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Saturday, November 1, 2008

बावन वर्ष

देश के हृदयप्रदेश मध्यप्रदेश ने शनिवार को बावन वर्ष की आयु पूरी कर 53वें वर्ष में प्रवेश किया है। प्रदेश के इतिहास में निकट अतीत एक नवंबर 1956 से प्रारंभ होता है, लेकिन इतिहास के दस्तावेजों के अनुसार इस भू-भाग का उल्लेख सम्राट अशोक के शासनकाल में भी मिलता है। बावन वर्ष पहले के "मध्यभारत" का उल्लेख गुप्त साम्राज्यकाल में प्रमुखता के साथ मिलता है। कृषि पर निर्भर तीन चौथाई आबादी वाला यह प्रदेश आज जहाँ तक पहुँचा है, उसकी विकास गाथा उल्लेखनीय उपलब्धियों से भरी है।

योजना आयोग का सर्वेक्षण कहता है कि गरीब राज्यों में मध्यप्रदेश छठे स्थान पर है। अड़तीस प्रतिशत से अधिक आबादी अब भी गरीबी रेखा के ऊपर नहीं आ सकी है। क्रम में अपने से नीचे आने वाले प्रांतों से तुलना कर प्रगति पर संतोष व्यक्त करना अधूरी आशा है

विकास के पगचिह्न अनेक क्षेत्रों में साफ-साफ अंकित हैं और आसानी से देखे जा सकते हैं। उद्योग, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, संचार जैसे बुनियादी क्षेत्रों में अतीत और वर्तमान में बड़ा फर्क आ चुका है। विकास की राह में फूल और काँटों के बीच से गुजरने और आगे बढ़ने का नेतृत्व अनेक नेताओं ने किया। किसी को समय अधिक मिला, किसी को कम। फिर भी विकास के शासकीय दस्तावेज प्रगति के आँकड़ों और उपलब्धियों से भरते चले गए। यह सच है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं बन सका कि मध्यप्रदेश देश का सर्वाधिक विकसित प्रांत बना। इसकी व्याख्या यह नहीं हो सकी कि प्रदेश अभावों से मुक्त होकर अपने विकास की यात्रा को निर्बाध बना सका। इतने उपायों और प्रयासों के बाद भी शासकीय दस्तावेजों में दर्ज विकास के आँकड़ों और जमीनी हकीकत के बीच अंतर का फासला कम क्यों नहीं हुआ, सवाल लाख टके का है। क्यों ऐसा हुआ कि भरपूर प्राकृतिक संसाधन, समृद्ध संस्कृति और नेतृत्वों की सद्इच्छा के बाद भी मध्यप्रदेश उन्हीं समस्याओं से अब भी घिरा हुआ है, जो अधिक पिछड़े और अधिक गरीब प्रांतों को घेरे रहती हैं? कसर कहाँ रह गई? चूक किससे हुई? विकास के प्रयास कहाँ से और क्यों राह भटक गए? इन प्रश्नों के उत्तर मिलने चाहिए।
जबकि प्रत्यक्ष तौर पर दिखाई यह देता है, या कहें दिखाया यह जाता है कि शासन की समस्त विकास योजनाओं का एकमात्र लक्ष्य आम आदमी की बेहतरी होता है। लोककल्याणकारी शासन में यह सच भी है। यह भी असत्य नहीं है कि इन विकास योजनाओं के लाभ आम आदमी तक पहुँचाना भी लोककल्याणकारी शासन का बुनियादी दायित्व होता है। शासन अपने दायित्व पूरे कर रहा है, यह दावा किया जाता है। फिर क्या कारण है कि राशन की दुकान पर कतार में खड़ा आम आदमी खाली हाथ लौट जाने के लिए मजबूर होता है। बिजली आपूर्ति के बिना दिन और रात काटना उसकी लाचारी बन गई है। पानी जैसी जीवन उपयोगी आवश्यकता की न्यूनतम पूर्ति भी शासन नहीं कर पाता है। दिनदहाड़े घटने वाले अपराधों से जनसुरक्षा का शासन का दायित्व रोज घायल होता रहता है। शिक्षा की लागत आम आदमी की जेब सहन करने में असमर्थ हो जाती है। जनहित के फैसलों के लिए इंतजार अपने मायने खो देता है। जाहिर है कि दायित्व के निर्वहन के दावों और उसकी वास्तविक स्थिति के बीच अंतर खाई की तरह मौजूद है। मध्यप्रदेश में समय-समय पर सत्तासीन रहे नेतृत्व इस विसंगति को दूर क्यों न कर सके, यह आत्मावलोकन वक्त की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

मध्यप्रदेश में विकास के पगचिह्न अनेक क्षेत्रों में साफ-साफ अंकित हैं और आसानी से देखे जा सकते हैं। उद्योग, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, संचार जैसे बुनियादी क्षेत्रों में अतीत और वर्तमान में बड़ा फर्क आ चुका है

आजादी के बाद देश के लगभग सभी प्रांतों को विकास के समान अवसर मिले। प्राकृतिक संसाधनों के संदर्भ में प्रांतों के बीच अंतर भले ही रहा, लेकिन विकास के लिए समय और सहायता भी सभी को समान मिलती रही। फिर भी कुछ प्रांतों ने तो तीव्र गति से विकास किया। पहले स्वयं आत्मनिर्भर बने और फिर पिछड़े राज्यों की मदद करने की काबिलियत भी हासिल की। मध्यप्रदेश यह उपलब्धि हासिल क्यों नहीं कर सका? बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य सेवा, औद्योगिकीकरण के क्षेत्रों में तमाम प्रयासों के बावजूद प्रदेश पिछड़ा बना रहा है।
योजना आयोग का सर्वेक्षण कहता है कि गरीब राज्यों में मध्यप्रदेश छठे स्थान पर है। अड़तीस प्रतिशत से अधिक आबादी अब भी गरीबी रेखा के ऊपर नहीं आ सकी है। क्रम में अपने से नीचे आने वाले प्रांतों से तुलना कर प्रगति पर संतोष व्यक्त करना अधूरी आशा है। ऊपर देखा जाना चाहिए कि लक्ष्य से कितने दूर रह गए हैं। यही कारण है कि वह ललक, वह तत्परता दिखाई नहीं दे रही है, जो लक्ष्य की तरफ तेजी से बढ़ने में प्रत्यक्ष होती है। मध्यप्रदेश अपनी उम्र के नए वर्ष का पहला माह पूरा करेगा, उन्हीं दिनों नई प्रदेश सरकार के आने की तैयारियाँ अंतिम चरणों में होंगी। नई सरकार भी विकास के लक्ष्यों की अपनी रूपरेखा तैयार करेगी। आशाजनक होगा यदि वह वास्तविक स्थिति और आँकड़ों के बीच अंतर को एक समयबद्ध कार्यक्रम के जरिए खत्म करने का कदम उठाएगी।


1 comment:

Udan Tashtari said...

आभार मध्य प्रदेश के बारे में इन जानकारियों का.