rashtrya ujala

Thursday, November 6, 2008

कम बोलें लेकिन उचित बोलें

dharm article


प्रकृति ने हमें कान तो दो दिए हैं, जबकि जीभ एक ही दी है। जो इस बात का संकेत करते हैं कि हम सुनें अधिक और बोलें कम। जैसे कम खाना और अच्छा खाना स्वास्थ्य की रक्षा के लिए हितकारी और बुद्धिमानी का काम होता है वैसे ही यदि आप किसी को अच्छा न ही कह सकते हों तो आपको बुरा कहने का भी कोई अधिकार नहीं होता। वैसे भी ज्यादा खाना व ज्यादा बोलना अहितकारी और मूर्खता का काम होता है। सोच-समझकर न बोलने वाला, ज्यादा बक-बक करने वाला, उचित विचार किए बिना बोलने वाला, जिस विषय का ज्ञान न हो उस विषय में बोलने वाला, झूठ बोलने वाला और गलत बात बोलने वाला अक्सर लज्जा का पात्र होता है। इसलिए मनुष्य को सोच-समझकर उतना ही बोलना चाहिए जितना आवश्यक हो। जैसे कौआ और कोयल दिखने में तो एक जैसे होते हैं, पर जब तक दोनों बोलते नहीं तब तक जानना मुश्किल होता है कि कोयल है या कौआ। अर्थात कोई बातचीत नहीं करता, बोलता नहीं जब तक उसकी अच्छाई या बुराई प्रकट नहीं होती। कहीं-कहीं ऐसे व्यक्ति भी होते हैं, जो कभी बोलते नहीं और बोलते हैं तो सोच-समझकर। ऐसे स्वभाव वाले व्यक्ति को लज्जित नहीं होना पड़ता है और न ही पछताना पड़ता है। अतः कम बोलना और उचित बोलना ही अच्छा होता है। यह सत्य एक लघु कहानी के रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत है।

प्रकृति ने हमें कान तो दो दिए हैं, जबकि जीभ एक ही दी है। जो इस बात का संकेत करते हैं कि हम सुनें अधिक और बोलें कम। जैसे कम खाना और अच्छा खाना स्वास्थ्य की रक्षा के लिए हितकारी और बुद्धिमानी का काम होता है।

एक उच्च शिक्षित परिवार का युवक बहुत कम बोलता था और प्रायः चुप ही रहता था। एक व्यक्ति ने उससे पूछा कि तुम चुप क्यों रहते हो? युवक ने उत्तर दिया- गलत और बुरा बोलने की अपेक्षा न बोलना ही अच्छा है। हम जो भी बोलते हैं, वह व्योम में हमेशा के लिए अंकित हो जाता है। कौए की तरह काँव-काँव करने से अच्छा है चुप रहना। एक बार एक लड़की से भेंट हुई, उससे पूछा तुम्हारी बहन का परीक्षाफल क्या रहा? उसने कहा वह फेल हो गई, क्योंकि किसी कारणवश आपस में बोलचाल नहीं थी। कुछ दिनों बाद पता लगा कि उसकी बहन तो द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुई थी। तब हमने सोचा कि अपने ही घर के शीशे तोड़ देते हैं। वह कौए की तरह काँव-काँव करते रहने की अपेक्षा कोयल की तरह मधुर कूक करते तो कितना अच्छा होता। नीति में कहा है- मूर्ख का बल चुप रहना है। और बुद्धिमान के लिए यह श्रेष्ठ और आवश्यक गुण है। गाँधीजी ने सच ही कहा है- बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो, बुरा मत कहो। मौन रहना मूर्खों का तो बल होता ही है, पर विद्वानों का यह आभूषण होता है।

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