Thursday, December 11, 2008
संयुक्त राष्ट्र के सहारे ही जमात ने पसारे थे पैर
मुंबई हमलों के लिए जिम्मेवार आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के मुखौटे 'जमात-उद-दावा' पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने भले ही पाबंदी लगा दी हो, लेकिन सच्चाई यह भी है कि आतंकी कारनामों को अंजाम देने में अहम भूमिका निभाने वाला यह संगठन संयुक्त राष्ट्र की वजह से ही फला- फूला। इसे यूएन की अनदेखी का ही नतीजा कहा जा सकता है कि सन 2002 में खुद सुरक्षा परिषद द्वारा प्रतिबंधित लश्कर का 'राजनीतिक-सामाजिक' यह संगठन पाकिस्तान की जमीन पर अपनी गतिविधियां इतने व्यापक स्तर पर बढ़ाने में कामयाब रहा। इस कदर कि वह सामाजिक संगठन का नकाब ओढ़ कर करीब ढाई हजार से भी ज्यादा दफ्तरों के जरिए आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा को मजबूत करता रहा। कभी उसे आतंकवादियों की खेप पहुंचा कर तो कभी उसके लिए हथियार हासिल करने का जरिया बनकर।सन 2005 में पाकिस्तान पर बरपे भूकंप के कहर के बाद राहत कार्यो में जमात-उद-दावा की मदद लेकर यूएन ने उसे अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए ठोस आधार प्रदान कर दिया था। यही नहीं, लश्कर के हाथ-पैर माने जाने वाले इस संगठन ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रायोजित भूकंप राहत कार्यो को बखूबी अंजाम देकर तारीफ भी कम नहीं कमाई थी। और यहीं से हुई थी जमात-उद-दावा के पैर जमाने की शुरुआत। यूएन ने भले ही अब जमात पर शिकंजा कस दिया हो, लेकिन विदेश मंत्रालय में सुरक्षा परिषद पर अंगुली उठाई जा रही है। मंत्रालय के रणनीतिकारों का सीधा सवाल है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के निशाने पर रहने के बावजूद लश्कर का ही एक संगठन आतंकी कारनामों के लिए अपनी हर जरूरत को पूरा करने में कैसे सफल रहा? कैसे यह संगठन परिषद के सदस्य देशों की नजरों से बच कर यूएन भूकंप राहत अभियान को अपने असली मकसद का जरिया बना ले गया?विदेश मंत्रालय में संयुक्त राष्ट्र की गतिविधियों पर नजर रखने वाले आला अधिकारी यह मानने को कतई तैयार नहीं हैं कि पंद्रह देशों की सदस्यता वाली सुरक्षा परिषद को इतने सालों में जमात के कारनामों की खबर तक नहीं हुई होगी। उनका दावा है कि सुरक्षा परिषद में चीन जैसे कुछ मुल्कों की वजह से जमात अपनी साजिश में कामयाब रहा। इसकी पुष्टि में विदेश मंत्रालय के आला अफसर जमात पर पाबंदी लगाने के यूएनएससी के प्रयासों पर बीजिंग के विरोध को आधार बनाते हैं। उनका कहना है कि पाकिस्तान में भूकंप राहत में हाथ बंटाने के पीछे जमात की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी सकारात्मक छवि बनाने की ही चाल थी।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
संयुक्त राष्ट्र की गलती भारत वासियों को महंगी पड़ी.
Post a Comment