rashtrya ujala

Sunday, November 2, 2008

मंदी की अमावस में छिपा है तरक्की का उजियारा

अब तो इस स्यापे को सुनते-सुनते भी कान पक गए हैं। यह सही है कि सेंसेक्स की गिरावट ऐतिहासिक है और बिलकुल अनसोची है। सारे आँकड़ों, संभावनाओं और वित्त विशेषज्ञों के दावों को धता बताते हुए सेंसेक्स ने जो गोता लगाया तो कई की दिवाली काली हो गई। 21 हजार की गगनचुंबी ऊँचाई से कब ये 8 हजार पर जा पहुँचा, पता ही नहीं चला। अभी थोड़ा ऊपर चढ़ा है, पर अगले पल क्या होगा, कोई नहीं जानता।

अब तो इस स्यापे को सुनते-सुनते भी कान पक गए हैं। यह सही है कि सेंसेक्स की गिरावट ऐतिहासिक है और बिलकुल अनसोची है। सारे आँकड़ों, संभावनाओं और वित्त विशेषज्ञों के दावों को धता बताते हुए सेंसेक्स ने जो गोता लगाया तो कई की दिवाली काली हो गई

कम समय में 1 रुपए के 10 रुपए करने के लालच ने लोगों को श्रम से दूर ले जाकर हवाई किले बनाना और उसे सच मानना सिखा दिया। लालच का यह 'रक्तबीज' इतनी तेजी से फैला कि लोग अपना मूल काम-धंधा ही भूल गए। शेयर बाजार से मुनाफा कमाना वित्तीय संस्थाओं और निवेश करने वाली बैंकों का प्रमुख कार्य हो सकता है, लेकिन आम आदमी या अन्य उद्यमी का नहीं। खासतौर पर आम निवेशक के लिए शेयर बाजार से ही सारा मुनाफा कमा लेना प्रमुख उद्देश्य नहीं होना चाहिए।

शेयर बाजार की तेजी के चलते कई लोग अपना मूल पेशा छोड़कर शेयर बाजार में ही लग गए थे। अपने पैसों को दोगुना नहीं बल्कि चौगुना या दस गुना या उससे भी ज्यादा करने के चक्कर में हम ये भूल गए कि केवल शेयर बाजार के आगे बढ़ने से देश आगे नहीं बढ़ता

शेयर बाजार की तेजी के चलते कई लोग अपना मूल पेशा छोड़कर शेयर बाजार में ही लग गए थे। अपने पैसों को दोगुना नहीं बल्कि चौगुना या दस गुना या उससे भी ज्यादा करने के चक्कर में हम ये भूल गए कि केवल शेयर बाजार के आगे बढ़ने से देश आगे नहीं बढ़ता। देश आगे बढ़ता है हम सभी के अपने-अपने काम में पूरी ईमानदारी और मेहनत से लगे रहने से। देखा तो यह गया कि बड़े-बड़े डॉक्टर एक निर्धारित समय के बाद अपने ही मरीजों को देखने में अरुचि दिखाने लगे क्योंकि उतना पैसा तो उन्हें शेयर बाजार से ही आराम से मिलने लगा।


उद्योगपतियों ने अपनी फैक्टरी में उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान देने की बजाय शेयर पर ध्यान देना शुरू कर दिया। नवधनाढ्य मध्यम वर्ग ने दस-पंद्रह साल की बचत में हासिल किए जा सकने वाले गाड़ी-बंगले को दो साल में ही हासिल करने की कोशिश की

उद्योगपतियों ने अपनी फैक्टरी में उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान देने की बजाय शेयर पर ध्यान देना शुरू कर दिया। नवधनाढ्य मध्यम वर्ग ने दस-पंद्रह साल की बचत में हासिल किए जा सकने वाले गाड़ी-बंगले को दो साल में ही हासिल करने की कोशिश की। यहाँ तक की दूधवाला और पेपरवाला भी शेयर के भावों पर ही चर्चा करता नजर आ रहा था।...इस गुब्बारे को कहीं तो फूटना था! खैर, मूल बात यह नहीं है कि गुब्बारा फूट गया और सब कुछ बिखर गया। मूल मुद्दा तो यही है कि अब भी कुछ नहीं बिगड़ा। भारत को एक बड़ी आर्थिक ताकत केवल शेयर बाजार के आधार पर नहीं माना गया है। हमने उद्योग, आधारभूत ढाँचे, कृषि उत्पाद और सेवा क्षेत्र में जो निरंतर प्रगति की है, वह हमारी आर्थिक ताकत का मजबूत आधार है। यह आधार मजबूत रहेगा तो शेयर बाजार भी फिर ऊपर चला जाएगा। अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली, जापान और फ्रांस जैसे देशों की विकास दर 3 प्रतिशत से भी कम है। ऐसे में भारत यदि 9 प्रतिशत की बजाय 7 प्रतिशत की दर से भी विकास करता है तो संभावनाओं के उजले अवसरों को पहचानना कठिन नहीं होगा। 7 प्रतिशत की यह दर भी हम सभी के उद्यम और अपने आप को विश्व प्रतिस्पर्धा में स्थापित करने की उत्कंठा से ही हासिल हो पाई है। अधिकांश कंपनियों के इस तिमाही के परिणाम अच्छे आए हैं।

1 comment:

Udan Tashtari said...

सही है-बस आगे आगे देखिये होता है क्या!!