* एक चुटकी कच्चा चावल मुँह में रखकर पानी से निगल जाना। इससे लीवर मजबूत होता है और पित्त की शिकायत नहीं रहती। जिन्होंने उपयोग किया, उन्हें बड़ा लाभ हुआ।
* उषापान करना। ठण्डा पानी आधा सेर से एक सेर तक पीना। यदि पानी तांबे के बर्तन में रखा हुआ हो तो अधिक लाभप्रद होगा।
* ताड़ासन करना। यानी दोनों पैरों के बल पर खड़े होकर दोनों हाथ जितने ऊपर ले जाएँ ले जाना।
* रात में एक तोला त्रिफला एक पाव ठण्डे पानी में भिगो सुबह छानकर उससे आँख धोना और बचे हुए जल को पी जाना।
* दाँत को कपड़छान किए नमक में कहुआ (सरसों का) तेल मिलाकर दाँत और मसूढ़ों को रगड़कर साफ करना। इससे दाँत मजबूत होते हैं, यहाँ तक कि पायरिया की बीमारी तक ठीक होती है।
* नित्य क्रिया के बाद प्राणायाम 5 से 10 या 15 से 20 मिनट तक अपनी शक्ति के अनुसार करना।
* प्राणायाम के बाद शक्ति के अनुसार व्यायाम करना। जो व्यायाम शाला न जा सके वह घर पर ही योगासन करे।
* उम्र के कारण या आलस के कारण यदि व्यायाम या आसन न कर सकें तो सुबह या संध्या 1-2 मील तक घूमना।
* रोज ठण्डे पानी से नहाना। नहाते समय कपड़े से रगड़ कर नहाना करना और फिर सूखे तौलिए से रगड़ कर शरीर को गर्म करना।
* शक्ति के अनुसार सूर्य स्नान करना। इससे शरीर में विटामिन 'डी' की प्राप्ति होती है।
* हो सके तो रोज या सप्ताह में एक बार तेल की मालिश करना।
* भोजन भूख से कम करना।
* हरी साग-सब्जी और मौसमी फलों का उपयोग करना।
* भोजन खूब चबा-चबाकर खाना। दाँतों का काम आँतों से न लेना।
* भोजन करते समय अन्त में पानी नहीं पीना, भोजन करने के एक घंटे बाद पानी पीना।
* भोजन के अन्त में छाछ पीना।
* भोजन करने के बाद कुल्ला कर दाँत अवश्य साफ करना।
* भोजन के बाद लघुशंका अवश्य करना।
* मैदे की बनी चीजें, तली हुई चीजें और बाजार की चीजों से परहेज करना।
* चाय-कॉफी, कोको और बोतलों के पानी से परहेज करना।
* बियर, ब्राण्डी, शराब आदि से दूर रहना।
* सिगरेट, बीड़ी, तम्बाकू, भांग, चरस जैसी नशीली चीजों से दूर रहना।
* हर समय माथा ठण्डा, पैर गरम और पेट ठण्डा रखना।
* सप्ताह में केवल एक दिन का उपवास नींबू पानी पीकर करना। इससे अपना स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा और देश में अन्न की भी बचत होगी।
* यदि पूरा उपवास न कर सकें तो फल खाकर या फल के रस लेकर उपवास करें।
* दिन में केवल दो बार भोजन, सुबह और संध्या के पूर्व करना।
* जो दो बार भोजन करके न रह सकें वे तीन बार भोजन करें, सुबह, दोपहर, संध्या।
* पचास से अधिक उम्र के लोग जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी है, दिन में एक बार ही अन्न खाए। बाकी समय दूध और फल पर रहें, इसका फल भी तुरन्त मिलेगा और बीमारी पास नहीं आएगी।
* बासी भोजन करने से रोग होता है।
* भोजन करते समय और सोते समय किसी प्रकार की चिन्ता, क्रोध या शोक नहीं करना चाहिए।
*आँख, नाक, कान, जीभ तथा जननेन्द्रिय ये पाँच ज्ञानेन्द्रिय हैं, इनका संयम आवश्यक है।
* सोने से पहले पैरों को धोकर पोंछ लें, कोई अच्छी स्वास्थ्य सम्बन्धी पुस्तक पढ़ें, अपने इष्टदेव को स्मरण करते हुए सोने से नींद अच्छी आती है।
* रात्रि का ठोस भोजन सोने से तीन घण्टे पहले करना। फल, दूध लेने वाले एक घण्टा पहले भोजन खत्म कर दें।
* सोते समय मुँह ढँककर नहीं सोना। खिड़कियाँ खोल कर सोना चाहिए।
* सोने की जगह बहुत मुलायम न हो।
* रात्रि के दस बजे तक सो जाना।
* दिन में एक बार खुलकर हँसना और परोपकार करने की भावना रखना।
* सातों स्वरों का प्रभाव और सम्बन्ध वात, पित्त और कफ से रहता है। रोग और दोष के अनुकूल स्वरों का विशेष प्रयोग करते हुए, संगीत उपचार द्वारा कई रोगों की चिकित्सा एवं स्वास्थ्य की रक्षा की जा सकती है।
3 comments:
अच्छा संकलन ! धन्यवाद
बहुत अच्छी उपयोगी बातें लिखी है आपने ..शुक्रिया
अच्छी जानकारी, बहुत आभार.
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