शर्मा की शहादत से सबक लें राजनेता
इस देश की विडम्बना है कि एक तरफ देश के गृहमंत्री जब इस बार आंतकवाद की चपेट में आए दिल्ली शहर का मुआयना करते हैं तो तीन घंटों में तीन बार अपने सूट बदलकर मीडिया से मुखातिब होते हैं तो दूसरी तरफ मोहनचन्द्र शर्मा जैसे जाँबाज पुलिस अधिकारी आंतकवाद से लड़ते समय यह भी परवाह नहीं करते हैं कि उनके बदन पर बुलैटप्रूफ जैकेट है या नहीं या फिर उनका बेटा अस्पताल में भर्ती है और डेंगू जैसे लोग से ग्रस्त है।
अब दिल्ली के जाँबाज पुलिस अधिकारी शर्मा इस दुनिया में नहीं हैं। इससे हमारे राजनेताओं को जरूर सबक लेना चाहिए और आतंकवाद के खिलाफ कड़े कानून बनाने चाहिए दिल्ली बम धमाकों के बाद आंतकियों को ढूँढ़ने निकले शहीद शर्मा चार दिन से घर नहीं गए थे, यह जानते हुए भी कि उनका छोटा-सा बेटा अस्पताल में जानलेवा डेंगू से लड़ रहा है। यह देश के प्रति अपनी कतर्व्य परायणता की एक साहस भरी मिसाल है, वह भी उस दौर में जबकि हर तरफ सड़कों पर अराजकता और व्यवस्था में भ्रष्टाचार चरम पर है। मोहनचंद्र शर्मा इसके पहले भी आंतकियों से दो-दो हाथ करते रहे हैं। इसी फहरिस्त में उन्होंने 40 गैंगस्टरों को मारा, 129 को पकड़ा और 35 आंतकवादियों को मुठभेड़ में मार गिराया। लगभग 80 आंतकियों को गिरफ्तार करने का श्रेय भी उन्हें जाता है। शर्मा को उनकी उत्कृष्ट सेवा के लिए सात बार सम्मानित भी किया गया। अब दिल्ली के जाँबाज पुलिस अधिकारी शर्मा इस दुनिया में नहीं हैं। इससे हमारे राजनेताओं को जरूर सबक लेना चाहिए और आतंकवाद के खिलाफ कड़े कानून बनाने चाहिए ताकि आतंकवादी और देशद्रोही तत्व आसानी से कानून के चंगुल से मुक्त नहीं हो सके और उनमें कानून को लेकर दहशत भी हो। यदि वोट बैंक की राजनीति को भुलाकर ऐसा किया जाता है तो स्वर्गीय शर्मा के प्रति इससे बड़ी कोई श्रद्धांजलि हो ही नहीं सकती।
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