पौधा-फर्न |
उमस और गरमी के नुमाइंदे ''फर्न'' की 10,000 से भी अधिक प्रजातियां उपलब्ध हैं। इस का वानस्पतिक नाम ''एस्पैरेगस स्प्रैंगरी'' है। जड़, तने व पत्ते वाले खूबसूरत फर्न की एक खासियत है कि यह फूलविहीन होता है, पर सुंदर कोमल पत्तियों के कारण यह दुनिया के अधिकतर भागों में उगाया जाता है।
फर्न की जडें रेशेदार होती है और गुच्छों में बढ़ती हैं। इस पौधे की टहनी सिमटी हुई फिरकी या गट्टेनुमा निकलती है और धीरे-धीरे बढ़ती हुई पेड़ों के केन्द्र से चारों तरफ फैल जाती है, ठीक उसी प्रकार जैसे फुहारे से पानी की धार निकल कर चारों तरफ फैल जाती है।
टहनी के दोनों तरफ प्रजातियों के अनुसार तरह-तरह की पत्तियां आती हैं जो सुंदर, चमकीली, हलके व गहरे हरे रंग की होती हैं। पत्तियों के पीछे तरफ छोटे-छोटे तिल जितने उभार होते हैं, उन से भी पेड़ तैयार किए जाते हैं, ये अधिकतर छाया के पौधे हैं, अत: इन्हें सीधा धूप का प्रकाश नहीं लगना चाहिए।फर्न चिकनी मिट्टी या एसिडिक मिट्टी में अधिक अच्छी तरह पनपते हैं। वैसे इन को अन्य तरह की मिट्टी में भी उगा सकते हैं। परंतु इन्हें गोबर या पत्तियों की खाद की अन्य पौधों की तुलना में अधिक मात्रा में जरूरत होती है। अच्छा तो यह रहता है, खाद और मिट्टी का अनुपात बराबर हो।गर्मी शुरू होने पर ही फर्न को लगाना चाहिए। फर्न की कई प्रजातियां उपलब्ध हैं पार्सले फर्न, ब्लैडर फर्न, सेंसिटिव फर्न, ऑस्ट्रिच फर्न, ओक फर्न, फ्लावरिंग फर्न, एथुरियमस्ट फर्न, स्कूरियल फुट फर्न, स्टैगहॉर्न फर्न (नाम के अनुरूप हिरन के सींगों जैसी लगती है), मैडनहेयर फर्न (ऐसा महसूस होता है, जैसे किसी युवती के खूबसूरत बाल हों) आदि। फर्न की कुछ प्रजातियां कठोर होती हैं। ऐसी प्रजातियों को अकसर बगीचों में देखा जा सकता है। ये प्रतिकूल परिस्थितियों में भी फलफूल जाती हैं। जबकि परिस्थियों में भी फलफूल जाती हैं। जब कि नाजुक प्रजातियों को उचित वातावरण में ही पालना पड़ता है। बसंत ऋतु में फर्न की जड़ों के गुच्छों को अलग-अलग कर के लगाया जा सकता है। कुछ जातियों के फर्न के पत्तों के पीछे की तरफ छोटे-छोटे पौधे बन जाते हैं, जिन को अलग कर के नए पौधे तैयार किए जाते हैं।
फर्न की पत्तियों के पीछे की तरफ छोटे-छोटे तिलनुमा सोर्स होते हैं, उन को तोड़ कर लिफाफे में रख लेना चाहिए, सूखने पर उन में से पाउडर निकलता है। इस पाउडर को मिट्टी और खाद के मिश्रण में जब बीज लगाएं, तब ऊपर बुरक दें।
अन्य बीचों की तरह उस के ऊपर मिट्टी नहीं डालते हैं। फर्न को सर्दी के दिनों में कम पानी देना चाहिए, परंतु जडें सूखनी नहीं चाहिए। कई बार अधिक पानी से जडें ग़ल भी जाती है। यद्यपि अन्य पौधों की तुलना में फर्न अधिक पानी पीता है। फर्न की कई प्रजातियों से हैंगिंग बास्केट बनाना उत्तम रहता है। इस के लिए गमले के चारों तरफ मास (काईदार घास) बांध दें। जब पेड़ बढ़ता है, तब धीरे-धीरे मास पर भी फैल जाता है। पौधे को हस्तांतरित करते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि फर्न की जड़ों को कम से कम नुकसान पहुंचे तथा जड़ों की मिट्टी कम से कम झडे। पत्तों की बहुतायत के कारण फर्न पौधों में कीडे-मकोड़ों के छिप कर बैठने का भी अंदेशा रहता है। पौधे को किसी प्रकार की क्षति न पहुंचे, इसके लिए समय-समय पर कोई भी कीटनाशक दवा, जो बाजार में उपलब्ध हो (रोजर, नोवान, डिमिक्रान, रडार आदि) का छिड़काव अवश्य करें।
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