rashtrya ujala

Thursday, June 4, 2009

धारदार सुरक्षा नीति जरूरी

भारत की नवनिर्वाचित सरकार को सबसे पहले हमारे देश के पड़ोस में बढ़ती अस्थिरता, परिवर्तनशीलता और हिंसा की समस्या से निपटना होगा। हमारे पश्चिम में पाकिस्तानी सेना राजधानी इस्लामाबाद के ठीक बाहर अनिच्छा से तालिबान के खिलाफ एक मुश्किल लड़ाई लड़ रही है, जबकि लाखों शरणार्थी अपने घरों से भागने पर मजबूर हो रहे हैं। साथ ही, लश्कर-ए-तोइबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे कट्टरपंथी इस्लामी गुट, जिन्होंने लंबे समय से भारत के खिलाफ जेहाद छेड़ा हुआ है, न केवल तालिबान के समर्थन में उतर आए हैं बल्कि भारत के खिलाफ अपना जेहादी एजेंडा भी बरकरार रखे हुए हैं। पाकिस्तानी सेना में ऐसे तत्वों की मौजूदगी से इंकार नहीं किया जा सकता, जो पाकिस्तान सरकार का ध्यान तालिबान के खिलाफ लड़ाई से हटाना चाहते हैं। साथ ही भारत में आतंकी हमले करने और भारत-पाकिस्तान तनाव बढ़ाने की दिशा में अग्रसर होना चाहते हों। नई सरकार को दुश्मनी निभाने वाले पड़ोसियों को सतर्क करने के लिए अपने सशस्त्र बलों के लिए तेजी से अनिवार्य नए साजो-सामान जुटाने चाहिए, आंतरिक सुधार लाने चाहिए और देश के खुफिया तंत्र को मजबूत बनाना चाहिए।
हालिया आम चुनाव में श्रीलंकाई सेना द्वारा लिट्टे के संहार के बीच पिस रहे श्रीलंका के आम और निर्दोष तमिलों के कष्टों पर तमिलनाडु में तीव्र जनभावनाएँ भड़कते हुए देखने को मिली। भारत को श्रीलंका में विस्थापित तमिलों की मदद के लिए व्यापक पुनर्वास अभियान शुरू करना होगा। इसके साथ ही श्रीलंका सरकार को 1987 के राजीव गाँधी-जयवर्धने समझौते को लागू करने के लिए प्रेरित करने की कोशिश करनी होगी, जो श्रीलंका के तमिलों को प्रतिनिधि स्वशासी संस्थानों के साथ आत्मसम्मान के साथ जीवन बिताने का अधिकार देता है।
इसी तरह नेपाल से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि निवर्तमान प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड के नेतृत्व में माओवादी सरकार ने चीन के साथ एक नया संबंध कायम करते हुए न्यायपालिका और सेना जैसे संस्थानों पर प्रभुत्व कायम करने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में रुकावट डालने की योजना बनाई जिससे भारत की सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि माओवादी नेपाल में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को ध्वस्त न करें या ऐसी स्थिति न उत्पन्न होने दें कि माओवादी चीनियों को भारत की सीमाओं के नजदीकी इलाकों तक पहुँचा सकें। हालाँकि भारत की चिंता का मुख्य विषय अभी चीन द्वारा पड़ोसी देशों में भारतीय प्रभाव को कमजोर करने की कोशिशें हैं। चीन, पाकिस्तान को अधिक परिष्कृत प्लूटोनियम आधारित परमाणु हथियार बनाने में मदद देने के अलावा उसे लड़ाकू विमानों और लड़ाकू जहाजों सहित परिष्कृत रक्षा उपकरणों की आपूर्ति जारी रखे हुए है। चीन ने अमेरिका को भी प्रेरित करने की कोशिश की कि वह कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ चर्चा करने के लिए भारत पर दबाव डाले। भारत को घेरने और अपने पड़ोसियों के साथ रिश्तों में समस्याएँ उत्पन्न करने की इन चीनी कोशिशों के अलावा चीन अब सीमा विवाद पर युद्ध करने के लिए उतारू होता जा रहा है। वह लगातार इस बात पर जोर दे रहा है कि अरुणाचल प्रदेश 'दक्षिणी तिब्बत' का एक हिस्सा है जिस पर भारत ने 'कब्जा' किया हुआ है। मुंबई में 26/11 के आतंकी हमलों के तुरंत बाद कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमिटी द्वारा चलाए जा रहे संस्थानों के चीनी विद्वानों ने चेतावनी दी कि अगर भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कोई दंडात्मक सैन्य कार्रवाई की तो चीन हमला करके अरुणाचल प्रदेश को 'आजाद' करा सकता है।
इससे बदतर स्थिति यह है कि चीन ने भारत को एशियाई विकास बैंक से लगभग 10,000 करोड़ रुपए की विकास संबंधी सहायता का एक पूरा कार्यक्रम रुकवा दिया है, सिर्फ इसलिए कि उस मदद में अरुणाचल प्रदेश में विकास संबंधी परियोजनाओं के लिए भी पैसा शामिल था। भारत के लिए चिंता का विषय यह है कि चीन के साथ हमारी सीमाओं तक की सड़कें और संचार तंत्र बहुत बुरी हालत में हैं। उत्तराखंड जैसे राज्य में मानसून के दौरान अकसर ये रास्ते भूस्खलन होने से बंद हो जाते हैं जबकि चीनियों ने नेपाल और भारत के साथ लगी अपनी सीमाओं तक बढ़िया सड़कें बनाई हैं। आजादी के छः दशक बाद भी चीन से लगी सीमाओं पर हमारी संचार व्यवस्था बुरी हालत में है।
आने वाली कांग्रेस गठबंधन सरकार को चीन के साथ लगी हमारी सीमाओं पर यातायात और संचार की व्यवस्था में सुधार लाना होगा। इसके अलावा चीन अपनी रक्षा क्षमताओं को सुधारने और उसके आधुनिकीकरण के एक व्यापक कार्यक्रम में जुटा हुआ है। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके सुरक्षा बल वर्तमान से अधिक बेहतर हों। चीन के इरादे परमाणु पनडुब्बियों और विमान वाहकों के साथ ही अपनी नौसेना को विकसित करने के जो प्रयास किए जा रहे हैं, उनसे और हिन्द महासागर में अपनी सेनाएँ तैनात करने से भी स्पष्ट हो जाता है कि हमें अपनी नौसैनिक क्षमताओं को सशक्त बनाने के लिए रूस के साथ गठजोड़ को और तेजी देनी चाहिए। कूटनीतिक रूप से भारत को अपने देश के भीतर बुनियादी ढाँचे को विकसित करने के लिए जापान जैसे देशों के साथ सहयोग बढ़ाना होगा, जो चीन के बढ़ते प्रभाव से चिंतित है।
अब समय है कि भारत, चीन के साथ अपने रिश्तों में सुरक्षात्मक रवैया अपनाना छोड़ दे। अगर चीन, पाकिस्तान और नेपाल जैसे पड़ोसियों के साथ भारत के मतभेदों का लाभ उठाना चाहता है तो भारत को भू-भाग संबंधी मुद्दों पर वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्रुनेई और फिलीपींस जैसे पड़ोसियों के साथ चीन के मतभेदों को भुनाने में हिचकना नहीं चाहिए। अगर चीन, पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों को मिसाइल की आपूर्ति द्वारा भारत को काबू में रखना चाहता है तो भारत को निश्चित तौर पर अपनी ब्रह्मोस मिसाइलों की आपूर्ति वियतनाम जैसे चीन के पड़ोसियों को करने में संकोच नहीं करना चाहिए ताकि वे अपनी समुद्री सीमाओं के साथ बलपूर्वक अपने दावे रखने के चीन के इरादों को नियंत्रित कर सकें। चीन राष्ट्रीय ताकत को महत्व देता है 'हिन्दी-चीनी भाई-भाई' जैसी भावनाओं को नहीं। चीन या कोई और देश भी हो यदि भारत के प्रति शत्रुतापूर्ण रवैया रखता है तो उससे निपटने के लिए अधिक तार्किक और धारदार नीतियाँ अपनानी जरूरी हैं। खतरों के प्रति बचाव की मुद्रा हमेशा ाभदायक नहीं होती है। खासतौर से सुरक्षा के मामलों में तो और भी नहीं। इस क्षेत्र में तो आप बचाव के बजाय आक्रामक बनेंगे तो ही जीत है।

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