चरमपंथ की लहर : तब चरमपंथ अपने शिखर पर था। यह एक लहर की तरह था, जिसने हममें से ज्यादातर लड़कों को अपनी लपेट में ले लिया था। मैं जब चरमपंथ में आया और जब मैंने आत्मसमर्पण किया, तब मैं समुचित रूप से परिपक्व नहीं था।
अख़्तर ने बताया जब वे 1993 में नवीं कक्षा में पढ़ रहे थे तो उन्होंने चरमपंथ में पाँव रखा था। लड़कों को हथियारों की ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर ले जाया जाता था। हमारा गुट 'अल-जेहाद ग्रुप' था। ग़ौरतलब है कि पाकिस्तान इस बात का खंडन करता है कि उसकी भूमि पर कश्मीरी चरमपंथियों को प्रशिक्षण दिया जाता है। पाकिस्तान का कहना है कि वह कश्मीरियों को केवल कूटनीतिक समर्थन देता है। किसी खुफिया एजेंसी का नाम लिए बिना उन्होंने कहा हमें (चरमपंथी) 1996 के चुनावों में बाधा डालने के लिए कहा गया, लेकिन निजी रूप से मैं इसके पक्ष में नहीं था और मैंने इस पर अमल नहीं किया था। चार साल तक चरमपंथियों का साथ देने के बाद अपने नेता सैयद फिरदौस के साथ 1997 में उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया।
गोल्ड मेडल : अख्तर ने चरमपंथ छोड़ने के बाद अपनी पढ़ाई पूरी की। वे गर्व से बताते हैं मैं कॉलेज के दिनों में भी छात्र नेता था और मैंने पोस्ट ग्रेजुएशन गोल्ड मेडल के साथ किया।
इसके बाद तीन महीने पहले राज्य जन सेवा आयोग की परीक्षा में सफल होने पर उनकी नियुक्ति उर्दू के लेक्चरर के रूप में हुई। उन्होंने कहा मुझे शिक्षा और सीखने की शक्ति में हमेशा विश्वास रहा है, जिसने मुझे अब इस पायदान पर लाकर खड़ा कर दिया है। अब अख्तर इस नौकरी के साथ उर्दू में डॉक्टरेट भी कर रहे हैं। वे कहते हैं कि उन्हें अफसोस करने से नफरत है, इसलिए उस वक्त चरमपंथ में जाना भी ठीक था और उसे छोड़ देना भी सही निर्णय था।
कानून की शक्ति : उन्होंने चरमपंथ के उन दिनों में बंदूक की शक्ति भी देखी, लेकिन वे कहते हैं कानून को लागू कराने की शक्ति का मजा निश्चित रूप से उससे कहीं ज्यादा है, क्योंकि इससे मुझे खुद पर गर्व की अनुभूति होती है। उनके पाँच भाई हैं, जो व्यापार में लगे हुए हैं और चार बहनें हैं। कुछ महीनों पहले अख्तर की शादी हुई है।
उनकी पत्नी को भी पढ़ाई से बहुत लगाव है, इसीलिए वे भी इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की दूरस्थ शिक्षा से पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा कर रही हैं। उनके पिता एक मस्जिद में इमाम हैं। उनकी माँ उस वक्त परलोक सिधार गई थीं, जब वे चरमपंथ की ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान में थे। इस बारे में जानने के बाद जब वे डोडा वापस आए। उन्होंने कहा उस दिन मैं बहुत परेशान था। मुझे लगा था कि जैसे घर पर कुछ बहुत बुरा हो गया है। अख्तर को लगता है कि चरमपंथ ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया है और मानसिक तौर पर परिपक्व बनाया है। वे कहते हैं प्रजातंत्र ही शासन का सबसे बेहतरीन तरीका है, लेकिन इन चुनावों का कश्मीर की समस्या के हल से कोई लेना-देना नहीं है। हालाँकि चुनाव में कश्मीरी लोगों का बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना बहुत अच्छा संकेत है।
3 comments:
ऐसी सकारात्मक खबरें लाने के आप बधाई के पात्र हैं।
ये सूचनाएँ आती रहनी चाहिए। नया शरीर हमेशा पुराने के गर्भ में पलता है।
ये खबर पढ़ कर बहुत achchha mahsoos हो रहा है
हमें ये खबर देने के lie आपका शुक्रिया
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