मई यानी दुनिया के मेहनतकशों या मजदूरों का दिन। आज के दिन दुनियाभर के मेहनतकशों की एकजुटता और सवालों को लेकर कई कार्यक्रम होते हैं। हमारी आज तक की दुनिया जो मनुष्यों ने निर्मित की है, में मेहनतकश और दिमागकश लोगों के काम और विचार का संयुक्त योगदान है। मेहनतकश लोगों ने दिमागकश लोगों के विचारों या सपनों को दुनिया के नक्शे पर उतारने में अपना खून-पसीना बहाया है। दिमागकशों के निराकार विचारों या सपनों को दुनियाभर के मेहनतकशों ने अपनी मेहनत के विनियोग से दुनियाभर में साकार किया है। यदि हमारी यह दुनिया केवल मेहनतविहीन दिमागकशों की दुनिया ही होती और कोई मेहनतकश इस दुनिया में नहीं होते तो दुनिया केवल सपनों के उड़ान की दुनिया होती और दिमागकशों के सपने दुनिया की जमीन पर नहीं उतर पाते। चीन में दुनिया की सबसे लंबी दीवार को साकार रूप देना हो या ताजमहल जैसी दुनिया की आश्चर्य इमारत का निर्माण हो, दोनों ही दिमागकश और मेहनतकश के अरमान और कर्म के खूबसूरत गठबंधन का ही नतीजा है कि हमारी दुनिया निरंतर अपने सपनों को अपनी मेहनत से साकार कर रही है। दुनिया की शुरुआत से दुनिया के मनुष्यों का दिमाग मनुष्य की शक्ति या ऊर्जा को और ज्यादा तेजस्वी और शक्ति संपन्न बनाने में ही चला। इसका नतीजा हुआ कि शुरुआती दुनिया के सारे बुनियादी औजार और आविष्कार मनुष्य के दिमाग ने इस सिद्धांत की बुनियाद पर किए कि ऐसे आविष्कारों और औजारों से एक मनुष्य दो-चार मनुष्यों की ऊर्जा के बराबर काम कर सके, तो शुरुआती दुनिया में काम करने वाले मनुष्यों की मेहनत की प्रतिष्ठा दुनियाभर में बहुत बढ़ी और जो भी शक्ति संपन्न बनने का सपना देखता था, उसके ऐसे मेहनती इंसानों या उसकी शक्ति को अपने वश या ताकत के अधीन करने में ही अपने दिमागों का इस्तेमाल प्रारंभ किया। जब मनुष्य ने ऐसे औजारों का निर्माण भी कर लिया, जिससे मनुष्य के साथ पशु की ऊर्जा मिलकर उसमें औजार की शक्ति भी जुड़ जाए, तो मनुष्य के सोच की दिशा ऐसे आविष्कारों की ओर चली। हल, बैलगाड़ी, घोड़ागाड़ी, चड़स आदि। साथ ही मनुष्य के दिमाग का अर्थशास्त्र इन्हीं संसाधनों तथा मनुष्य और पशु की शक्ति के चारों ओर चलने लगा। राज्य और साम्राज्य की शक्ति और ताकत मनुष्यों के लवाजमे और पशु की शक्ति के चारों ओर चलने लगी। राज्य और समाज की शक्ति और ताकत मनुष्यों की संख्या और पशुधन को देखकर होने लगी। युद्ध शास्त्र की संरचना में भी हाथी और घोड़े की संख्या ताकत का प्रतीक बनी। मनुष्य को अपनी सामूहिक संग्रह शक्ति का अभिमान होने लगा और मनुष्यों की ताकत के बलबूते पर दुनिया में समाज और राज्य के शक्ति केंद्रों का उदय होने लगा।मेहनत को कम या खत्म करने की दिशा में चलने वाले दिमाग ने आज की विकसित दुनिया के संपन्न मनुष्यों से शरीर और दिमाग की प्राकृतिक गतिविधियों को छीन लेने वाली यंत्रीकृत दुनिया की रचना की दिशा में अपने कदम बढ़ा लिए हैं। हमारी दुनिया के प्रारंभिक दौर में मनुष्य की सोच पूरी तरह से मनुष्य की क्षमता के विकास को शक्ति संपन्न बनाने के सपने को साकार करने के पराक्रम का काल है। पर आज के मनुष्य की ऊर्जा और दिमाग दोनों पर यंत्रों का गहरा प्रभाव कायम हो चुका है। आज के मनुष्य का रचना संसार सृजन और संहार की ऐसी मशीनों की रचना कर चुका है कि उसे पूरे मनुष्य समाज की जरूरत ही नहीं बची है। मनुष्य द्वारा निर्मित मशीनें और तकनालॉजी ने मनुष्य की ऊर्जा और दिमाग पर अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया है।
इसी का नतीजा है कि दिमागकश मनुष्यों ने मेहनतकश मनुष्यों की ऊर्जा को लाचार कर मनुष्य की प्राकृतिक सक्रियता को नष्ट कर दिया है और अब दिमाग को आराम देने वाली नई तकनालॉजी ने मनुष्य के दिमाग की प्राकृतिक तेजस्विता को श्रीहीन करने का पूरा इंतजाम कर दिया है। इसके कारण मनुष्य शारीरिक और दिमागी मेहनत से दूर एक ऐसा प्राणी बनता जा रहा है, जिसका जीवन मनुष्य निर्मित मशीन या तकनालॉजी का पूरी तरह गुलाम हो गया हैं। दिमागकशों का दिमाग इस हद तक चला गया है कि लेटे-लेटे, बैठे-बैठे बिना अपना शरीर स्वयं हिलाए ही मशीनीकृत हलचल से व्यायाम के दौर-तरीके बाजार के हिट प्रोडक्ट आज की दुनिया में बनते जा रहे हैं।
मूलतः मेहनतकश मनुष्यों को दिमागकश मनुष्यों ने आरामतलबी मशीनकश मनुष्य में बदल दिया है। ऐसे मशीनकश मनुष्यों का समाज न तो दिमाग को सलाम करता है और न ही मेहनतकश की मेहनत का जिंदाबाद। दुनियाभर का मनुष्य मशीनकश आराममय जीवन बिताने में मगन है, उसे न तो दुनिया के मजदूरों की चिंता है और न ही मनुष्य जीवन की जीवंतता की। मशीनें चलती रहें और वह पड़ा रहे। यहीं जीवन का आनंद हो गया है। इस परिदृश्य को देख हम यह तो कह ही सकते हैं कि मशीन ने मशीन का गुलाम आराम पसंद मनुष्य समाज खड़ा कर दिल, दिमाग और हाथ के प्राकृतिक मनुष्य जीवन के संगीत को छीनकर, कानफोडू डीजे की धुन पर, मशीन के नशे की ताल पर, उछलने कूदने वाले ऐसे समाज में बदल दिया है, जिसे मनुष्य की ऊर्जा की जरूरत नहीं है।
इसलिए आज के यंत्रीकृत समाज में 'दुनिया के मजदूरों एक हो' की आवाज और लड़ाई इतिहास की बात हो गई है। मशीनों के बाजार ने दुनिया की गतिविधियों को बहुत तेज और मनुष्य की जिंदगी को मशीनों की कठपुतली बना डाला है। कठपुतली कभी भी अपने सवाल नहीं उठाती। वह तो नचाने वाले की उँगलियों के इशारे पर नाचती रहती है। इस परिदृश्य में एक मई इतिहास बनते मेहनतकशों की मेहनत को याद करने की रस्म का दिन बन गया है कि एक मनुष्य था, जो अपने शरीर की ऊर्जा से जीवन बिताता या जीता था और उसी ऊर्जा से मनुष्य समाज जीवंतता के साथ चलता था।आज उधार की ऊर्जा से यंत्र समाज तो दिन-रात चल रहा है, पर मनुष्य ऊर्जा आरामकश समाज में विलीन हो गई है। ऐसा आरामतलब समाज जोर-शोर से नहीं, पर उबासी लेता मनुष्य समाज जीवन में मेहनत के संगीत और सवालों के स्मरणीय दिवस एक मई को याद कर लेता है। क्या यह वर्तमान यंत्रीकृत मनुष्य समाज की एक उपलब्धि नहीं मानी जाएगी। निर्मेश त्यागी
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