नारी शक्ति के लिए यह है शुभ संकेत
आज भारत की नारी शक्ति उसी तरह जश्न मनाने की अधिकारिणी है जैसे वह महिला दिवस पर मनाती है। देश के सर्वोच्च पदों पर आसीन होकर आज बेहद शालीनता से उसने अपनी आवाज बुलंद की है। संसद में भारत की राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल के संबोधन के साथ ही पहली महिला स्पीकर मीरा कुमार और भारत के सबसे बड़े दल कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गाँधी की त्रिवेणी ने एक विलक्षण संयोग का निर्माण किया है। भारत की आधी आबादी आज भी आरक्षण के लिए भारतीय राजनीति की मुखापेक्षी है ऐसे में संसंद में बड़ी संख्या में महिलाओं का आगमन और साथ ही शीर्षस्थ पदों पर उनकी गरिमामयी उपस्थिति एक सुखद बदलाव का भीना संकेत देती है। हम उम्मीद करें कि संसद में मौजूद महिला वर्चस्व इस बार आरक्षण बिल को किसी छद्म राजनीति का शिकार नहीं होने देगा। यह उम्मीद इसलिए भी मजबूत हो रही है कि राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में 100 दिन के भीतर महिलाओं को संसद तथा विधान मंडलों में 33 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए संविधान संशोधन विधेयक लाने की बात कही है। अगर यह मुमकिन होता है तो नि:संदेह भारतीय राजनीति की एक आकर्षक उपलब्धि के रूप में दर्ज होगा। यह अवसर है, सभी पदासीन महिलाओं के लिए कि वे न सिर्फ अपनी दक्षता को, नेतृत्व क्षमता को देश के समक्ष सिद्ध करें वरन उन सभी भ्रांतियों और कहावतों को भी मुँह तोड़ जवाब दें जो उनका कमजोर आँकलन करती है। नारी की विनम्रता को उसकी दुर्बलता और सहज सौम्यता को रिझाने का उपक्रम समझने वालों के लिए आज दोबारा सोचने का समय है। वह समय जो अब तक या तो नारी को दमित-प्रताडि़त करने में गुजरा या संकीर्णताओं के दायरे में उसका विश्लेषण करने में गुजरा वह अब लौट नहीं सकता मगर आज और आने वाला वक्त यह कह रहा है और बेहद स्पष्टता से कह रहा है कि उसका मूल्यांकन करने के बजाय बस सौजन्यता के नाते थोड़ी जगह कर दी जाए। वह स्वयं सिद्ध कर सकती है अपनी अस्मिता को, अपने अस्तित्व को। सहारा उसे नहीं चाहिए, साथी बनने के लिए वह तैयार है। स्त्रीत्व के यश और कीर्ति की ध्वजाएँ अब एक नए आसमान में फहराने-लहराने के लिए परिपक्व हो गई है। यह एक अति शुभ संकेत है भारत की नारियों के लिए कि उनकी खामोशी भी अब व्यापक स्तर पर मुखर हो गई है। बिना कुछ कहे वह कर दिखाने में विश्वास करने लगी है। सर्वोच्च पदों की इस पवित्र त्रिवेणी से एक नई गंगा प्रस्फुटित होगी, यह हम सभी की आशा है। आज हर संवेदनशील स्त्री मन में आत्मविश्वास की, उम्मीदों की और आकांक्षाओं की एक नई किरण ने आकार लिया है। लेकिन यह समय आत्ममुग्धता से कहीं अधिक भविष्य की चुनौतियों को समझने का है। क्योंकि अभी तो यह पहली मंजिल है, आगे और मुकाम है जिन्हें हासिल करना है। बिना थके, बिना रूके और बिना झुके। स्मृति जोशी
3 comments:
नारी शक्ति की जय हो. जय माता की
ये निर्णय तो बढ़िया है सरकार का ( सर्वम्मा का ) लेकिन कुछ ऐसे भी निर्णय है जो की हमे सोचने पेर मजबूर कर रहे है...
ज़रा यहा भी आ कर के देख लीजिए...
http://rashtravad.blogspot.com/2009/06/blog-post.html
अच्छा, अब आप कह रहे हो तो मानना ही पडेगा।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
कुछ भी कहो ये वक़्त की मांग भी है...
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