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Saturday, October 10, 2009

'नॉटी नारीवाद'

जोषिता वत्स
हर जमाने
में नारीवाद का अर्थ स्त्रियों द्वारा अपने अधिकारों के लिए लड़ना रहा है। आज भी नारीवाद इसीलिए है कि स्त्रियाँ अपने परति किए जा रहे अन्याय को नकारें व अपने हक के लिए आवाज उठाएँ, जो कि बिल्कुल उचित भी है। नारीवाद आज भी है, मगर उसका स्वरूप बदला है। पिछले जमाने में नारीवाद का मतलब पुरुषों से चिढ़, शादी से दूरी, बनाव-श्रृंगार से परहेज आदि होता था।
मगर आज की नारीवादी सोच न विवाह के खिलाफ और नही बाह्य सुंदरता के। वे विवाह करेंगी, मगर अपनी आकांक्षाओं का गला नहीं घोटेंगी। वे बनेंगी-सँवरेंगी मगर खुद की खुशी के लिए भी। वे खूबसूरती के बने-बनाए ढर्रे को मानें, यह जरूरी नहीं। वस्त्र भी वे मनचाहे पहनेंगी। वे पुरुषों से चिढ़ने के बजाय स्त्रियों से बहनपा रखने पर खास जोर देंगी और स्त्रियों के शक्ति समूह बनाएँगी। नारीवादी लेखिका 'एली लेवन्सन' ने इन्ही तथ्यों की ओर इंगित करते हुए एक पुस्तक लिखी है और नए जमाने के नारीवाद को 'नॉटी-नारीवाद' का नाम दिया है। ऐली लेवन्सन द्वारा लिखी गई पुस्तक 'द नॉटी गर्ल्स गाइड टू फेमिनिज्म' में उन्होंने बड़ी नवीनता के साथ यह बताया है कि कैसे नारीवाद ने इक्कीसवी सदी की लड़कियों के लिए अपने आपको पुन: अविष्कृत किया है। लेखिका का कहना है कि इस दौर की महिलाओं का नारीवाद किसी राजनीतिक विचारधारा पर नहीं खड़ा, बल्कि रोजमर्रा के अनुभवों पर खड़ा है।
नॉटी नारीवादी महिलाएँ जानती हैं कि किसी को जानने के लिए उसके कपड़ों को या रंग को ही देखना काफी नहीं है बल्कि उसका व्यक्तित्व और व्यवहार भी काफी महत्वपूर्ण होते हैं। वहीं से यह तय भी होता है कि आप क्या पहनते हैं।
वे कहती है कि मेरे लिए नारीवाद का अर्थ व्यावहारिक चुनाव से है, जैसे कि यह कि मैं हील पहनूँ या कि सपाट चप्पल यह मेरा चुनाव है। विशेषज्ञों का कहना है कि 2000 से 2009 (शून्य को नॉट भी कहते हैं, अत: इस दशक को नॉटी कहा गया है) की महिलाओं के लिए नारीवाद ने एक नया मोड़ ले लिया है। आज महिलाएँ नारी शक्ति के इस्तेमाल से इतर यह जान गई है कि वे अलग है और इसके बावजूद उन्हें समानता चाहिए। ये जीवन के प्रत्येक आयाम के व्यावहारिक चुनाव पर विश्वास रखती है और अपने नारीत्व को भी आत्मसात करती है। लेवेंसन अपनी किताब में कई उदाहरण पेश करती है और यह समझाने का प्रयास करती हैं कि महिलाओं की आपसी दोस्ती काफी मायने रखती है। पिछले कुछ दशकों में महिलाएँ अपने पति/ प्रेमी की जिंदगियों में इतनी मशगूल हो गई हैं कि वे अपनी महिला मित्रों को भूल सी गई हैं।
वे कहती हैं कि मुझे याद है कि कॉलेज के वक्त जब लड़कियों को कोई ब्वॉयफ्रेंड मिल जाता था या फिर उनकी शादी हो जाती थी तो उनके पुरुष मित्र/ पति के मित्र ही उनके मित्र हो जाया करते थे। सौभाग्य से "नॉटी" की महिलाओं ने महिलाओं की आपस की ताकत और एकता को महसूस करना शुरू किया है। आखिरकार यही एक ऐसी दोस्ती है जिसमें तुम्हें दिखावा नहीं करना होता, सुंदर नहीं बनना होता, अपने आपको बुद्धिमान भी जताना नहीं पड़ता, जैसी आप हैं आप वैसी ही स्वीकारी जाती हैं। यह काफी दुख की बात है कि मुख्यधारा की सिनेमा और टीवी भारत में "बहनआपा" (सिस्टरहुड) का प्रचार नहीं करते बेशक हमारे यहाँ "दिल चाहता है" जैसी फिल्में भी बनी जो 3 लड़कों की दोस्ती के इर्दगिर्द घूमती हैं, वहीं "जाने तू या जाने न" में मिले-जुले लड़का-लड़की वाले किरदार भी हैं, लेकिन अभी भी हमारे पास "सेक्स एंड द सिटी" जैसी फिल्मों का अभाव है। बेशक हकीकत में "बहनआपा क्लब" काफी बढ़ रहे हैं। महिलाएँ आपस में खरीददारी के लिए, बाहर खाना खाने इत्यादि के लिए भी जाती हैं। महिला मित्रों की दोस्ती बढ़े और कम से कम हफ्ते में एक बार वे आपस में जरूर मिलें यह काफी आरामदायक होता है। इसमें हम तनावमुक्त भी होते हैं और कई मुद्दों पर लंबी बात करने के बाद मुझे यह महसूस होता है कि उन मुद्दों पर मेरी समझ व संदर्भ सही हैं या मुझे अपनी राय पर कायम रहना चाहिए और यही नॉटी नारीवाद का सार तत्व भी है।
करिअर का चुनाव व समान अवसर :
लेवेंसन की किताब कहती है कि "नॉटी" लड़कियाँ श्रेष्ठता के खिलाफ नहीं हैं। बिना किसी भेदभाव के नौकरी अच्छे उम्मीदवार को ही मिलनी चाहिए चाहे वो लड़का हो या लड़की, लेकिन फिर भी हमें भेदभाव के खिलाफ बोलते रहना चाहिए। वरिष्ठ वकील सुष्मिता गांगुली कहती हैं कि "नॉटी" महिला होने के नाते मेरा मानना है कि कार्य स्थल ऐसा होना चाहिए जहाँ समान अवसर मिलें। हम चाहते हैं कि औरतों को भी आदमियों जैसे ही अवसर मिलें, जिसमें तनख्वाह व नौकरी की अन्य सुविधाएँ भी शामिल हैं।
लेवेंसन कहती हैं कि "नॉटी" नारीवाद बाह्य सुंदरता की आकांक्षा के साथ भी सही बैठता है। अगर हम मेकअप करना चाहते हैं या फिर आकर्षक कपड़े पहनना चाहते हैं तो इसकी कोई मनाही नहीं है। "नॉटी" नारीवाद इस बात की भी इजाजत देता है कि आप चाहे जैसे कपड़े पहनें, लेकिन इससे खूबसूरती के बने बनाए ढर्रे के लिए कोई जगह नहीं है और यह पहनावा व्यक्तित्व से ऊपर भी नहीं होना चाहिए। प्रियंका गाँधी की छवि "नॉटी" नारीवाद पर एकदम सही बैठती है। वे में कसी हुई टी शर्ट और पैंट में भी उतनी ही फब्ती हैं जितनी कि खादी की साड़ी में। डिजाइनर अनीता डोंगरे कहती हैं कि फैशनेबल होने से ज्यादा इसका अर्थ है कि आप अपने आपको पहचानती हैं और अपनी पहचान पा गई हैं। नॉटी नारीवादी महिलाएँ जानती हैं कि किसी को जानने के लिए उसके कपड़ों को या रंग को ही देखना काफी नहीं है बल्कि उसका व्यक्तित्व और व्यवहार भी काफी महत्वपूर्ण होते हैं। वहीं से यह तय भी होता है कि आप क्या पहनते हैं। नॉटी नारीवाद का अर्थ फैशन की दौड़ नहीं है बल्कि ऐसी महिला की प्रस्तुति है जिससे दुनिया उसे उसके गुणों से पहचाने। लेवेंसन कहती हैं कि परंपरागत रूप से नारीवाद और विवाह को एक साथ नहीं देखा जाता है। लेकिन आज विवाह करना नारीवाद के खिलाफ नहीं। आप सोचें कि इस लंबी जिंदगी को किसी और के साथ सांझी करके और खूबसूरत बनाया जा सकता है। लेकिन अगर महिलाएँ उनको दी गई उनकी ऐतिहासिक भूमिकाएँ जैसे "बीवी व माँ बनना" नहीं भी निभातीं तो भी इस नारीवाद को कोई आपत्ति नहीं है। मगर यह भी कि विवाह के लिए अपनी आकांक्षाओं का गला न घोंटें। नॉटी नारीवाद के तहत यह अवसर भी है कि आप विवाह का फैसला न करके अकेले जिंदगी जी सकती हैं और चाहें तो एकल माँ भी बन सकती हैं। यह नारीवादी अपनी इच्छाओं-आकांक्षाओं के पर्व का ही नाम है।

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