पिछले दिनों से एक बहस छिड़ी हुई है कि क्या विधायकों और सांसदों को जीत के लिए 50 फीसदी वोट मिलना अनिवार्य करना चाहिए? भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। यहाँ दुनिया की सबसे अच्छी प्रणाली द्वारा मतदान होता है। परंतु प्रत्येक रचना या योजना अथवा प्रक्रिया परिष्कृत होती है। हमारे देश की लोकतांत्रिक प्रणाली में भी परिवर्तन हो सकते हैं। यह तभी हो सकता है जब इसके कारगर परिणाम प्राप्त होने की उम्मीद बढ़े। हमारी मतदान प्रणाली बहुत अच्छी है। इसमें कोई संशय नहीं, परंतु देश का प्रत्येक मतदाता अपने मत का प्रयोग नहीं कर पाता। हाल ही में 12 अप्रैल को बैतूल-हरदा लोकसभा सीट के लिए मतदान हुआ। इसमें केवल 50 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया। सबसे पहले इस बिंदु पर बहस होनी चाहिए।कानून निर्माता, नीति नियंताओं के लिए यह बिंदु महत्वपूर्ण लगना चाहिए कि आखिर क्या कारण है कि मतदाता मत देने के प्रति उदासीन है? मतदान के प्रति वह अरुचि क्यों दर्शाता है? जबकि आकर्षण ऐसा होना चाहिए कि शत-प्रतिशत न सही कम से कम 90-95 प्रतिशत मतदाता मताधिकार का प्रयोग करें।
पिछले दिनों से एक बहस छिड़ी हुई है कि क्या विधायकों और सांसदों को जीत के लिए 50 फीसदी वोट मिलना अनिवार्य करना चाहिए? भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है।
अक्सर देखा यह गया है कि छोटे स्तर के चुनाव में मसलन किसी गाँव के वार्ड मेंबर के चुनाव में सभी मतदाता मत डालने जाते हैं। ऐसे ही वार्ड के मतदाता लोकसभा चुनाव में उदासीन हो जाते हैं! महज 100 में से 30-40 लोग मताधिकार का प्रयोग करते हैं। एक गाँव में मतदाता से पूछा गया कि आप मत डालने क्यों नहीं गए? जवाब था- क्या इससे खाने को मिलेगा। खेत में काम करें या स्कूल में लाइन लगाकर खड़े हो जाएँ? प्रश्नकर्ता हतप्रभ रह गया। यह देश के लिए अच्छी बात नहीं है। बुद्धिजीवी वर्ग इसके पीछे अनेक कारण गिनाने बैठ जाते हैं। कई सलाह, सुझाव सामने आते हैं। परंतु इन पर अमल करने वालों का टोटा है। कौन करे अमल? यह तो ठीक है। एक बार चुनाव विश्लेषण कर रहे एक ग्रुप के सदस्यों से किसी ने पूछ लिया- क्या आप मत डालने गए थे? जवाब मिला- हम तो इन दिनों इतने व्यस्त रहते हैं कि...। मतलब वे मत डालने नहीं गए।अब यहाँ प्रश्न उठता है कि कथित पढ़े-लिखे लोग अपनी व्यस्तता का बहाना बनाते हैं तो वे ग्रामीण क्या सही नहीं हैं। एक बात काबिले गौर देखी गई कि यदि मतदाता का कोई चहेता व्यक्ति चुनाव लड़ता है तो उसे विजयी दिलाने के लिए स्वयं तो मत डालता ही है, दूसरों को भी अपने साथ ले जाता है। परंतु ऐसी जागरूकता वह बड़े चुनाव में नहीं दिखाता, कहता है- ये अपने गाँव का है। उसका क्या, वो 5 सालों में एक बार आता है और क्या मालूम आए भी नहीं। ऐसे एक नहीं, हजारों उदाहरण मिल जाएँगे।
7 comments:
बहुत अच्छा लिखा है. आपका स्वागत है.
बहुत बहुत स्वागत है आपका.. अच्छा लिखते हैं आप..जारी रखियेगा ज़रूर...दिनेश
नए चिट्ठे के साथ हिन्दी चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है... आशा है आप अपनी प्रतिभा से चिट्ठा जगत को समृद्ध करेंगे.... हमारी शुभकामनाएं भी आपके साथ है।
voting system me parivartan jaruri hai
thanks
बहुत सहमत हूँ.
स्वागत है.
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