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जबकि प्रत्यक्ष तौर पर दिखाई यह देता है, या कहें दिखाया यह जाता है कि शासन की समस्त विकास योजनाओं का एकमात्र लक्ष्य आम आदमी की बेहतरी होता है। लोककल्याणकारी शासन में यह सच भी है। यह भी असत्य नहीं है कि इन विकास योजनाओं के लाभ आम आदमी तक पहुँचाना भी लोककल्याणकारी शासन का बुनियादी दायित्व होता है। शासन अपने दायित्व पूरे कर रहा है, यह दावा किया जाता है। फिर क्या कारण है कि राशन की दुकान पर कतार में खड़ा आम आदमी खाली हाथ लौट जाने के लिए मजबूर होता है। बिजली आपूर्ति के बिना दिन और रात काटना उसकी लाचारी बन गई है। पानी जैसी जीवन उपयोगी आवश्यकता की न्यूनतम पूर्ति भी शासन नहीं कर पाता है। दिनदहाड़े घटने वाले अपराधों से जनसुरक्षा का शासन का दायित्व रोज घायल होता रहता है। शिक्षा की लागत आम आदमी की जेब सहन करने में असमर्थ हो जाती है। जनहित के फैसलों के लिए इंतजार अपने मायने खो देता है। जाहिर है कि दायित्व के निर्वहन के दावों और उसकी वास्तविक स्थिति के बीच अंतर खाई की तरह मौजूद है। मध्यप्रदेश में समय-समय पर सत्तासीन रहे नेतृत्व इस विसंगति को दूर क्यों न कर सके, यह आत्मावलोकन वक्त की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
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योजना आयोग का सर्वेक्षण कहता है कि गरीब राज्यों में मध्यप्रदेश छठे स्थान पर है। अड़तीस प्रतिशत से अधिक आबादी अब भी गरीबी रेखा के ऊपर नहीं आ सकी है। क्रम में अपने से नीचे आने वाले प्रांतों से तुलना कर प्रगति पर संतोष व्यक्त करना अधूरी आशा है। ऊपर देखा जाना चाहिए कि लक्ष्य से कितने दूर रह गए हैं। यही कारण है कि वह ललक, वह तत्परता दिखाई नहीं दे रही है, जो लक्ष्य की तरफ तेजी से बढ़ने में प्रत्यक्ष होती है। मध्यप्रदेश अपनी उम्र के नए वर्ष का पहला माह पूरा करेगा, उन्हीं दिनों नई प्रदेश सरकार के आने की तैयारियाँ अंतिम चरणों में होंगी। नई सरकार भी विकास के लक्ष्यों की अपनी रूपरेखा तैयार करेगी। आशाजनक होगा यदि वह वास्तविक स्थिति और आँकड़ों के बीच अंतर को एक समयबद्ध कार्यक्रम के जरिए खत्म करने का कदम उठाएगी।
1 comment:
आभार मध्य प्रदेश के बारे में इन जानकारियों का.
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