दुनिया में धूम्रपान और तंबाकू सेवन से करीब 54 लाख लोग प्रतिवर्ष काल के गाल में समा जाते हैं। इनमें से आठ से दस लाख लोगों की अकेले भारत में ही मृत्यु हो जाती है। गैरसरकारी संस्था गंगाप्रेम हास्पिटल के कैंसर केयर ट्रस्ट के संयोजक और प्रमुख कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. एके दीवान ने 'वर्ल्ड नो टोबैको डे' के अवसर पर यहाँ बताया कि देश के अधिकांश लोग बीड़ी पीने, गुटका खाने और तंबाकू का धुआँ अपने अंदर ग्रहण करने से होने वाली बीमारियों के प्रति अनभिज्ञ हैं। उन्होंने कहा कि आश्चर्यजनक स्थिति यह है कि दुनिया के अन्य हिस्सों में तंबाकू से होने वाले कैंसर के मामले में जहाँ एक तरफ कम हो रहे हैं, वहीं भारत में तंबाकू से होने वाले कैंसर रोगियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। डॉ. दीवान ने कहा कि विभिन्न आँकड़ों के अनुसार देश में करीब 15 करोड़ पुरुष और साढे़ तीन करोड़ महिलाएँ तंबाकू या उनसे बने हुए उत्पादों का सेवन करती हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया में प्रति छह सेकंड में एक व्यक्ति तंबाकू से हुए कैंसर के चलते मरता है। कैंसर के सभी रोगियों में तीस प्रतिशत मृत्यु तंबाकू के चलते हुए कैंसर रोगी की होती है, जबकि फेफडे़ के कैंसर के 80 प्रतिशत मामलों का कारण तंबाकू ही होता है। दुनिया में 31 मई को तंबाकू निषेध दिवस मनाया जाता है। डॉ। दीवान ने कहा कि तंबाकू में करीब चार हजार प्रकार के विषाक्त पदार्थ पाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि देश में तंबाकू से होने वाली बीमारियों के इलाज पर देश में प्रतिवर्ष एक आकलन के मुताबिक करीब 277 अरब रुपए खर्च किया जाता है। इसमें कैंसर के इलाज पर होने वाला खर्च भी शामिल है। डॉ. दीवान ने कहा कि सरकार की ओर से हालाँकि तंबाकू सेवन की रोकथाम के लिए कुछ कदम जरूर उठाए गए हैं, लेकिन वे अपने में नाकाफी हैं।
वर्ष 1995 में संसद की एक स्थायी समिति ने सार्वजनिक स्थान पर धूम्रपान करने पर प्रतिबंध और तंबाकू से संबंधित विज्ञापनों के प्रदर्शन पर रोक की सिफारिश की थी।उन्होंने तंबाकू के प्रयोग के खिलाफ चित्र के साथ चेतावनी प्रकाशित करने पर जोर दिया और कहा कि सिगरेट के पैकेट पर कम से कम चालीस प्रतिशत हिस्सा चित्र का होना चाहिए और बाकी सिगरेट कम्पनी का अपना नाम या अन्य चीज हो। लोगों में तंबाकू के प्रयोग को रोकने के लिए तंबाकू से बने सामानों को और अधिक महँगा करने पर बल देते हुए डॉ। दीवान ने कहा कि जब भी इन सामानों को महँगा किया जाता है तो मध्य वर्ग के करीब सात प्रतिशत और उच्च वर्ग के करीब तीन प्रतिशत लोग इसका उपयोग कम कर देते हैं। उन्होंने कहा कि विभिन्न देशों द्वारा उठाए गए कदम से तंबाकू और उससे बने उत्पादों के उपयोग कम होने के प्रमाण सामने आए हैं। इन कदमों में मुख्य रूप से कर बढ़ाया जाना, विज्ञापन पर रोक लगाना, सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान रोकना तथा चेतावनी प्रकाशित करना शामिल है। डॉ. दीवान ने कहा कि आश्चर्यजनक स्थिति यह है कि भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर पहले से ही भारी दबाव है। इसके बावजूद तंबाकू के प्रयोग को रोकने के लिए कारगर कदम नहीं उठाए जाते। हकीकत यह है कि तंबाकू उत्पाद बनाने वाली कम्पनियाँ कभी भी अपने उत्पादों से होने वाली 20 बीमारियों के भयावह सत्य को उजागर नहीं होने देतीं।
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