rashtrya ujala

Wednesday, July 22, 2009

लाखों ने देखा सूर्यग्रहण


भारत में बुधवार की सुबह कई इलाकों में पूर्ण या फिर आंशिक सूर्य ग्रहण देखा गया. भारतीय समयानुसार सूर्यग्रहण लगभग छह बज कर 25 मिनट पर शुरू हुआ. आकलन बताते हैं कि इतना लंबा सूर्यग्रहण दोबारा 123 साल बाद होगा.भारत में जहाँ बादलों और बारिश के कारण कई प्रमुख स्थानों पर सूर्यग्रहण को साफ़ नहीं देखा जा सका वहीं चीन और जापान के कुछ इलाकों से इसे साफ़ और पूरा देख पाने की ख़बरें आई हैं.भारत में आगरा, इलाहाबाद, कुरुक्षेत्र, वाराणसी, पूर्णिया, गुवाहाटी आदि शहरों से लोगों के सूर्यग्रहण को देखे जाने की ख़बरें मिली हैं.

तारेगना में बादल

भारत में इसे देखने के लिए सबसे बेहतर जगह बताई गई थी पटना के पास का तरेगना गाँव जहाँ यह ग्रहण तीन मिनट 48 सेकेंड के लिए नज़र आना था पर तारेगना में मौजूद लोगो ने बताया कि तारेगना में पूरब दिशा में घने बादल छाए रहे.पूर्ण सूर्यग्रहण के वक़्त लोगों ने चारों ओर अंधेरा होने पर माना कि पूर्ण सूर्यग्रहण हो गया है पर ऐसा होते हुए देखा नहीं जा सका.बिहार के कई इलाकों से इस सूर्यग्रहण को साफ़ साफ़ देखा जाना था पर पटना सहित कई इलाकों में या तो बारिश होती रही या फिर घने बादल छाए रहे. हालांकि असम राज्य और बनारस सहित कुछ शहरों में इसे देखा जा सका.तारेगना में मौजूद हज़ारों लोगों के चेहरों पर मायूसी छाई रही और हज़ारों लोगों का जुटा मेला सूर्य ग्रहण नहीं देख सका.एक स्थानीय अस्पताल की छत पर बनाए गए ऑब्ज़र्वेशन सेंटर पर 400-500 की तादाद में पत्रकार और वैज्ञानिक मौजूद रहे. 50 से ज़्यादा विदेशी वैज्ञानिक और पत्रकार भी पहुंचे पर बादलों ने उनके प्रयासों पर पानी फेर दिया है.बनारस, इलाहाबाद, कुरुक्षेत्र में हज़ारों की तादाद में लोग घाटों पर इकट्ठा होकर ग्रहण देख रहे हैं. बताया जा रहा है कि ग्रहण समाप्त होते ही हज़ारों की तादाद में लोग गंगा स्नान करेंगे।सूर्यग्रहण जहाँ वैज्ञानिकों, अंतरिक्ष अध्ययन केंद्रों, खगोलशास्त्रियों, शिक्षण संस्थानों और विद्यार्थियों के लिए अध्ययन और कौतुहल, आकर्षण का विषय है वहीं पारंपरिक मान्यताओं और पूजा पद्धतियों के चश्मे से भी समाज का एक बड़ा हिस्सा इसे देख रहा है.जहाँ एक ओर लोग सूर्यग्रहण को देखने के लिए वैज्ञानिक पद्धतियों और विधियों का सहारा ले रहे हैं वहीं एक बड़ी तादाद पूजा, स्नान, दान आदि में भी लगी है.सूर्यग्रहण को देखते हुए देश-विदेश के सौ से अधिक अंतरिक्ष वैज्ञानिकों का जमावड़ा पटना और तारेगना में लगा. इन वैज्ञानिकों के दल में नासा के अंतरिक्ष वैज्ञानिक भी शामिल हैं.ये वैज्ञानिक इस बात से उत्साहित थे कि तारेगना सूर्यग्रहण के 'सेंट्रल लाइन' पर स्थित है ऐसे में यहाँ से ग्रहण को साफ़ और अधिक समय तक देखने-परखने में आसानी होगी.बिहार सरकार का साइंस एंड टेक्नॉलॉजी विभाग पटना में वैज्ञानिकों को हर संभंव सहयोग देने में जुटे थे.पर सुबह ग्रहण की शुरुआत अच्छी नहीं रही है और पूरब की ओर टकटकी बांधे देख रहीं हज़ारों जोड़ी आंखों के आगे बादलों का घना पर्दा छाया रहा। उत्साह में तारेगना की ओर बढ़े हज़ारों लोगों के लिए यह सूर्यग्रहण निराशाजनक ही रहा क्योंकि बादलों की मौजूदगी में इसे स्पष्ट नहीं देखा जा सका.

राजधानी पटना में बारिश के कारण लोग सूर्यग्रहण को नहीं देख सके.

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पटना से लेकर तारेगाना के ऑब्ज़्रवेशन सेंटर तक टेलीस्कोप और अन्य खगोलीय उपकरण लगाए गए हैं

21वीं सदी के इस अंतिम पूर्ण सूर्यग्रहण के बाद अब वर्ष 2114 में ऐसा मौक़ा आएगा. इसका मतलब ये हुआ कि पृथ्वी पर जीवित लोगों में शायद ही कोई इतना दीर्घ जीवी होगा जिन्हे दोबारा ऐसा पूर्ण सूर्यग्रहण देखने का मौक़ा मिल सकेगा.अंतरिक्ष अनुसंधान के अमरीकी संगठन नासा ने ग्रहण से पहले ही लोगों को सलाह दी थी कि ग्रहण देखने का सबसे सस्ता और सुरक्षित तरीका इसे सीधे देखने की बज़ाए इसका प्रतिबिंब देखना है. सीधे देखने के लिए स्पेशल फिल्टर का इस्तेमाल करना ज़रूरी है ताकि सूरज की हानिकारक किरणों के प्रभाव से बचा जा सके.जयपुर में सुर्यग्रहण को लेकर मिले-जुले भाव हैं. मंदिरों में भीड़ है, लोग पूजा और दान-पुन्य में लगे हुए हैं. ग्रहण को देखते हुए स्कूलों को आठ बजे के बाद खोलने के निर्देश हैं.उन्होंने यह भी बताया कि मान्यताओं के मद्देनज़र जिन लोगों के बच्चों का आज जन्म होना था उनमें से बहुत से लोगों ने रात ही में ऑपरेशन के ज़रिए बच्चे का जन्म करवा लिया है.मध्यप्रदेश और पंजाब से भी कई स्कूलों के समय में तब्दीली की ख़बरें हैं. दिल्ली में आंशिक रूप से ही सूर्यग्रहण का असर देखा गया. आसमान कुछ लालिमा लिए देखा गया. सूर्यग्रहण के मद्देनज़र कई छायाकारों और वैज्ञानिकों ने राजधानी के बजाए ग्रहण पथ में पड़नेवाले शहरों को अपने अध्ययन का केंद्र बनाया.

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