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हमारे बिहार और उत्तरप्रदेश राज्य जाली मतदान के लिए बदनाम किए जाते हैं। जम्मू-कश्मीर के चुनाव को लेकर पाकिस्तानी न्यूयॉर्क में भी हाय-तौबा करते हैं, लेकिन अब वे वॉशिंगटन-न्यूयॉर्क जाकर अपने शुभचिंतकों से पता लगाएँ। "ग्रेट अमेरिका" की दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ रिपब्लिकन और डेमोक्रेट पैसे देकर मतदाता सूचियों में जाली नाम दर्ज करा देती हैं। बोगस वोटर को भी बाकायदा किराए की कुछ रकम दी जाती है। बताते हैं कि इस साल मतदाता सूचियों में 13 लाख मतदाताओं के नाम जोड़े गए हैं, जिनमें से सैकड़ों पर प्रश्नचिह्न लग रहे हैं। यदि अमेरिकाप्रेमियों को याद हो तो पिछले राष्ट्रपति चुनाव में बुश साहब की जीत कुछ हजार संदिग्ध वोटों के बल पर ही हुई थी। इसकी तुलना में लालूजी, नीतीश, सोनिया गाँधी, जयललिता, रामविलास पासवान, लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं की स्थिति बहुत अच्छी है।उन्हें बोगस वोटों की जरूरत नहीं पड़ती और लाखों के अंतर से विजयी होते हैं। हाँ, हमारे भले नेता डॉ। मनमोहनसिंह को साधारण वोटर, मतदाता सूची के चक्कर में ही नहीं पड़ना पड़ता। वे तो राज्यसभा के पिछले दरवाजे से आते हैं, इसलिए मतदाता सूची, लोकप्रियता, जाली वोटिंग इत्यादि का कोई आरोप ही नहीं लग सकता।
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हालत यह है कि माता-पिता पर आर्थिक रूप से आश्रित होने का रिकॉर्ड रखने वाले युवाओं को अपने शहर से दूरस्थ कॉलेज या यूनिवर्सिटी होने पर वोट देने के अधिकार से वंचित रखने के प्रयास तक हुए हैं। ऐसी स्थिति में डेमोक्रेट उम्मीदवार ओबामा के लिए मुश्किलों के पहाड़ अवश्य खड़े होंगे। यह बात अलग है कि भारी संख्या में मतदाताओं का समर्थन होने पर हेराफेरी बहुत नहीं बिगाड़ पाएगी। राष्ट्रपति ट्रुमान ने दशकों पहले अमेरिका को महान और अमेरिकी जनता को विश्व का कल्याणकारी होने का दावा किया था, लेकिन आज अमेरिका बदला हुआ है। वहाँ अर्थव्यवस्था के साथ लोकतंत्र की रक्षा के लिए भी जागरूकता और बदलाव की माँग उठने लगी है।
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