rashtrya ujala

Friday, July 3, 2009

क्या बदल रहा है भारत में आवासीय बाजार?

हजारों-लाखों भारतीयों का सपना होता है बड़े मेट्रो शहरों में जा कर बसने का। इन्हीं में से एक 36 वर्षीय शैलेन्द्रसिंह भारत की राजधानी दिल्ली में 18 साल से रह रहे हैं और एक जानी-मानी आईटी कंपनी के बड़े अफसर हैं।

दिल्ली में एक घर खरीदने का सपना शैलेन्द्र ने भी देखा था। वे बताते हैं "दिल्ली में घर ढूँढ़ते हुए डेढ़ साल से ऊपर हो गया हमें। शुरुआत में जिन बिल्डरों या सोसाइटी द्वारा नए घरों की घोषणा होती थी, देखने जाते थे, पर हमेशा यही लगा कि वे सभी हमारी पहुँच से बाहर हैं। शैलेन्द्रसिंह की एक घर की तलाश अभी भी जारी है, लेकिन इसमें भी कोई शक नहीं कि पिछले एक दशक से भारतीय आवास क्षेत्र में जमीन-आसमान का परिवर्तन आया है। करीब डेढ़ साल पहले तो पूरे भारत में चाहे वह मुंबई, दिल्ली और चेन्नई जैसे मेट्रो हों, या फिर लखनऊ, भोपाल और जयपुर जैसे तमाम 'बी' श्रेणी के शहर ही क्यों न हों, सभी में घरों के दाम आसमान छू रहे थे। ...तो आखिर कैसे पहुँचे दाम इन ऊँचाइयों पर। भारत में घरों के जाने माने निर्माता समूह पार्श्वनाथ बिल्डर्स के प्रमुख कार्यकारी अधिकारी बीपी ढाका बताते हैं "विकसित देशों की जो कार्यप्रणाली थी, उसे भारत में भी लोगों ने कॉपी करने की कोशिश की। दूसरी चीज ध्यान रखने की यह है कि भारत में कोई सोशल सिक्यूरिटी स्कीम नहीं है, इसीलिए लोगों के बुढ़ापे का सहारा किराया होता था और एक दूसरा मकान होता था अपने एक मकान के अलावा। इसलिए ये चीजें साथ-साथ चलकर एक नॉर्मल मार्केट से एक अब्नोर्मल मार्केट की तरफ चली गईं। इसमें हर शख्स ने अपना भविष्य ढूँढने की कोशिश की।"जमीन और घरों की आसमान छूती कीमतों के बीच ही दुनिया भर को आर्थिक मंदी की मार झेलना पड़ी और भारत भी इससे अछूता न रह सका।
मंदी की मार : इस वैश्विक मंदी के चलते लगभग हर क्षेत्र को कुछ न कुछ नुकसान हुआ। आवासीय क्षेत्र भी इसी चपेट में आ गया। कहा जाने लगा कि भारत में 20 फीसदी से भी ज्यादा रफ्तार से बढ़ रहा आवासीय क्षेत्र थम गया है और अब उन लोगों के सपने सच हो सकेंगे, जो इन बढ़ी हुई कीमतों के बीच हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे।

देश भर में बड़े-बड़े बिल्डरों ने कम कीमतों पर नई परियोजनाएँ शुरू करने का ऐलान भी कर दिया। कब और कैसे आया ये दौर, इस बारे में बपी ढाका बताते हैं "वर्ष 2007 में जो लोग इस बाजार को बारीकी से देख रहे थे, उन्हें ये सुधार दिखने लगा था। यह तय हो गया था की दाम अब इससे ऊपर नहीं जा सकते और अगर आप बैंक में भी पैसा जमा कराएँगे तो आठ साल में वह भी दोगुना हो जाएगा, जबकि जो फ्लैट्स आपने 80 लाख का लिया होगा, वह एक करोड़ 60 लाख का कभी नहीं होगा।"
वे बताते हैं "जब अमेरिकी रियल इस्टेट बाजार में ये मंदी आई तो भारतीय मीडिया ने उसे काफी तूल दिया, जो एक तरह से सही भी था और फिर वही ट्रेंड भारत में भी पहुँच ही गया।" ...पर क्या वाकई में जमीन और घरों की कीमतों में आई कथित गिरावट से इन्हें खरीदने की मंशा रखने वाले आम लोगों को फायदा हुआ? क्या आम लोगों द्वारा वही घर कम कीमतों पर खरीदे जा सकते हैं, जो कुछ समय पहले तक उनकी पहुँच से बिलकुल ही बाहर थे। कम से कम शैलेन्द्रसिंह जैसे खरीदार तो इस बात से बिलकुल भी इत्तेफाक नहीं रखते। वे कहते हैं हमने पूरा बाजार छान लिया, पर ऐसा कहीं लगा ही नहीं कि दाम असल में कम हुए हैं।
एक-आधी जगह दाम स्थिर जरूर हुए थे, पर कमी का तो कई सवाल ही नहीं था। धीरे-धीरे इनमें भी इजाफा ही हो रहा था और जो कम कीमत पर घर मिलने वाली बात थी, वह ऐसे घरों के लिए है, जो बहुत छोटे थे और जिनके निर्माण में इस्तेमाल हुई सामग्री भी ठीक नहीं थी। इन छोटे घरों से एक आम आदमी की जरूरतें कहाँ पूरी होती हैं। शैलेन्द्र की बात सुनकर मन में सवाल उठा कि क्या अभी भी आवासीय क्षेत्र में जमीन और घरों के दाम उन्हीं बुलंदियों पर हैं, जैसा कुछ लोग महसूस कर रहे हैं, या फिर कम कीमतों पर घोषित हो रही नई परियोजनाएँ लोगों का ध्यान आकर्षित कर रही हैं। इन्हीं सवालों का जवाब जानने के लिए मैं पहुँचा दिल्ली से लगे नोएडा में। यहाँ जिधर भी नजर दौड़ाई, ऊँची-ऊँची इमारतें दिखाई दीं। इनमें से कुछ तो तैयार हो चुकी हैं और कुछ निर्माणाधीन हैं, जिनमें रात-दिन काम चलता रहता हैं। रविवार या शनिवार के दिन यहाँ पर तमाम परिवार सैम्पल फ्लैटों का जायजा लेते देखे जा सकते हैं और इनमें अभी भी घर बुक करने का वही उत्साह जान पड़ता है, जो पहले था। इन्हीं इमारतों में से एक में काम कर रहे इंजीनियर अनिल कुमार बताते हैं "लोगों ने ऐसे ही अफवाह फैला दी थी की दाम कम हो गए। मार्केट तो यहाँ पर हमेशा ही बढ़िया रहा है। हमारी साइट पर तो जो भी प्रस्ताव सामने आए, वे बिक गए। भीड़ की भीड़ आती है यहाँ छुट्टी वाले दिन इन घरों को जायजा लेने और दाम पता करने के लिए।"
कितना पड़ा असर : लेकिन एक तरफ जहाँ रियल इस्टेट बाजार में अभी भी नए घर खरीदने वालों की भरमार है तो दूसरी तरफ इस बात में भी कोई शक नहीं कि देश के लगभग सभी बड़े बिल्डरों ने बाजार में आई गिरावट को महसूस भी किया है। कहीं न कहीं घरों की माँग और जरूरत के अनुपात में गणित ठीक न बैठने की वजह से उच्च श्रेणी और महँगे घरों की बहुतायत होने लगी और थोड़े कम बजट और सस्ते घरों को खरीदने वालों की तादाद बढ़ गई।
शायद इसी बात को ध्यान में रखकर भारत सरकार ने कुछ महीनों पहले ये घोषणा भी की कि 20 लाख रुपए के अन्दर घर खरीदने वालों को ऋण कम ब्याज दरों पर दिया जाएगा। आवासीय क्षेत्र में आई मंदी के मद्देनजर ही वित्तमंत्री के साथ बजट पूर्व की एक अहम बैठक से बाहर आकर शहरी विकास मंत्री जयपाल रेड्डी ने कहा कि घर खरीदने के लिए पाँच लाख से कम ऋण लेने वालों को मात्र साढ़े छह प्रतिशत तक की ब्याज दर वाला ऋण दिया जाना चाहिए। उन्होंने थोड़ी ज्यादा पूँजी ऋण लेकर घर खरीदने की मंशा रखने वालों को भी उम्मीद की किरण दिखाई। रेड्डी ने कहा 20 लाख बहुत कम होते हैं एक फ्लैट खरीदने के लिए। इस सीमा को बढ़ाकर 30 लाख तक किया जाना चाहिए और इन लोगों से साढ़े सात प्रतिशत की दर पर ब्याज लेना चाहिए। तो क्या भारत में अब वो दौर आ चुका है जब कम कीमतों पर सस्ते घर एक आम आदमी की पहुँच में होंगे? फिलहाल तो यही लगता है कि सरकार और पूरा आवासीय क्षेत्र इसी कोशिश में लगा है की यह संभव हो सके। वह बात और है कि आर्थिक मंदी की मार के चलते खुद घर मुहैय्या करने वालों की यह पहल उनके अपने हित में है, जबकि सरकार के लिए यह जरूरी है कि इस क्षेत्र को दोबारा रफ्तार दी जाए, पर अगर आप एक सस्ता घर खरीदने का इरादा रखते हैं तो शायद आपके सपनों के आशियाने की नींव कहीं जल्द ही पड़ने वाली होगी।

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