डॉ .बी .पी .सिंह प्रयाग होस्पिटल नॉएडा
दुर्बल देह वाली स्त्री जब गर्भवती होती है तो उसे अपने शरीर के साथ-साथ गर्भस्थ शिशु का भी पालन-पोषण करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में यदि उसको पोषक आहार और अन्य पौष्टिक पदार्थों का सेवन करने को न मिले तो उसका तथा गर्भस्थ शिशु का शरीर और स्वास्थ्य अच्छा नहीं रह पाता। ऐसी स्थिति में सेवन करने योग्य श्रेष्ठ योग 'गर्भ चिन्तामणि रस' का परिचय प्रस्तुत है।
घटक द्रव्य : शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, लौह भस्म 20-20 ग्राम, अभ्रक भस्म 40 ग्राम, कपूर, वंगभस्म, ताम्र भस्म, जायफल, जावित्री, गोखरू के बीज, शतावर, खरैंटी और गंगरेन 20-20 ग्राम।
निर्माण विधि : पारद और गन्धक को मिलाकर कज्जली करके सभी भस्म मिला लें। फिर काष्ठौधियों को कूट-पीसकर महीन चूर्ण बना लें। शतावर के रस या काढ़े में इन सबको डालकर दिनभर खरल में घुटाई करें, फिर 2-2 रत्ती की गोलियाँ बना लें।
सेवन विधि : सुबह-शाम 1-1 गोली दूध के साथ गर्भकाल के शुरू होते ही यानी प्रथम मास से ही शुरू कर देना चाहिए और नियमित रूप से पूरे गर्भकाल तक सेवन करना चाहिए।
लाभ : यह गर्भवती और गर्भस्थ शिशु के लिए बहुत पोषक है। इसका सेवन करने से गर्भकाल में होने वाली व्याधियाँ जैसे सुबह उठने पर उल्टी होना, जी मिचलाना, गर्भकाल में कभी ज्वर होना, जलन होना, अरुचि, दुर्बलता, अतिसार आदि नहीं होती और हो रही हों तो इसके सेवन से ठीक हो जाती हैं।
* गर्भस्थ शिशु का शरीर पुष्ट और बलवान रहता है। गर्भकाल में कभी अचानक रक्त स्राव होने लगे तो इस रस के साथ प्रवालपिष्टी एक रत्ती देने से लाभ होता है और रक्त स्राव होना बन्द हो जाता है। यह योग बना बनाया बाजार में मिलता है।
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