महिला आरक्षण क्यों? : भारत में महिलाओं को सम्मान और समानता की विचारधारा उतनी ही सशक्त रही है जितनी कि इनके साथ असमानता की। भारतीय, श्रीरामचरित मानस की चौपाई 'महावृष्टि जल फुटि कियारी जिमि स्वतंत्र भई बिगड़त नारी' का जाप भी करते हैं और दुर्गा सप्तशती के 'या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता' का श्लोक वाचन भी करते हैं। सीताराम, राधेश्याम, लक्ष्मीनारायण में पहले नारी को स्थान दिया गया है।
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सफलता के प्रमाण : पंचायती राज और स्थानीय निकाय संबंधी 73वें और 74वें संविधान संशोधन विधेयक के अधिनियमित होने के बाद तो महिलाओं की आवाज इस मुद्दे पर और सशक्त हो चली है। धरातली संस्थानों में तो महिलाओं के लिए आरक्षण है, किंतु इनके लिए कानून बनाने वाले संस्थानों में नहीं।
महिला आरक्षण के लिए तर्क कम वजनदार नहीं हैं। महिलाएँ, त्याग, समर्पण, संसाधनों के पुनर्चक्रण (रिसाइक्लिंग) के बेजोड़ उदाहरण सामने रखती हैं। एक बार जिसके साथ सप्तपदी के फेरे लेती हैं, एक नहीं सात जन्मों तक उसी के होने की कसम खा लेती हैं। संसाधनों का इस्तेमाल पुरुषों की तुलना में महिलाएँ अधिक बेहतर ढंग से करती हैं। घर की चद्दर फटे तो खिड़की के पर्दे, पर्दे फटे तो उससे तकिए की खोल, खोल फटे तो गुदड़ी में भरने के चिंदे और गुदड़ी फटे तो सफाई का पोंछा बना संसाधनों के पुनर्चक्रण की शिक्षा महिलाएँ देती हैं। रात की रोटी बचे तो सुबह स्वादिष्ट चूरा, दाल-सब्जी में नमक अधिक गिरे तो बेसन के गोले डाल खाने योग्य बनाने की कला महिलाएँ ही जानती हैं। महीने के अंत में जेब खाली होने पर महिलाओं की मिट्टी गुल्लक ही सिक्के उगलती है। पंचायती राज संस्थानों में 'मैडम सरपंच' के लिए स्थान बनाते समय इन्हीं बिंदुओं पर गंभीरता से विचार हुआ था। अब संवैधानिक संस्थानों के लिए भी ऐसी व्यवस्था जोरदार ढंग से अनुभव हो रही है।
क्या है समस्या : मौजूदा राजनीतिक समीकरण में रोचक तथ्य यह है कि संप्रग के समर्थन में राजग प्रमुख भाजपा अपना समर्थन लिए खड़ी है। संप्रग के बाह्य समर्थक वामदल भी आरक्षण विधेयक के समर्थक हैं। आखिर 'गृह मंत्रालय' व 'वित्तमंत्री' की नाराजगी कौन झेले? (कहीं महिलाएँ घर के लिए गृह मंत्रालय और कहीं वित्तमंत्री कहलाती हैं।
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