rashtrya ujala

Saturday, November 20, 2010

व्यापार कर विभाग की विजिलेंस भी कटघरे में

भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने के जिन उम्मीदों के साथ विजिलेंस का गठन किया गया था, शायद यह आशाएं धूमिल पड़ती जा रही हैं। इस आशंका की पुष्टि नोएडा में हुई एक घटना से हुई है। 13 अक्टूबर को जिस सेल टैक्स अधिकारी यादवेन्द्र सिंह को विजिलेंस की टीम ने रंगेहाथ तीन लाख रुपये रिश्वत लेते पकड़ा था, उसी भ्रष्ट अफसर को बचाने में व्यापार कर विभाग एड़ी-चोटी एक किए हुए हैं, उनके इस मुहिम में विजिलेंस विभाग भी पीछे नहीं है। पहले गिरफ्तारी कर ईमानदारी का तमगा लिया और बाद में आरोपी को सजा दिलाने के नाम पर हो रही देरी इस बात का सबूत है कि इस मामले में विजिलेंस की नीयत भी साफ नहीं है। इसे लेकर सेल टैक्स अधिकारी यादवेन्द्र सिंह द्वारा सताए गए व्यापारियों में गहरा आक्रोश है। उन्हें पहले उम्मीद थी कि विजिलेंस विभाग के हत्थे चढऩे के बाद आरोपी की अब तक की कारस्तानियों का काला चिट्ठा खुलेगा। लेकिन इस मामले में हो रही देरी से यह साफ संकेत है कि इस मामले की लीपापोती करने की शुरुआत हो चुकी है। हैरत की बात यह है कि गिरफ्तारी के बाद आरोपी अधिकारी थाने में सरकारी दामाद की तरह रह रहे हैं। हिरासत के बावजूद उनकी सुख-सुविधाओं में कोई कमी नहीं की जा रही है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि गिरफ्तारी के दो महीने के बाद भी यादवेंद्र सिंह के खिलाफ न्यायालय में विजिलेंस टीम द्वारा चार्जशीट दाखिल नहीं करना उनके खिलाफ कमजोर केस बनाने की शुरुआती योजना है। क्योंकि कानून के मुताबिक दो माह के भीतर हर हाल में आरोप पत्र जमा करना होता है। ऐसा न होने पर आरोपी के खिलाफ कानूनी पक्ष कमजोर हो जाता है। इस मामले में देरी की वजह क्या है इस बारे में सेल टैक्स विभाग से जुड़े अधिवक्ताओं का कहना है कि यादवेन्द्र सिंह की पहुंच कई आला प्रशासनिक अधिकारियों तक है। इतना ही नहींकई केेंद्रीय मंत्रियों से भी उनके ताल्लुकात बेहतर हैं। यही वजह है कि इस मामले को रफा-दफा करने में सारा सिस्टम लगा हुआ है। गौरतलब है कि भारतीय सेना की एसएससी से रिटायर होने के बाद यादवेंद्र सिंह नोएडा सेल टैक्स में अधिकारी बने। इस पद पर वह पिछले आठ सालों से कार्यरत थे। फेहरिस्त यहीं खत्म नही होती। इस विभाग में अब भी कई ऐसे अधिकारी हैं जो कई सालों से यहां जमे हुए हैं,जाहिर है किसी न किसी लालच के चलते वे नियमों की अनदेखी कर इतने लंबे समय से यहां डेरा जमाए बैठे है। विभागीय सांठ-गांठ और सिफारिश की वजह से भ्रष्ट अधिकारी बच कर निकल जाएं तो यह खुल्लम खुल्ला कानून का उपहास है।