rashtrya ujala

Friday, October 31, 2008

मौसम बदले तो दुख देता है दमा



दमा के रोगियों के लिए जाड़े की आहट कष्टकर साबित हो सकती है। यह लंबे समय तक चलने वाला रोग है। दमा में रोगी के साँस लेने की क्रिया असहज हो जाती है। रोगी को खासकर रात्रि में बलगमरहित सूखी खाँसी आती है। रोगी द्वारा साँसें छोड़ते वक्त 'साँय-साँय'अथवा सीटी बजने की ध्वनि निकलती है।
कारण:'एलर्जी' से पैदा होने वाले इस रोग की उत्पत्ति विभिन्न उद्दीपक तत्वों (एलर्जेन्स) के साँस द्वारा शरीर के अंदर प्रवेश करने से होती है। मसलन, ठंडी हवा के झोकें, घना कोहरा अथवा धुँध, एयर-कंडीशनर की हवा, धूल, धुआँ, सुगंधित सौंदर्य प्रसाधनों व इत्र-परफ्यूम की तेजगंध भी इस रोग का कारण बन सकती है। इसी तरह ऋतुओं के परिवर्तन-काल में वायुमंडल में परागकणों की प्रचुरता, सीलन अथवा नमीयुक्त दीवारों पर उगने वाली कवक एवं शैवाल (काई) के कारण भी यह शिकायत हो सकती है। विभिन्न खाद्य पदार्थों से एलर्जी भी दमा का कारण बन सकती है।
बचाव :इस मर्ज के रोगियों को नमी एवं सीलनदार कमरों में नहीं सोना चाहिए। कमरों में सूर्य का प्रकाश आने की समुचित व्यवस्था होना चाहिए। बिस्तर, कालीन, सोफा के कवर, पर्दे, वाल-हैगिंग, कैलेंडर व पुस्तकों को धूलरहित करने के लिए 'वैक्यूम क्लीनर' से नियमित तौर पर सफाई करें। रुई भरे गद्दों व तकियों के प्रयोग से बचें। इस मर्ज के रोगियों को धूम्रपान से बचना चाहिए। उन खाद्य पदार्थों के सेवन से बचें, जिनसे आप एलर्जी के शिकार होते हैं। डॉक्टर के परामर्श से ही दवाइयाँ लें।

1 comment:

संगीता पुरी said...

जानकारी के लिए धन्‍यवाद। आशा है , अगले आलेखों में भी ऐसी ही जानकारी मिलती रहेगी।