जनता अमन और चैन चाहती है। वो सुकून से जीना चाहती है, लेकिन आए दिन होते आतंकी हमले जनता को दहशत के साये में जीने पर मजबूर कर रहे हैं। आज नेताओं द्वारा जनता से हाथ जोड़कर वोट तो माँगे जा रहें हैं पर जनता की सुरक्षा के नाम पर सभी चुप्पी साधे बैठे हैं। आखिर कब तक निर्दोष, मासूमों और बेगुनाहों का खून बहाया जाएगा?
जिस वक्त देश के पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं उस समय भारत के प्रमुख महानगर मुंबई में आतंकी हमलों का होना जनता की सुरक्षा के प्रति सरकार की लापरवाही को दर्शा रहा है। सरकार हमेशा की तरह जनता को कोरे आश्वासन देकर शांति की अपील कर रही है परंतु वो परिवार क्या करे, जिनके घर के चिराग इस धमाकों की आँधी से बुझ गए हैं। आर्थिक मंदी के इस दौर में जहाँ परिवार का गुजारा भी बमुश्किल चल रहा था, वहाँ कई घरों के चिरागों का बुझ जाना उनके लिए दो वक्त की रोटी के लाले पड़ने की स्थितियाँ निर्मित कर रहा है। कल रात से लेकर अब तक मुट्ठीभर आतंकियों का मुंबई में सीधा हमला करना न केवल उनके बुलंद हौसलों को बल्कि हमारी सरकार की लाचारी को भी दर्शा रहा है। रातों के शहर मुंबई में जहाँ जिंदगी कभी रूकती नहीं वहाँ सरेआम पाँच होटलों में एक के बाद एक आतंकियों का अपनी गतिविधियों को अंजाम देना व मासूमों को अपना निशाना बनाना पंगु सरकार की नाकामी का स्पष्ट प्रमाण है।
सामने से किया वार : अब तक कचरे के ढ़ेर में मिलने वाले बम आज सरेआम फेंके जा रहे हैं। अंधाधुंध गोलियों की बौछार से निर्दोष जनता के खून से धरती रक्तरंजित हो रही है पर शायद हमेशा की तरह इस बार भी सरकार आश्वासनों का दिलासा देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेगी।
सार्वजनिक स्थानों पर सरेआम सरकार को ललकारना आतंकियों के बढ़ते मंसूबों का परिचायक है। उन्हें मौत का खौफ नहीं है। वो तो 'जेहाद' के नाम पर सरेआम कत्लेआम कर रहे हैं। मीडिया को धमकी भरे ई-मेल भेजकर सीना ठोककर हमलों की जिम्मेदारी लेना जहाँ एक ओर आतंकियों के बुलँद हौसलों को दर्शा रहा है वहीं दूसरी और वोट की राजनीति में लिप्त हमारे सुप्त प्रशासन की नाकामी को भी उजागर कर रहा है। कोई नहीं है अछूता : सार्वजनिक स्थानों पर होते सिलसिलेवार आतंकी हमलों को देखकर ऐसा लगता था कि हर बार इनकी शिकार मासूम और बेगुनाह जनता ही बनती है परंतु अब आतंकियों ने समाज के पूँजीपतियों पर भी वार कर यह सिद्ध कर दिया है कि अब इस समाज का कोई भी वर्ग इन धमाकों से महफूज नहीं है।
मुंबई के ओबेराय और ताज जैसे कई बड़े पाँच सितारा होटलों में आतंकियों का घुसकर गोलीबारी करना तथा कई लोगों को बंधक बना जनता में दहशत फैलाने के लिए पर्याप्त है। पर्यटकों का घटता रुझान : जयपुर, अहमदाबाद, दिल्ली, मुंबई आदि महानगरों में कुछ अंतराल के बाद दहशतगर्दों का एक-एक करके अपने मंसूबों को अंजाम देना भारतीयों के साथ विदेशी पर्यटकों को भी दुबककर बैठने पर मजबूर कर रहा है। इन हमलों का सीधा असर भारत के पर्यटन पर भी पड़ा है, जिसके कारण पर्यटन विभाग को बड़ी हानि उठानी पड़ रही है। अब सही वक्त आ गया है जनता को अपनी आवाज बुलंद करने का। आज देश को जरूरत है उन जागरूक नागरिकों की, जो कुंभकर्णी निद्रा में सोए इस प्रशासन को जगाए। आज यह हमला सिर्फ मुंबई पर नहीं बल्कि हर भारतीय पर हुआ है, आतंकियों ने हमारे ही देश में, हमारे ही शहर में हमें निशाना बनाया है। भारत जैसे शांतिप्रिय देश में आखिर कब तक निर्दोष जनता को निशाना बनाया जाएगा? आखिर कब हम सभी खुली हवा में आजादी से साँस लेंगे? यह एक अनुत्तरित प्रश्न है, जिसका जवाब अब केन्द्र सरकार को देना ही होगा।
जिस वक्त देश के पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं उस समय भारत के प्रमुख महानगर मुंबई में आतंकी हमलों का होना जनता की सुरक्षा के प्रति सरकार की लापरवाही को दर्शा रहा है। सरकार हमेशा की तरह जनता को कोरे आश्वासन देकर शांति की अपील कर रही है परंतु वो परिवार क्या करे, जिनके घर के चिराग इस धमाकों की आँधी से बुझ गए हैं। आर्थिक मंदी के इस दौर में जहाँ परिवार का गुजारा भी बमुश्किल चल रहा था, वहाँ कई घरों के चिरागों का बुझ जाना उनके लिए दो वक्त की रोटी के लाले पड़ने की स्थितियाँ निर्मित कर रहा है। कल रात से लेकर अब तक मुट्ठीभर आतंकियों का मुंबई में सीधा हमला करना न केवल उनके बुलंद हौसलों को बल्कि हमारी सरकार की लाचारी को भी दर्शा रहा है। रातों के शहर मुंबई में जहाँ जिंदगी कभी रूकती नहीं वहाँ सरेआम पाँच होटलों में एक के बाद एक आतंकियों का अपनी गतिविधियों को अंजाम देना व मासूमों को अपना निशाना बनाना पंगु सरकार की नाकामी का स्पष्ट प्रमाण है।
सामने से किया वार : अब तक कचरे के ढ़ेर में मिलने वाले बम आज सरेआम फेंके जा रहे हैं। अंधाधुंध गोलियों की बौछार से निर्दोष जनता के खून से धरती रक्तरंजित हो रही है पर शायद हमेशा की तरह इस बार भी सरकार आश्वासनों का दिलासा देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेगी।
सार्वजनिक स्थानों पर सरेआम सरकार को ललकारना आतंकियों के बढ़ते मंसूबों का परिचायक है। उन्हें मौत का खौफ नहीं है। वो तो 'जेहाद' के नाम पर सरेआम कत्लेआम कर रहे हैं। मीडिया को धमकी भरे ई-मेल भेजकर सीना ठोककर हमलों की जिम्मेदारी लेना जहाँ एक ओर आतंकियों के बुलँद हौसलों को दर्शा रहा है वहीं दूसरी और वोट की राजनीति में लिप्त हमारे सुप्त प्रशासन की नाकामी को भी उजागर कर रहा है। कोई नहीं है अछूता : सार्वजनिक स्थानों पर होते सिलसिलेवार आतंकी हमलों को देखकर ऐसा लगता था कि हर बार इनकी शिकार मासूम और बेगुनाह जनता ही बनती है परंतु अब आतंकियों ने समाज के पूँजीपतियों पर भी वार कर यह सिद्ध कर दिया है कि अब इस समाज का कोई भी वर्ग इन धमाकों से महफूज नहीं है।
मुंबई के ओबेराय और ताज जैसे कई बड़े पाँच सितारा होटलों में आतंकियों का घुसकर गोलीबारी करना तथा कई लोगों को बंधक बना जनता में दहशत फैलाने के लिए पर्याप्त है। पर्यटकों का घटता रुझान : जयपुर, अहमदाबाद, दिल्ली, मुंबई आदि महानगरों में कुछ अंतराल के बाद दहशतगर्दों का एक-एक करके अपने मंसूबों को अंजाम देना भारतीयों के साथ विदेशी पर्यटकों को भी दुबककर बैठने पर मजबूर कर रहा है। इन हमलों का सीधा असर भारत के पर्यटन पर भी पड़ा है, जिसके कारण पर्यटन विभाग को बड़ी हानि उठानी पड़ रही है। अब सही वक्त आ गया है जनता को अपनी आवाज बुलंद करने का। आज देश को जरूरत है उन जागरूक नागरिकों की, जो कुंभकर्णी निद्रा में सोए इस प्रशासन को जगाए। आज यह हमला सिर्फ मुंबई पर नहीं बल्कि हर भारतीय पर हुआ है, आतंकियों ने हमारे ही देश में, हमारे ही शहर में हमें निशाना बनाया है। भारत जैसे शांतिप्रिय देश में आखिर कब तक निर्दोष जनता को निशाना बनाया जाएगा? आखिर कब हम सभी खुली हवा में आजादी से साँस लेंगे? यह एक अनुत्तरित प्रश्न है, जिसका जवाब अब केन्द्र सरकार को देना ही होगा।
3 comments:
उन्होंने भारत को जंग में हरा ही दिया
अपने ड्राइंग रूम में बैठ कर भले ही कुछ लोग इस बात पर मुझसे इत्तेफाक न रखे मुझसे बहस भी करें लेकिन ये सच है उन्होंने हमें हरा दिया, ले लिया बदला अपनी...
यकीनन हम कहीं भी सुरक्षित नही हैं आतंक के तांडव से मुक्ति पाना और मौका परस्त ताकतों को कमजोर करना मुश्किल होता जारहा है, विवशता और हालातों के बीच छीली जारही मानवता ,आश्चर्य होता है ,चिता भी की हमारे बच्चे और उनका समाज कैसे इन हालातों से जूझ पायेगे ,आपका लेख गंभीर मुद्दों की ओर इंगित करता है ,एक अनुमान के अनुसार भारत के पर्यटन उधोग बहुत अच्छी स्थति मैं नही है
" शोक व्यक्त करने के रस्म अदायगी करने को जी नहीं चाहता. गुस्सा व्यक्त करने का अधिकार खोया सा लगता है जबआप अपने सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पाते हैं. शायद इसीलिये घुटन !!!! नामक चीज बनाई गई होगी जिसमें कितनेही बुजुर्ग अपना जीवन सामान्यतः गुजारते हैं........बच्चों के सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पा कर. फिर हम उस दौर सेअब गुजरें तो क्या फरक पड़ता है..शायद भविष्य के लिए रियाज ही कहलायेगा।"
समीर जी की इस टिपण्णी में मेरा सुर भी शामिल!!!!!!!
प्राइमरी का मास्टर
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