rashtrya ujala

Tuesday, July 28, 2009

अंतरंगता के वे अनमोल पल

भारत में जिन्हें प्रेम का प्रतीक माना जाता आया है वे शायद ही एकपत्नीक और विवाहित रहे हों: मसलन ताजमहल का निर्माण शाहजहां ने अपनी एक पसंदीदा पत्नी की याद में करवाया था, हालांकि उसकी दो और पत्नियां भी थीं; कृष्ण के अलौकिक प्रेम की धुरी उनके चाचा की पत्नी राधा थीं. भारत में अतीत में (और आज भी) प्रचलित विवाह और यौनाचार की विविध प्रणालियों के विपरीत वैवाहिक जीवन में बतौर अपराध परगमन अपेक्षाकृत एक नया प्रयोग है, जिसकी हदें अभी तय होनी हैं.
विवाह से इतर संभोग
आखिर, परगमन को कैसे समझ जाता है? क्या यह विवाह से इतर संभोग है? इस संबंध में चिंताएं अक्सर महिलाओं के यौनाचार की निगरानी के रूप में सामने आती हैं ताकि प्रजनन की उनकी शक्ति को इस तरह साधा जा सके कि होने वाली संतान वंश का ही जैविक अंश हो और फिर उसे बिना किसी हिचक के संपत्ति हस्तांतरित की जा सके. परगमन के खिलाफ कड़े कानून (जैसे पाकिस्तान का हदूद अध्यादेश है जो परगमन को अपराध ठहराते हुए यह मानता है कि बलात्कार की गवाही परगमन की स्वीकारोक्ति के बराबर होती है) इसे पुरुष संपत्ति का उल्लंघन मानते हैं और आर्थिक क्षतिपूर्ति या मृत्युदंड तक का प्रावधान करते हैं.
भावनाओं के साथ विश्वासघात
या फिर, परगमन प्रेम अथवा भावनाओं के साथ विश्वासघात है जिससे वैवाहिक संबंध खतरे में पड़ सकता है? मसलन, फिल्म मि. ऐंड मिसेज अय्यर में मीनाक्षी और राजा अपनी त्रासदियों, भावनाओं और कलात्मक संवेदनशीलता का साझ करते हैं और अंत में एक चुंबन भी-उसके पति के पुनः आगमन के साथ ही एक तरह का अपराधबोध दिखाई देता है कि उनमें प्रेम हो गया है. इसी तरह, हाल ही में आई फिल्म अनुरोनोन इस बात पर केंद्रित है कि क्या सेक्स के बिना भी विवाहेतर संबंध कलंककारी हो सकता है.
'भावात्मक बेवफाई' या 'अफेयर'
2007 के सर्वेक्षण में जब यह पूछा गया कि क्या 'भावात्मक बेवफाई' और 'अफेयर' एक ही चीज हैं, तो 51 फीसदी प्रतिभागियों का जवाब हां में था। इस तरह का जवाब इस तरह के दोहरे भाव की ओर भी संकेत करता है कि वफादारी क्या वैवाहिक संबंध के प्रति है या संपत्ति अथवा बच्चे के प्रति. क्या 2008 के सर्वेक्षण में शामिल 41 फीसदी पुरुष और 8 फीसदी महिलाएं जिन्होंने स्वीकार किया है कि वे परगमन में लिप्त हैं, इसे संभोग के मायने में लेते हैं या सेक्स की व्यापक परिभाषा के अंतर्गत मानते हैं?
यों सदियों से पुरुषों (विशेष रूप से कुलीन पुरुषों) के लिए बहु-विवाह और यौनाचार के लिए एक से अधिक साथी उपलब्ध रहे हैं. दरअसल हम महाकाव्यों के सिर्फ नायकत्व वाले चरित्रों अथवा मौर्य या मुगल सम्राटों (इंदू सुदर्शन की मेहरुन्निसा के बारे में हाल ही में आई किताब में उसे सम्राट जहांगीर की 20वीं पत्नी बताया गया है) के बारे में ही सोचते हैं. विवाह को अक्सर गठबंधन को मजबूत बनाने का माध्यम और नए इलाकों को अपने साम्राज्य में मिलाने का जरिया माना जाता था. 19वीं सदी में बंगाली कुलीन पुरुष पेशेवर पतियों के रूप में सेवाएं देते थे, कई बार तो वे अपनी उच्च जाति से मिली हैसियत और अविवाहित महिलाओं को अपवित्र मानने के भय की आड़ में एक ही समय में सैकड़ों महिलाओं को सेवा देते थे. विवाह से इतर पुरुष की अनेक रखैलें हुआ करती थीं. उच्च जाति के पुरुष निचली जाति की महिलाओं के साथ संबंध बनाते थे और इसके लिए अक्सर वे आनुष्ठानिक मंजूरी भी प्राप्त कर लिया करते थे. ऐसे परिदृश्य में महिलाएं यौन संबंध के मद्देनजर अपनी इच्छा का इजहार नहीं कर सकती थीं.
बहुपति प्रथा
दक्षिण एशियाई विवाह प्रणालियों में कुछ ऐसे भी उदाहरण हैं जिनमें महिलाओं के एक से अधिक व्यक्तियों के साथ सेक्स की परंपरा थी. न्याइनबा बहुपति प्रथा इसका एक उदाहरण है जिसमें एक ही घर पर रहने वाले सगे भाई एक ही महिला से (या दो बहनों से) विवाह करते थे. नायर महिलाओं का 'संबंधम विवाह' नृ-शास्त्रियों का एक और पंसदीदा विषय है, जिसमें महिला ऐसे ढेर सारे अतिथि पतियों का चुनाव कर सकती है जो अंतरंग संबंध स्थापित करने के बाद अपने घर लौट जाते हैं. दोनों ही मामलों में जैविक पितृत्व को लेकर कोई ज्यादा चिंता नहीं होती और ऐसे स्पष्ट नियम हैं जिनसे संतान का वंश निर्धारण होता है और समुदाय के भीतर उसे मान्यता मिलती है. न ही परगमन का विचार समान लिंग धारियों के बीच यौन या अन्य तरह की अंतरंगता के महत्व को स्पष्ट करता है.

समलैंगिक संबंधों के बीच परगमन
आंकड़ों की कमी के बावजूद भारत में समलैंगिक प्रेम से संबंधित लंबी साहित्य परंपराओं से ऐसा लगता है कि बहुलिंगी यौन संबंध (और प्रजनन) के अनिवार्य ढांचे ने अन्य प्रभावी या शारीरिक संबंधों को परदे में छिपाए रखा था. क्या समान-लिंग वाले इन संबंधों को परगमन माना जाता था क्योंकि उनसे संतान की 'वैधता' को किसी तरह का खतरा नहीं था? क्या अब विवाहित व्यक्तियों के समलैंगिक संबंधों के मद्देनजर परगमन की नई परिभाषा की जरूरत है जिसकी वजह से वैवाहिक पवित्रता का अतिक्रमण हो रहा है?
हिंदू विवाह अधिनियम
सन्‌ 1955 के हिंदू विवाह अधिनियम ने एक पत्नीत्व को मूलतः आधुनिकता के अलग तरह के मानक के रूप में स्थापित किया, जिसकी कल्पना उपनिवेशी दौर के बाद के नए विषय के रूप में की गई है. इतिहासकारों की राय है कि सोचने के नए तरीके संभवतः थोड़ा पहले, 19वीं सदी के आखिर और 20वीं सदी के शुरू के आख्यानों में मिलते हैं जिनमें विवाह को एक राष्ट्र के भीतर संगति और साहचर्य के रूप में देखा गया.
मुस्लिम बहुपत्नी प्रथा
अधिनियम बेशक ऐसे कायदों को उन तरीकों के रूप में जाहिर करता है जिनके जरिए वैवाहिक संबंधों में बराबरी की कल्पना की जाती है, लेकिन गैर हिंदू महिलाएं इस कानूनी हैसियत से अलग रह गईं. मुस्लिम बहुपत्नी प्रथा इसके बाद भी वैध बनी रही, जिसमें पहली पत्नियों को हल्का सा संरक्षण प्राप्त होता है और बाद में होने वाले विवाहों में उनकी राय भी सुनी जाती है ( जैसे बांग्लादेश में कानून है). अभी हाल तक ईसाई विवाह कानून के तहत तलाक लेने की इच्छुक महिलाओं को परगमन के साथ ही उपेक्षा या क्रूरता जैसे अतिरिक्त कारण भी साबित करने पड़ते थे
एक पत्नीत्व से जुड़े सांस्कृतिक कायदे कानूनी मानकों की तुलना में ज्यादा उदार हैं. 8 फीसदी महिलाओं और 43 फीसदी पुरुषों ने माना कि वे परगमन को उचित समझते हैं, 8 फीसदी महिलाओं और 41 फीसदी पुरुषों ने स्वीकार किया कि वे परगमन में लिप्त रहे (इनमें से 27 फीसदी और 19 फीसदी क्रमशः ने साथी की अदला-बदली की बात भी मानी). तीन फीसदी विवाहित पुरुषों ने 'किसी रक्त संबंधी के साथ यौन संबंध' की बात मानी, 16 फीसदी विवाहित पुरुषों ने समलैंगिक संबंधों की बात स्वीकारी तो 18 फीसदी विवाहित पुरुषों ने हिजड़ों के साथ यौन संबंध और 21 फीसदी विवाहित पुरुषों ने वेश्याओं के पास जाने की बात मानी (इनमें से 54 फीसदी ने इसके लिए हर बार या कभी कभी पैसे भी दिए). इनसे संबंधित विवाहित महिलाओं के आंकड़े क्रमशः 1 फीसदी, 6 फीसदी, 6 फीसदी और 2 फीसदी ( 51 फीसदी) हैं. हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि क्या संबंधियों से यौन संबंध, समलैंगिक संबंध या पैसे देकर स्थापित किए गए यौन संबंध वैवाहिक जीवन के दौरान स्थापित होने की वजह से परगमन की श्रेणी में आते हैं.
यौन अभिव्यक्ति का तरीका
वैसे, सर्वेक्षण के ये आंकड़े परगमन के बढ़ते रुझन की ओर इशारा नहीं कर रहे हैं. संभव है उनसे संकेत मिलता हो कि सिर्फ वैवाहिक अंतरंगता यौन अभिव्यक्ति का एकमात्र तरीका न तो पहले थी और न अब है. मुझे सर्वेक्षण के आंकड़े तकरीबन उसी समय मिले थे जब मैंने आनंद बाजार पत्रिका में जीवन शैली से संबंधित एक लेख पढ़ा था जिसमें उस तिकड़ी के बारे में जानकारी दी गई थी जिन्होंने विवाह की एक इकाई के रूप में रहना मंजूर किया थाः दो बहनों ने एक ही पुरुष के साथ विवाह करना मंजूर किया (जिनमें से एक ने कानूनी तरीके से विवाह किया) क्योंकि वह यौनाचार, बच्चे पैदा करने और घरेलू व्यवस्थाओं के लिए सुविधाजनक था.
यौन स्वच्छंदता
इसके कुछ दिन बाद इसी अखबार ने एड्स से प्रभावित एक महिला को उसके ससुरालवालों द्वारा घर से बाहर निकाल दिए जाने से संबंधित खबर छापी. पर इस महिला ने एड्स से प्रभावित पति की देखरेख करने का फैसला किया, हालांकि एड्स का मूल उसके पति में था. इस महिला को यौन रूप से स्वच्छंद और प्रदूषित करार दिया गया. इस तरह की रोजमर्रा कहानियों के जरिए हमारा ध्यान सामाजिक जीवन में छायी बहुपत्नीक प्रवृत्तियों और यौन विविधताओं की ओर जाता है. और हां, जैसा कि एड्स से संबंधित खबरें दर्शा रही हैं, यौन रूप से संवंर्धित संबंध महिलाओं के पक्ष में नहीं हैं और संभवतः उन्हें ही आर्थिक बोझ् और यौन विविधता के सामाजिक दंश झेलने पड़ते हैं भले ही यह उनकी पसंद हो या न हो.
विवाह बना महिलाओं के लिए आर्थिक सुरक्षा
पिछले कुछ वर्षों के दौरान कोलकाता में पारिवारिक अदालतों और घरेलू हिंसा से संबंधित मेरा शोध मेरी इस धारणा की ही पुष्टि करता है कि उपनिवेशी दौर के बाद के राज्य में विवाह मूल रूप से आर्थिक इकाई का गठन है. अधिकांश मामलों का संबंध सर्वेक्षण में प्रदर्शित किए गए विषयों के अपेक्षाकृत निचले सामाजिक-आर्थिक वर्ग से संबंधित है और विवाह से मिलने वाली आर्थिक सुरक्षा ही आम तौर पर किसी महिला के जीवन-यापन का एकमात्र साधन है.
पत्‍नी चाहती है प्रेम की शर्त
आर्थिक चिंताओं में शहरी आवासीय जगह को सुलभ कराने की क्षमता, विस्तारित परिवार में संसाधनों व अधिकारों की साझेदारी, पत्नी के परिवार की वित्तीय जिम्मेदारियां और पत्नी की सीमित आय शामिल हैं. वैवाहिक निष्ठा इस बंधन की शर्त हैः पत्नियों पर विवाह-पूर्व संबंधों या फिर मौजूदा संबंधों के आधार पर आरोप लगाए जाने के साथ ही (जैसे फ्लेविया एगेंस ने इंडिया टुडे 2007 के सर्वे से संबंधित आलेख में लिखा है) उन पर संयुक्त परिवार में उचित व्यवहार नहीं करने, घरेलू रूप से नाकाबिल होने या फिर उनके आय के अज्ञात स्त्रोत होने के आरोप आम हैं. पत्नियां अक्सर आरोप लगाती हैं कि पति यौन या भावात्मक संबंधों में (परिवार के सदस्यों या पड़ोसियों के साथ) लिप्त हैं लेकिन वे वैवाहिक जीवन में जगह देने के साथ उसे सुचारु रूप से चलाने के लिए प्रेम की शर्त रखती हैं.
भटके कदम:20वीं सदी में वैवाहिक कायदों ने भले ही विवाहित जोडे़ को इस कदर आदर्श बना दिया कि वे यौन संबंध, प्यार और अंतरंगता के मामले में एक-दूसरे के एकमात्र सहचर हैं, लेकिन न तो विवाह और न ही यौन व्यवहार एक पत्नीत्व के अनुरूप रहे हैं.

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