जब तक पुरानी संधियां नहीं टूटेंगी,तब तक नए समझौते नहीं हो सकते।
भारतीय सेना में नेपाली गोरखाओं के होने का कोई मतलब नहीं है। हां। अगर ओलंपिक का समापन समारोह नहीं होता तब शायद मैं चीन नहीं जाता।दस वर्षों तक सशस्त्र संघर्ष का नेतृत्व करने के बाद जनतांत्रिक चुनाव के जरिए सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' बिना किसी लाग-लपेट के यह कह रह हैं कि नेपाल में व्यवस्था के स्तर पर एक क्रांति ने आकार लिया है। इस नाते अब नेपाल के भारत सहित दुनिया के तमाम मुल्कों के साथ रिश्तों का व्याकरण भी बदलेगा। प्रचंड मानते हैं कि अब द्विपक्षीय रिश्तों को एक नए आयाम से देखने की जरूरत है। प्रचंड नेपाल में संसदीय लोकतंत्र के स्थान पर जनोन्मुखी लोकतंत्र का मॉडल लाने की बात कर रहे हैं। वे खुद मानते हैं कि उनका यह प्रयोग जोखिम भरा है लेकिन वे ऐसा करने के लिए कटिबध्द नजर आते हैं। भारत के साथ 1950 और उसके बाद हुई सभी संधियों की वे समीक्षा चाहते हैं। अब तक पारंपरिक रूप से नेपाल के प्रधानमंत्री शपथ ग्रहण के बाद पहली यात्रा भारत की किया करते थे, लेकिन प्रचंड ने ऐसा नहीं किया। इन्हीं तमाम मुद्दों पर प्रचंड से देशबन्धु ने उनके दिल्ली प्रवास के दौरान विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश -
नेपाल में राजनीतिक व्यवस्था का स्वरूप क्या होगा, क्या यह संसदीय लोकतंत्र के रूप में उभरेगी?
हम नेपाल में लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाएंगे, लेकिन यह संसदीय लोकतंत्र नहीं होगा। हम एक नए लोकतंत्र के स्वरूप को बनाना चाहते हैं, जो पारंपरिक लोकतंत्र से अलग होगा। हम लोकतंत्र स्थापित करने के लिए पुराने मानदंडों को नहीं अपनाएंगे। इसके लिए हमने एसेंबली में एक नीति भी रखी थी, जिसे सर्वसम्मति से पारित भी कर दिया गया है। यह संसदीय लोकतंत्र नहीं, जनोन्मुखी लोकतंत्र होगा। इस तरह के प्रयोग लगातार जारी रहेंगे, क्योंकि हमें एक नई व्यवस्था का मॉडल सामने रखना है, जिसमें पीडित-शोषित एक महत्वपूर्ण भूमिका में हाेंगे। सही अर्थों में जनता की सरकार होगी। नेपाल एक प्रयोग होगा, जिसका असर भारत ही नहीं पूरे दक्षिण एशिया पर पड़ेगा। यह जोखिम भरा काम है, लेकिन हमें अपने सिध्दांतों पर पूरा विश्वास है। क्या वजह थी कि प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद आपकी पहली यात्रा भारत के स्थान पर चीन की हुई?
चीन भी हमारा पडाेसी देश है, क्योंकि हम ओलिपिंक के उद्धाटन समारोह में शामिल नहीं हो पाए थे। इसलिए समापन समारोह में चले गए। भारत और नेपाल के संबंध और चीन और नेपाल के संबंध की तुलना नहीं की जा सकती। भारत के साथ नेपाल के संबंध बहुत पुराने हैं, दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक ऐतिहासिक व आर्थिक लेन-देन का संबंध है, यह संबंध काफी गहरा है। हम चीन के साथ भी संबंध बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इन दोनों संबंधों की कभी किसी स्तर पर तुलना नहीं की जा सकती।
क्या बीजिंग में ओलिंपिक नहीं होता, तो आप चीन नहीं जाते? हां। शायद तब मैं चीन नहीं जाता।
आपने कहा था कि भारतीय सेना के गोरखा रेजीमेंट में नेपाली गोरखा शामिल नहीं होंगे। इसके पीछे क्या तर्क है?
हां, यह सही है। भारतीय सेना में नेपाली गोरखाओं के होने का कोई मतलब नहीं है। जहां तक मुझे पता है भारतीय सेना में लगभग चालीस हजार नेपाली गोरख ा हैं। असल में 1950 के बाद के जितने भी समझौते हैं, उनमें बदलाव की जरूरत है।
इन्हीं समझौतों में भारतीय सेना में नेपाली गोरखों के शामिल होने की भी बात है। इन समझौतों में सुधार किया जाएगा, तो यह परंपरा भी खत्म होगी। भारत की आपकी यह पहली राजनीतिक यात्रा है, भारत सरकार का रुख आपको कैसा लगा?
मेरी प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह से मुलाकात हुई, विदेशमंत्री प्रणब मुखर्जी से भी मैं मिला हूं। इसके अलावा मैंने भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रमुख नेताओं से भी मुलाकातें की हैं। भारतीय नेतृत्व से मैंने साफ-साफ कहा है कि भारत और नेपाल के बीच 1950 में हुई संधि को यही खत्म किया जाए। जब तक पुरानी संधि नहीं टूटेगी, तब तक नया समझौता नहीं हो सकता। हमने उनसे सीमा सुरक्षा, जल संसाधन से संबंधित मुद्दे पर भी बदलाव करने की बात कही है। नेपाल की व्यवस्था में क्रांति आई है और इसलिए दूसरे देशों के साथ उसके संबंधों को भी एक नए आयाम से देखा जाना चाहिए।
आप 1950 की संधि में क्या बदलाव चाहते हैं, इसको लेकर आपकी नई दिल्ली से क्या बातचीत हुई है?
दरअसल 1950 के बाद की सभी संधियों में बदलाव की जरूरत है। नदी जल बटवारे को लेकर दोनाें देशों के बीच जो संधियां हुई हैं और उनमें जो शर्तें रखी गई हैं, उनपर विचार करने की जरूरत है। यही बात कोसी और गंडक नदी के समझौते को लेकर भी है। यही बात भारतीय सेनाओं में नेपाली गोरखाओं के बारे में भी है। दोनाें देशाें की सीमाओं से संबंधित बातें भी समझौते में शामिल हैं। भारत सरकार भी मान रही है कि इन संधियों में बदलाव की जरूरत है। इन सभी संधियों की समीक्षा होगी। इसके लिए टास्क फोर्स का गठन किया जाएगा। जो सभी संधियों की समीक्षा करेगा। वही तय करेगा कि किन संधियों को पूरी तरह से बदलने की जरूरत है और किन संधियों में संशोधन की जरूरत है। जल्द ही इस संबंध में दोनों देशाें का संयुक्त बयान जारी होगा। आप नेपाल में भारतीयों से निवेश की अपील कर रहे हैं, लेकिन पूर्व में वहां भारतीय निवेशकों को सुरक्षा का संकट रहा है। ऐसे में अब निवेशकों को सुरक्षा का भरोसा कैसे दिलाएंगे ?
मैं चाहता हूं की नेपाल भी औद्योगिक रूप से विकसित हो। मैंने निवेशकों को कहा है कि वे नेपाल में निवश करें। निवेशकों को वहां हर तरह की सुरक्षा प्रदान की जाएगी। औद्योगिक सुरक्षा के लिए जो भी संभव होगा हम करेंगे। मैं पिछली घटनाओं में नहीं जाना चाहता। लेकिन अब यह भरोसा जरूर दिलाना चाहूंगा कि नेपाल में उद्योग लगाने वालों को सरकार पूरी सुरक्षा उपलब्ध कराएगी। देशबन्धु विशेष साक्षात्कार
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