Tuesday, November 10, 2009
गोत्र, जाति, संप्रदाय की सीमा लांघकर...
अगर कोई युगल गोत्र, जाति और संप्रदाय की सीमाओं को लांघकर शादी कर भी ले तो क्या ऐसा करने के लिए उनको किसी भी तरह की सज़ा देना या उन्हें परेशान करना सही ठहराया जा सकता है. क्या सामाजिक रूढ़िवादी मान्यताएं क़ानून और वैज्ञानिकता के दायरे से बढ़कर हैं.
फर्ज़ी मुठभेड़ की बढ़ती संख्या
नौतुंबी, उम्र केवल 40 साल, लेकिन उनके फक्क चेहरे पर तैरती झांई जैसे कहीं अधिक पुरानी हो. इतनी ख़ाली आंखें कम ही दिखती हैं लेकिन इतनी ख़ाली आंखों में इतनी दृढता और भी विरल है.अपने बेटे संजीत की तस्वीर को हाथों से बार बार पोंछते हुए नौतुंबी कहती हैं, "मैंने अभी तक अपने बेटे का अंतिम संस्कार नहीं किया है। और जब तक मुझे न्याय नहीं मिल जाता करूंगी भी नहीं. आख़री सांस तक लड़ूंगी."उत्तर प्रदेश के लखीमपुर ज़िले में अपने टूटे और अस्तव्यस्त मकान के बाहर खड़ी मंजू गुप्ता की आंखों में उनकी 60 साल की उम्र से पुराना शक़ है जो सामने खड़े हर अजनबी चेहरे पर रुकता है। वो बार बार सिर पकड़ कर कहती हैं, "अब हमें कुछ नहीं कहना है. किसी से शिकायत नहीं करनी है. पुलिस से दुश्मनी कौन मोल ले. लाखों का बेटा चला गया. अब कैसी उम्मीद." राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार भारत में पिछले तीन सालों में औसतन हर तीसने दिन एक व्यक्ति की पुलिस के साथ कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मौत होती है. मरने वाले लोगों की सूची में संजीत और गौरव गुप्ता के नाम दर्ज हो गए हैं.आयोग के अनुसार पूरे देश में लगभग एक साल में कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ में लगभग 130 लोग मारे गए हैं. पिछले एक साल में ही कथित फर्ज़ी मुठभेड़ो के सबसे ज्यादा यानि 51 मामले उत्तर प्रदेश से हैं जब कि दूसरे नंबर पर है देश का एक सबसे छोटा राज्य मणिपुर जहां कम से कम 21 मामले दर्ज हुए हैं.चौंकाने वाली बात यह है कि इसी साल सबसे ज़्यादा यानि 74 शौर्य पदक मणिपुर की पुलिस को मिले और इनमें से ज्यादर मुठभेड़ों के लिए मिले जबकि शेष राज्यों की पुलिस को केवल 138 शौर्य पदक मिले.
पुलिस के दावे:-उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक एके जैन स्पेशल टास्क फ़ोर्स में लंबा समय बिता चुके हैं और फ़र्जी मुठभेड़ों के आरोपों का खंडन करते हैं. वो कहते हैं, "जब पुलिसकर्मी मुठभेड़ों में मरते हैं तो कोई यह सवाल नहीं करता. मगर जहां फ़र्ज़ी मुठभेड़ के मामले आते हैं वहां पुलिस कार्यवाई भी करती है और ताकतवर लोग भी उसकी ग़िरफ़्त में आते हैं."जहां तक मणिपुर की बात है वहां के पुलिस महानिदेशक जॉय कुमार कहते हैं, "जो लोग मुठभेड़ो में मरते हैं उनसे हथियार बरामद होते हैं. पुलिस पर फ़र्जी मुठभेड़ का आरोप लगाने वाले लोग पृथक्तावादी संगठनों के समर्थक हैं."

एके जैन कहते है कि मुठभेड़ में पुलिस वाले भी मारे जाते हैं और फर्जी मुठभेड़ के मामले में कार्रवाई की जाती है
23 जुलाई 2009 को संजीत की मौत के बाद से मणिपुर में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला थमा नहीं है. पिछले लगभग तीन महीनों से छात्र संगठनों के आह्वान पर स्कूल कॉलेज बंद हैं. दबाव में मणिपुर सरकार ने न्यायिक जांच के आदेश दिए और एनकाउंटर में शामिल पुलिसकर्मियों को निलंबित किया.लखीमपुर खीरी में पुलिस गौरव गुप्ता को फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मारने के आरोपों का खंडन करती है. उस पर आरोप था कि उसने एक पुलिस अधिकारी की हत्या की थी. लेकिन गौरव गुप्ता के 20 वर्षीय भाई रिक्कू का कहना है कि पुलिस उसी के सामने लखनऊ में गौरव को ग़िरफ्तार कर के ले गई थी. आज वहां कुछ राजनीतिक गुट सच्चाई को सामने लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं.
वजह क्या है?
कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ों की वजह क्या है, क्या सच्चाई है? जवाब इस बात पर निर्भर करता है कि आप कौन से चश्मे से इसे देख रहे हैं. सरकार बढती मुठभेड़ों के बारे में देश में बढ़ती आतंकवादी गतिविधियों की ओर इशारा करती है. लेकिन अगर कथित फर्ज़ी मुठभेड़ों में मरने वालों की पृष्ठभूमि पर नज़र डालें तो ज्यादातर लोग या तो छोटे मोटे अपराधी थे या उनका कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं था.एसआर दारापुरी उत्तर प्रदेश पुलिस में अतिरिक्त महानिदेशक रह चुके हैं और अब मानवाधिकार संगठन पीपल्स यूनियन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स के उपाध्यक्ष हैं. वे कहते हैं, "राजनीति में अपराधी तत्वों का बढता प्रभाव कथित फर्ज़ी मुठभेड़ों के पीछे एक बड़ा कारण है. जो राजनेता सत्ता में हैं उनके लिए काम करने वाले अपराधियों को संरक्षण मिलता है जब कि उनके विरोधियों के लिए काम करने वाले अपराधियों को ख़त्म करने के लिए पुलिस को औजार बनाया जाता है. कई मामलों में पुलिस सत्तारुढ राजनेताओं को ख़ुश करने के लिए, पदोन्नति और शौर्य पदकों के लिए भी ऐसी कार्रवाईयां करती है."मुठभेड़ फर्ज़ी है या नहीं यह साबित करना एक आम आदमी के लिए जिसका रिश्तेदार मारा गया हो वैसा ही है जैसे वो पूरी व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ रहा हो. ग़ैर सरकारी संस्थाओं की मदद से भी यह लड़ाईयां सालों खिंचती हैं.जून 2003 में 19 साल की इशरत जहां और उसके तीन दोस्त गुजरात पुलिस के हाथों मारे गए थे. इस साल गुजरात की ही एक अदालत ने इसे फ़र्जी़ मुठभेड़ करार दिया था. मगर कुछ ही दिनों में ऊपरी अदालत ने इस फ़ैसले पर रोक लगा दी. इशरत जहां की बहन और मां अब सुप्रीम कोर्ट की ओर देख रहे हैं. वो कहते हैं, कि अगर सही तरीके से जांच होगी तो हमें न्याय भी मिलेगा.कई मानवाधिकार कार्यकर्ता और गुजरात के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक रह चुके श्री कुमार मानते हैं कि आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय का एक ऐतिहासिक फ़ैसला फ़र्ज़ी मुठभेड़ की वारदातों में कमी ला सकता है.इस फ़ैसले के मुताबिक किसी भी पुलिस मुठभेड़ के बाद लाज़मी तौर पर इसमें शामिल पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ प्राथमिकी रिपोर्ट दर्ज़ हो. मुठभेड़ फर्ज़ी नहीं थी ये साबित करने का भार भी पुलिस पर हो. हालांकि इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. अब नज़र सुप्रीम कोर्ट पर है.
Thursday, October 22, 2009
सुंदर दिखने के लिए जरूरी है सुंदर सेहत

आउटडोर गेम्स में दिलचस्पी:-''मैं प्रत्येक दिन जिम में लगभग डेढ़ घंटे तक व्यायाम करती हूँ। अगर आउटडोर शूटिंग कर रही होती हूँ तो यह संभव नहीं हो पाता। मेरे लिए फिटनेस बहुत जरूरी है। इसलिए व्यस्तता के बावजूद व्यायाम करने के लिए समय निकालने की पूरी कोशिश करती हूँ। जरूरी नहीं है कि जिम में समय बिताना ही व्यायाम है। मैं टहलना, तैराकी या आउटडोर गेम्स को भी व्यायाम ही मानती हूं। आउटडोर गेम्स में मेरी दिलचस्पी है। मेरी राय में आकर्षक दिखने का एक ही फार्मूला है और वह है,आपकी फिटनेस।''
डांस है बेहतर व्यायाम:-''खुशनसीब हूँ कि मेरे शरीर में वजन बढ़ने की प्रवृत्ति नहीं है। इसलिए अपना सारा ध्यान बॉडी की टोनिंग पर केंद्रित करती हूँ। वेट ट्रेनिंग करती हूँ और कार्डियो कभी-कभी ही करती हूँ। मेरे लिए सर्वोत्तम व्यायाम नृत्य या डांस है। प्रशिक्षित क्लासिकल डांसर होने के कारण मुझे डांस करना बेहद अच्छा लगता है। है।''
संतुलित भोजन का महत्व;-''संतुलित-पोषक भोजन पर ही आपके स्वास्थ्य का दारोमदार निर्भर करता है। मैं अत्यधिक मसालेदार और तैलीय भोजन से जहां तक संभव हो परहेज करती हूँ। जंक फूड्स से तो मैंने पूरी तरह दूरी बना ली है। आपको बता दूं कि मैंने चावल खाना छोड़ दिया है। नियमित समय पर भोजन करना मेरी फिटनेस का मूल मंत्र है। दिन-भर में चार बार आहार ग्रहण करती हूं। रात 8 बजे के बाद कुछ भी खाने से बचती हूँ। इसके अलावा दिन-भर में पर्याप्त मात्रा में पानी पीती हूँ। इससे त्वचा में कांति आती है और शरीर को अतिरिक्त वसा से भी छुटकारा मिलता है।''
Monday, October 19, 2009
हाथ धोने से हर दिन बच सकती है 400 बच्चों की जान
महिला और हृदय रोग
मेट्रो अस्पताल, नोएडा
धमनियों में खून के थक्के यानी कोलैस्ट्रोल का जमाव, जिससे धमनियों के बंदहो जाने के कारण उचित रक्त का संचार नहीं होता है। इससे छाती में दर्द और हार्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती है। सबसे पहले प्रत्येक महिला को अपनी ब्लड कोलैस्ट्रोल और ब्लड प्रेशर की जांच करानी चाहिए।
यह सत्य है कि महिलाओं के लिए हृदय रोग आजकल सबसे ज्यादा खतरनाक बीमारी बनती जा रही है और महिलाएं इस खतरनाक रोग को लेकर सचेत नहीं हैं। यह तथ्यपूर्ण बात है कि अधिकतर महिलाएं जीवन के छठवें दशक (साठ वर्ष) बाद इस रोग से पीड़ित होती हैं। इस रोग को लेकर महिलाओं में व्याप्त गलतफहमियां मात्र रोग के बारे में सही ज्ञान अर्जित करने से ही खत्म हो सकती हैं। यह तभी होगा जब हमें रोग की उचित रोकथाम का ज्ञान हो सके। महिलाओं में इस रोग के लक्षण पुरुषों से भिन्न होते हैं। इन लक्षणों को पहचानने के लिए महिलाओं को इस बात की समझ होनी चाहिए कि यह रोग कितना भी गंभीर क्यों न हो, इससे बचा जा सकता है। हृदय रोग चाहे जैसा भी हो, रोकथाम के लिए लंबे इलाज की आवश्यकता होती है। यह बात आश्चर्यजनक हो सकती है लेकिन सत्य है। दुनिया भर में अधिकतर महिलाओं की मृत्यु और अपंगता हृदय रोग से होती है। प्रतिवर्ष इस रोग से मरने वाली महिलाओं का प्रतिशत पुरुषों की अपेक्षा अधिक होती है। यह बात मेट्रो अस्पताल के प्रबंध निदेशक व पद्म विभूषण, डा.वी.सी.राय अवार्डी डा.पुरुषोत्तम लाल ने बतायी।
हृदय में छेद होने के कारणों में धुम्रपान, उच्च रक्त चाप और कोलैस्ट्रोल प्रमुख हैं जो महिलाएं व पुरुषों पर समान रूप से प्रभाव डालते हैं। लेकिन महिलाएं कुछ विशेष बातों पर ध्यान दें तो वे इस रोग की त्रासदी से बच सकती हैं।
तमहिलाओं में रक्त कोलैस्ट्रोल का स्तर उम्र के साथ बढ़ता है। रजोनिवृत्ति (मासिक धर्म) के बाद इसका खतरा कुछ अधिक बढ़ जाता है। 45 वर्ष के बाद महिलाओं का रक्त चाप (बल्ड प्रैशर) सामान्य लेकिन हमउम्र पुरुषों की अपेक्षा अधिक पाया जाता है।
तसामान्य से अधिक भार और मोटापे का हृदय रोग से संबंध होता है। मोटापे से ग्रस्त महिलाओं की संख्या विभिन्न देशों में बढ़ रही है।
तविशेष तौर पर 35 से 50 की आयु में कम व्यायाम करना इस रोग के कारणों को बढ़ा देता है और शारीरिक निष्क्रियता के कारण स्ट्रोक (हार्ट अटैक) और सी.वी.डी.से मृत्यु की गुंजाइश दोगुनी बढ़ जाती है।
तजवान महिलाएं यदि धूम्रपान करती हैं अथवा ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, रक्त कोलैस्ट्रोल का उच्च स्तर या परिवार में सी.वी.डी. से ग्रस्त होने के का इतिहास या अनुवांशिकता हो तो जवानी में भी इस रोग से ग्रस्त होने की संभावना रहती है।
हृदय रोग से बचाव हेतु महिलाओं के लिए उपाय
उम्र बढ़ने के साथ हार्ट अटैक और स्ट्रोक की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं और विशेष तौर पर रजोनिवृत्ति (मासिक धर्म) के बाद। लेकिन धमनियों में खून के थक्को यानी कोलैस्ट्रोल का जमाव, धमनियों के बंदहो जाने के कारण उचित रक्त चाप संचार नहीं होता है। इससे छाती में दर्द और हार्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती है।
सबसे पहले प्रत्येक महिला को अपनी ब्लड कोलैस्ट्रोल और बल्ड प्रेशर की जांच करानी चाहिए। यह दोनों समस्या जितनी अधिक होंगी, हृदय रोग, सी.वी.डी. और हार्ट अटैक की संभावानाएं भी उतनी ही प्रबल हाेंगी। लिपिड प्रोफाइल के लिए रक्त की जांच 9 से 12 घंटे उपवास रखने के बाद करानी चाहिए, जिससे खून में मौजूद वसा की मात्रा और कोलैस्ट्रोल के स्तर का पता लग जाय। कोलैस्ट्रोल में एल.डी.एल. हो तो वह खतरनाक है, जबकि एच.डी.एल.अच्छा माना जाता है। रोग का ठीक पता रोगी की अन्य जांच या विवरण के बाद ही लग सकता है। जिसमें स्वास्थ्य संबंधी अन्य जानकारी और पारिवारिक हृदय रोग की हिस्ट्री भी जानना भी जरुरी है ताकि रोग का पक्का पता चल सके। डा.लाल के अनुसार जीवनशैली और खानपान में बदलाव लाकर अधिकतर महिलाएं इस ह्दय रोग को पनपने से रोक सकती हैं, यह बदलाव निम् तरीके के हो सकते हैं।
शारीरिक वजन में कमी-
शरीर का अधिक वजन होने से बल्ड प्रेशर, बल्ड कोलैस्ट्रोल और ट्राईग्लिसराइड स्तर पर प्रभाव पड़ता है। इससे टाइप-2 डायबीटिज का खतरा बढ़ जाता है। जिससे शरीर में इंसूलिन भोजन को उर्जा में बदलने में मदद नहीं करता है। टाइप-2 डायबीटिज से हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। इससे पांच सौ कैलोरी प्रतिदिन के हिसाब से (जिससे एक पाउण्ड वजन एक हफ्ते में बढ़ सकता है) हमारी 200 कैलोरी उर्जा व्यायाम से खत्म हो जाती है, जबकि शेष तीन सौ कैलोरी हम भोजन से स्वत: कम कर सकते हैं। अत: संतुलित भोजन और व्यायाम से मोटापा पर अंकुश लगाया जा सकता है।
धूम्रपान से तौबा
धूम्रपान करने वाली महिला में हार्ट अटैक की संभावना धूम्रपान न करने वाली महिला से दोगुना अधिक होती है क्योंकि सिगरेट में मौजूद टौक्सीन धमनियों को सीधा प्रभावित करते हैं। जिससे धमनियाें में रक्त संचार के लिए बाधाएं पैदा हो जाती हैं। धूम्रपान से खून की नलियां चिपचिपी हो जाती हैं, जिससे रक्त संचार में अधिक कठिनाई के कारण स्ट्रोक की संभावना बनी रहती है।
सक्रिय रहें:-
लगभग सप्ताह में प्रत्येक दिन कम से कम 30 मिनट का शारीरिक व्यायाम जरुरी है जो बढ़ रही कैलोरी को नष्ट करने में सहायक है।
वसायुक्त भोजन को त्यागें:-कोलैस्ट्रोल को बढ़ाने वाले वसायुक्त भोजन को बदल कर उसके स्थान पर कम वसा वाले पदार्थ का सेवन करें।
शाकाहार अपनाएं:- अध्ययनों के अनुसार फल और सब्जियों से हृदय रोग और रक्तचाप की समस्या को कम किया जा सकता है।
फाइबर डाइट:-संपूर्ण पोषाहार एलडीएल कोलैस्ट्रोल को कम करने में मदद करता है। अनाज से बने ब्रेड का ही सेवन करें।
Saturday, October 10, 2009
'नॉटी नारीवाद'
हर जमाने में नारीवाद का अर्थ स्त्रियों द्वारा अपने अधिकारों के लिए लड़ना रहा है। आज भी नारीवाद इसीलिए है कि स्त्रियाँ अपने परति किए जा रहे अन्याय को नकारें व अपने हक के लिए आवाज उठाएँ, जो कि बिल्कुल उचित भी है। नारीवाद आज भी है, मगर उसका स्वरूप बदला है। पिछले जमाने में नारीवाद का मतलब पुरुषों से चिढ़, शादी से दूरी, बनाव-श्रृंगार से परहेज आदि होता था। मगर आज की नारीवादी सोच न विवाह के खिलाफ और नही बाह्य सुंदरता के। वे विवाह करेंगी, मगर अपनी आकांक्षाओं का गला नहीं घोटेंगी। वे बनेंगी-सँवरेंगी मगर खुद की खुशी के लिए भी। वे खूबसूरती के बने-बनाए ढर्रे को मानें, यह जरूरी नहीं। वस्त्र भी वे मनचाहे पहनेंगी। वे पुरुषों से चिढ़ने के बजाय स्त्रियों से बहनपा रखने पर खास जोर देंगी और स्त्रियों के शक्ति समूह बनाएँगी। नारीवादी लेखिका 'एली लेवन्सन' ने इन्ही तथ्यों की ओर इंगित करते हुए एक पुस्तक लिखी है और नए जमाने के नारीवाद को 'नॉटी-नारीवाद' का नाम दिया है। ऐली लेवन्सन द्वारा लिखी गई पुस्तक 'द नॉटी गर्ल्स गाइड टू फेमिनिज्म' में उन्होंने बड़ी नवीनता के साथ यह बताया है कि कैसे नारीवाद ने इक्कीसवी सदी की लड़कियों के लिए अपने आपको पुन: अविष्कृत किया है। लेखिका का कहना है कि इस दौर की महिलाओं का नारीवाद किसी राजनीतिक विचारधारा पर नहीं खड़ा, बल्कि रोजमर्रा के अनुभवों पर खड़ा है।


वे कहती हैं कि मुझे याद है कि कॉलेज के वक्त जब लड़कियों को कोई ब्वॉयफ्रेंड मिल जाता था या फिर उनकी शादी हो जाती थी तो उनके पुरुष मित्र/ पति के मित्र ही उनके मित्र हो जाया करते थे। सौभाग्य से "नॉटी" की महिलाओं ने महिलाओं की आपस की ताकत और एकता को महसूस करना शुरू किया है। आखिरकार यही एक ऐसी दोस्ती है जिसमें तुम्हें दिखावा नहीं करना होता, सुंदर नहीं बनना होता, अपने आपको बुद्धिमान भी जताना नहीं पड़ता, जैसी आप हैं आप वैसी ही स्वीकारी जाती हैं। यह काफी दुख की बात है कि मुख्यधारा की सिनेमा और टीवी भारत में "बहनआपा" (सिस्टरहुड) का प्रचार नहीं करते बेशक हमारे यहाँ "दिल चाहता है" जैसी फिल्में भी बनी जो 3 लड़कों की दोस्ती के इर्दगिर्द घूमती हैं, वहीं "जाने तू या जाने न" में मिले-जुले लड़का-लड़की वाले किरदार भी हैं, लेकिन अभी भी हमारे पास "सेक्स एंड द सिटी" जैसी फिल्मों का अभाव है। बेशक हकीकत में "बहनआपा क्लब" काफी बढ़ रहे हैं। महिलाएँ आपस में खरीददारी के लिए, बाहर खाना खाने इत्यादि के लिए भी जाती हैं। महिला मित्रों की दोस्ती बढ़े और कम से कम हफ्ते में एक बार वे आपस में जरूर मिलें यह काफी आरामदायक होता है। इसमें हम तनावमुक्त भी होते हैं और कई मुद्दों पर लंबी बात करने के बाद मुझे यह महसूस होता है कि उन मुद्दों पर मेरी समझ व संदर्भ सही हैं या मुझे अपनी राय पर कायम रहना चाहिए और यही नॉटी नारीवाद का सार तत्व भी है।
करिअर का चुनाव व समान अवसर :
लेवेंसन की किताब कहती है कि "नॉटी" लड़कियाँ श्रेष्ठता के खिलाफ नहीं हैं। बिना किसी भेदभाव के नौकरी अच्छे उम्मीदवार को ही मिलनी चाहिए चाहे वो लड़का हो या लड़की, लेकिन फिर भी हमें भेदभाव के खिलाफ बोलते रहना चाहिए। वरिष्ठ वकील सुष्मिता गांगुली कहती हैं कि "नॉटी" महिला होने के नाते मेरा मानना है कि कार्य स्थल ऐसा होना चाहिए जहाँ समान अवसर मिलें। हम चाहते हैं कि औरतों को भी आदमियों जैसे ही अवसर मिलें, जिसमें तनख्वाह व नौकरी की अन्य सुविधाएँ भी शामिल हैं।
लेवेंसन कहती हैं कि "नॉटी" नारीवाद बाह्य सुंदरता की आकांक्षा के साथ भी सही बैठता है। अगर हम मेकअप करना चाहते हैं या फिर आकर्षक कपड़े पहनना चाहते हैं तो इसकी कोई मनाही नहीं है। "नॉटी" नारीवाद इस बात की भी इजाजत देता है कि आप चाहे जैसे कपड़े पहनें, लेकिन इससे खूबसूरती के बने बनाए ढर्रे के लिए कोई जगह नहीं है और यह पहनावा व्यक्तित्व से ऊपर भी नहीं होना चाहिए। प्रियंका गाँधी की छवि "नॉटी" नारीवाद पर एकदम सही बैठती है। वे में कसी हुई टी शर्ट और पैंट में भी उतनी ही फब्ती हैं जितनी कि खादी की साड़ी में। डिजाइनर अनीता डोंगरे कहती हैं कि फैशनेबल होने से ज्यादा इसका अर्थ है कि आप अपने आपको पहचानती हैं और अपनी पहचान पा गई हैं। नॉटी नारीवादी महिलाएँ जानती हैं कि किसी को जानने के लिए उसके कपड़ों को या रंग को ही देखना काफी नहीं है बल्कि उसका व्यक्तित्व और व्यवहार भी काफी महत्वपूर्ण होते हैं। वहीं से यह तय भी होता है कि आप क्या पहनते हैं। नॉटी नारीवाद का अर्थ फैशन की दौड़ नहीं है बल्कि ऐसी महिला की प्रस्तुति है जिससे दुनिया उसे उसके गुणों से पहचाने। लेवेंसन कहती हैं कि परंपरागत रूप से नारीवाद और विवाह को एक साथ नहीं देखा जाता है। लेकिन आज विवाह करना नारीवाद के खिलाफ नहीं। आप सोचें कि इस लंबी जिंदगी को किसी और के साथ सांझी करके और खूबसूरत बनाया जा सकता है। लेकिन अगर महिलाएँ उनको दी गई उनकी ऐतिहासिक भूमिकाएँ जैसे "बीवी व माँ बनना" नहीं भी निभातीं तो भी इस नारीवाद को कोई आपत्ति नहीं है। मगर यह भी कि विवाह के लिए अपनी आकांक्षाओं का गला न घोंटें। नॉटी नारीवाद के तहत यह अवसर भी है कि आप विवाह का फैसला न करके अकेले जिंदगी जी सकती हैं और चाहें तो एकल माँ भी बन सकती हैं। यह नारीवादी अपनी इच्छाओं-आकांक्षाओं के पर्व का ही नाम है।
महिलाएँ ऐसे करें अपनी सुरक्षा
दिन हो या रात, घर में हो या रास्ते में आज के समय में आपको अपनी सुरक्षा के प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता है। चोर और लुटेरों की नजर आप पर, कहीं भी हो सकती है। उन्हें बस मौका मिलने की देर है। फिर वे आपका कीमती सामान और पैसा लेकर गायब हो सकते हैं।
चाहे मंदिर जा रही हों, बाजार में हों या किसी विवाह समारोह में, महिलाओं के गले से चेन खींचने की घटनाएँ तो आजकल आम हो गई हैं। ऐसे समय में यदि आप कुछ बिंदुओं पर यदि सावधानी रखें तो अपनी सुरक्षा को लेकर आश्वस्त हो सकती हैं। आइए जानें क्या हैं ये सावधानियाँ।
रात के समय सुनसान रास्तों में अकेली ना जाएँ। चाहे आप कितनी ही आत्मविश्वासी हों या हिम्मती हों, आपातकाल के अलावा अकेली जाने से बचें। आपातकाल में भी कोशिश करें कि आप साथ में किसी को ले लें। न तो शॉर्ट कट के चक्कर में, न ही इस भुलावे में कि ये तो रोज का रास्ता है, सुनसान रास्ते का चयन करें। किसी अजनबी व्यक्ति से लिफ्ट न लें और न ही दें। खासतौर पर चार पहिया वाहन चालक से लिफ्ट लेने से बचें। यदि आपके पास वाहन नहीं है तो कोई भी सार्वजनिक परिवहन सुविधा ही सबसे बेहतर उपाय है। यदि ऑटो या टैक्सी करने की जरूरत पड़े तो भी थोड़ी सजग रहें। जहाँ तक बात लिफ्ट देने की है, चाहे महिला हों या पुरुष, लिफ्ट देने से बचें।
अधिक कीमती जेवरात पहनकर घर से बाहर ना जाएँ। सामान्य जेवर जैसे मंगलसूत्र, चेन आदि पहनकर भी यदि बाहर जाएँ तो उन्हें साड़ी के पल्लू या दुपट्टे से छुपाकर रखें। इसी तरह घर में भी ज्यादा जेवर न रखें, उनके लिए बैंक का लॉकर सबसे सुरक्षित जगह है। किसी भी अवसर पर सफर में भी ज्यादा जेवर साथ न रखें। अगर रखें हैं भी तो उनका बखान न करें और सतर्कता रखें। यदि बैग लिए हैं तो उसे कंधे पर लटकाकर रखें, हाथ में झुलाकर न चलें। इससे आपके दोनों हाथ भी स्वतंत्र रहेंगे। कार्यालय से संभव हो सके तो रात होने के पहले ही निकल जाएँ। यदि किसी जरूरी मीटिंग में देर हो भी गई हो तो समूह में ही एक साथ घर के लिए निकलें। वैसे आजकल लेट अवर्स में काम करने वालों को ऑफिस द्वारा घर तक छुड़वाने की व्यवस्था भी होती है। आभूषणों की सफाई सुनार के पास ही करवाएँ, बजाय घर पर आए किसी अजनबी से करवाने के। बैंक या किसी अन्य समय किसी अजनबी व्यक्ति को नोट गिनने को न दें। बैंक जाते समय इस बात का ढिंढोरा नहीं पीटें। न ही बैंक में किसी अजनबी को नोट गिनने के लिए दें। इस काम में बैंककर्मी आपकी सहायता कर सकते हैं। बुजुर्ग अपने साथ बैंक जाते समय किसी को जरूर रखें। यदि आपको ऐसा लगता है कि रास्ते में कोई आपकी गाड़ी का पीछा कर रहा है तो आगे ना जाएँ, कहीं रुक जाएँ और किसी पर आपको संदेह हो तो मदद लेने से नहीं हिचकें।सफर में किसी से ज्यादा प्रगाढ़ मित्रता न करें न ही हर अजनबी द्वारा दी गई चीज़ खाएँ।