातव्य है कि आजादी के बाद से यह सातवां जनगणना है और देश में होनेवाला १५वां। उल्लेखनीय है कि भारत में सबसे पहले सन् १८७२ में जनगणना हुई थी। जनगणना के द्वारा इंसान की संख्या जानने के अलावा देश के हर व्यक्ति की आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक एवं शैक्षणिक स्थिति की भी गणना की जाती है।
भारत में आबादी इस तेजी से बढ़ रही है कि हर साल हम जनसंख्या की दृष्टि से आस्ट्रेलिया जैसे देश का निर्माण कर लेते हैं और दस सालों में ब्राजील का। भारत के अनेक राज्यों की जनसंख्या विश्व के अनेक देशों से भी अधिक है। मसलन, उत्तरप्रदेश की जनसंख्या ब्राजील के लगभग बराबर है। बिहार की जनसंख्या जर्मनी से भी अधिक है। पश्चिम बंगाल इस मामले में वियतनाम के बराबर है। अन्य राज्यों की जनसंख्या भी विश्व के अन्यान्य देशों से या तो अधिक है या फिर बराबर है। भारत में विश्व की १७ प्रतिशत आबादी निवास करती है। जबकि उनके रहने के लिए विश्व की तीन प्रतिशत जमीन ही है और इस संबंध में प्राकृतिक संसाधनों की अपनी सीमा है। लिहाजा अगर हम अपनी जनसंख्या वृद्धि को रोकने में असफल रहते हैं तो वर्ष २०२६ तक मौजूदा प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग ३७१ मिलियन अधिक लोग करेंगे। उस वक्त हमारी स्थिति क्या होगी। इसकी महज कल्पना भी दु:स्वप्न के समान है। सच कहा जाए तो इस बदहाल स्थिति के मूल में गरीबी, अशिक्षा और गर्भ निरोधक का कम इस्तेमाल करना है। अब भी भारत के सिर्फ दो राज्यों हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल में गर्भ निरोधक के इस्तेमाल का प्रतिशत थोड़ा बेहतर है और वह ७० फीसद के आंकड़े को पार करता है। बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान में आज भी ५० प्रतिशत लड़कियों की शादी १८ वर्ष से कम उम्र में हो जाती है। पूरे देश में प्रत्येक साल ३५ लाख लड़कियाँ किशोरावस्था में ही मां बन जाती हैं।
स्वास्थ मंत्रालय के अनुसार भारत की महिलाओं में उत्पादकता दर २.६८ पाया जाता है। इसका अर्थ यह है कि बिहार व उत्तरप्रदेश को छोड़ करके भारत के अन्य राज्यों की महिलाएं बच्चे पैदा करने की उम्र में कम-से-कम तीन बच्चे पैदा कर सकती हैं। वहीं बिहार व उत्तरप्रदेश में यह दर चार है। ताजा पड़ताल से जाहिर है कि २०१५ तक च्हम दो हमारे दोज् की संकल्पना को पूरा करने में भारत के मात्र १४ राज्य ही सफल हो सकते हैं। भारत में एक मात्र राज्य आंध्रप्रदेश ही है जिसने जनसंख्या को रोकने में उल्लेखनीय काम किया है और वह अपने काम में काफी हद तक सफल भी रहा है। जिस गति से हमारे देश की जनसंख्या बढ़ रही है, यदि वह बरकरार रहती है तो हमारा देश २०३० तक चीन से भी आगे चला जाएगा, जो पूर्व में अनुमानित आकलन से पांच साल पहले है।
निर्मेश त्यागी
आज भारत की आबादी १.१५ बिलियन है जो २०३० में बढ़कर १.५३ बिलियन हो जाएगी। जबकि आजादी के समय भारत की आबादी मात्र ३५० मिलियन थी। जो अब तिगुनी से भी अधिक चुकी है। उल्लेखनीय है कि अगर वर्तमान दर से जनसंख्या में बढ़ोतरी होती रही तो २०५० तक हमारे देश की आबादी २ अरब से भी अधिक हो जाएगी। देश के अंदर विगत दो दशकों में जनसंख्या की वृद्धि दर सबसे अधिक नागालैंड में रही है। १९८१-९१ के बीच इस राज्य में ५६.०८ प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी, जो १९९१-२००१ में बढ़कर ६४.४१ फीसद हो गई थी। बीमार राज्य उत्तरप्रदेश में यह वृद्धि दर १९८१-९१ में २५.५५ प्रतिशत रही, वहीं १९९१-२००१ में २५.८० प्रतिशत। इस विषय का सबसे दुखद पहलू यह है कि जनसंख्या से मुसलसल उत्पन्न हो रहे अनगिनत समस्याओं के बावजूद भी हमारे देश में इस पर लगाम लगाने के लिए वांछित कोशिश नहीं की जा रही है।

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