खिदिरपुर पोर्ट टस्ट्र के उप चेयरमैन ए। मजूमदार ने बताया कि गत 22 जून से पोर्ट के गोदामों से दाल, चीनी समेत विदेशों से आने वाली अन्य खाद्य सामग्री बाहर नहीं निकाली जा सकी है। सीएफएल की अनुमति नहीं मिलने के कारण ऐसा हुआ है। दरअसल, आयातित खाद्य पदार्थ को पोर्ट से तब तक बाहर नहीं भेजा जा सकता, जब तक कि कस्टम विभाग और पोर्ट प्रशासन को सीएफएल से गुणवत्ता जांच रिपोर्ट नहीं मिल जाती।मजूमदार ने बताया कि पिछले 22 जून से सीएफएल में परीक्षण का काम बंद है जिसकी वजह से 1.08 लाख टन दाल और 24 हजार टन चीनी को पोर्ट से बाहर नहीं निकाला जा सका है। सूचना मिली है कि सीएफएल को स्वायतशासी संस्था बना दिया गया है। वहां काम करने वाले कर्मचारी और विशेषज्ञ इसका विरोध कर रहे हैं। अपना विरोध जताने के लिए उनलोगों ने काम बंद कर रखा है।कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट के प्रबंधक प्रणब भंट्टाचार्य ने बताया कि विदेशों से आई दाल और चीनी समेत अन्य खाद्य पदार्थो को अब निकाला जा रहा है। कुछ दिक्कत शुरू हुई थी लेकिन अब सीएफएल के अधीन फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड आफ इंडिया नामक एक अलग संस्था का गठन किया गया है जिसके तहत फिलहाल तीन जांच लैब में काम शुरू हुआ है। उन्होंने कहा कि इस मामले में पोर्ट ट्रस्ट की ओर से किसी प्रकार की कोताही अथवा लापरवाही नहीं बरती गई है।
1 comment:
जिन्दा लोगों की तलाश! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!
काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग भी मिल सके कि तो कम नहीं होगा।
============
उक्त शीर्षक पढकर अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन सच में इस देश को कुछ जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।
आग्रह है कि बूंद से सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो निश्चय ही विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।
हम ऐसे कुछ जिन्दा लोगों की तलाश में हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।
इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।
अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।
अतः हमें समझना होगा कि आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदशोर्ं को सामने रखकर 1993 में स्थापित-ष्भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थानष् (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-
सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?
जो भी व्यक्ति स्वेच्छा से इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
७, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-३०२००६ (राजस्थान)
फोन : ०१४१-२२२२२२५ (सायं : ७ से ८) मो. ०९८२८५-०२६६६
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in
Post a Comment