टेलिविजन पर दिखाए जा रहे चर्चित सीरियल 'बिग बॅासÓ और 'राखी का इंसाफÓ को प्राइम टाइम पर न दिखाने की सूचना प्रसारण मंत्रालय के फैसले पर बांम्बे हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। न्यायालय अपने अहम फैसले में इन दोनों कार्यक्रमों को नियत समय पर ही दिखाने की बात कही है। जिस वजह से आईबी मिनिस्ट्री के मुहिम को तगड़ा झटका लगा है। मंत्रालय भले ही यह कहे कि उसने ऐसे कार्यक्रम रोकने के उपाय किए, लेकिन न्यायपालिका बीच में बाधा बन गई। अब सवाल यह है कि रियलिटी शो के नाम पर दिखाई जा रही नई किस्म की अश्लीलता को रोकने के लिए सूचना प्रसारण मंत्रालय क्या पूरी तरह लाचार हो चुका है। पिछले दो-तीन वर्षों में मनोरंजक कार्यक्रमों के नाम पर टेलिविजन चैनल घर-घर में अश्लीलता फैलाने का काम कर रहे हैं। सवालिया निशान मंत्रालय के उस नियमों पर भी उठता है, जिसमें चैनलों को इस तरह की सीरियल दिखाने की छूट दी जा रही है। 'इमोशनल अत्याचारÓ जैसे धारावाहिक दिखाए जा रहे हैं,जिसमें निजता नाम की कोई चीज नहीं रह गई है। जिस तरह की गालियां आजकल महानगरों के पढ़े-लिखे युवा देते है वैसी ही गालियां इन रियलिटी शो में दी जाती है। 'इमोशनल अत्याचारÓ का कांसेप्ट इस कदर गलत है कि पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिकाओं के बीच जासूसी कर गैर-औरत या मर्द के बीच बने रिश्ते का खुलासा किया जाता है। जिसे मौजूदा युवा पीढ़ी बड़े शौक से देख रही है। उन्हें लगता है कि इसमें दिखाई गई ये सारी बातें पूर्व नियोजित नहीं है। ऐसे प्रोग्राम देखने से हमारे नाजुक रिश्तों पर दूरगामी प्रभाव पडऩा लाजिमी है। दरअसल इस तरह के मुनाफा प्रधान कार्यक्रम दिखाने के पीछे भी वही टीआरपी का फंडा है, जिसके पीछे न्यूज चैनलों से लेकर सभी इंटरटेनमेंट चैनल दौड़ लगा रहे है। पिछले कुछ सालों में फिल्म-धारावाहिक और न्यूज चैनलों से आम इंसान दूर होता जा रहा है। अमीर लोगों पर केेंद्रित चेहरे को देखकर एक बड़ी आबादी अवसाद से घिरता जा रहा है, जहां उसके देखने के लायक कुछ भी नहीं। एक बात खास गौर करने वाली है कि किसी भी सीरियल को चर्चित करने और उनका टीआरपी ग्राफ बढ़ाने में खबरिया चैनलों की भूमिका भी कम नहीं है। प्राइम टाइम और सुबह के कुछ घंटों को छोड़ दें तो चैनलों पर सारा दिन 'बिग बॅास के घर डॅाली की बदतमीजी की कहानी और सारा और अली के बीच रिश्ते की चर्चा की जाती है। इसमें कोई शक नहीं कि 'लिव इन रिलेशनशिपÓ की आधी-अधूरी तस्वीर को कलर्स चैनल पर 'बिग बॅास के जरिए युवाओं को वाकिफ कराया जा रहा है। ताकि कल इसे पूरी तरह अपनाने में किसी के बीच संकोच ना रहे। लेकिन मुनाफा कमाने की बेहिसाब प्रवृति ने चैनल मालिकों को अंधा बना दिया है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय भी पिछले कुछ सालों से मीडिया आजादी के नाम पर रेवडिय़ों की तरह धड़ल्ले से प्रसारण अधिकार दे रही है। जबकि प्रसारण नियमों में इस बात का साफ उल्लेख है कि ऐसे कोई कार्यक्रम ना दिखाएं जाएं,जिसमें अश्लीलता और फूहड़ शब्दों का इस्तेमाल हो रहा हो। आखिर मंत्रालय की ऐसी कौन सी मजबूरी है जिसका फायदा न्यूज चैनलों से लेकर मनोरंजन चैनल वाले उठा रहे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं है कि मुनाफा कमाने का रोग सूचना और प्रसारण मंत्रालय को भी लग गया है। देश के जिस तरह सांस्कृतिक संदूषण फैल रहा है, उसे रोकने में जनमाध्यम की अहम भूमिका है। क्योंकि समाज पर इसका काफी गहरा असर होता है। ऐसे में पत्रकारिता की प्रांसंगिकता भी बढ़ जाती है।
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