निर्मेश त्यागी
जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती जा रही है भारत में पानी की समस्या फिर से सिर उठा रही है, लेकिन हर साल ये समस्या पिछले साल के मुकाबले कहीं बड़ी हो जाती है। हालाँकि आमजन को लगता है कि बस ये गर्मियाँ निकाल लें, लेकिन ये गर्मियाँ तो हर वर्ष आनी हैं। अगले दशक यानी 2010 से 2020 तक तो स्थिति बिगड़नी ही है, लेकिन उसका अगला दशक यानी 2020 से 2030 में तो स्थिति विनाशकारी बनने वाली है। विशेषज्ञ इन मुद्दों पर शोध कर रहे हैं और घबरा रहे हैं, लेकिन आमजन इतना दूरदर्शी नहीं है। वो तो बस सिर्फ वर्तमान वर्ष और उसमें भी गर्मियों की चिंता करता है। बारिश आते ही उसे अपनी सारी परेशानियाँ दूर होती नजर आने लगती हैं और वो फिर से पानी के प्रति बेरुखी अपना लेता है।
विश्व बैंक द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार भारत में पानी का कई प्रकार से अपव्यय होता है लेकिन सबसे अधिक है स्वच्छ जल को प्रदूषित करके उसे किसी भी योग्य न छोड़ना। ऐसे प्रदूषण से जल के स्थायी स्रोत नष्ट हो जाते हैं और वो किसी काम का नहीं रहता। अगर उसे उपयोग में लिया जाए तो वह भीषण बीमारियाँ देकर जाता है। देश के कई बड़े शहरों के बीच से बहने वाली नदियाँ प्रदूषण की काली छाया और शहरीकरण के चलते नाला बनकर रह गई हैं। इसके ढेरों उदाहरण हैं। लेकिन, पानी के अमूल्य स्रोत को बिगाड़कर भी आमजन को फिलहाल न तो कोई अफसोस हो रहा है और ना ही उसमें जागरूकता आई है। ऐसा नहीं है कि भारत में पानी की कोई कमी है। जल का प्रबंधन और बढ़ती जनसंख्या मुख्य समस्या बनकर सामने आ रहे हैं। पानी की समस्या सिर्फ पीने तक ही सीमित नहीं है। वह कई अन्य इस्तेमाल में भी नहीं आ पा रहा है। भारत की तेजी से बढ़ती आबादी देश के सभी प्राकृतिक संसाधनों पर हावी हो रही है। ज्यादातर जल संसाधन खेती के लिए किए जा रहे गलत उपयोग और दूषित पदार्थों की मिलावट के कारण गंदे हो रहे हैं। इतने गंदे कि वहाँ से पीने का पानी तो दूर की बात है, नहाने-धोने के लिए भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। प्रदूषण की ये समस्या पहले से ही चौपट हो रहे जल संसाधनों को पूरी तरह नष्ट करने के कगार पर पहुँचा रही है। इस बारे में जल प्रबंधन विशेषज्ञ राजेन्द्रसिंह ने तो यह तक कहा है कि देश में चंबल नदी को छोड़कर अन्य नदियों का पानी नहाने योग्य भी नहीं है। इन नदियों के पानी को पीने की बात तो छोड़ ही दीजिए। आँकड़ों को देखें तो भारत की आबादी 2016 तक एक अरब 26 करोड़ हो जाएगी।
अगर इसी रफ्तार से ये आबादी बढ़ती रही तो 2050 तक यह चीन की आबादी से भी अधिक हो जाएगी। भारत में विश्व की 18 प्रतिशत जनता रहती है, जबकि वह विश्व के कुल क्षेत्रफल का मात्र 2।4 प्रतिशत ही है। ऐसे में बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या का सारा दबाव भारत के प्राकृतिक संसाधनों पर आ रहा है जिनमें जल संसाधन प्रमुख हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार भारत में 21 प्रतिशत प्रचलित बीमारियाँ अशुद्ध पानी की वजह से फैलती हैं। संगठन के अनुसार भारत में वर्ष भर में 7 लाख लोग सिर्फ डायरिया के कारण मौत के मुँह में चले जाते हैं, जो मूल रूप से अशुद्ध पानी पीने की वजह से फैलता है। साफ-सफाई भारत में मुख्य समस्या है, जो पानी की कमी के कारण अब दिन-ब-दिन और अधिक बढ़ती जा रही है। 'वॉटर पाटर्नस इंटरनेशनल' के अनुसार भारत की ग्रामीण जनता में से सिर्फ 14 प्रतिशत ही शौच के लिए शौचालय का उपयोग करती है। शौच के बाद हाथ धोना भी एक बड़ी समस्या है। यह भी ज्यादातर ग्रामीण भारत नहीं करता। हाथ की साफ-सफाई न रखना भी बीमारियों को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अगर हाथ धो भी लिए और वो पानी गंदा हुआ तो यह भी बीमारियाँ ही फैलाएगा। एक अंतरराष्ट्रीय आँकड़े के अनुसार भारत की सिर्फ 33 प्रतिशत आबादी ही अपने लिए सफाई प्रबंध कर पाती है। जाहिर है कि पानी की कमी यहाँ भी अपना असर दिखा रही है। ऐसे में जब पीने का पानी ही मुहाल हुआ जा रहा है तो देश की जनता साफ-सफाई के लिए पानी कहाँ से जुटा पाएगी। पानी की यह कमी बीमारियों में जबरदस्त इजाफा करेगी और पानी की कमी से होने वाली मौतों में यह कोण नए तरीके से जुड़ेगा। लोगों को अभी से समझना और संभलना होगा कि वे बेहतर जल प्रबंधन करें, जल संसाधनों को प्रदूषित न करें और उन्हें नष्ट होने से भी बचाएँ। क्योंकि देर-सबेर जब भी पानी का हमला होगा तब असहाय इन्सान उसे झेलने की स्थिति में भी नहीं होगा।
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