rashtrya ujala

Tuesday, July 20, 2010

हमें भी भूखंड चाहिए

एनसीआर में बसने की इच्छा प्रत्येक व्यक्ति की होती है। अपनी इस इच्छा को पूरा करने के लिए उत्तर प्रदेश के विधायक गाजियाबाद विकास प्राधिकरण में लंबी लाइन लगी है। प्राधिकरण से भूखंड व भवन प्राप्त करने के लिए ऐसे विधायकों ने भी आवेदन किया है जो पूर्व में इस सुविधा का लाभ उठा चुके हैं। प्राधिकरण ने आवेदन करने वाले विधायकों का ब्यौरा एकत्र करने के लिए प्राधिकरण और आवास विकास परिषद के सभी रिकार्डों को खंगालना शुरू कर दिया है। अभी तक गाजियाबाद विकास प्राधिकरण चालीस विधायकों का आवदेन रद्द कर चुका है। इसके अलावा अन्य विधायको के आवेदनों को प्रदेश के आवास मंत्री को भेज दिया है। प्राधिकरण ने हाल ही में विधायकों की मांग को पूरा करने के लिए एक विशेष योजना प्रस्तुत की थी। जिसमें जिसमें 322 आवेदन प्राप्त हुए। प्राधिकरण के पास मात्र 254 भूखंड उपलब्ध है। इस योजना में आवेदन करने वाले विधायक पूर्व में भी किसी न किसी प्राधिकरण से भूखंड व भवन प्राप्त कर चुके हैं। इसके बाद भी विधायक मौका नहीं चूकना नहीं चाहते हैं। प्रदेश शासन आदेशानुसार विधायक को पूरे प्रदेश में एक भूखंड या भवन उपलब्ध कराया जाता है। प्रदेश के विधायक एनसीआर स्थित भूखंड खरीदने का मौका नहीं छोडऩा चाहते हैं,उसके लिए चाहते रास्ता कोई भी अपनाना पड़े। सत्ताधारी विधायक तो अलग-अलग प्राधिकरणों में अपने परिवार के सदस्यों के नाम से भूखंड हासिल करते हैं और अपने नाम का इस्तेमाल तो केवल विशेष योजना में किया जाता है। प्रदेश में ऐसा कोई पहली बार हुआ है। वर्ष-2004 में नोएडा प्राधिकरण द्वारा भूखंड योजना आम लोगों के लिए पेश की गई थी। जिसमें लगभग अस्सी हजार लोगों द्वारा आवेदन किया गया था। उक्त योजना में तत्कालीन सपा सरकार के मंत्री, विधायक, अधिकारियों व उनके परिजनों को आंवटन किया गया था। उक्त योजना के ड्रॉ के दौरान मैं स्वयं मौजूद था। ड्रॉ के दौरान लगभग सात हजार आवेदक मौजूद थे, मगर एक आवेदक ने भी उठकर भूखंड निकलने की खुशी का इजहार नहीं किया था। ड्रॉ के बाद से ही प्रदेश सरकार व नोएडा प्राधिकरण पर आरोप लगने लगे कि कंप्यूटर के माध्ययम से किए गए ड्रॉ में धांधली की गई। दूसरे ही दिन पूरी मीडिया ने प्रदेश सरकार व नोएडा की खामियों को उजागर कर दिया। जिसके परिणाम स्वरूप प्राधिकरण अध्यक्ष ने रविवार के दिन पत्रकार वार्ता में ड्रॉ को रद्द करने की घोषणा की। प्रदेश सरकार व प्राधिकरण को अपने ही मंत्रियों, विधायक, अधिकारियों व उनके परिवार के कारण बदनामी झेलनी पड़ी। उक्त योजना का ड्रॉ एक बार फिर कोर्ट द्वारा बनाई गई कमेटी द्वारा किया गया। जिसमें सभी आंवटी बदल गए। उक्त योजना में सबसे अधिक लाभ नोएडा प्राधिकरण को हुआ क्योंकि कई सौ करोड़ रुपया बैंक में जमा रहा। जिसका करोड़ों रुपये का ब्याज प्राधिकरण को मिला। पूर्व सत्ताधारी सरकार की गलती का खामियाजा प्राधिकरणों को उठाना पड़ रहा है। अब प्राधिकरण को योजना की घोषणा के समय ही ड्रॉ की तिथि और तरीके का ब्यौरा अपने विज्ञापन में देना पड़ता है। यहां पर कहना भी गलत नहीं होगा कि सत्ता का लाभ उठाने में सांसद और विधायक कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में इस समय बिल्डर फ्लैट निर्माण का बीड़ा उठाए हुए हैं। जिसमें कई बिल्डरों ने अपने प्रोजेक्ट में मौजूदा सांसदों का हिस्सा तय किया हुआ है। जिसके चलते उनके समक्ष आने वाली परेशानियों का निवारण हो जाता है। इसके अलावा एक सांसद ने तो प्राधिकरण से भूमि का आवंटन कराकर अपना ही प्रोजेक्ट शुरू कर दिया है। आज प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा होती है कि एनसीआर में अपना घर हो मगर यह सौभाग्य केवल ऊंची पहुंच वालों को ही प्राप्त होता है।

1 comment:

Anonymous said...

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