आरोपी को उन्नीस साल बाद सिर्फ छह माह की सजा,जोकि काफी कम होने के कारण परिजनों को लगा झटका
नई दिल्ली। उन्नीस वर्ष पूर्व एक किशोरी से छेड़छाड़ करने के मामले में हरियाणा के पूर्व डीजीपी एसपीएस राठौर को दोषी करार देते हुए छह महीने की सजा का मुद्वा संसद के दोनों सदनों में उठाया गया। इस मुद्वे को लेकर विपक्षी दलों ने सरकार को घेरते हुए कम सजा को शर्मनाक बताया। आरोपी की हरकत के कारण देश ने एक अच्छे खिलाड़ी को खो दिया। राज्य सभा में सीपीएम सांसद वृंदा करात ने इस मुद्वे को उठाते हुए कहा कि इतने बड़े मामले में केवल छह महीने की सजा सरकार के लिए शर्मनाक तो है ही साथ में इतने वर्षो बाद मिली सजा प्रशासन की पोल खोल कर रख दी है। गौरतलब है कि सीबीआई की एक विशेष कोर्ट ने उन्नीस साल पहले एक किशोरी से छेड़छाड़ करने के मामले में हरियाणा के पूर्व डीजीपी एसपीएस राठौर को दोषी करार देते हुए छह माह के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। साथ ही उन्हें 1,000 रुपए का जुर्माना भरने को कहा गया है। जुर्माना न अदा करने पर राठौर को एक माह की सजा और भुगतनी होगी।
पीडि़ता 14 वर्षीय किशोरी रुचिका गिरहोत्रा उभरती हुई टेनिस खिलाड़ी थी। वह 12 अगस्त 1990 को राठौर की छेड़छाड़ का शिकार हुई थी। उस दौरान राठौर हरियाणा में आईजी और हरियाणा टेनिस एसोसिएशन के अध्यक्ष थे। शिकायत दर्ज कराए जाने पर राठौर ने रुचिका और उसके परिजनों को परेशान करना शुरू कर दिया था, जिसके चलते घटना के तीन साल बाद रुचिका ने जहर पीकर आत्महत्या कर ली थी। पीडि़ता के परिजनों ने राठौर को सुनाई गई छह माह के सश्रम कारावास की सजा को कम बताया है। आईपीसी की धारा 354 के तहत दोषी करार दिए गए व्यक्ति को दो साल तक की कैद की सजा सुनाई जा सकती है।
इंसाफ के लिए संघर्ष करेंगे:आराधना
रुचिका की सहेली और इस घटना की एकमात्र गवाह आराधना गुप्ता इस मामले का फैसला सुनने के लिए आस्ट्रेलिया से अपने पति के साथ चंडीगढ़ आई थीं। आराधना,रुचिका की सहयोगी टेनिस खिलाड़ी और पड़ोसी थीं। घटना के वक्त वह 13 साल की थीं। आराधना ने बताया कि रुचिका की मौत के बाद उसका परिवार किसी अज्ञात जगह चला गया था। तब से यह लड़ाई उनके पिता लड़ रहे थे। उन्होंने कहा कि न्याय वह ही अच्छा होता है जोकि समय पर मिल जाए। उन्होंने 19 वर्ष बाद मिला न्याय उनके किसी काम का नहीं है क्योंकि पीडि़त परिवार बरबाद हो गया और उन्होंने अपनी बेटी को भी खो दिया।
1 comment:
हमें फिर भी शर्म नहीं आती। हम इस न्यायव्यवस्था को बदलने के लिए सरकार के विरुद्ध मोर्चा क्यों नहीं खोलते?
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