वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में गठित दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग की आठवीं रिपोर्ट की वजह से आजकल जबरदस्त हंगामा मचा हुआ है। वजह है मोइली का आतंकवाद से निपटने के लिए कड़े कानूनों को लाने की वकालत करना। भाजपा को इस वजह से सरकार की आलोचना करने का नया मसाला मिल गया है। लेकिन यहां यह भी याद रखना जरूरी है कि कड़े कानूनों के रहने के बावजूद भी राजग के शासनकाल में भी बड़े आतंकवादी हमले हुए हैं। इस बात को विज्ञान और तकनीकी मंत्री कपिल सिब्बल ने अपने एक लेख में बड़ी शिद्दत से लिखा है। वैसे तो इस बात पर लंबी बहस हो सकती है, लेकिन इस रिपोर्ट में मुल्क में इससे सबसे प्रभावित सूबों के बारे में बड़ी अनोखी बातें सामने आई हैं। मोइली ने गृह मंत्रालय के जिन आंकड़ों का सहारा लिया, उसके मुताबिक 2003 में कुल मिलाकर 1,597 आतंकवादी हमले हुए। इनमें कम से कम 515 लोगों की जानें गईं। लेकिन मजेदार बात यह है कि 2007 में आतंकवादी हमलों की तादाद कम होकर 1565 हो गई थी, लेकिन उनमें मरने वालों की तादाद 696 हो गई थी। दूसरे शब्दों में कहें तो संप्रग सरकार की आतंकवाद से निपटने की नीति ही आज हर तरफ से हमले झेल रही है। ये आंकड़े परिस्थिति में किसी तरह के सुधार को नहीं दिखलाते। इससे भी रोचक तस्वीर तब मिलती है, जब हम इन आंकड़ों को अलग-अलग करके देखते हैं।इन आंकड़ों के मुताबिक नक्सलवादियों का गढ़ समझे जाने वाले आंध्र प्रदेश में हताहतों की तादाद में काफी कमी आई है। 2003 में इस प्रांत में 577 घटनाएं हुई थीं, जिनमें कम से कम 140 लोगों की जानें गई थीं। 2007 में घटनाओं की संख्या घटकर 138 हो चुकी थी और मरने वालों की तादाद भी 45 रह गई थी। राज्य सरकार की आक्रामक तरीके से नक्सलियों से निपटने की नीतियां रंग ला रही हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ में हालात सुधरने के नाम ही नहीं ले रहे हैं। राज्य सरकार सलवा जुडुम के तहत आदिवासियों को हथियारों से लैस कर उन्हें अलग-अलग इलाकों में भेज रही है। इससे हालत सुधरने के बजाय और बिगड़ गए हैं। 2003 में यहां केवल 256 नक्सली वारदातों में 74 लोगों की जान गई थी। लेकिन 2007 में नक्सलियो ंने 582 वारदात को अंजाम दिया, जिनमें कम से कम 369 जानें गईं। साथ ही इससे यह बात भी साबित हो जाती है कि माओवादियों से निपटने के लिए राज्य सरकार को खुद कदम उठाने पड़ेंगे।एक और बड़ी बात यह है कि जम्मू-कश्मीर में भी अब हालात तेजी से बदल रहे हैं। यहां मरने वालों और हताहतों की तादाद भी काफी कम हुई है। यह परिस्थिति पूर्वोत्तर के ठीक उलट है, जहां लोगों को पिछले चार सालों में कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिला है। इसकी वजह पाकिस्तान के साथ संघर्ष विराम हो सकता है, या फिर उसका अपने पश्चिमी सीमा पर ज्यादा व्यस्त रहना हो सकता है।वजह चाहे जो हो, लेकिन मुल्क सबसे खतरनाक इलाके में अपनी पकड़ खो रहा है। वहीं, पूर्वोत्तर के इलाके में आतंकी वारदात की तादाद में 2003 के मुकाबले में 2007 तक चार गुना का इजाफा हो चुका है। पिछले साल पूर्वोत्तर में करीब 1500 आतंकी वारदात हुईं, जिनमें करीब 500 लोग मारे गए। वहीं, जम्मू कश्मीर में केवल 131 लोग मारे गए थे। तो अब कश्मीर में शांति होने की वजह से जरूरत है कि हम पूर्वोत्तर की तरफ ध्यान दें।
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