भारत से भी काम के लिए लोगों के बाहर जाने का प्रवाह धीमा हुआ है। वापस आने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है। भारत में केरल, पंजाब, गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान जैसे कई राज्यों से बाहर जाकर काम करने वालों की तादाद लाखों में है। इनमें से कई मंदी के दौर में अपनी नौकरी खो चुके हैं। इसका सीधा असर उन लाखों परिवारों पर पड़ रहा है जिनकी जीविका देश से बाहर जाकर काम करने वाले और वहाँ से पैसा भेजने वालों पर आधारित है। शमसुद्दीन हैदर बताते हैं, 'घर में सभी मानसिक और आर्थिक रूप से परेशान हैं। माँ दिल की मरीज हैं। पिताजी को दो बार पैरालेसिस का अटैक पड़ चुका है। मैं खुद भी मंदी के चलते बेरोजगार हो चुका हूँ। दुबई में बड़े भाई ने बहन की शादी के लिए जो पूँजी जमा की थी, वो सब वहाँ रहते हुए नया काम खोजने में खर्च हो रही है। अगर ऐसा ही चला तो उन्हें भी वापस लौटना पड़ेगा क्योंकि बचत के पैसे से कितने दिन गुजारा चलेगा।'
बदलती स्थितियाँ : विश्व बैंक के ताजा आँकड़ों के मुताबिक बाहर से भारत में पैसे की यह आमद देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग चार प्रतिशत का योगदान देती है।
उन्होंने बताया, 'पिछले वर्ष तक विदेश में रह रहे भारतीयों के जरिए भारत आ रही पूँजी का आँकड़ा लगभग 30 अरब अमेरिकी डॉलर के आसपास था पर इस बार इसमें रिकॉर्ड बढ़त हुई है और इस पैसे की आमद बढ़कर 43.5 अरब अमेरिकी डॉलर हो गई है।' पर ऐसा क्यों हो रहा है कि जब कामगार बड़ी तादाद में लौट रहे हैं, पैसे की भी आमद बढ़ी है। इस स्थिति को समझाते हुए जानीमानी अर्थशास्त्री जयति घोष बताती हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि लोग वापस आ रहे हैं तो अपने साथ मेहनत से जोड़ी-जमा की गई अपनी पूँजी भी लेकर आ रहे हैं। वो कहती हैं, 'पूँजी की आमद में उछाल स्वाभाविक है क्योंकि जो बेरोजगार हुए हैं वे अपनी बचत के साथ लौट रहे हैं। पर ऐसा अभी के लिए ही है। अगले एक-दो वर्ष में इस पूँजी में गिरावट भी होगी क्योंकि बाहर से पैसा कमाकर भेजने वालों की तादाद कम हो रही है।' यानी विदेश से आ रही पूँजी की रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी भले ही देखने-सुनने में एक अच्छी आमद लगती हो पर ताजा परिस्थितियों में इसमें दर्ज हुई बढ़ोत्तरी कोई बेहतर होती स्थिति का संकेत नहीं है।
हालाँकि जयति घोष बताती हैं, 'एक बड़ा हिस्सा सर्विस सेक्टर का भी है पर इसमें ज्यादातर महिलाएँ हैं। सर्विस सेक्टर पर असर शायद सबसे कम है इसलिए विदेश में काम कर रही भारतीय महिलाओं की स्थिति अभी भी सुधरी हुई ही है।' आप्रवासी मामलों के मंत्री वायलार रवि मानते हैं कि मजदूरों, श्रमिकों और कुछ अन्य प्रवासियों को लौटना पड़ा है पर जोर देकर बताते हैं कि हालात चिंताजनक और गंभीर मान लिए जाएँ, ऐसा कतई नहीं है। यहाँ तक कहा कि भारतीय सबसे ज्यादा अमेरिका और दुबई में ही बेरोजगार हुए हैं। पर बाकी जगहों और अरब देशों के बाकी हिस्सों में स्थिति स्थिर है। जयति घोष एक और चिंता की ओर इशारा करती हैं। वो बताती हैं कि भारत से बाहर काम कर रहे श्रमिकों के लिए कानून और नीतियों के रूप में कोई राहत न तो अच्छे वक्त में थी और न अब बुरे वक्त में है। हालाँकि यही सवाल जब वायलार रवि से पूछा तो उन्होंने बताया कि सरकार इस बारे में गंभीर है। इसी माह के अंत में वो बहरीन की यात्रा पर होंगे और वहाँ सरकार के साथ एक श्रमिक सुरक्षा संधि पर हस्ताक्षर भी करेंगे। इन सब के दौरान भारत में संभलते दिख रहे बाजार और पूँजी की बढ़ती आमद के बीच सैय्यद आरजू हैदर के माँ-बाप को बेटे की नौकरी की बहाली, बेटी की शादी के खर्च और अपनी जीविका की जरूरत जैसी चिंताओं का समाधान कब मिलेगा, इसका जवाब शायद किसी के पास नहीं है। और फिर यह कोई एक ही परिवार की तो बात नहीं है...ऐसे लाखों हैं। आर्थिक मंदी और संकट के हालात से जूझते हुए।
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