rashtrya ujala

Wednesday, November 19, 2008

खोता जा रहा है मासूम बचपन

दुनियाभर में बच्चों के कल्याण के लिए बहुत से कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद गरीब और उपेक्षित बच्चों का कल्याण नहीं हो पा रहा। कहीं वे बाल मजदूरी के शिकार हैं तो कहीं उन्हें स्कूल के दर्शन तक नसीब नहीं। कहीं उनका यौन उत्पीड़न हो रहा है तो कहीं वे कुपोषण और भूख के चलते मौत के शिकार हो रहे हैं। दुनियाभर में बच्चों पर होने वाली ज्यादतियों को रोकने और उनके कल्याण के उद्देश्य से 14 दिसंबर 1954 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में हर साल 20 नवम्बर को विश्व बाल दिवस मनाने संबंधी प्रस्ताव 836 (9) रखा गया, जिसके स्वीकार होने पर वैश्विक स्तर पर बाल दिवस का आयोजन अस्तित्व में आ गया।
विश्व बाल दिवस के उद्देश्य आज तक पूरे नहीं हो पाए हैं, जिससे बाल अधिकार संरक्षण से संबंधित संगठन ही नहीं, बल्कि खुद संयुक्त राष्ट्र भी चिंतित है।संयुक्त राष्ट्र में महासचिव की ओर से बाल एवं सशस्त्र संघर्ष मामलों से संबंधित विशेष प्रतिनिधि राधिका कुमारस्वामी का कहना है कि दुनियाभर में बच्चों की हत्या, यौन उत्पीड़न, अपहरण और उन्हें अपंग बना देने जैसी घटनाएँ जारी हैं। इन्हें रोकने के लिए किए गए प्रयासों में थोड़ी प्रगति तो हुई है, लेकिन अभी प्रयासों को दुगुना किए जाने की जरूरत है।
अफगानिस्तान और श्रीलंका जैसे देशों में तो हालात और भी खराब हैं, जहाँ व्रिदोही संगठन बच्चों के हाथों में बंदूक और हथगोले थमकार उनका बचपन लील जाते हैं। कुमारस्वामी का कहना है कि इराक, चाड, मध्य अफ्रीकी गणराज्य और अफगानिस्तान जैसे देशों में बच्चों की हालत दयनीय है। वर्ष 2000 में विश्वभर के नेताओं ने 2015 तक सहस्राब्दि विकास लक्ष्य हासिल करने की समय सीमा रखी। यूनीसेफ का कहना है कि इसमें रखे गए आठ लक्ष्यों में से छह सीधे-सीधे बच्चों से जुड़े हैं, लेकिन इन्हें हासिल करने की दिशा में कुछ विशेष दिखाई नहीं दे रहा है। कई बाल अधिकार संरक्षण कार्यकर्ता बच्चों के कल्याण से संबंधित कोई कारगर नीति न बन पाने की वजह राजनेताओं को मानते हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य संध्या बजाज का कहना है कि बच्चों के कल्याण के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। उन्होंने कहा कि क्योंकि बच्चे मतदाता नहीं होते, इसलिए वे नेताओं के एजेंडे शामिल नहीं होते। संध्या ने कहा मेरा निजी विचार यह है कि बच्चों को मतदान का अधिकार दे दिया जाना चाहिए, ताकि नेता उनके बारे में भी सोचे।

2 comments:

संगीता पुरी said...

बहुत ही दुखद स्थिति है उनकी। सरकार को उनके बारे में सोंचना चाहिए।

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

सोचना ये है कि हम क्या कर सकते हैं इस दिशा में। लिखने से जागरुक होंगे लोग, मगर कुछ करना भी होगा और अकेले भी बहुत कुछ किया जा सकता है। आपके पोस्ट से प्रेरित, हम (मेरा स्कूल और हम कुछ टीचर्स) क्या कर रहे हैं और क्या कर सकते हैं पर देखियेगा मेरा एक पोस्ट भी...जल्द ही।