rashtrya ujala

Tuesday, November 4, 2008

आतंकवाद की लड़ाई में एकजुट हों

महाराष्ट्र पुलिस की रिपोर्ट थी कि 29 सितंबर को मालेगाँव (महाराष्ट्र) और मोदासा (गुजरात) में आतंकवादियों द्वारा किए गए बम धमाकों की योजना बनाने से लेकर उसे कार्यरूप देने तक का काम हिन्दुत्व ब्रिगेड से संबंधित संगठनों की 'दिखावटी देशभक्ति' का ही एक नमूना है। इस मामले में तीन लोग गिरफ्तार किए गए हैं जिनमें एक साध्वी भी है। चिंता की बात यह है कि पुलिस की जाँच में इन धमाकों से सेना के तीन पूर्व अफसरों के जुड़े होने संभावना है। इन दोनों अफसरों का नासिक में भोंसला मिलिटरी स्कूल से भी संबंध है। इन रिपोर्टों से कई सवाल पैदा होते हैं।
यह कोई पहला मौका नहीं है जिसमें हिन्दुत्व की रक्षा करने का दावा करने वाले संगठन आतंकी

कुल मिलाकर यह नरम रवैया है जो हिन्दुत्व के हितों के नाम पर मालेगाँव और मोदासा जैसी आतंकवादी गतिविधियों को चलाने वाले संगठनों को बढ़ावा तो नहीं देता लेकिन उन्हें काम करने की छूट जरूर देता है

वारदातों में लिप्त पाए गए हैं। महाराष्ट्र में एंटी टेरेरिस्ट स्क्वॉड (एटीएस) ने कथित रूप से बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के षड्यंत्र का भी पता लगाया था। उस समय बम बनाने की कोशिश करते हुए एक बम फट गया था जिसमें दो लोग मारे गए थे। आरोपियों कि विरुद्ध एटीएस के आरोप-पत्र में ('कम्युनलिज्म काम्बेट' के अगस्त अंक में उद्धृत) में बताया गया था कि वह परभणी, जालना और पुरणा की मस्जिदों में हुए तीन विस्फोटों में शामिल रहे हैं। दो आरोपियों ने भोंसला मिलिटरी स्कूल (नागपुर) में 40 दिन की ट्रेनिंग की थी। एटीएस की रिपोर्ट के अनुसार एक आरोपी ने स्वीकार किया है कि वह भोंसला स्कूल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा आयोजित ट्रेनिंग कैंप में शामिल हुआ है। वहाँ दो सेवानिवृत्त सैनिक और खुफिया ब्यूरो के एक वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी भी मौजूद थे।
कुछ आरोपियों के घरों में नकली दाढ़ियाँ और शेरवानी जैसे मुसलमानों द्वारा आम तौर पर पहने जाने वाले कपड़े भी मिले हैं। योजना यह थी कि आतंकवादी कार्रवाइयाँ करते हुए लगे कि वारदात मुसलमानों ने की हैं। एटीएस का आरोप पत्र 2006 में दाखिल किया गया था। इसमें आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के षड्यंत्र के लिए 11 लोगों के विरुद्ध आरोप थे। इसमें तीन दर्जन और लोगों के नाम थे जिनमें ज्यादातर बजरंग दल के कार्यकर्ता थे। लेकिन अफसोस की बात है कि इस जाँच का कोई नतीजा नहीं निकला। मामले सीबीआई को सौंप दिए गए। सीबीआई ने इस मामले को कमजोर कर दिया और यह सब खत्म ही हो गया। कुल मिलाकर यह नरम रवैया है जो हिन्दुत्व के हितों के नाम पर मालेगाँव और मोदासा जैसी आतंकवादी गतिविधियों को चलाने वाले संगठनों को बढ़ावा तो नहीं देता लेकिन उन्हें काम करने की छूट जरूर देता है।मालेगाँव धमाकों का संबंध एटीएस की पुरानी जाँच से मिले नतीजों से जुड़ा लगाता है। सवाल यह उठता है कि महाराष्ट्र सरकार ने एटीएस की जाँच के नतीजों पर कार्रवाई क्यों नहीं की? यह साबित हो जाने के बाद भी कि पुराने नांदेड़ मामले से भोंसले मिलिटरी स्कूल का भी संबंध है, तो उसे क्यों चलते रहने दिया गया? क्या इन गतिविधियों के विरुद्ध किसी तरह की जाँच की गई है, अगर नहीं तो क्यों? इस साल जनवरी में तमिलनाडु पुलिस ने आरएसएस संगठनों से जुड़े लोगों के एक दल को गिरफ्तार किया था जो संघ कार्यालय के बाहर और बस स्टॉप पर बम लगा रहे थे। उद्देश्य था मुस्लिम समुदाय को हिंसा का शिकार बनाना।हाल ही में कानपुर में बम बनाते हुए बजरंग दल के दो लोग मारे गए थे। फिर भी केंद्र सरकार ने

हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही समुदायों के ज्यादातर लोग ऐसी हिंसा के खिलाफ हैं जिसमें निर्दोष लोग मारे जाते हैं। यही हमारे देश की वास्तविक शक्ति है

इन संगठनों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। क्या इससे यह जाहिर नहीं होता कि आतंकवाद के विरुद्ध दोहरे मापदंड अपनाए जा रहे हैं। आतंकवाद को दबाने के लिए सख्ती से काम करना होगा, यह सोचे बगैर कि इसमें किस समुदाय के लोग लिप्त हैं। भाजपा नेता इन आतंकवादियों की निंदा करने से इंकार क्यों करते हैं? उमा भारती जैसी उनकी पुरानी साथी ने साध्वी के साथ करीबी तौर पर जुड़े होने के लिए उनकी निंदा की है। यह भी कहा है कि उन्होंने राजनीतिक अभियानों में उसका 'इस्तेमाल' किया है। जिन्होंने पार्टी को भारती से दूर किया है, उस गुट को उन्होंने 'पाखंडी' बताया। जो भी हो, देश की जनता को ऊँचे पदों पर बैठे लोगों से इस सवाल का साफ जवाब चाहिए कि क्या वे इन आतंकवादी संगठनों की निंदा करने के लिए और उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई करने के लिए तैयार हैं?
2004 और 2008 के बीच भारत में कम से कम 25 बड़े धमाके हुए हैं जिनमें 717 लोग मारे गए और सैकड़ों जख्मी हुए। पहले हर विस्फोट के बाद कह दिया जाता था कि इसमें पाकिस्तान समर्थित गुटों का हाथ है। लेकिन हाल के आतंकवादी हमलों में ज्यादा दुःखद तथ्य यह है कि भारत के ही मुस्लिम समुदाय के कुछ युवाओं के छोटे-छोटे गुटों का नेटवर्क इसमें शामिल है । इन हमलों के पीछे उनकी मंशा गुजरात के कत्लेआम और इससे पहले मुंबई में मुसलमानों की हत्याओं का बदला लेना है। श्रीकृष्ण आयोग ने इसमें शामिल उच्चस्तरीय राजनेताओं और पुलिस अधिकारियों तक की पहचान की थी लेकिन किसी को भी सजा नहीं मिली। एक पूरे समुदाय के विरुद्ध ऐसा आचरण करने वालों के विरुद्ध धर्मनिरपेक्ष ताकतों के संगठित होने की जरूरत है। साथ ही ऐसी अतिवादी ताकतों को अलग-थलग करना भी जरूरी है जो अल्पसंख्यकों की वास्तविक समस्याओं की आड़ में अपने हित साधना चाहती हैं।
केंद्र सरकार के पास जो भी सबूत थे, उनके आधार पर उसने सिमी के खिलाफ रोक जारी रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिए। कुछ पार्टियों ने रोक को हटाए जाने की माँग करके गलत काम किया है। गैरकानूनी गतिविधियों (की रोकथाम) के कानून के अंतर्गत 2004 में संशोधित की गई सूची में शामिल 32 संगठनों में सिमी के साथ-साथ लश्करे-तैयबा, जैश-ए-मुहम्मद, हिज्ब-उल-मुजाहिदीन जैसे आतंकवादी गुटों के अलावा खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स, इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन, बब्बर खालसा इंटरनेश्नल आदि संगठन भी शामिल हैं। आज जब बजरंग दल और दूसरे ऐसे संगठनों के खिलाफ साफ देखे जा सकने वाले प्रमाण मौजूद हैं तो केंद्र सरकार को उनके विरुद्ध भी ऐसे ही कदम उठाने चाहिए। आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई जितनी राजनीतिक है उतनी ही प्रशासनिक भी है। इसका आधार लोगों की एकजुटता होना चाहिए। हालांकि ये संगठन इस या उस धर्म के नाम पर काम करते हैं, हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही समुदायों के ज्यादातर लोग ऐसी हिंसा के खिलाफ हैं जिसमें निर्दोष लोग मारे जाते हैं। यही हमारे देश की वास्तविक शक्ति है। आतंकवाद को किसी धर्म विशेष से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। आतंकवाद के विरुद्ध भारत को एकजुट करना है तो धर्मनिरपेक्षता की राजनीति जरूरी है।

5 comments:

Unknown said...

देश में बहुत से शहरों में विस्फोट हुए हैं. जांच चल रही है. जांच पूरी होने पर मामला अदालत में जायेगा. अदालत फ़ैसला करेगी. सब्र रखिये. जिन्होनें अपराध किए हैं उन्हें देश के कानून के ख़िलाफ़ सजा मिलेगी.

अब रही कुछ संगठनों पर पाबंदी लगाने की बात. सरकार के पास अगर सबूत हैं तो पाबंदी लगाए. पर शायद ऐसा नहीं है. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के अनुसार पाबंदी लगाने के लिए जरूरी सबूत नहीं हैं. प्रधानमन्त्री का भी यही कहना था. राष्ट्रीय एकता परिषद् की मीटिंग में सरकार ने आतंकवाद को मुद्दा ही नहीं बनाया. यह तो आप भी जानते होंगे कि इस सरकार के पास अगर सबूत होते तो पाबन्दी बहुत पहले लग चुकी होती.

drdhabhai said...

कुल मिलाकर इस मामले मैं जितनी बेशर्मी मीडिया ने दिखाई है वो गौर तलब है ...मान लिया जाये कि बम विस्फोट किये गये (जबकि अभी साबित हाना बाकि है)...फिर भी... जिस तरीके से मीडिया ने इस बात को बिलावजह हाईलाईट किया और संघ जैस राष्ट्रवादी संगठन को लपेटने की कोशिश की हैं वह निहायत ही शर्मनाक हैं....आज और संघ और विश्व हिंदु परिषद पर प्रतिबंध की मांग करने वालों ने कभी कम्यूनिस्ट पार्टियों पर प्रतिबंध की मांग की.... जो हत्यारे नक्सलियों को सरेआम समर्थन देते हैं...पिछले पचास साल के इतिहास मैं गिनकर चार घटनाएं गिनाई आपने जिनमें भी कोई सबूत नहीं मिला ...याने बहुत ही सामान्य सी घटनाएं ...जिनका कि रुख किसी भी तरफ मुङ सकता हैं ...को लेकर इतना बबाल क्या ये साबित नहीं करता कि भारतीय मीडिया एक कठपुतली बन चुका है ...जिसकी डोर कोई हिलाता हैं और कोी भी घटना को तिल का ताङ बनाया जा सकता हैं...इसलिए ये उजाला के नाम पर अंधेरा फैलाना बैद करें आप ...जनता बहुत समझदार है

Noida Press Club said...

thanks.....

दिनेशराय द्विवेदी said...

जिन्हें धर्म कहा जा रहा है उन से निजात पानी होगी।

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

बहुत अच्छा िलखा है आपने । कई प्रश्नों को उठाकर प्रखर वैचािरक अिभव्यिक्त की है । अपने ब्लाग पर मैने समसामियक मुद्दे पर एक लेख िलखा है । समय हो तो उसे भी पढे और अपनी राय भी दें -

http://www.ashokvichar.blogspot.com